The Lallantop

100 रुपये जमा कर 22 लाख की मदद करने वाला टीचर्स का ये संगठन काम कैसे करता है?

Teacher Self Care Team अब तक 5 करोड़ रुपये से ज्यादा की मदद कर चुकी है.

post-main-image
तस्वीर Teacher Self Care Team के एक कार्यक्रम की है. यह संगठन अब तक 29 टीचर्स के परिवारों की मदद कर चुका है जिन्होंने जान गंवाई है.
ये उन दिनों की बात है जब भारत में कोविड की पहली लहर चल रही थी. लोग कोरोना की वजह से अपनों को खो रहे थे और कुछ नहीं कर पा रहे थे. ऐसे में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में बैठे कुछ टीचर्स के मन में ये विचार आया कि क्यों ना उन टीचर्स परिवारों के लिए कुछ किया जाए जिन्होंने अपनों को खो दिया है और एक तरह से आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं. इसी विचार के साथ 26 जुलाई 2020 को प्रयागराज के टीचर विवेकानंद आर्य ने अपने साथी टीचर्स महेंद्र वर्मा, सुधेश पांडे और संजीव रजक के साथ मिलकर एक ऐसा मंच तैयार किया. उन्होंने उत्तर प्रदेश के सभी बेसिक टीचर्स को इस मंच से जोड़ा ताकि उन साथी टीचर्स के परिवारों की मदद की जा सके जो अब इस दुनिया में नहीं हैं. इस मंच को नाम दिया गया 'Teacher Self Care Team' (TSCT).
लल्लनटॉप ने इस मंच के संस्थापक विवेकानंद आर्य और उनके साथियों से बात की. विवेकानंद ने हमें बताया,
हमने साथी टीचर्स से कहा कि अपने लिए नहीं, उन साथी टीचर्स के परिवारों की सुरक्षा के लिए, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं, अपनी सैलरी का .1 प्रतिशत निकाल देते हैं. लोगों का शानदार रेसपॉन्स मिला. संस्था बनने के एक महीने बाद ही एक कैजुअल्टी हो गई. हम मात्र एक महीने में ही साढ़े सात लाख जमा करने में सफल रहे. यहीं से उत्साह बढ़ गया. 
संस्था के सह संस्थापक महेंद्र वर्मा का कहना है कि कोविड की पहली लहर में कई टीचर्स का निधन हो गया. सरकार से कोई सहायता नहीं मिली. न तो किसी तरह के पेंशन की व्यवस्था हुई और ना ही बीमा का पैसा दिया गया, जबकि सामूहिक बीमा का पैसा कटता है. महेंद्र वर्मा ने बताया,
हर टीचर के वेतन से हर महीने 87 रुपए कट रहा है. लेकिन बीमा कंपनी ने मना कर दिया कि 2014 के बाद से क्लेम नहीं देंगे, फिर भी पैसे काट रहे हैं. शिक्षा विभाग के अधिकारी किसी के निधन पर किसी तरह की सुध नहीं लेते. ऐसे में हम लोगों ने स्वयंसेवी संस्था बना ली. हमने सोचा कि अगर कोई सहयोग नहीं कर रहा, हालचाल नहीं ले रहा है तो खुद यूनाइट होकर एक दूसरे की मदद करें. Teacher Self Care Team की एक तरह से थीम कह लीजिए, वो ये है कि अध्यापक को 100 रुपए खर्च करना होता है. लेकिन दिवंगत के परिवार को मिलता है 20 से 22 लाख की मदद.
यानी अगर सर्विस के दौरान किसी टीचर का निधन हो जाता है तो पूरे राज्य के टीचर्स मिलकर उसके परिवार की सहायता करते हैं. और ये सहायता 20 से 22 लाख रुपए तक की होती है.
Tsct (1) विवेकानंद आर्य (बाएं) ने अपने साथी टीचर्स सुधेश पांडे (बाएं से दूसरे) संजीव रजक (बाएं से तीसरे) और महेंद्र वर्मा (सबसे दाएं) के साथ मिलकर मुहिम शुरू की थी जिसे राज्य के टीचर्स का शानदार रिस्पॉन्स मिला.
