शुरुआत एक डायरी पर लिखी लाइनों से करते हैं- “मौसम ख़राब है. बर्फबारी शुरू हो गई है. मैं 'दिल से' और 'कुछ कुछ होता है' के गाने सुन रहा हूं. पिछली रात पार्टी राशन लेकर आई. हमें सिगरेट, सूखे मेवे, मिल्क पाउडर मिले. अब सब ठीक है.” लिखने वाले का नाम - लेफ्टिनेंट मुहम्मद माज़ उल्लाह खान. पाकिस्तान की 8 नॉरदर्न लाइट इन्फेंट्री का ये अफसर 16 हजार फ़ीट की ऊंचाई पर ये लाइनें लिख रहा था. कारगिल की पहाड़ियों में. तारीख पर ध्यान दीजिए - 31 मार्च 1999. महज दस दिन पहले पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम नवाज़ शरीफ़ भारत से दोस्ती की कसमें खा रहे थे. भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का इस्तकबाल हो रहा था. 21 फरवरी के रोज़ जब लाहौर में ऐतिहासिक लाहौर डिक्लेरेशन पर दस्तखत हो रहे थे. पाकिस्तानी फौज कारगिल की पीक्स पर बंकर बनाने में लगी थी.
'भारत घुटनों पर आकर गिड़गिड़ाएगा...' गैंग ऑफ फोर ने कैसे बनाया था कारगिल घुसपैठ का प्लान?
पाकिस्तान के तत्कालीन आर्मी जनरल Pervez Musharraf इतने कॉन्फिडेंट थे कि Kargil War को लेकर उन्होंने कह दिया था- 'हारे तो मेरी गर्दन काट लेना.' पर कैसे हुई थी ये पूरी प्लानिंग? उन चार के गैंग में कौन-कौन शामिल था? क्या किसी ने ऐसा ना करने को भी कहा था?
साल 2024 की 27 जुलाई को कारगिल विजय के 25 साल पूरे हो रहे हैं. इस सिलसिले में हम बताएंगे- कारगिल घुसपैठ की प्लानिंग कैसे हुई थी? परवेज़ मुशर्रफ़ किस बात पर इतने कॉन्फिडेंट थे कि उन्होंने कह दिया था, 'हारे तो मेरी गर्दन काट लेना'. नवाज शरीफ को इस प्लानिंग में कैसे जोड़ा गया? कारगिल में घुसपैठ हुई है. ये बात भारतीय जवानों को 3 मई को पता चली. लेकिन ये इस युद्ध का ट्रिगर पॉइंट नहीं था. ट्रिगर तो 1984 में ही दब गया था.
सियाचिन से जिन्ना का नाम मिटा दियाजून 1984 में हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार से कुछ दिन पहले बीबीसी के पत्रकार सतीश जैकब ने सिख चरमपंथी नेता जरनैल सिंह भिंडरावाले के साथ तीन घंटे लंबा इंटरव्यू किया. इस इंटरव्यू में जब सतीश ने भिंडरावाले से पूछा कि वो भारत की फ़ौज से कैसे लोहा लेंगे? भिंडरावाले का जवाब था,
हमने सारी स्कीम बना ली है. यहां से दस किलोमीटर दूर पकिस्तान से सटा खालड़ा बॉर्डर है. हम खेतों के रास्ते महज 45 मिनट में पकिस्तान पहुंच जाएंगे. उनके साथ हमारी समझदारी ठीक है. वहां पहुंचकर हम गुरिल्ला वार शुरू कर देंगे.
खालिस्तान आंदोलन को पाक की सरपरस्ती हासिल थी, ये बात भारत की ख़ुफ़िया एजेंसियों से छिपी नहीं थी. पाकिस्तान की हरकत का जवाब देते हुए भारत ने पकिस्तान को दुनिया के सबसे ठंडे मोर्चे पर घेर लिया. 13 अप्रैल 1984 को लेफ्टिनेट जनरल प्रेम नाथ हूण के नेतृत्व में कुमाऊं रेजिमेंट की एक पूरी बटालियन सियाचिन पर चढ़ बैठी. इस ऑपरेशन को नाम दिया गया, 'मेघदूत'. सियाचिन में पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी.
