साल 1944 की बात है. अक्टूबर का महीना. अमेरिका का जंगी बेड़ा फिलीपीन्स के पास लेट नाम की एक खाड़ी तक पहुंच चुका था. जापान के अधिकतर लड़ाकू विमान नष्ट हो चुके थे. उनकी एयर फ़ोर्स जर्जर हालत में थी. अमेरिकी मान कर चल रहे थे कि वो जल्द ही जापानी मेनलैंड पर चढ़ाई करने में सफल होंगे. लेकिन फिर एक रोज़ उन्हें एक डरावना नज़ारा दिखाई दिया. एक छोटा बॉम्बर विमान अचानक कहीं से आया. बॉम्बर विमान नीची उड़ान भरते हुए बम गिराने की कोशिश करते हैं. लेकिन इस विमान ने ऐसा नहीं किया. उसने सीधे नीचे की ओर डाइव किया और मित्र राष्ट्रों के एक क्रूजर शिप से जा टकराया.(Kamikaze Attacks)
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कौन थे कामेकाजी?
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शिप पर एक बड़ा धमाका हुआ. नेवी के एडमिरल का मानना था की ये शायद कोई हादसा हुआ है. बेचारा पायलट शायद वक्त पर बॉम्बर विमान को ऊपर नहीं ले जा पाया. लेकिन फिर कुछ ही देर में अचानक एक के बाद एक बॉम्बर विमान आए और पिछले विमान की तरह डाइव कर शिप्स से टकरा गए. शिप डूब गया.उस रोज़ अमेरिकी नेवी एक नए टर्म से रूबरू हुई-
कामेकाज़ी. जापानी फौज की वो टुकड़ी जो विमानों से फिदायीन हमले करती थी. कौन थे कामेकाज़ी पायलट? और ये कैसे काम करते थे. (Who are kamikaze)
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द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पश्चिमी मोर्चे पर जर्मनी के 50 लाख सैनिकों ने मित्र राष्ट्रों की सेना के आगे आत्मसमर्पण किया. लेकिन पूर्वी मोर्चे पर जापान के सिर्फ 5% सैनिक आत्म समर्पण के लिए राज़ी हुए. बाकायदा जब जापान के सम्राट हिरोहितो ने आत्मसमर्पण की घोषणा की, उसमें आत्मसमर्पण शब्द का इस्तेमाल नहीं किया. एक जापानी फौजी तो ऐसा था जिसने मानने से ही इंकार कर दिया कि जापान सरेंडर कर सकता है. और इसी धोखे में वो 29 साल तक लड़ता रहा. इस फौजी की कहानी हम तारीख में पहले सुना चुके हैं. लिंक आपको डिक्रिप्शन में मिल जाएगा.बहरहाल हार न मानने के इसी जज़्बे का सबसे बड़ा उदाहरण था कामीकाजे. (World War II)
कामेकाजी - जापानी भाषा में इस शब्द का मतलब होता है, दिव्य तूफ़ान, दिव्य हवाएं. कहानी कहती है कि साल 1281 में मंगोल सरदार कुबलई खान, चार हजार जंगी जहाजों को लेकर जापान की सीमा तक पहुंच गया था. जापान संकट में था लेकिन तभी एक चक्रवाती तूफ़ान आया और जंगी बेड़े को अपने साथ उड़ा ले गया. परंपरा में माना जाता है की ये तूफ़ान देवताओं ने भेजा था. इसलिए इसे नाम मिला कामेकाजी. दिव्य तूफ़ान. अब सवाल ये कि द्वितीय विश्व युद्ध में जापान को इस दिव्य तूफ़ान की जरुरत क्यों पड़ी?
