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कुंडा के DSP जिया-उल हक की हत्या की पूरी कहानी, राजा भैया फंसे फिर कैसे बच निकले थे?

ये कहानी प्रतापगढ़ के कुंडा की है. बलीपुर गांव में DSP जिया-उल हक का मर्डर कर दिया गया. उनकी पत्नी परवीन आजाद अभी तक इस केस को लड़ रही हैं, उनकी याचिका पर SC ने CBI को फिर से मामले की जांच करने को कहा है. कैसे इस मामले में राजा भैया का नाम आया था? फिर कैसे CBI ने उन्हें क्लीन चिट दे दी थी? जानिए पूरी केस स्टोरी

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दस साल पहले हुई कुंडा के DSP जिया-उल हक की हत्या में राजा भैया की भूमिका की जांच के लिए CBI को आदेश दिया गया है | फाइल फोटो: इंडिया टुडे

रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया (Raghuraj Pratap Singh-Raja Bhaiya). यूपी की कुंडा विधानसभा से 7 बार के विधायक. किस्से कई हैं इनके. थानों में दर्ज केस भी कई हैं. लेकिन एक केस ऐसा है जिसके लिखे का रंग बार-बार गहरा हो जाता है. मामला 10 साल पुराना है. बात शुरू होती है कुंडा के बलीपुर गांव से. एक जमीन का विवाद था, सपा समर्थक प्रधान नन्हे लाल यादव ने बबलू पांडे से एक जमीन खरीदी थी. पर इस जमीन पर कामता प्रसाद पाल का भी मालिकाना दावा था. कामता को राजा भैया के करीबी कहे जाने वाले गुड्डू सिंह का सपोर्ट था. ये भी कहा जाता है कि नन्हे की प्रधानी में गुड्डू ने खुला विरोध किया था. दोनों में झंझट उसी वक्त से था.

2 मार्च, 2013 की बात है. नन्हे यादव और कामता प्रसाद पाल जमीन के मसले को सुलटाने को लेकर पंचायत कर रहे थे. बताते हैं कि इसी दौरान कहासुनी हो गई. ये इतनी बढ़ी कि मौके पर ही नन्हे यादव का मर्डर हो गया. इसके बाद गांव में खूब कोहराम मचा. कुंडा के DSP (CO) जिया-उल हक नन्हे यादव का शव लेने बलीपुर पहुंचे. शव का पोस्टमार्टम होना था. DSP के साथ हथिगवां थाने के SHO मनोज कुमार शुक्ला और कुंडा थाने के SHO सर्वेश कुमार मिश्रा सहित कई पुलिसकर्मी थे.

बताया गया कि इन लोगों के गांव में घुसते ही गांव के कुछ लोगों ने उनपर अटैक कर दिया, पहले DSP को पीटा गया और फिर उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई. इस दौरान ही नन्हे यादव के भाई सुरेश यादव की भी गोली लगने से मौत हो गई. DSP जिया-उल हक के साथ जो भी पुलिस वाले मौके पर थे, वो अपनी-अपनी जान बचाकर भाग निकले. ऐसा उन्होंने खुद बताया था. बाद में इनमें से आठ को सस्पेंड कर दिया गया.

DSP मर्डर में राजा भैया का नाम कैसे आया?

इस मामले पर भयंकर बवाल मचा. राज्य की तत्कालीन समाजवादी पार्टी की सरकार जिसके मुखिया अखिलेश यादव थे, वो हिल गई. क्योंकि डीएसपी की हत्या का आरोप किसी और पर नहीं उसके ही एक कद्दावर मंत्री राजा भैया पर लगा. राजा भैया उस समय अखिलेश सरकार में खाद्य एवं रसद मंत्री थे. राजा भैया पर ये आरोप लगाया था DSP जिया-उल हक की पत्नी परवीन आजाद ने. उस समय DSP मर्डर में दो FIR लिखी गईं. एक SHO मनोज शुक्ला की रिपोर्ट के आधार पर, जिसमें प्रधान नन्हे यादव के भाइयों और बेटे समेत 10 लोगों पर हत्या का आरोप लगा. दूसरी FIR परवीन आजाद की शिकायत के आधार पर लिखी गई. इसमें राजा भैया और उनके चार बेहद करीबी लोगों के नाम थे.