पाकिस्तान में उस वक़्त जनरल जिया उल हक़ की तानाशाही चल रही थी. वे सियाचिन में मिली हार से झल्लाए हुए थे. उन्होंने फौज को आदेश दिया और 1986 में पाकिस्तानी सेना के स्पेशल सर्विस ग्रुप ने सियाचिन के पश्चिम में मौजूद एक पीक पर कब्ज़ा कर लिया. बड़े फख्र से इसका नाम रखा- क़ायद. क़ायद-ए-आज़म मुहम्मद अली जिन्ना के नाम पर. लेकिन अगले ही साल भारतीय फौज ने ऑपरेशन राजीव के तहत इस पीक को न सिर्फ वापिस छीना, बल्कि इसका नाम बदलकर बाना टॉप रख दिया गया. कैप्टन बाना सिंह ने 20 हजार फ़ीट की ऊंचाई पर 85 डिग्री एंगल की दीवार लांघकर इस पीक को जीतने में अहम भूमिका निभाई थी. जिसके चलते उन्हें परम वीर चक्र से नवाजा गया.
सियाचिन और बाना टॉप की लड़ाइयों के बाद भारत और पाकिस्तान सियासी समझौते पर पहुंच गए थे. लेकिन पाकिस्तान का एक ब्रिगेडियर इस हार को पचा नहीं पा रहा था. इनका नाम था- परवेज़ मुशर्रफ. 1987 में जिया ने मुशर्रफ को स्पेशल सर्विस ग्रुप का कमांडर बनाकर सियाचिन मोर्चे की कमान सौंप दी. मुशर्रफ ने जनरल ज़िया उल हक़ को सियाचिन पर दोबारा कब्ज़े में लेने का एक डीटेल प्लान बनाकर दिया. लेकिन जिया रिस्क लेने के मूड में नहीं थे. वो पहले से अफगानिस्तान के मोर्चे पर घिरे हुए थे. उन्होंने इस प्लान को ठंडे बस्ते में डाल दिया.
इसके बाद कहानी पहुंचती है साल 1998 तक. नवाज़ शरीफ़ पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम बन चुके थे. आर्मी चीफ थे जनरल जहांगीर करामात. अक्टूबर 1997 में करामात ने नवाज को सलाह दी कि पाकिस्तान के चार सूबों का प्रशासन लोकल सरकारों के हाथ दे दिया जाए. नवाज़ इस बात पर भड़क कर और सीनियोरिटी के हिसाब से दो जनरल्स को ओवर पास कर जनरल मुशर्रफ को आर्मी चीफ नियुक्त कर दिया. मुशर्रफ सियाचिन की हार भूले नहीं थे. इसलिए मौका मिलते ही उन्होंने सालों पुराना प्लान अलमारी से निकाला और झाड़ फूंक कर उसे दोबारा अमली जामा पहनाने में जुट गए.
एक साल के अंदर ही मुशर्रफ़ ने इस प्लान को अंजाम भी दे डाला. वो भी बिना प्रधानमंत्री को बताए. कारगिल प्लान के बारे में नवाज शरीफ को कैसे खबर लगी. ये जानने से पहले एक और घटना का जिक्र जरूरी है. 11 मई 1998. भारत ने पोखरण में न्यूक्लियर टेस्ट को अंजाम दिया और उधर नवाज़ शरीफ की सांस फूलने लगी. कहते हैं कि नवाज शुरुआत में परमाणु परीक्षण के लिए तैयार नहीं थे. उन्हें अमेरिका की नाराजगी मोल नहीं लेनी थी. लेकिन फिर सऊदी ने पाकिस्तान की पीठ थपथपाई थी. नवाज को लगा कि अगर अमेरिका नाराज भी हो गया, तो सऊदी उनके साथ होगा. कई इस्लामिक देश होंगे, जो शायद तब उनकी मदद को आगे आएं और इसी बैकग्राउंड में पाकिस्तान ने भी न्यूक्लियर टेस्ट कर लिए.
ये तारीख थी- 28 मई, 1998. इस दिन पाकिस्तान ने पांच न्यूक्लियर टेस्ट किए. दो दिन बाद उसने फिर से एक छठा टेस्ट भी किया. बलूचिस्तान के चाघाई में जब पाकिस्तान ने न्यूक्लियर टेस्ट किया, तब नवाज भी वहां मौजूद थे.
