पहले आप कुछ हेडलाइन्स पर गौर करिएगा.
कोटा: 24 घंटे में और 2 छात्रों ने ली अपनी जान, जिम्मेदार कौन?
भारी कॉम्पीटीशन, मां-बाप की उम्मीदें, या कोचिंग का प्रेशर आखिर किस वजह से ले रहे बच्चे अपनी जान?
- 'पहाड़ा याद नहीं था, मैडम ने बच्चों से पिटवाया...', मुजफ्फरनगर केस में टीचर पर FIR
- मुजफ्फरनगर में महिला शिक्षक ने बच्चे को उसके सहपाठियों से लगवाए थप्पड़, वीडियो वायरल
- ब्लैक बोर्ड पर लिखा जय श्री राम, कठुआ में छात्र की बेरहमी से पिटाई
- मुजफ्फरनगर के बाद अब छतरपुर में…कड़ा पहनने पर टीचर ने छात्र की कर दी पिटाई
- कोटा में 24 घंटे में दो और छात्रों ने किया सुसाइड, कोचिंग सेंटरों में रूटीन टेस्ट पर 2 महीने के लिए लगी रोक
अगर आपको ये खबरों सिर्फ हेडलाइन्स दिख रही हैं तो आप गलत हैं. ये देश के माथे पर चिंता की लकीरें हैं.
पहले बात कोटा की. जहां पानी अब सिर से ऊपर जा चुका है. राजस्थान के कोटा में रविवार को NEET की तैयारी कर रहे दो और छात्रों ने ख़ुदकुशी कर ली: आविष्कार शंबाजी कासले, उम्र - 17 साल और आदर्श राज, उम्र - 18 साल. पुलिस ने जानकारी दी, कि चार घंटों के अंदर ही दोनों घटनाएं हुई हैं.
स्थानीय रिपोर्ट्स के मुताबिक़, 27 अगस्त को आविष्कार, जवाहर नगर स्थित अपने कोचिंग सेंटर गया. कोचिंग का साप्ताहिक टेस्ट दिया और कोचिंग बिल्डिंग की छठी मंजिल से ही छलांग लगा ली. संस्थान के कर्मचारी कासले को अस्पताल लेकर गए, लेकिन रास्ते में ही उसकी मौत हो गई.
इस घटना के चार घंटे बाद. शाम, 7 बजे. कुन्हाड़ी पुलिस थाना क्षेत्र. बिहार के आदर्श ने अपने किराये के कमरे में फांसी लगा ली. इन दो घटनाओं के बाद ज़िला प्रशासन ने कोचिंग सेंटर्स को आदेश दिया है कि वो अगले दो महीनों तक अपने संस्थान में कोई टेस्ट्स न करवाएं.
इन दोनों घटनाओं को मिला दें, तो अब तक केवल इस साल में 24 बच्चों ने अपनी जान ले ली. बीते साल - 2022 में - ये संख्या 15 थी. आप साल दर साल का डेटा देखिए -
2015 में 18
2016 में 17
2017 में 10
2018 में 12
2019 में 19
2020 और 2021 में 0.
मगर इस शून्य से बहुत तसल्ली लेने की ज़रूरत नहीं है. कोरोना महामारी की वजह से बहुत सारे छात्र अपने-अपने घर चले गए. और, कोचिंग सेंटर भी पूरी तरह से नहीं चल रहे थे. डेटा देखकर पता चलता है कि महामारी के बाद से आत्महत्या की घटनाएं 60% बढ़ गई हैं. और जब हम संख्या या डेटा कह रहे हैं, आपको ध्यान रखना है कि यहां जीते-जागते-सोचते-तैयारी करते बच्चों की बात हो रही है.
कोटा को आमज़ुबान में कोचिंग कैपिटल कहते हैं. मुख्यतः IIT और AIIMS जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों की तैयारी के लिए हर साल 2 लाख से ज़्यादा बच्चे कोटा जाते हैं. और, शहर की अर्थव्यवस्था भी कोचिंग पारिस्थितिकी तंत्र के इर्द-गिर्द ही घूमती है. आत्महत्या की घटनाएं बढ़ीं, तो प्रशासन ने भी कुछ क़दम उठाए. कोटा के सभी छात्रावासों और PGs में स्प्रिंग वाले पंखे लगाए जा रहे हैं. हॉस्टल्स की बालकनियों और लॉबी में "ऐंटी-सूसाइड नेट्स" लगाए जा रहे हैं, ताकि छात्र कूद न पाएं. लेकिन यहां भी कोई समस्या की जड़ तक नहीं जाना चाहता. हॉस्टल मालिकों ने भी कहा - कि नेट्स लग जाएं और स्प्रिंग वाले पंखे लग जाएं, तो उनका परिसर सूसाइड प्रूफ़ बन जाएगा.
