टाइटैनिक लॉन्च होने के साल ही डूब गया. ब्रिटैनिक प्रथम विश्व युद्ध के दौरान एक समुद्री विस्फोटक सुरंग के संपर्क में आकर डूब गया. साल था 1916. इन तीनों में से सिर्फ ओलिम्पिक ही ऐसा जहाज रहा, जिसने साल 1935 तक अपनी सेवाएं दीं.
RMS ओलिम्पिक. (तस्वीर: विकिमीडिया कॉमन्स)अब आते हैं इसके कारनामों परसाल 1911. एक खाड़ी से गुजरते हुए इसका सामना हुआ ब्रिटिश जंगी जहाज HMS हॉक से. दोनों जहाज आमने-सामने तैरते हुए खाड़ी से निकल रहे थे. तभी ओलिम्पिक ने दाहिनी ओर टर्न लिया. यहां ये जान लीजिए कि जब ओलिम्पिक लॉन्च हुआ था, तब ये उस समय का सबसे बड़ा जहाज था. अब घूमा, तो काफी जगह घेर ली. इसके प्रोपेलर्स ने घूमने के साथ पानी खींचा. इससे खिंचाव पैदा हुआ और ओलिम्पिक से काफी छोटा HMS हॉक संभल नहीं पाया. जब तक कोई कुछ कर पाता, हॉक का अगला हिस्सा ओलिम्पिक की दाहिनी ओर भिड़ गया. हॉक ठहरा जंगी जहाज. उसे बनाया ही इस तरह गया था कि उसका अगला हिस्सा किसी जहाज से भिड़े, तो उसे बर्बाद कर दे. ओलिम्पिक कोई जंगी जहाज तो था नहीं. हॉक से भिड़ा, तो उसकी बॉडी में दो जगह बड़े-बड़े छेद हो गए.
लेकिन किस्से में यहीं आ गया ट्विस्ट. HMS हॉक के अंजर-पंजर ढीले हो गए. डूबते-डूबते बचा. ओलिम्पिक, एक पैसेंजर जहाज, बिना किसी मदद के लौट आया. हालांकि बाद में HMS हॉक के मालिकों ने ओलिम्पिक पर केस-मुक़दमे लाद दिए थे. लेकिन इस तरह बिना किसी भयंकर नुकसान के ओलिम्पिक का लौट आना लोगों के मन में उसकी बहुत अच्छी इमेज बना गया. लोगों ने सोचा, ओलिम्पिक है, तो सेफ्टी है. #रेस्पेक्ट
चलते हैं दूसरे कारनामे परप्रथम विश्व युद्ध. जो 1914 से 1918 तक चला, उसके दौरान ओलिम्पिक को युद्धपोत में बदल दिया गया था. साल 1918 की मई में इंग्लैंड के आइल ऑफ सिसिली के पास से ओलिम्पिक गुज़र रहा था. तभी कैप्टन बेर्ट्रम हेज को एक जर्मन सबमरीन दिखाई दी. इसका नाम था यू बोट 103. कोई और जहाज होता, तो सबमरीन से बचकर निकल जाता. लेकिन ओलिम्पिक ने नाक की सीध में उसकी ओर तैरना शुरू कर दिया. कैप्टन ने क्रू को निर्देश दिए, स्पीड बढ़ा दो. ओलिम्पिक ने सबमरीन के ऊपरी हिस्से के ठीक पीछे टक्कर मारी. इतना बड़े जहाज से ऐसे भिड़ने के बाद सबमरीन छिटक गई. और ओलिम्पिक के प्रोपेलर्स में आकर फंस गई. उन भीमकाय प्रोपेलर्स ने सबमरीन को दो टुकड़ों में बांट दिया.
प्रोपेल शब्द का मतलब होता है आगे बढ़ाना. प्रोपेलर ये होते हैं जो किसी जहाज को पानी में आगे तैराते हैं. (तस्वीर: विकिमीडिया कॉमन्स)कैप्टन ने सबमरीन के बचे हुए लोगों को पिक नहीं किया. और ओलिम्पिक निकल गया वहां से. बाद में पता चला कि U-103 का प्लान था ओलिम्पिक को टॉरपीडो से उड़ा देने का. वो तो कुछ तकनीकी खराबी आ गई थी, जिसकी वजह से सबमरीन टॉरपीडो चला नहीं पाई. वरना ओलिम्पिक भी टाइटैनिक और ब्रिटैनिक की तरह समुद्र की गहराइयों में होता. U-103 का मलबा साल 2008 में जाकर मिला. खुद ही देख लीजिए, क्या गजब क़यामत ढाई थी ओलिम्पिक ने.
तीसरा कारनामा- द लास्ट गुडबाय15 मई, साल 1934. केप कॉड, मैसाचुसेट्स के पास
नान्टकेट नाम की लाइटशिप खड़ी थी. लाइटशिप का काम होता था आने-जाने वाले जहाजों को रोशनी दिखाना. चूंकि केप एक ऐसा क्षेत्र होता है, जहां धरती समुद्र में आगे की तरफ निकली हुई होती है, इसलिए उस हिस्से से जहाजों को आगाह करना जरूरी होता था. लेकिन उस दिन काफी ज्यादा धुंध थी. ओलिम्पिक जहाज तैरते हुए सीधे लाइटशिप के अगले हिस्से से भिड़ गया. बिचारी लाइटशिप दो हिस्सों में बंट गई. उसके 11 में से सात क्रू मेंबर्स की मौत हो गई.