कोह-ए-पैमायहां से कहानी आगे इंटरेस्टिंग हो जाती है. दुनिया के इतिहास में आज तक सिर्फ एक मौका ऐसा आया है, जब दो न्यूक्लियर शक्ति से लैस मुल्क सीधे आमने सामने आएं हों. ये कारगिल का युद्ध था. कारगिल में घुसपैठ के पीछे न्यूक्लियर टेस्ट एक अहम वजह थी. क्योंकि पाकिस्तान को लग रहा था- चूंकि न्यूक्लियर हथियारों का खतरा है, इसलिए भारत सीधे युद्ध नहीं करेगा. बाद में हालांकि मुशर्रफ ने अपनी आत्मकथा में लिखा था कि जब युद्ध शुरू हुआ, पाकिस्तान न्यूक्लियर लोड मूव करने के काबिल ही नहीं था. बहरहाल, कारगिल में घुसपैठ की तैयारी अक्टूबर 1998 से शुरू हुई. स्कर्दू और गिलगिट में तैनात फ्रंटियर डिविजन के जवानों की छुट्टियां रद्द कर दी गईं. पैरामिलिट्री फ़ोर्स नॉर्दन लाइट इंफेट्री को ऑपरेशन कोह-ए पैमा के लिए तैयार किया गया.
शुरुआत में प्लानिंग थी कि कारगिल के पास LOC में जहां-जहां गैप्स हैं. वहां पाकिस्तान कब्ज़ा कर लेगा. लेकिन फिर एक ऐसी घटना हुई, जिसने इस ऑपरेशन का दायरा बढ़ा दिया. नवम्बर 1998 की बात है. पकिस्तान की खुफिया एजेंसियों ने रिपोर्ट दी कि कारगिल सेक्टर में भारतीय फ़ौज की असामान्य हलचल देखी जा रही है. सेना के एक ब्रिगेडियर मसूद असलम को जिम्मा सौंपा गया कि वो जाकर हालात का जायजा लें. जब ये ब्रिगेडियर साहब कारगिल सेक्टर में रेकी करने पहुंचे, तो उन्होंने पाया कि भारत की चौकियों पर बर्फ जमी हुई है. वो थोड़ा और आगे गए. मोर्चे पर उनकी एक भी सैनिक से मुठभेड़ नहीं हुई. वापस आकर उन्होंने आर्मी कमांड को ये रिपोर्ट दी. ये रिपोर्ट देखकर मुशर्रफ़ ने फैसला किया कि कारगिल का जितना संभव होगा, उतना इलाका कब्ज़ा लिया जाएगा.
प्लान अच्छा था. लेकिन दिक्कत ये थी कि इस बारे में आर्मी के सभी महत्वपूर्ण लोगों को विश्वास में नहीं लिया गया था. यहां तक कि एयर फ़ोर्स और नेवी को भी नहीं बताया गया. सिर्फ चार लोग थे, जो ऑपरेशन कोह -ए पैमा के बारे में जानते थे. आर्मी चीफ जनरल मुशर्रफ, चीफ ऑफ़ जनरल स्टाफ जनरल अजीज, 10वीं डिविजन के कोर कमांडर जनरल महमूद, नॉर्दन इन्फेंट्री फोर्स के इंचार्ज ब्रिगेडियर जावेद हसन. इन चारों की जोड़ी को उस पाकिस्तान आर्मी के भीतर 'गैंग ऑफ़ फोर' के नाम से जाना जाता था.
पाकिस्तान की एक पत्रकार नसीम जेहरा की लिखी एक किताब है. नाम है- फ्रॉम कारगिल टू द कू: इवेंट्स दैट शुक पाकिस्तान. इस किताब में जेहरा एक मीटिंग का जिक्र करती हैं. 16 जनवरी को इस्लामाबाद में हुई मीटिंग में इन चार लोगों के अलावा एक और शख्स शामिल थे. डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशन्स- तौकीर जिया. कारगिल ऑपरेशन को लीड करने की जिम्मेदारी इनकी ही थी. लेकिन जनवरी तक इन्हें इस बात का इल्म न हुआ था. मीटिंग में मुशर्रफ ने ऑपरेशन शुरू करने का आदेश दिया. इसके बाद बोले- ‘मान लो अगर प्लान फेल रहा, तो क्या होगा.’