छात्र फंदा लगा ले, तो स्प्रिंग उसका भार झेल ले या कूदे, तो कूद न पाए -- सरकार और प्रशासन इसी की जुगत में लगा हुआ है. इस बात पर ध्यान कम है कि ऐसी नौबत क्यों आ रही है?
अब आपके मन में एक लाज़मी-सा सवाल आएगा: सरकार ने क्या किया?
मुख्यमंत्री साफ़ रह रहे हैं, कि वो कोटा में बच्चों को अब मरते हुए नहीं देख सकते. सिस्टम सुधारने की बात कह रहे हैं. कमिटी बनवा रहे हैं. रिपोर्ट तलब कर रहे हैं. लेकिन ये सिस्टम है किसका? क्या हम-आप इसका हिस्सा नहीं हैं? आज तो मुख्यमंत्री कह रहे कि IIT जाने से कोई ख़ुदा नहीं हो जाता. मगर IIT-IIM का हउवा किसने बनाया? सफलता की परिभाषा को सीमित किसने किया? किसी भी क़ीमत पर सफलता का चंदन किसने घंसा?
कोटा मेडिकल कॉलेज में मनोचिकित्सा विभाग के प्रमुख हैं, डॉ. भरत सिंह शेखावत. उन्होंने NDTV से हुई बातचीत में कहा कि मौतों की ख़तरनाक दर को रोकने के लिए कोचिंग वालों और मां-बाप, दोनों के नज़रिए को बदलने की ज़रूरत है. इस सिलसिले में बीते 20 सालों से वो राजस्थान सरकार को सुझाव दे रहे हैं, लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई. उन्होंने बच्चों की उम्र को लेकर भी एक बहुत ज़रूरी बात हाई-लाइट की है. जो छात्र 15 या 16 साल में ही कोटा आ जाते हैं, वे स्कूल के फ़ायदों से छूट जाते हैं. मसलन, extracurricular activities, personality development और दोस्ती. डॉ. शेखावत का सुझाव है कि कोचिंग सेंटर में दाख़िला लेने के लिए मिनिमम एज होनी चाहिए. ताकि परिपक्व होने से पहले ही छात्रों को प्रतियोगिता और कठिनाइयों में न धकेल दिया जाए.
छात्रों के सारी समस्याओं को कवर करना तो मुमकिन नहीं है. लेकिन इंडिया टुडे से जुड़े देव अंकुर ने ग्राउंड से कुछ ख़बरें की हैं, जिनसे मालूम पड़ता है कि प्रेशर किस चीज़ का है? देव अंकुर की रिपोर्ट में कुछ कहानियां हैं, जिनसे ये वजहें पता चलती हैं. हम एक-एक लाइन में आपको वो कहानियां बता देते हैं: - कुछ महीने पहले झारखंड से राजस्थान के कोटा आईं 16 साल की सौम्या कुमारी कहती हैं कि झारखंड में दो-चार घंटे पढ़ाई कर स्कूल में टॉपर बन गई थीं. यहां वो टॉप-20 में भी शामिल नहीं हैं. माने कंपटीशन बेहद तगड़ा है.
- IIT-JEE की तैयारी कर रही इशिता का कहना है कि हर जगह के माहौल में अंतर होता है और कभी-कभी छात्र तालमेल नहीं बिठा पाते. साथ में माता पिता की अपेक्षाओं का प्रेशर तो होता ही है.
- मध्य प्रदेश के सागर से आए धीरज ने बताया कि साथियों का भी दवाब होता है. कौन-कितना पढ़ रहा है? कितना आगे बढ़ रहा है? इसपर भी दिमाग़ लगा रहता है.
इसमें माता-पिता की अपेक्षाओं को लेकर एक बात पर और ग़ौर करने की ज़रूरत है. ग़रीब पृष्ठभूमि से आए छात्रों को कोचिंग के लिए भी लोन लेना पड़ता है. ये लोन, अपेक्षाओं के भार को दोगुना कर देता है.
