कांग्रेस प्रवेश के अवसर पर कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवाणी दिल्ली के शहीद भगत सिंह पार्क पहुंचे. वहां उनके साथ कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी थे. सबने मिलकर शहीद भगत सिंह की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया.
कन्हैया कुमार पूरी तरह कांग्रेसी हो गए वहीं जिग्नेश मेवाणी ने कहा कि उन्होंने तकनीकी रूप से कांग्रेस जॉइन नहीं की है, बल्कि उसकी विचारधारा को अपनाया है. ये भी कहा कि वे अगला चुनाव लड़ेंगे कांग्रेस के टिकट पर ही.
अब इस सबका क्या मतलब है, शायद आने वाले दिनों में पता चले. फिलहाल बात कर लेते हैं कन्हैया कुमार और उन नेताओं की, जो शुरू में वामपंथी विचारधारा से जुड़े रहे, लेकिन बाद में दूसरी पार्टियों का दामन थाम लिया. देवी प्रसाद त्रिपाठी ये इमरजेंसी के दिनों की बात है. एक युवा छात्र JNU छात्र संघ का अध्यक्ष चुना जाता है. नाम, देवी प्रसाद त्रिपाठी. उनके JNU वाले नाम से कहें तो डीपीटी.
डीपीटी 1973 में JNU आए थे. पॉलिटिकल साइंस में MA करने के लिए. यहां आते ही वो CPI(M) के छात्र संगठन स्टूडेंट्स फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडिया (SFI) में वो शामिल हो गए. MA के आख़िरी साल में डीपीटी JNU छात्र संघ के अध्यक्ष बन गए. वहीं, इमरजेंसी ख़त्म होने के कुछ ही समय बाद उनकी नौकरी लग गई. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में बतौर लेक्चरार. इलाहाबाद, जो अब प्रयागराज है, में ही रहते हुए देवी प्रसाद CPI(M) की राजनीति में सक्रिय हो गए.

NCP नेता देवी प्रसाद त्रिपाठी और भारत के पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी.
लेकिन ये सफ़र ज़्यादा लंबा नहीं चला. 1983 में डीपीटी राजीव गांधी के क़रीब आ गए. उनकी मदद से राजीव गांधी ने JNU के छात्रों के एक विरोध प्रदर्शन को ख़त्म किया. देवी प्रसाद की योग्यता को देखते हुए राजीव ने उन्हें अपना अडवाइज़र बना लिया. लेकिन राजीव गांधी की मौत के बाद कांग्रेस से डीपीटी का फ़ासला बढ़ता चला गया और आख़िरकार 1999 में उन्होंने शरद पवार के साथ मिलकर NCP बनाई. 2012 में वो राज्य सभा पहुंचे. जनवरी, 2020 में उनका देहांत हो गया. उनके शानदार भाषणों के लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है. शकील अहमद खान शकील अहमद खान बिहार के कटिहार ज़िले की कदवा सीट से विधायक हैं. पहली बार साल 2015 में चुनाव इसी सीट से जीते थे. कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय सचिव भी हैं. लेकिन, शकील के भी राजनीतिक सफ़र की शुरुआत SFI से हुई थी. पटना यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन करने के बाद शकील ने JNU से MA, MPhil और PhD किया. मज़ेदार बात ये है कि उन्होंने कांग्रेस के छात्र संगठन NSUI से इकलौते छात्र संघ अध्यक्ष रहे तनवीर अख़्तर को चुनाव हराया था. तनवीर अख़्तर आजकल जेडीयू में हैं.