इतना सुनना था कि वहां गर्दनें आगे हो गईं. सबसे पहले ब्रिगेडियर जावेद हसन ने कहा- हुजूर मेरी गर्दन उतार लीजिएगा. हसन ने अभी अपनी बात पूरी भी नहीं की थी कि जनरल महमूद उठे और बोले, ‘आपकी क्यों, मेरी गर्दन कटेगी.' मुशर्रफ ने ये सब सुना और आखिर में बोले, "तुम दोनों की नहीं, आख़िर में कटेगी तो मेरी ही गर्दन".
नवाज़ प्लान में शामिल हुएआर्मी हेडक्वार्टर में जब गर्दन पेश करने का ये सिलसिला चल रहा था. राजनीतिक हलकों में इसका ठीक उल्टा खेल चालू था. अक्टूबर 1998 में नवाज़ शरीफ़ और अटल बिहारी वाजपेयी, UN जनरल असेम्बली मीटिंग के लिए पहुंचे थे. इसी दौरान दोनों की मुलाक़ात हुई. वाजपेयी पाकिस्तान के साथ रिश्ते सुधारना चाहते थे. उन्होंने प्रस्ताव रखा. भारत और पाकिस्तान के बीच एक बस सेवा शुरू की जाए. नवाज ने तुरंत हामी भर दी. उन्होंने इस बारे में सेना की राय लेना ज़रूरी नहीं समझा. खैर, तो ये हुआ कि 20 फरवरी, 1999 को वाजपेयी बस लेकर लाहौर पहुंचे. लाहौर में एक ऐतिहासिक समझौते पर साइन हुए. नवाज की इस वक्त तक नीयत साफ थी. लेकिन उनसे एक भयंकर चूक हो गई थी. आर्मी की मंजूरी के बिना पाकिस्तान में कुछ नहीं हो सकता था और आर्मी चीफ मुशर्रफ कुछ और ही इरादा बनाए हुए थे.
17 मई, 1999 से. इस्लामाबाद से कुछ मील की दूरी पर ISI के ओझरी कैंप ऑफिस में एक मीटिंग हुई. इसमें नवाज़ के अलावा कारगिल गैंग का कोर ग्रुप- मुशर्रफ, अजीज खान, महमूद अहमद, जावेद हसन सब मौजूद थे. ISI के डायरेक्टर जनरल जियाउद्दीन बट्ट भी वहीं थे. विदेश मंत्री सरताज अजीज, नॉदर्न एरियाज एंड कश्मीर अफ़ेयर्स के मंत्री लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) माजिद मलिक, विदेश सचिव शमशाद अहमद को भी बुलाया गया था. इससे पहले भारत की मीडिया में खबरें आ रही थीं कि पाकिस्तानी सैनिकों की देखरेख में कई मुजाहिदीन LoC पार करके भारत में घुस आए हैं. जब मीटिंग शुरू हुई, तो पाकिस्तान के डायरेक्टर जनरल ऑफ़ मिलिटरी ऑपरेशन्स (DGMO) प्रेजेंटेशन देने के लिए खड़े हुए. DGMO ने नवाज से मुखातिब होते हुए कहा-
सर, कश्मीर में आजादी की लड़ाई को और तेज करने की आपकी इच्छा के मुताबिक़ हमने एक प्लान तैयार किया है. ये पांच चरणों का ऑपरेशन होगा. इसका पहला स्टेज पूरा हो चुका है.
फिर नवाज़ को एक नक्शा दिखाया गया. इसमें कुछ पॉइंट्स बने थे. नवाज को बताया गया कि ये जगहें हासिल की जा चुकी हैं. जो मैप दिखाया गया, वो टिपिकल सेना वाला था. यहां एक बिंदू, वहां एक निशान. एक शब्द नहीं लिखा था. ये आम आदमी के पल्ले नहीं पड़ सकता. इसमें LoC तक साफ-साफ नहीं दिखाया गया था. जब नवाज को इसी मैप में भारत और पाकिस्तान की पॉजिशन्स दिखाई गईं, तो नवाज़ उनकी सही लोकशन समझ ही नहीं पाए. ब्रीफिंग में ये ज़िक्र भी नहीं किया गया कि पाकिस्तानी सेना LoC क्रॉस करेगी. जाहिर है, नवाज बस ये समझते रहे कि पाकिस्तान घुसपैठ करवाने तक ही सीमित रहेगा.