अब सरकार और छात्रों का पक्ष तो हमने बताने की कोशिश की. कोचिंग सेंटर का क्या पक्ष है, ये समझने के लिए हमने बात की मोशन एजुकेशन कोचिंग के नितिन विजय से.
अब यहां नितिन तो मुख्यतः दो ही वजहें बता रहे हैं - बच्चे की ख़ुद से अपेक्षाएं और माता पिता की अपेक्षाएं. मगर बस इतना तो नहीं होता न. आप देखते होंगे, कोचिंग्स के सामने बड़े-बड़े बोर्ड लगे होते हैं. टॉपर्स की लिस्ट बनाई जाती है. उनको फूल-मालाओं से सराहा जाता है. बहुत सच कहें, तो उनकी सफलताओं को बेचा जाता है. इससे कोचिंग्स को फ़ायदा होता होगा. मगर फिर इसी से जन्म होता है कॉम्पलेक्स का. रैंक के हिसाब से अलग-अलग क्लासें होती हैं. अब दो बच्चे, जो एक साथ सोते-खाते-पढ़ते-लिखते हैं, वो दो अलग क्लासों में हैं. क्यों? क्योंकि बीते संडे वाले टेस्ट में एक को ज़्यादा नंबर आ गए थे और दूसरे को कम. बच्चों को लगने लगता है कि सफलता का बस एक ही पैमाना है, एक ही परिभाषा है -- कि ये इग्ज़ाम निकल जाए. और जब उन्हें ये इग्ज़ाम निकलता हुआ नहीं दिखता, तो वो हताश हो जाते हैं. निराश होने लगते हैं.
आप यूट्यूब और इंस्टाग्राम पर कितना भी मोटिवेशन ठेल दें, हर व्यक्ति की मनोदशा और क्षमता अलग है. आप उन्हें केवल कुछ प्रतीकों की कहानी सुनाकर मोटिवेशन के बूते नहीं पार लगवा सकते.
कई कारण हैं - सिर के पार कंपटीशन, माता पिता की अपेक्षाएं, असफल होने का डर, घर से अलगाव, 14 घंटों का दिन, 7 दिन का हफ़्ता (कोई छुट्टी नहीं, संडे को भी टेस्ट होते हैं). ब्रेक लेने को ज़िल्लत और ग्लानी की तरह देखा जाता है. दुनिया से कट जाने का भाव. ये सब मिलकर सिर पर तनाव डालते हैं. बहुत बार ये तनाव पहचाने भी नहीं जाते, बच्चे ख़ुद नहीं समझ पाते - मगर फिर भी होते हैं. 3 इडियट्स का वो मारक डायलॉग याद कीजिए - पोस्ट मॉर्टम में आता है कि गर्दन प्रेशर पड़ा. लेकिन सिर का प्रेशर नापने को कोई मशीन नहीं, कोई रिपोर्ट नहीं.
कॉलेज जाने की होड़ में तो बच्चे दौड़ रहे हैं. लेकिन स्कूलों में क्या हो रहा है? जिस वक़्त उन्हें शिक्षा और संवेदनशीलता की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है, तब उनके साथ क्या हो रहा है?
मुज़फ़्फ़रनगर के वीडियो पर हम आएंगे, लेकिन पहले एक दूसरी ख़बर सुनिए. ये घटना जम्मू-कश्मीर के कठुआ ज़िले के गवर्नमेंट हायर सेकेंडरी स्कूल की है. अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, कथित तौर पर दसवीं क्लास के एक छात्र ने ब्लैकबोर्ड पर "जय श्री राम" लिख दिया. इसके लिए स्कूल के प्रिंसिपल मोहम्मद हाफ़िज़ और उसके टीचर फ़ारूक़ अहमद ने छात्र को बुरी तरह से पीटा. पिटाई के कारण छात्र को गंभीर आंतरिक चोटें आई हैं. उसे सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया है. घटना के बाद कठुआ के बनी शहर में दोनों आरोपियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई के लिए प्रदर्शन होने लगे. मामले में FIR दर्ज की गई.
प्रिंसिपल और टीचर के ख़िलाफ़ IPC की धारा-323 (जानबूझकर चोट पहुंचाना), 342 (ग़लत तरीके से कैद करना), 504 (जानबूझकर अपमान करना), 506 (आपराधिक धमकी) और जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धारा-75 के तहत मुक़दमा दर्ज किया गया है.