6 लाख टीचर्स को एक मंच पर लाने का चैलेंज चार लोगों की टीम के सामने सबसे बड़ी समस्या 6 लाख टीचर्स को एक मंच पर लाने की थी. ऐसे में टेलीग्राम के माध्यम से लोगों को जोड़ने की कोशिश शुरू हुई. क्योंकि इस प्लेटफॉर्म पर दो लाख टीचर्स जुड़ सकते थे. टेलीग्राम पर Teacher Self Care Team नाम से ग्रुप बना और राज्य से बेसिक टीचर्स को जोड़ने की मुहिम शुरू हुई. कैसे जुड़ते हैं टीचर्स ? उत्तर प्रदेश के किसी भी जिले का कोई भी टीचर अगर इस संस्था से जुड़ना चाहता है तो पहले टेलीग्राम पर लिंक के माध्यम से ग्रुप जॉइन करता है. फिर वेबसाइट
पर फॉर्म
भरता है. रजिस्ट्रेशन फॉर्म में स्कूल का नाम, नॉमिनी का नाम HRMS यानी मानव संपदा कोड, जो हर कर्मचारी को मिलता है, भरना पड़ता है. HRMS भरने के साथ ही डेटा संस्था के पास चला जाता है. इस तरह से लिखित रूप से डेटा होता है, जितने लोगों ने रजिस्ट्रेशन किया है उनका. आज की डेट में 49 हजार टीचर्स इस मंच से जुड़े हुए हैं. सहायता मिलने का क्राइटेरिया क्या है? संस्था से जुड़े अगर किसी टीचर का निधन हो जाता है तो संस्था पहले उस टीचर के घर जाकर निरीक्षण करती है. फिर संस्था से जुड़े टीचर्स से मदद की अपील की जाती है. वर्तमान में हर टीचर्स से 100 रुपये की मदद की अपील की जाती है. ये पैसा सीधे उस टीचर के नॉमिनी के खाते में जाता है. संस्था एक समय तय करती है कि 6 से 10 दिन के भीतर पैसा भेजना है. उतने समय में ही सबको मदद भेजनी होती है.
महेंद्र वर्मा ने बताया,
मान लीजिए किसी टीचर ने किसी महीने की किसी तारीख को संस्था की सदस्यता ली. एक महीने में वो लॉकिंग पीरियड समाप्त करेगा. अगर इस एक महीने में टीचर की डेथ हो जाती है तो मदद नहीं मिलती है. मदद लेने के लिए एक महीने का समय पूरा करना जरूरी है. ऐसा इसलिए क्योंकि कोई इसका दुरुपयोग ना कर पाए. मान लीजिए किसी के साथ गंभीर हादसा हो गया और घर वाले जान गए कि कल परसों तक उनका निधन हो जाएगा तो तत्काल जुड़कर मदद ले लेंगे. दुरुपयोग से बचने के लिए एक महीने का लॉकइन पीरियड रखा गया है. कहने का मतलब है कि रजिस्ट्रेशन के एक महीने बाद अगर किसी टीचर का निधन हो जाता है तो मदद देते हैं.
Tskt TSKT से सहायता पाने वाले परिवार के साथ टीम
हेल्प नहीं करने पर सदस्यता रद्द बहराइच के TSCT जिला सहसंयोजक सुभाष चंद वर्मा ने बताया कि सदस्यता लेने के बाद पहले महीने संस्था नहीं देखती है कि रजिस्ट्रेशन करने वाले ने मदद की या नहीं. उन्होंने कहा,
किस ने मदद की, किसने नहीं की, इसका रिकॉर्ड होता है. लोगों से गूगल फॉर्म भरवाया जाता है. जैसे किसी दिवंगत साथी के परिवार के लिए किसी सदस्य ने 100 रुपए भेजे तो उसे ट्रांजेक्शन का रिकॉर्ड रखना पड़ता है. स्कीनशॉर्ट या कुछ भी जो रिकॉर्ड को दिखाए. गूगल फॉर्म में ट्रांजेक्शन आईडी भरना होता है. ये ट्रांजेक्शन आईडी किसी और के ट्रांजेक्शन से मैच नहीं करना चाहिए. अगर किसी का ट्रांजेक्शन आईडी मैच कर गया तो सदस्यता समाप्त कर दी जाती है. क्योंकि ये फ्रॉड का मामला बनता है.