परवीन आजाद ने आरोप लगाया था,

'मंत्री राजा भैया के आदेश पर नगर पंचायत अध्यक्ष गुलशन यादव, मंत्री के प्रतिनिधि हरिओम श्रीवास्तव, उनके ड्राइवर रोहित सिंह और समर्थक गुड्डू सिंह ने पहले मेरे पति को लाठी-डंडों से पीटा और बाद में गोली मारकर उनकी हत्या कर दी.'

परवीन का कहना था कि उनके पति बालू के अवैध खनन की जांच कर रहे थे. जिसका आरोप राजा भैया और उनके करीबियों पर था. परवीन के मुताबिक उनके पति ने उन्हें बताया था कि राजा भैया के करीबी उन्हें जांच न बंद करने पर जान से मारने की धमकी दे रहे हैं.

Zia's wife Parveen is blackmailing the government over the death of her  husband
परवीन आजाद अपने पति जिया-उल हक के साथ (फाइल फोटो)

परवीन की शिकायत पर राजा भैया और चार अन्य के खिलाफ हत्या, आपराधिक साजिश रचने, दंगा करवाने और हिंसा भड़काने सहित IPC की कई धाराओं में केस दर्ज किया गया. ये केस दर्ज होने के अगले ही दिन 4 मार्च, 2013 को राजा भैया ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. पुलिस ने दो FIR और दर्ज कीं, जो नन्हे यादव और उनके भाई सुरेश यादव की हत्या को लेकर थीं. FIR में नन्हे की हत्या का मुख्य आरोप कामता प्रसाद पाल और उसके बेटे अजय कुमार पाल पर लगाया गया. एक हफ्ते बाद ही इन दोनों ने सरेंडर कर दिया.

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CBI ने बताया DSP को गोली किसने और क्यों मारी? 

उधर, राजा भैया के इस्तीफे के दो रोज बाद ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मामले की जांच केंद्रीय जांच एजेंसी CBI से कराने का आदेश दे दिया. जिया उल हक की मौत के मामले की जांच सीबीआई से 8 मार्च, 2013 से शुरू की. जांच के दौरान ही DSP मर्डर केस में सीबीआई ने अप्रैल 2013 में मृतक ग्राम प्रधान नन्हे यादव के बेटे बबलू यादव, और नन्हे यादव के भाई  पवन यादव और फूलचंद यादव और इनके एक करीबी मंजीत यादव को अरेस्ट किया. सीबीआई का कहना था कि DSP को बबलू यादव ने मारी थी.

उसके मुताबिक हुआ यूं था कि 2 मार्च, 2013 को जब DSP जिया-उल हक को नन्हे यादव की हत्या का पता चला तो वो तुरंत फ़ोर्स लेकर बलीपुर गांव पहुंचे. इस दौरान नन्हे के घर वाले और उनके समर्थक काफी नाराज थे.जब तक DSP घटनास्थल पर पहुंचे, तब तक यादव की हत्या की खबर फैल चुकी थी और उनके घर के बाहर एक बड़ी भीड़ जमा हो गई थी, जो हत्या में पुलिस की कथित लापरवाही को भी वजह मान बैठी थी. भीड़ ने DSP को पीटना शुरू कर दिया, इस दौरान अन्य पुलिस वाले उन्हें वहीं छोड़कर भाग निकले.

उसी भीड़ में नन्हे यादव का भाई सुरेश भी था. सुरेश के हाथ में राइफल थी, राइफल गलती से चल गई और उसकी गोली सुरेश को लगी जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई. पिता और चाचा की मौत से बबलू को गुस्सा आया और उसने देशी कट्टे से जिया-उल हक की गोली मारकर हत्या कर दी. सीबीआई के मुताबिक उसने बबलू के पास से हत्या में इस्तेमाल हुआ हथियार भी बरामद कर लिया.

लेकिन राजा भैया पर CBI ने क्या कहा?

बबलू यादव की गिरफ्तारी के बाद भी सीबीआई ने इस मामले में उन आरोपों की छानबीन जारी रखी जो DSP जिया-उल हक की पत्नी परवीन ने राजा भैया और उनके करीबियों पर लगाए थे. इस दौरान सीबीआई ने राजा भैया से लगातार दो दिनों तक लंबी पूछताछ की. उनका पॉलीग्राफी टेस्ट भी हुआ. काफी जांच के बाद 1 अगस्त, 2013 को CBI एक नतीजे पर पहुंची. कहा राजा भैया और उनके चारों करीबियों का जिया-उल हक मर्डर केस से कोई ताल्लुक नहीं है. इनके खिलाफ ऐसे सबूत नहीं मिले जिससे इन पर केस चलाया जा सके. लाई डिटेक्टर टेस्ट में भी सभी आरोपियों के बयानों में भी कोई गड़बड़ी नहीं पाई गई है.