इसके अगले साल ओलिम्पिक को बेच दिया गया.
बड़े भाई का फर्ज निभाने से रह गया था ओलिम्पिकओलिम्पिक के सामने ही टाइटैनिक के डूबने की घटना हुई थी. उस समय ओलिम्पिक न्यूयॉर्क से लौट रहा था. उस समय जहाज के कैप्टन थे हर्बर्ट जेम्स हैडोक. उनको टाइटैनिक से डिस्ट्रेस सिग्नल मिला. तब टाइटैनिक की ज्ञात लोकेशन 930 किलोमीटर दूर बता रही थी. ओलिम्पिक ने डिसाइड किया, कि वो मदद के लिए जाएगा. जब फासला 190 किलोमीटर रह गया, तब ओलिम्पिक के पास मैसेज आया. टाइटैनिक डूब चुका है. अब आने का फायदा नहीं. RMS कार्पेथिया नाम का जहाज पहले ही वहां पहुंच चुका था.
ओलिम्पिक ने प्रस्ताव दिया कि कम से कम बचे हुए लोगों को हमें ले जाने दो. लेकिन मना कर दिया गया. पढ़ने को मिलता है कि ऐसा वाइट स्टार लाइन के मैनेजिंग डायरेक्टर जे ब्रूस इस्मे के कहने पर किया गया. क्योंकि उनकी चिंता थी कि ओलिम्पिक और टाइटैनिक एक जैसे दिखते थे. जिस जहाज को आंखों के सामने डूबते देखा हो, बिलकुल वैसे ही दिखने वाले जहाज पर दोबारा चढ़ने से लोगों को बहुत तनाव हो जाएगा. वो इससे डील नहीं कर पाएंगे.
साल 1912 में टाइटैनिक. दोनों जहाज़ों में अंतर करना मुश्किल था. टाइटैनिक ओलिम्पिक से थोड़ा सा ही बड़ा था साइज़ में. (तस्वीर: विकिमीडिया कॉमन्स)जाको राखे साइयां, मार सके न कोयआपने पढ़ा कि टाइटैनिक और ब्रिटैनिक, दोनों ही डूब गए थे. आपने ये भी पढ़ा कि ओलिम्पिक का बहुत ही तगड़ा एक्सीडेंट भी हुआ था HMS हॉक के साथ. लेकिन इन तीनों ही घटनाओं के समय इन तीनों जहाज़ों पर एक महिला मौजूद थी. और वो इन तीनों ही घटनाओं से बच कर निकल गई. इस महिला का नाम था वायलेट कॉन्स्टेंस जैसप. ये तीनों ही जहाज़ों पर अटेंडेंट के रोल में थीं. बचपन में टीबी हुआ था. डॉक्टर्स ने कहा था बच नहीं पाएंगी, लेकिन बच गईं. उसके बाद हॉक के साथ हुई भिड़ंत में भी सकुशल रहीं. टाइटैनिक जब डूब रहा था, तब वो भी लाइफबोट में एक बच्चे को लेकर उतरी थीं. जब ब्रिटैनिक डूबना शुरू हुआ, तब भी वो लाइफबोट में उतरीं. डूबते हुए जहाज के प्रोपेलर लाइफबोट्स को अपनी तरफ खींच रहे थे. उससे बचने के लिए वायलेट नाव से कूद गई थीं. सिर पर चोट लगी, लेकिन बच गईं. इनको 'मिस अनसिंकेबल' भी कहा जाता था.
वायलेट एक ट्रेंड नर्स भी थीं. इसीलिए प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जब ब्रिटैनिक को मेडिकल मदद देने वाले जहाज के रूप में चलाया गया, तो ये उस पर मौजूद थीं. (तस्वीर: विकिमीडिया कॉमन्स)चलते-चलतेचलिए सर्कल पूरा करते हैं. आपने शुरुआत में एक मीम देखा. उसमें पढ़ा कि कैसे इस बार टाइटैनिक -2 निकला, तो किसी आइसबर्ग से नहीं टकराएगा. क्योंकि हमने सभी आइसबर्ग पिघला दिए हैं. ये भले ही मीम के तौर पर एक मजाक लग रहा हो. लेकिन असलियत में एक बहुत ही डरावनी सच्चाई है. वर्ल्ड वाइल्डलाइफ ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक़, साल 2100 के पहले ही संसार के एक-तिहाई ग्लेशियर पिघल जाएंगे. बढ़ती गर्मी की वजह से ग्लेशियर्स से बर्फ टूट रही है और नए आइसबर्ग बन रहे हैं. जो और तेजी से पिघल रहे हैं. इसकी वजह से समुद्र की सतह धीरे-धीरे बढ़ रही है. अगर ये ऐसे ही जारी रहा, तो पहले टापू और उसके बाद समुद्र के पास वाले जमीनी इलाके डूबने शुरू हो जाएंगे. ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिवर्तन को लेकर बड़ी बहस जारी है. लेकिन इसका कोई अंत दिखाई नहीं दे रहा.
वीडियो: म्याऊं: पुलिस की जगह सीधे मीडिया के पास क्यों जाती हैं लड़कियां?