नवाज़ को बताया गया कि पाकिस्तान ने सामरिक महत्व के कुछ ऊंचाई वाले इलाकों को अपने कब्जे में ले लिया है. लेकिन ये वो इलाक़े हैं, जो अनडिमार्केटेड जोन में आते हैं. मतलब, वो किसके इलाके में हैं, इसका कभी कोई फैसला हुआ ही नहीं. मुशर्रफ ने नवाज़ से कहा,
जनाब! हम ऐसी जगह पहुंच चुके हैं, जहां से वापसी नामुमकिन है. मेरा सारा तजुर्बा कहता है कि इस मिशन में जीत की पूरी गारंटी है.
अजीज खान अपनी जगह पर खड़े होकर नवाज़ से बोले-
सर, जिन्ना और मुस्लिम लीग की कोशिशों से पाकिस्तान बना. पाकिस्तान बनाने वालों के तौर पर उन्हें हमेशा याद रखा जाएगा. अब अल्लाह ने आपको ये मौका दिया है. भारत के पास कश्मीर का जो हिस्सा है, उसे वापस पाने का मौका मिला है आपको. पाकिस्तान के इतिहास में आपका नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज होगा. कश्मीर फतह का कारनामा आप पूरा करके दिखाएंगे.
ये बातें सुनकर नवाज की बाछें खिल उठीं. एक ऐसे बच्चे की तरह जिसे अफलातूनी सब्जबाग का भरोसा हो गया हो, नवाज शरीफ़ बोले- तो आप कश्मीर पर पाकिस्तान का झंडा कब तक फहरा देंगे? जल्द से जल्द, मुशर्रफ ने जवाब दिया. इस ऑपरेशन के लिए हामी भरते वक्त नवाज़ 'लाहौर समझौता' भी भूल गए थे. विदेश मंत्री सरताज अजीज ने उन्हें इसकी याद दिलाई थी. सरताज ने नवाज से कहा- ‘आपको नहीं लगता कि ये ऑपरेशन लाहौर समझौते के खिलाफ है.’ इसके जवाब में नवाज बोले-
सरताज अजीज साहब, क्या हम कागज-पत्तर के सहारे कभी कश्मीर हासिल कर सकते हैं? हमें यहां कश्मीर को झटकने का मौका मिल रहा है.
प्लान को हरी झंडी दिखाने के बाद मीटिंग से निकलकर नवाज अपनी कार में बैठ गए. डिफेंस सेक्रटरी लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) इफ्तिकार अली खान ने अपनी कार में बैठकर उनका पीछा किया. ये रात के करीब नौ बजे की बात होगी. नवाज अपने घर की लिफ्ट में घुस रहे थे कि उसी समय इफ्तिकार भागते-भागते उनके पास पहुंचे. इफ्तिकार ने कहा- ‘सर, मुझे आपसे बात करनी है. बहुत जरूरी है ये.’ जवाब में नवाज ने कहा- ‘आप कल सुबह बात करिएगा मुझसे.’ मगर इफ्तिकार ने जिद की. नवाज को उनकी बात सुनने के लिए राजी होना पड़ा. इफ्तिकार ने नवाज से पूछा- ‘क्या सेना ने आपसे LoC पार करने की इजाजत ली है?’ इस सवाल पर नवाज चौंक गए. उन्होंने पूछा- क्या सेना ने LoC पार कर लिया है?