सीबीआई का ये भी कहना था कि जिस बलीपुर पुर गांव में DSP जिया-उल हक की हत्या हुई, वहां मर्डर के समय आरोपी गुलशन यादव, हरिओम श्रीवास्तव, रोहित सिंह और गुड्डू सिंह मौजूद नहीं थे. इनके कॉल रिकॉर्ड से पता चलता है कि मर्डर वाली रात गुड्डु सिंह और रोहित सिंह लखनऊ में थे, जबकि गुलशन यादव और हरिओम श्रीवास्तव कुंडा में थे.

DSP जिया-उल हक मर्डर केस में क्लीन चिट मिलने के बाद राजा भैया 19 अक्टूबर, 2013 को फिर अखिलेश यादव के मंत्रिमंडल में शामिल हो गए. उन्हें फिर से खाद्य एवं रसद विभाग की जिम्मेदारी दी गई.

ट्रायल कोर्ट ने CBI से क्यों कहा ये तो नहीं चलेगा?

लेकिन, करीब साल भर बाद जुलाई 2014 में राजा भैया को फिर झटका लगा. झटका तब लगा जब सीबीआई ने राजा भैया समेत अन्य आरोपियों को क्लीन चिट देते हुए 31 जुलाई 2013 को फाइनल क्लोजर रिपोर्ट कोर्ट में लगाई. इसमें 14 लोगों को आरोपी बनाया गया था. लेकिन इनमें राजा भैया या उनके किसी भी करीबी का नाम नहीं था. 

रिपोर्ट देखते ही कोर्ट ने इसे ख़ारिज कर दिया. ट्रायल कोर्ट में सीबीआई की विशेष न्यायिक जज श्रद्धा तिवारी ने रिपोर्ट को लेकर कहा कि जांच में सीबीआई ने न सिर्फ खानापूर्ति की, बल्कि कई तथ्यों की अनदेखी भी की. उन्होंने सीबीआई को तथ्यों पर गौर करने और नामजद व्यक्तियों की भूमिका के समुचित साक्ष्य जुटाकर मामले की आगे जांच करने का निर्देश दिया.

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दरअसल, सीबीआई की इस क्लोजर रिपोर्ट को परवीन आजाद ने चुनौती दी थी. ट्रायल कोर्ट ने उनकी बात सुनने के बाद कहा कि जिया-उल हक की पत्नी ने जिन तथ्यों पर आपत्ति उठाई है, सीबीआई ने उसकी समुचित विवेचना नहीं की. कोर्ट का ये भी कहना था कि वादिनी परवीन आजाद ने बताया कि जिया-उल हक आस्थान गांव में हुए दंगों और अवैध खनन की जांच कर रहे थे. इस मामले में उन पर राजनैतिक दबाव था. क्लोजर रिपोर्ट देखने के बाद कोर्ट का मानना था कि सीबीआई ने वादिनी के इस तथ्य की कोई समुचित जांच नहीं की.

हाईकोर्ट बोला- 'परवीन सिर्फ अफवाहों पर बात कर रहीं'

ट्रायल कोर्ट के इस फैसले को चुनौती देते हुए CBI इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंच गई. दिसंबर 2022 में हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया. उसने CBI की क्लोजर रिपोर्ट को मान्यता दे दी.

ये आदेश देते हुए जस्टिस दिनेश कुमार सिंह का कहना था,

'इस तथ्य को देखते हुए कि स्थानीय विधायक (राजा भैया) का पॉलीग्राफ परीक्षण किया जा चुका है, जो उन्होंने अपनी इच्छा से कराया था. पता लगता है कि विधायक राजा भैया पर लगे सभी आरोपों की गहन जांच की गई और CBI को ऐसा कोई सबूत नहीं मिला जिससे मर्डर में उनकी संलिप्तता का पता लगे. इस अदालत ने पाया कि ट्रायल कोर्ट का आदेश कानून की दृष्टि से टिकने वाला नहीं है. ये तथ्यों और कानून पर आधारित नहीं है, बल्कि मजिस्ट्रेट की धारणाओं पर आधारित लगता है...'