सुभाष चंद वर्मा ने आगे कहा,
उदाहरण के लिए 22 हजार लोगों ने फॉर्म भरा और मदद की तो उतने लोगों का डेटा आ जाएगा. मदद करने के बाद अगर किसी ने गूगल फॉर्म नहीं भरा तो ये संस्था की जिम्मेदारी नहीं है. सभी टीचर्स के लिए मदद देना अनिवार्य होता है. ऐसा नहीं करने पर सदस्यता रद्द हो जाती है.
Tskt1 टीचर्स मिलकर एक दूसरे की मदद करते हैं.

वहीं महेंद्र वर्मा ने बताया कि अगर किसी टीचर के निधन के बाद संस्था के आह्वान पर किसी सदस्य ने आर्थिक सहयोग नहीं किया तो उसकी सदस्यता रद्द हो जाती है. अगर वो भविष्य में सदस्य बनना चाहता है तो लगातार 5 सहयोग करके सदस्य बन सकता है. उसके बाद ही आईडी एक्टिव होगी. संस्था चलाने के लिए फंड कहां से आता है? इस सवाल पर महेंद्र वर्मा ने बताया,
कुछ लोगों से 'व्यवस्था शुल्क' के रूप में 50 रुपए लिया जाता है, लेकिन ये अनिवार्य नहीं है. 49 हजार टीचर्स जुड़े हैं, लेकिन हर कोई ये नहीं सोच पाता कि व्यवस्था कैसे चलेगी. वो भी लॉन्ग टर्म व्यवस्था. क्योंकि ये दो चार महीने की बात नहीं है कि हम अपने पास से लगा देंगे. 50 रुपए जो देना चाहते हैं उनसे लेते हैं. ऑनलाइन सीधे खाते में 50 रुपए भेजते हैं.
महेंद्र ने बताया कि इलाहाबाद में संस्था का मुख्य ऑफिस है. बकायदा स्टाफ बैठता है, बाकी चीजे भी हैं. निधन पर किसी से घर जाना है, सत्यापन के लिए तो हजार कुछ खर्च हो जाता है. कई जिलों में टीम है. जहां टीम नहीं है, वहां प्रदेश टीम भेजी जाती है. भविष्य की क्या योजना है? संस्था के संस्थापक सदस्य विवेकानंद ने बताया कि कोई भी टीचर किसी भी साल में संस्था से जुड़ सकता है. चाहे वो बेसिक का हो या माध्यमिक का. रिटायरमेंट से एक साल पहले तक टीचर इससे जुड़ सकते हैं. उन्होंने बताया कि अब हम उन टीचर्स की भी मदद कर रहे हैं जो हादसे का शिकार हो जाते हैं या किसी गंभीर बीमारी का शिकार हो जाते हैं. विवेकानंद ने बताया कि अब उन सदस्यों के लिए मेडिकल फैसिलिटी शुरू होने जा रही है, जो 6 महीने पहले जुड़े थे. जो भी खर्च आएगा उसका 25 से 50 प्रतिशत संस्था चुकाएगी.
विवेकानंद ने बताया,
हम दिल्ली, उत्तराखंड, एमपी, बिहार के साथी टीचर्स के संपर्क में हैं. टीचर्स डे पर हम इसे पांच और राज्यों में स्थापित करने जा रहे हैं. इस सफल प्रयोग के बाद हम इसे समाज में उतारेंगे. लोगों को एक दूसरे से जुड़ने के लिए कहेंगे. जरूरी नहीं कि 20 लाख की मदद हो. लेकिन जिले लेवल पर, गांव के लेवल पर लोगों को जोड़ेंगे ताकि मुसीबत में लोग एक दूसरे के काम आ सकें.
महेंद्र वर्मा ने बताया कि अभी 49 हजार टीचर्स जुड़े हैं. बेसिक के अलावा माध्यमिक शिक्षकों को भी जोड़ा जा रहा है. संस्था अब तक 29 दिवंगत शिक्षकों के परिवार को 5.31 करोड़ रुपये की सहायता दे चुकी है.