तब इफ्तिकार ने उन्हें बताया कि मुजाहिदीन नहीं, बल्कि पाकिस्तानी सेना ने LoC पार करके भारत के हिस्से में अपनी कई सारी पोस्ट्स बना ली हैं. फिर इफ्तिकार का सवाल था- ‘मियां साहेब, आप जानते हैं न कि LoC पार करने का अंजाम क्या होगा?’ और अब जाकर नवाज हैरान हुए. उन्होंने अगले दिन अपने घर पर एक कैबिनेट मीटिंग बुलाई. उन्हें सब कुछ बताया गया. यहां जाकर नवाज को समझ आया कि सेना और ISI ने बिना उनसे बात किए, बिना उनकी इजाजत लिए ही जंग छेड़ दी है. नवाज ने मुशर्रफ को तलब किया. करीब एक घंटे बाद मुशर्रफ नवाज के घर पहुंचे. उस मीटिंग में कुल तीन जन थे- नवाज, मुशर्रफ और डिफेंस सेक्रटरी इफ्तिकार.
नवाज ने सीधे-सीधे मुशर्रफ से पूछा- ‘क्या आपने (मतलब पाकिस्तानी सेना ने) LoC लांघा है?’ मुशर्रफ तुरंत बोले- ‘जी जनाब, हमने LoC पार किया है.’ नवाज ने पूछा- ‘किसकी इजाजत से?’ मुशर्रफ बोले- ‘मेरी अपनी जिम्मेदारी पर. अगर अब आप कहें, तो मैं सेना को वापस लौट आने का हुक्म दे दूंगा.’ और फिर नवाज ने जो कहा और किया, वो शायद एक किस्म की मानसिक विक्षिप्तता थी. इफ्तिकार की ओर देखकर नवाज बोले-
आपने देखा? इन्होंने अपनी जिम्मेदारी कबूली है. चूंकि सेना सरकार का ही हिस्सा है, सो आज से हम इस ऑपरेशन में सेना की मदद करेंगे.
ये भी पढ़ें - जब कारगिल में पाक घुसपैठियों का सामना गोरखा राइफ़ल्स से हुआ!
पाकिस्तान का प्लानजम्मू-कश्मीर के तीन हिस्से हैं. एक तो जम्मू, दूसरा कश्मीर घाटी और तीसरा लद्दाख. चूंकि कश्मीर का एक हिस्सा अभी पाकिस्तान के कब्ज़े में है, तो आप उसको चौथा हिस्सा मान सकते हैं. जम्मू की तरफ से कश्मीर घाटी में घुसने का रास्ता है बानिहाल दर्रा. लद्दाख की ओर से अगर आप घाटी में आए, तो आपको जोजिला दर्रा पार करना होगा. DGMO ने नवाज को बताया-
हम मुजाहिदीनों को लद्दाख में घुसाएंगे. वो वहां अपनी गतिविधियां शुरू करेंगे. दूसरी तरफ कई मुजाहिदीन जम्मू में घुसपैठ करेंगे. इनसे निपटने के लिए भारत अपनी फौज लद्दाख और जम्मू की तरफ भेजेगा. उस समय घाटी में भारतीय फौज नाम की ही बची रह जाएगी. यहीं पर शुरू होगा ऑपरेशन का चौथा स्टेज. मुजाहिदीनों के सहारे पाकिस्तान बानिहाल और जोजिला को ब्लॉक कर देगा. इस तरह कश्मीर घाटी को अलग-थलग करके पाकिस्तान उस पर कब्जा कर लेगा.
DGMO ने नवाज को लॉलीपॉप थमाया. कहा, घाटी से कट जाने की वजह से भारत की हालत खराब हो जाएगी. वो घुटनों पर आकर पाकिस्तान के सामने गिड़गिड़ाएगा. तब भारत के पास बातचीत के सिवाय कोई और रास्ता नहीं बचेगा. ऐसे में पाकिस्तान उसे अपनी शर्तों पर बात करने को मजबूर कर सकेगा. हालांकि, वॉर स्ट्रेटेजी के हिसाब से प्लान अच्छा था. लेकिन पूरा नहीं हो पाया.
बाद में जो प्लान का पता लगा. भारत की फौज ने इस प्लान को फेल किया. फिर शुरुआत हुई ऑपरेशन विजय की. और अंत में लंबे संघर्ष के बाद भारत की जीत हुई. बहरहाल, इसकी कहानी फिर कभी. फिलहाल पाकिस्तान की प्लानिंग के बारे में आपकी क्या राय है, हमेें कॉमेंट बॉक्स में ज़रूर बताएं.
वीडियो: Nawaz Sharif ने कारगिल युद्ध की कौन सी गलती पर अटल का नाम लिया?