कांग्रेस नेता शकील अहमद खान.
शकील 1992 में जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए थे. उससे पहले 1991 में छात्र संघ के उपाध्यक्ष भी रहे. SFI में कुछ समय सक्रिय रहने के बाद शकील CPI(M) में सक्रिय हो गए थे. लेकिन ये साथ 1999 में टूट गया. वो कांग्रेस में शामिल हो गए. यूपीए के पहले शासन काल के दौरान वो भारत सरकार के अधीन आने वाले नेहरू युवक केंद्र के डायरेक्टर जनरल बनाए गए थे. नासिर हुसैन कर्नाटक से कांग्रेस के राज्यसभा सांसद हैं. JNU राजसत्ता के विरोध के लिए जाना जाता है. JNU से पॉलिटिकल साइंस में MA, इंटरनेशनल स्टडीज़ में MPhil और PhD की पढ़ाई की. उनका भी SFI और CPI(M) के साथ रिश्ता ज़्यादा लंबा नहीं चला. जेएनयू से निकलने के कुछ ही समय के बाद उन्होंने CPI(M) से दूरियां बना ली थीं. फिर UPA-1 के दौर में कांग्रेस से नज़दीकियां बढ़ीं.

कांग्रेस से राज्य सभा सांसद सैयद नासिर हुसैन.
नासिर भारत सरकार के श्रम मंत्रालय की कई अडवाइज़री कमेटियों में बतौर अध्यक्ष और कइयों में सदस्य की भूमिका में रहे. 2018 में नासिर पहली बार कर्नाटक से राज्यसभा पहुंचे. पिछले तीन सालों में वो कई सरकारी कमेटियों का हिस्सा भी रहे हैं. फ़िलहाल वो भारत सरकार की इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलजी और पब्लिक अंडरटेकिंग्स कमेटी में बतौर सदस्य अपनी भूमिका निभा रहे हैं. बत्ती लाल बैरवा दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक कॉलेज में पढ़ाते हैं. बत्ती लाल बैरवा की पहचान JNU छात्र संघ के पहले दलित अध्यक्ष के तौर पर की जाती है. 1996 में पहली बार और 1997 में फिर से एक बार बत्ती लाल छात्र संघ अध्यक्ष चुने गए थे. वे SFI से भी जुड़े हुए थे.

JNU छात्र संघ के पहले दलित अध्यक्ष बत्ती लाल बैरवा.
राजस्थान के एक गरीब परिवार से ताल्लुक़ रखने वाले बत्ती लाल ने JNU से MA, MPhil और PhD किया है. उन्होंने हिन्दी भाषी छात्रों में SFI की पकड़ को दोबारा मज़बूत करते हुए उसे जीत दिलाई थी. इसके बाद वो CPI(M) की राजनीति में भी सक्रिय हो गए थे. लेकिन JNU में रहने के दौरान उनकी नज़दीकियां अजित जोगी के बेटे अमित जोगी से बढ़ीं. यहां से उनकी कांग्रेस से नज़दीकियां बढ़ने लगीं. इसी बीच उनकी नौकरी बतौर शिक्षक दिल्ली यूनिवर्सिटी में लग गई. उसके बाद वो कांग्रेस में शामिल हो गए. लेकिन वहां कोई बड़ा पद नहीं मिला. कुछ ही सालों पहले उन्हें राजस्थान कांग्रेस का सचिव बनाया गया था. संदीप सिंह साल था 2005. भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह JNU गए थे. एक कार्यक्रम का उद्घाटन करने. लेकिन वहां उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा. छात्रों ने उन्हें काले झंडे दिखाए. उस विरोध में कई लोग शामिल थे, उनमें से एक थे संदीप सिंह, जो बाद में साल 2007 में JNU के छात्र संघ अध्यक्ष चुने गए.
UP के रहने वाले संदीप ने JNU में MA और MPhil की पढ़ाई की है. 2007 के बाद 2011 तक जेएनयू में छात्र संघ चुनावों पर रोक लगी थी, मामला कोर्ट में फ़ंसा था. इस वजह से चुनाव हुए नहीं और संदीप अध्यक्ष के पद पर बने रहे.

