रेखा गुप्ता (Delhi CM Rekha Gupta) ने दिल्ली की मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले ली है. उनके साथ 6 और विधायक शपथ लेकर दिल्ली कैबिनेट में शामिल हुए हैं. मंत्रियों के विभागों का बंटवारा बाद में होगा. तब तक उनके बारे में थोड़ा विस्तार से जान लेते हैं. यह भी समझने की कोशिश करते हैं कि पार्टी ने इन नेताओं पर क्यों भरोसा जताया.
BJP ने ऐसे ही नहीं चुने हैं CM Rekha Gupta के साथी, हर नाम के पीछे तगड़ा गेम-प्लान है
Delhi की CM Rekha Gupta साथ 6 और विधायक शपथ लेकर दिल्ली कैबिनेट में शामिल हुए हैं. ये हैं- प्रवेश वर्मा, आशीष सूद, कपिल मिश्रा, मनजिंदर सिरसा, रविंद्र इंद्राज सिंह और पंकज कुमार सिंह.

दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहेब सिंह वर्मा के बेटे हैं प्रवेश सिंह वर्मा. इस बार चुनाव में उन्होंने आम आदमी पार्टी के मुखिया और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को हरा दिया. वर्मा नई दिल्ली सीट से विधायक चुने गए हैं. चुनाव प्रचार के दौरान वर्मा के समर्थकों ने उन्हें दिल्ली के अगले मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट किया था. वर्मा ने खुद भी कहा था कि अगर उन्हें मौका मिला तो वो सीएम बनना चाहेंगे. बीजेपी की जीत के बाद वो सीएम पद की रेस में भी बने हुए थे.

नई दिल्ली वही सीट है, जहां 2013 में अरविंद केजरीवाल ने पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को हराया था. दीक्षित 1998 से लगातार दिल्ली की मुख्यमंत्री थीं. इस बार के चुनाव में प्रवेश वर्मा ने केजरीवाल को 4,089 वोट से हराया. इस कड़े मुकाबले में कांग्रेस प्रत्याशी संदीप दीक्षित लगभग इतने ही वोट ले गए थे. चुनाव प्रचार के दौरान प्रवेश वर्मा ने यमुना रिवरफ्रंट बनाने, झुग्गीवासियों को घर देने, 50 हजार सरकारी नौकरियां देने और दिल्ली से प्रदूषण को हमेशा-हमेशा के लिए गायब कर देने जैसे वादे किए थे. प्रवेश सिंह वर्मा पश्चिम दिल्ली सीट से दो बार सांसद रह चुके हैं. वहीं महरौली विधानसभा सीट से एक बार विधायक भी चुने जा चुके हैं. वो बीजेपी से करीब तीन दशक से जुड़े हुए हैं.
परवेश वर्मा जाट समुदाय से आते हैं. ऐसा कहा जाता है कि जाट समाज की बीजेपी से एक लंबी नाराजगी रही है. प्रवेश वर्मा को कैबिनेट में शामिल कर बीजेपी ने जाट समाज को एक मेसेज दिया है. आने वाले चुनावों में इसका असर पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में पड़ सकता है.
आशीष सूदआशीष सूद को संगठन का आदमी कहा जाता है. सूद दिल्ली नगर निगम में पार्षद रह चुके हैं. गोवा में बीजेपी इंचार्ज होने के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर में को-इंचार्ज की भी जिम्मेदारी संभाल चुके हैं. जेपी नड्डा और धर्मेंद्र प्रधान के करीबी कहे जाने वाले सूद दिल्ली की जनकपुरी सीट से विधायक बनकर आए हैं. पिछली बार इसी सीट से चुनाव हार गए थे, लेकिन इस बार 19 हजार वोट से जीत मिली है.

सूद ने छात्र राजनीति से अपनी शुरुआत की थी. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्य थे. उन्हें RSS का करीबी कहा जाता है. छात्र राजनीति में सक्रियता के चलते ही उन्हें भारतीय जनता पार्टी के युवा मोर्चा का महासचिव बनाया गया था. बाद में वो इसके राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी बने. सूद को साल 2008 में दिल्ली बीजेपी का सचिव बनाया गया, फिर महासचिव भी.
कपिल मिश्रा फायरब्रांड नेता हैं, और विवादित भी हैं. इस कैबिनेट के अकेले ऐसे सदस्य, जिनके पास सरकार में रहने का अनुभव है. साल 2015 से 2017 तक वो अरविंद केजरीवाल के कैबिनेट में थे. फिर केजरीवाल और सत्येंद्र जैन के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए. पार्टी से बाहर कर दिए गए.