Parveen Azad

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने आदेश में लिखा था,

'DSP जिया-उल हक की पत्नी परवीन आजाद इस मामले की प्रत्यक्षदर्शी नहीं थीं. उनके लगाए गए आरोप अफवाहों और निराधार मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित थे... परवीन को आशंका थी कि स्थानीय विधायक कुछ अवैध रेत खनन के मुद्दे के कारण उनके पति की हत्या में शामिल थे... अवैध बालू खनन में भी विधायक के शामिल होने की किसी भी तरह से पुष्टि नहीं हुई है. ये भी साबित नहीं हुआ कि DSP पर स्थानीय विधायक का कोई राजनीतिक दबाव था, जैसा कि आरोप लगाया गया था.'

फिर मामला देश की सबसे बड़ी अदालत में पहुंचा 

इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस आदेश के खिलाफ परवीन आजाद सुप्रीम पहुंच गईं. जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस बेला माधुर्य त्रिवेदी की पीठ ने मामले की सुनवाई की. परवीन ने अपनी याचिका में पिछले आरोपों को दोहराते हुए कहा कि सीबीआई ने राजा भैया की भूमिका की ओर इशारा करने वाले महत्वपूर्ण तथ्यों की अनदेखी की है. उन्होंने ये सवाल भी उठाया कि पुलिस टीम ने उनके पति को कैसे अकेले छोड़ दिया? इतनी भीड़ में किसी अन्य पुलिसकर्मी को कोई चोट नहीं आई? CBI की जांच में इसे लेकर कुछ क्यों नहीं बताया गया? परवीन ने सीबीआई की उस चार्जशीट पर भी सवाल उठाए जिसमें उनके पति की हत्या के लिए प्रधान नन्हे यादव के परिवार के कुछ लोगों को जिम्मेदार ठहराया गया था.

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मामले को सुनने के बाद मंगलवार (27 सितंबर) को सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने आदेश दिया कि CBI इस हत्याकांड में राजा भैया की कथित भूमिका की फिर से जांच करे. जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस बेला माधुर्य त्रिवेदी की पीठ ने ये भी कहा कि केंद्रीय एजेंसी तीन महीने में मामले की जांच पूरी कर सुप्रीम कोर्ट में रिपोर्ट दाखिल करे. कुल मिलाकर अब मामला फिर CBI के पास पहुंच चुका है. देखना होगा अब केंद्रीय जांच एजेंसी कुंडा से क्या निकालकर बाहर लाती है.

DSP की हत्या पर लल्लनटॉप से क्या बोले राजा भैया?

2022 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले राजा भैया का लल्लनटॉप पर इंटरव्यू हुआ था. इसमें DSP जिया-उल हक हत्या के मामले में उनसे सवाल पूछा गया था.

तब राजा भैया ने बताया था,

'उस दिन जब नन्हे यादव का शव को लेने पुलिस टीम फिर गांव पहुंची. तो आक्रोशित गांव वालों ने पुलिस पार्टी पर हमला कर दिया. पुलिस पार्टी में CO समेत जो भी लोग थे वो भागे, लोगों ने CO पर हमला किया. CO को बंदूक की बट से मारा जो लोडिड थी. तो गोली चली और जो CO पर हमला कर रहा था (नन्हे यादव का भाई) उसके पेट में लगी. नन्हे का बेटा जो पीछे से आ रहा था, उसने लाश और बंदूक देखी तो उसने CO को गोली मार दी. ये घटना एक गली की है, जहां कम से कम 20 प्रत्यक्षदर्शी रहे होंगे. ये कोई सुनियोजित वारदात नहीं थी.'

Raghuraj Pratap Singh alias Raja Bhaiya, Kunda MLA and Jansatta Dal leader

इस मर्डर केस में अपने ऊपर लगे आरोपों को लेकर भी राजा भैया ने इंटरव्यू में जवाब दिया. उन्होंने कहा,

'CO जिया-उल हक की हत्या की कोई भी FIR मेरे ऊपर नहीं है. जब ये घटना हुई तो विधानसभा चल रही थी. तब हमने सबसे पहले इस घटना की CBI जांच की मांग की थी. हम जानते थे कि सरकार में हम मंत्री हैं और अगर स्टेट की एजेंसी जांच करेगी तो पक्षपात के आरोप लगेंगे. 2013 में केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी, जब ये घटना हुई थी. CBI ने जांच की और फिर अपनी रिपोर्ट रखी...'

राजा भैया अंत में ये भी बोले कि वो पहले भी इस केस की जांच के लिए तैयार थे और अब भी तैयार हैं. आगे बोले बाकी जिन्होंने हत्या की थी वो आज जेल में हैं.

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वीडियो: जमघट: यूपी चुनाव 2022 से पहले राजा भैया का इंटरव्यू