हुआ क्या था? FIR के मुताबिक़, घटना 25 अगस्त की है. 10वीं के छात्र अपनी क्लास में थे. उनमें से एक ने जा कर बोर्ड पर 'जय श्री राम' लिखा दिया. जब फ़ारूक़ (टीचर) क्लास में आए, तो वो ये देखकर गुस्सा हो गए. उन्होंने बाक़ी स्टूडेंट्स के सामने ही लड़के को ग्राउंड ले जाकर बुरी तरह से पीट दिया. इसके बाद वे उसे प्रिंसिपल के कमरे में ले गए. फिर, दोनों ने छात्र को कमरे में बंद करके दोबारा पिटाई की. उन्होंने लड़के से कहा कि अगर उसने दोबारा ऐसी हरकत की तो उसे जान से मार डालेंगे.
और अब बात उस केस की जो पिछले तीन दिन से खबरों में छाया हुआ है. मुज्जफरनगर में क्या हुआ था? टीचर एक बच्चे को क्लास के दूसरे छात्रों से पिटवा रही है. वो कहती है जोर से मारो. थोड़ी देर बाद वो कहती है अपर कमर पर मारो, इसका गाल लाल हो रहा है. और टीचर इस बच्चे को क्यों पिटवा रही है क्योंकि उसने पांच का पहाड़ा नहीं याद किया था. मैडम कहती हैं कि एक महीना हो गया और पहाड़ा याद नहीं किया. उनकी उम्र 60 साल है. जीवन का तजुर्बा है उनके पास. वो बताएं कि क्या पूरी क्लास से पिटवाने से पहाड़े याद हो जाते हैं.
पर इस वीडियो में एक और ऐसा पहलू है जिस पर ज्यादा विवाद हो रहा है. क्या बच्चे को इसलिए पिटवाया गया क्योंकि उसका जन्म मुस्लिम परिवार में हुआ? वीडियो सामने आने के बाद कुछ ऐसे ही दावे किए गए. कहा गया कि बच्चे को टीचर से दूसरे बच्चों से इसलिए पिटवाया क्योंकि उसका धर्म मुस्लिम है. फिर एक दावा ये भी किया गया कि टीचर क्लास में कह रही हैं कि मोहम्मडन माएं अपने मायके चली जाती हैं. अपने बच्चों को भी साथ ले जाती हैं. और बच्चों की पढ़ाई छूट जाती है.
मुजफ्फरनगर के पुलिस अधीक्षक भी मीडिया से बात करते हुए कुछ ऐसा ही बताते हैं. वो कहते हैं कि इसमें कोई धार्मिक एंगल नहीं है. जब टीचर से मीडिया ने इस बारे में सवाल पूछा तो उनका कहना था कि क्योंकि वो विकलांग हैं. और बच्चे ने कई दिनों से काम पूरा नहीं किया था इसलिए उन्होंने पीड़ित छात्र को बच्चों से पिटवाया.
लेकिन घटना के अगले दिन का बच्चे का भी बयान है. मीडिया से बात करते हुए बच्चा कहता है कि उसे एक घंटे तक पीटा गया. पत्रकार उससे पूछता है कि और क्या हुआ था. तो बच्चा कहता है मैडम ने कहा कि ये मोहम्मडन है इसलिए जोर से मारो.
वीडियो सामने आया तो समाज के सभी वर्गों के लोगों ने इसकी निंदा की. जमीयत उलमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी का कहना है कि देश में नफरत की जड़े गहरी और मजबूत हो रही है. उनका कहना है कि पिछले कुछ सालों से हमारे देश की आबो हवा में नफरत का जो जहर घोला जा रहा था, वह अब सिर चढ़कर बोलने लगा है.
मामला सामने आने के पुलिस ने आरोपी टीचर के खिलाफ केस दर्ज कर लिया है. स्कूल को सील कर दिया गया है. और इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक स्कूल को मान्यता रद्द करने की सिफारिश भी भेजी गई है. यहां एक नज़र स्कूल पर भी डाल लेते हैं.