साल 2019 में बीजेपी का दामन थामा. 2020 का दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ा. मॉडल टाउन सीट से हार हुई. सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील मुद्दों पर विवादित बयानबाजी करते रहे. बीजेपी ने उनकी रैंक ऊपर उठाने में थोड़ा हल्के हाथ से काम लिया. क्योंकि वो दूसरी पार्टी से आए थे और पार्टी लंबे समय से वफादार रहे नेताओं का मनोबल नहीं तोड़ना चाहती थी. लेकिन अगस्त 2023 में ये प्रक्रिया तेज कर दी गई. कपिल मिश्रा को दिल्ली बीजेपी का उपाध्यक्ष बनाया गया. कपिल मिश्रा एक राजनीतिक परिवार से आते हैं. उनकी मां अन्नपूर्णा मिश्रा बीजेपी की टिकट पर पूर्वी दिल्ली की मेयर रह चुकी हैं.
पार्टी के सूत्र बताते हैं कि कपिल मिश्रा को उनकी मेहनत का फल दिया गया है. AAP से निकाले जाने के बाद से ही मिश्रा ने आम आदमी पार्टी की सीनियर लीडरशिप के खिलाफ एक तीखा अभियान चलाया. वहीं, 2022 के गुजरात विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने रैलियां कीं और अच्छी खासी भीड़ इकट्ठा की. उन्हें गुजरात में आम आदमी पार्टी का प्रभाव खत्म करने के लिए भेजा गया था. इसके चलते पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व उनसे बहुत प्रभावित हुआ.
मनजिंदर सिरसामनजिंदर सिरसा तीसरी बार रजौरी गार्डन से विधायक बने हैं. वो दिल्ली में अकाली दल के एक बड़े नेता रहे हैं. साल 2021 में उन्होंने अकाली दल से नाता तोड़ लिया और बीजेपी में शामिल हो गए. इसी दौरान उन्होंने दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधन समिति के अध्यक्ष पद से भी इस्तीफा दे दिया.

बीजेपी में शामिल होते ही सिरसा को पार्टी का राष्ट्रीय सचिव बना दिया गया. सिरसा को बीजेपी के बड़े सिख चेहरों में गिना जाता है. सिरसा का राजनीतिक करियर साल 2007 में शुरू हुआ था, जब उन्होंने नगर निगम चुनाव में जीत हासिल की थी.
दिल्ली में सिख समुदाय का अच्छा खासा प्रभाव है. किसान आंदोलन के चलते बीजेपी, सिख समुदाय से दूर हुई है. ऐसे में समुदाय के एक बड़े नेता को कैबिनेट में जगह देकर पार्टी सिखों को यह मेसेज देना चाहती है कि उनके टोले में सबके लिए जगह है. साथ ही साथ तैयारी पंजाब चुनाव की भी है.
रविंद्र इंद्राज सिंहदिल्ली की नई कैबिनेट में अकेला दलित चेहरा. रविंद्र इंद्राज ने बवाना सीट से 31 हजार से ज्यादा के अंतर से चुनाव जीता. RSS के करीबी कहे जाते हैं. सूत्र बताते हैं कि पिछले एक हफ्ते से अपना नाम दिल्ली कैबिनेट के लिए आगे कर रहे थे. बीजेपी ने इस बार दिल्ली की 12 आरक्षित सीटों में से 4 पर जीत हासिल की है. बवाना इन्हीं सीटों में से एक है.

रविंद्र पेशे से एक व्यवसायी हैं और बीजेपी के SC मोर्चा के एक महत्वपूर्ण सदस्य बताए जाते हैं. पिछली बार भी उन्होंने बवाना से ही चुनाव लड़ा था, लेकिन सफल नहीं हुए थे. रविंद्र इंद्राज को कैबिनेट में शामिल कर बीजेपी ने दिल्ली के SC वर्ग के मतदाताओं को धन्यवाद कहा है, और साथ ही साथ ग्रामीण क्षेत्र के वोटर्स को भी. ग्रामीण क्षेत्रों की सीटों पर इस बार बीजेपी को अच्छा खासा समर्थन मिला, वहीं शहर के दलित मतदाताओं के बीच भी पार्टी का समर्थन बढ़ा है.
पंकज कुमार सिंहविकासपुरी के विधायक पंकज कुमार सिंह डेंटिस्ट हैं. जड़ें बिहार से हैं. दो बार पार्षद रह चुके हैं. दिल्ली कैबिनेट में पूर्वांचल के प्रतिनिधित्व का जिम्मा उनके ही कंधों पर होगा. साथ ही साथ वो एक बड़ा 'ठाकुर' चेहरा भी हैं.

पंकज कुमार सिंह पहली बार विधायक चुने गए हैं. उनके पिता राज मोहन सिंह दिल्ली नगर निगम में अधिकारी रह चुके हैं. पंकज कुमार सिंह को भी आरएसएस का करीबी बताया जाता है. दिल्ली बीजेपी में वो कई जिम्मेदारियां निभा चुके हैं.
वीडियो: Delhi: रेखा गुप्ता के साथ शपथ लेने वाले मंत्री कौन हैं?