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कानपुर की मनोहर कहानी: जब लड़के प्रजनन पढ़ने पर अड़ गए

10th 'बी' के लड़कों को आठवें चैप्टर से ह्यूमन रिप्रोडक्शन ही पढ़ना था

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Source- reuters
nikhilनिखिल सचान पेशे से जादूगर हैं. इसी हफ्ते खुद को तीस का हुआ बताते हैं. उनकी कहानियों में अजूबा बच्चों से मिलने आता है. भगवान तक से अठन्नी वापस छीनी जा सकती है. पिज्ज़ा वाला दोस्त बन जाता है और रेल की पटरी पर रख दो तो सिक्का चुंबक बन जाता है. ये वो वाले जादूगर हैं, जो मंतर मार दें तो पचास दफा होमवर्क हो जाए. दुनिया को बरगलाने के लिए आईआईटी-आईआईएम वाला चोला पहन लेते हैं. कुछ काम भी करते हैं, ऐसा दावा है. यकीनन झूठ ही होगा, क्योंकि रात को ये भी राजनगर की हिफ़ाजत को निकल जाते हैं. कभी-कभी कानपुर के किससे सुनाते हैं. आज वही एक दिन है. सातवीं दफा हाथ डाला तो टोपी से कबूतर नहीं, खन्ना सर निकले हैं. किस्सा पढ़िए यहां.