जहां ये स्कूल है उस गांव में करीब पौने 400 परिवार रहते हैं. पास में एक सरकारी स्कूल है. और एक ये स्कूल है जहां बच्चे को पीटा गया. स्कूल का नाम है नेहा पब्लिक स्कूल. एक से पांच तक क्लास लगती है. और मजेदार बात ये है कि सारी क्लासेज़ एक साथ लगती हैं. मतलब एक से पांच तक के बच्चे एक साथ बैठकर पढ़ते हैं. इसकी वजह ये है कि स्कूल का निर्माण कार्य चल रहा है. और टेम्परेरी व्यवस्था के तहत सभी बच्चों को एक साथ पढ़ाया जा रहा है. हालांकि, ऐसा सरकारी प्राथमिक स्कूलों में देखा जा चुका हैं जब टीचरों की कमी की वजह से दो क्लास या 1 से लेकर 5 तक सारी क्लास एक साथ लगाई गई हों.
इन दो स्कूलों के अलावा जो विद्यालय हैं वो गांव से दूर हैं. और बताया जाता है कि उनकी फीस भी ज्यादा है. इसलिए बच्चे या तो सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं या फिर इस स्कूल में. स्कूल को चलती हैं तृप्ता त्यागी. जो इस पूरे मामले की आरोपी हैं.
इस मामले में एक और अपडेट है. वीडियो वायरल करने के आरोप में ऑल्ट न्यूज़ के मोहम्मद जुबैर के खिलाफ भी केस दर्ज किया गया है. दरअसल, पुलिस का कहना है कि वीडिया वायरल करके बच्चे की पहचान उजागर की गई है. यहां सवाल ये भी उठता है कि वीडियो बनाया किसने. तो, वीडियो बनाया था, पीड़ित छात्र के चचेरे भाई ने. वीडियो बनाने वाले का कहना है कि वो किसी दूसरे काम से स्कूल गया था. वहां उसने देखा कि उसके भाई को टीचर दूसरे बच्चों से पिटवा रही हैं तो उसने वीडियो बना लिया.
वीडियो बनाना और वायरल करना गलत हो सकता है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यही कि क्या बच्चे को इस तरह से पीटा जाना चाहिए था. और क्या जिस क्लास में पांच, छ:, आठ साल के बच्चे बैठे हों, वहां हिंदू मुस्लिम जैसी बातें कही जानी चाहिए थीं? पहाड़ा याद कराना जरूरी है. लेकिन क्या यही एकमात्र तरीका बचा था. बच्चे के पिता का कहना है कि उसकी मानसिक स्थिति पर असर पड़ा है. उसे डॉक्टर के पास भी ले जाया गया है. उस बच्चे के दिमाग में स्कूल की जो छवि उस एक घंटे में बनी होगी क्या हो ट्रॉमा उसके जहन उतर पाएगा कभी?
एक और स्कूल ले चलते हैं आपको. एमपी के छतरपुर चलिए. वहां से भी एक हैरान करने वाला मामला आया है. स्कूल में एक बच्चा कड़ा पहनकर गया था. बचपने में बच्चों को शौख होता है इन सब चीज़ों का. वो आकर्षित होते हैं. सिख धर्म में तो केश, कंघा, कृपाण, कच्छा और कड़ा. इन्हें पांच मर्यादाएं कहा गयाा है. लेकिन स्कूल के एक टीचर को बच्चे का कड़ा पहनना पसंद नहीं आया. उन्होंने बच्चे का कड़ा उतरवा दिया. लोकल मीडिया के मुताबिक बच्चे ने इसका विरोध किया तो टीचर ने उसकी पिटाई कर दी.
मुजफ्फरनगर में पहाड़ा नहीं याद किया तो बच्चे से पिटवाया जा रहा है. कठुआ में जय श्री राम लिख दिया तो बच्चे को पीट दिया. छतरपुर में कड़ा पहनने पर पीट दिया. ये सब हो रहा है हमारे स्कूलों में. जहां देश के भविष्य की नींव पड़ती है. जहां से बच्चे सपने देखना सीखते हैं. वो सपने नहीं जो कोटा जाकर उन्हें जिंदगी खत्म करने पर मजबूर करते हैं. वो सपने जो उन्हें भरपूर जिंदगी जीने की प्रेरणा देते हैं. ताकि बच्चे ये सोच सकें कि वो आने वाले सालों में जब ISRO जब चंद्रयान 8 या 10 भेजेगा तो वो भी उन साइंटिस्ट्स की टीम का हिस्सा होंगे.