प्रियंका गांधी वाड्रा के पर्सनल सेक्रेटरी संदीप सिंह.
साल 2014 में ऐसी अफ़वाहें उड़ीं कि संदीप आम आदमी पार्टी में शामिल हो सकते हैं. लेकिन कुछ समय बाद वो कांग्रेस पार्टी के राजीव गांधी फ़ाउंडेशन से जुड़ गए. वहां से उन्होंने राहुल गांधी से क़रीबियां बढ़ाईं. पार्टी के एक बहुत सीनियर नेता ने हमें नाम ना जाहिर करने की शर्त पर बताया कि संदीप सिंह ने मनमोहन सिंह से माफ़ी मांगी थी, जिसके बाद उन्हें राहुल गांधी ने अपनी टीम में शामिल किया था. जनवरी 2019 में जब प्रियंका गांधी वाड्रा ने आधिकारिक रूप से राजनीति में शिरकत की तो संदीप सिंह को उनका पर्सनल सेक्रेटेरी अपॉइंट किया गया. कन्हैया कुमार अब बात कन्हैया कुमार की, जिनकी चर्चा हर तरफ है. वो कांग्रेस पार्टी में आधिकारिक रूप से शामिल हो चुके हैं. कन्हैया बिहार के बेगूसराय के रहने वाले हैं. वो स्कूल के दिनों से ही सीपीआई के छात्र संगठन ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फ़ेडरेशन यानी कि AISF से जुड़ चुके थे. 2015 में कन्हैया के नेतृत्व में AISF ने जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष पद पर चुनाव जीता था.

कन्हैया कुमार ने 28 सितंबर को कांग्रेस जॉइन की. (फोटो- ANI)
JNU छात्र संघ के इतिहास में SFI और AISF ने हमेशा एक साथ चुनाव लड़ा. लेकिन 2015 में ये गठजोड़ नहीं हुआ था. चुनाव से पहले होने वाले प्रेसिडेन्शियल डिबेट में कन्हैया कुमार के भाषण ने स्टूडेंट्स का दिल जीत लिया था. लिहाज़ा अकेले लड़ने और कमजोर सांगठनिक ढांचे के बावजूद उन्हें नामुमकिन सी लगने वाली जीत हासिल मिली.
इसके बाद 2016 में कथित देश-विरोधी नारे लगाने के आरोप में वो जेल गए. बाहर आने के बाद उनका दिया भाषण वायरल हो गया. वहां से कन्हैया की गिनती बड़े युवा नेताओं में होने लगी. 2019 में उन्होंने CPI के टिकट पर बेगूसराय से लोकसभा चुनाव भी लड़ा, लेकिन बीजेपी के गिरिराज सिंह के हाथों उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. इसके बावजूद भी वो CPI की राष्ट्रीय परिषद के सदस्य बनाए गए थे. मोहित पांडे यूपी से ताल्लुक़ रखने वाले मोहित JNU से पहले दिल्ली यूनिवर्सिटी से पढ़ चुके हैं. उन्होंने जेएनयू में सेंटर फ़ॉर मीडिया स्टडीज़ में PhD के लिए दाख़िला लिया था. जिस साल उन्होंने दाख़िला लिया, उसी साल चुनाव भी लड़ा. मोहित 2016 में जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए थे.
दरअसल, कन्हैया कुमार के चुनाव लड़ने के अगले ही साल धुर विरोधी SFI और AISA (ऑल इंडिया स्टूडेंट्स असोसिएशन) में गठजोड़ हो गया. AISA भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) का छात्र संगठन है. SFI और AISA के इस गठजोड़ ने सारी सीटों पर क़ब्ज़ा जमा लिया. AISA के मोहित पांडे अध्यक्ष बन गए.

UP कांग्रेस के सोशल मीडिया इंचार्ज मोहित पांडे.
बतौर छात्र संघ अध्यक्ष कार्यकाल के ख़त्म होने के बाद मोहित धीरे-धीरे AISA और भाकपा-माले से दूरियां बनाने लगे थे. फिर, 2019 में उन्होंने आधिकारिक तौर पर कांग्रेस का हाथ थाम लिया. फ़िलहाल मोहित पांडे उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सोशल मीडिया इंचार्ज हैं.