Kanpur Manohar Kahaniyanसातवीं किस्त खन्ना मास्टर 

खन्ना मास्टर बीएनएसडी शिक्षा निकेतन में टेंथ 'बी' वालों को बाइलॉजी पढ़ाते थे. नया अपॉइंटमेंट थे, तिस पर लड़के अलग हरामी. खन्ना मास्टर के पहले गुप्ता सर सातवें चैप्टर तक पढ़ा गए थे. किसी बात पर लड़कों से पिल पड़े थे और बे-इन्तहा हौंक दिए गए थे. रिप्लेसमेंट के तौर पर आनन-फ़ानन में खन्ना मास्टर की औचक नियुक्ति हुई थी. आठवां चैप्टर मुंह बाए खन्ना मास्टर का इंतज़ार कर रहा था. पर चूंकि आठवां चैप्टर उस शाश्वत प्रश्न के बारे में था जिसमें बच्चे कैसे पैदा होते हैं, की जांच-पड़ताल होती है, खन्ना मास्टर हर मर्तबा वो चैप्टर स्किप कर जाते थे और अगला पिछला रिवाइज़ करवाने लगते थे.
"हां जी बच्चों आज हम लोग नाइंथ चैप्टर पढेंगे. ए जी तुम रीडिंग करोगे"? खन्ना मास्टर ने पहली लाइन में बैठे एक पढ़ाकू से दिखने वाले लड़के से पूछा. "रीडिंग तो हम कर दें माठ सा'ब लेकिन आज आठवां चैप्टर पढ़ाया जाना है. पुरुष और महिला के जनन तंत्र के बारे में. ह्यूमन रिप्रोडक्शन पढ़ाया जाना है" "वो भी पढाएंगे. पहले नाइंथ वाला पढ़ लो. बोर्ड एग्ज़ाम के हिसाब से नाइंथ चैप्टर अधिक इम्पोर्टेंट है", खन्ना मास्टर ने खंखारते, रिरियाते हुए कहा. "अरे रहिन दो माठ सा'ब. 'काका टेन इयर्स', चित्रा, मास्टरमाइण्ड से पिछले दस साल के पेपर फेर चुके हैं हम लोग. नाइंथ चैप्टर से एक्को सवाल नहीं फंसा है आज तक. आप तब से अमीबा, प्रोटोजोआ और केंचुआ में ही फंसा रहे हो हम लोग को". लड़के ने मौज लेते हुए कहा. "हां. हम लोग महिलाओं के जनन तंत्र के बारे में ही पढेंगे. उससे हर साल दस नंबर का दीर्घ उत्तरीय प्रश्न फंसता है. नाइंथ चैप्टर से बस अति लघुत्तरीय प्रश्न ही फंसते हैं"
क्लास में किसी कोने से आवाज़ आई. खन्ना मास्टर ने जल्दी से थूक गुटुक लिया. माठ सा’ब बगलें झांक रहे थे. जी हो रहा था कि दो चार लौंडों को हौंक दें लेकिन हिम्मत नहीं कर पा रहे थे. टेंथ बी के लड़के माठ सा'ब लोग को लाइन से लगाने और हौंक देने के लिए पूरे बीएनएसडी शिक्षा निकेतन में कुख्यात थे.
"बालक अभी ह्यूमन रिप्रोडक्शन के बारे में पढ़कर क्या करोगे. उसका अभी तुम्हारे जीवन में क्या काम. जब ज़रूरत पड़ेगी तब ख़ुदी सीख जाओगे. फ़र्ज़ करो कि तुम रेगिस्तान में रहते हो, तो क्या तुम वहां तैरना सीखोगे? नहीं”! "माठ सा'ब मतलब तो हम लोग को अलाउद्दीन खिलजी से भी घंटा नहीं है. हमें कौन सा मुगलों से लोहा लेना है. लेकिन अकबर, शेरशाह सूरी, चन्द्रगुप्त सबका फैमिली ट्री रट रहे हैं न" "चौरसिया सर तब से लेई, गोंद, साबुन और डालडा बनाने की विधि लिखवा-लिखवा के जान मार लिए हैं. वैसे तो हम लोग को परचून का दुकान भी नहीं खोलना. लेकिन चौरसिया सर बच्चों के भविष्य हित में पढ़ाते हैं. प्री बोर्ड में लेई बनाने पर चार नंबर का सवाल फंसा भी"
खन्ना मास्टर बेचारे चारों तरफ़ से घेर लिए गए थे. शर्म से लाल हो रखे थे. लडकियां बगलें झांक रही थीं और लड़के कटर से पेंसिल छील कर इशारे कर रहे थे. कुछ मुट्ठी में छेद बनाकर उंगलियां आर-पार कर रहे थे. खन्ना मास्टर ऐसा महसूस कर रहे थे जैसे कौरवों की सभा में चीर बचाती हुई द्रौपदी. वो किशन लाल चपरासी को याद कर रहे थे, कि वो जल्दी से अगली क्लास की घंटी बजा दे और उनकी जान छूटे. “हे किशन’ उन्होंने मन ही मन जाप किया और घड़ी देखी. अभी भी दस मिनट बाकी था.
“अच्छा ठीक है. खोलो आठवां चैप्टर”, उन्होंने जी कड़ा करके कहा. “देखो बच्चों. आज हम सीखेंगे कि स्त्री और पुरुष मिलते हैं तो क्या होता है” “जी माठ सा’ब. विस्तार से बताइए. क्या होता है”.
वही होता है जो मंजूर-ए-ख़ुदा होता है, ऐसा खन्ना मास्टर कहना चाहते थे, लेकिन कह न सके.
“ये डाइग्राम देखिए बच्चों”, उन्होंने कहा. “ये योनि है, ये अंडाशय और ये भग”. बेचारे लजाते शरमाते बोले. “अरे ई क्या दिखा रहे हैं माठ सा’ब. ये कैसा विचित्र सा चित्र है”. पढ़ाकू लड़का चीखा. “अरे ये महिला जनन तंत्र का ही चित्र है बालक”, खन्ना मास्टर ने रिरियाते हुए फिर से घड़ी देखी. “अरे झूठ मत कहो मास्टर. इतना बदसूरत”, कोने से आवाज़ आई “रात में रेन टीवी में तो कुछ और दिखाए थे सर”. “माठ सा’ब टाइटैनिक देखो. बुद्धि खुलेगी. कृपा वहीं रुकी हुई है”, दूसरे कोने से आवाज़ आई.
खन्ना मास्टर ने ज़ोर से आंखें बंद कर लीं. “हे किशन” फिर से कहा. और क्लास “टन्न” की आवाज़ से गूंज उठी. ऐसा लगा जैसे आकाश की ऊंचाई से कोई दिव्य घंटा बजा हो और उनकी अरदास सुन ली गई हो. किशन लाल ने लम्बी घंटी बजाई और उसके ख़तम होने से पहले ही खन्ना मास्टर चीर संभाल के कौरवों की सभा से फ़ाख्ता हो गए. “आजकल के लौंडे. साले बाप को पढ़ाने चले हैं”, अंदर से आवाज़ आई. खन्ना मास्टर ने उस दिन को कोसा जब दो नंबर कम आने से वो मैथ्स लेते-लेते रह गए थे.
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