द्वितीय विश्व युद्ध में कामेकाजी
1944 तक जापान युद्ध में पिछड़ने लगा था. खासकर उनकी एयर फ़ोर्स जर्जर हालत में थी. उनके कई विमान नष्ट हो चुके थे. और कई सीनियर पायलट अपनी जान गंवा चुके थे. जापान पर इन्वेजन का खतरा मंडरा रहा था. ऐसे में जापानी नेवी के एडमिरल ओनिशी ताकिज़ीरो ने एक नया प्रपोजल दिया. प्लेन को मानव मिसाइल में बदलने का प्रपोज़ल. पुराने जर्जर विमानों को ठीक कर उन्हें उड़ने लायक बनाना ताकि उसमें बैठकर फिदायीन हमले किए जा सकें. इन्हें नाम दिया गया कामेकाजी. अक्टूबर 1944 में लेट खाड़ी की लड़ाई में पहली बार कामेकाज़ी हमले किए गए. इन हमलों से जापान की सेना में एक नए उत्साह का संचार हुआ और जल्द ही हजारों पायलट कामेकाज़ी के लिए तैयार किए जाने लगे.
सीनियर पायलटों की कमी थी. इसलिए स्कूल कॉलेज से 19 -20 साल के लड़के इस काम के लिए भर्ती किए जाने लगे. भर्ती होने से पहले उन्हें एक फॉर्म दिया जाता था. जिसमें उनके पास कामेकाज़ी बनने या न बनने का ऑप्शन होता था. हालांकि ऑप्शन सिर्फ नाम के लिए था. न कहने पर लड़के को खरी खोटी सुनाई जाती. उसके परिवार का सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाता. इसलिए अधिकतर ये ही माना जाता था की लोग वालंटियर करने को आतुर हैं. सिर्फ़ परिवार के पहले बेटे को कामेकाज़ी नहीं बनने दिया जाता था ताकि वो परिवार का नाम आगे ले जा सके. (Japan's Kamikaze Pilots)
जापानी एयरफ़ोर्स के एक कैप्टन के अनुसार,
"इस मिशन के लिए इतने लोग वालंटियर करने को तैयार थे कि हम उन्हें मधुमक्खियों का झुंड कहा करते थे. और मधुमक्खी जैसा आप जानते हैं, एक डंक मारने के बाद खुद भी मर जाती है".
इन पायलटों को ट्रेनिंग देने के लिए वक्त कम था. ऐसे में फौज के अधिकारियों ने एक जुगाड़ बिठाया. पायलटों को सिर्फ टेक ऑफ की ट्रेनिंग दी गयी. क्योंकि उनके अनुसार उन्हें लैंड नहीं करना था.
डाइकीची इरोकोवा नाम के एक जापानी इतिहासकार थे. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने लड़ाई में हिस्सा लिया था. अपने संस्मरणों में वो बताते हैं की कामेकाज़ी पायलट की ट्रेनिंग बहुत ही क्रूर हुआ करती थी. इरोकोवा लिखते हैं, "ट्रेनी को बेवजह बार-बार तब तक मारा जाता था. जब तक कि वो जमीन पर न गिर जाए. इसके बाद जैसे ही वो खड़ा होता उसे दोबारा मारा जाता". इस ट्रेनिंग के पीछे विचार था कि इससे फाइटिंग स्पिरिट डेवलप होगी. लेकिन इरोकोवा के अनुसार होता उल्टा था. वो लिखते हैं,
“हमें एक मैन्युअल मिलता था. जिसे बार बार पढ़ना होता था. ताकि हम ये समझ पाएं कि 20 साल की उम्र में हमारा मरना क्यों जरूरी है”
इरोकोवा के अनुसार अधिकतर कामेकाज़ी पायलट ऐसे थे. जिन्हें युद्ध का कोई अनुभव नहीं था. उनके मन में दुश्मन के लिए नफरत भी नहीं थी. उन्हें बस एक बात पता होती थी. वो ये कि सम्राट ही उनका भगवान है, जिसके लिए मरना भी इज्जत की बात है. ट्रेनिंग पूरी करने के बाद इन पायलटों से एक खत लिखवाया जाता था. ये ख़त उनके घरवालों के नाम होता था. जिनमें अधिकतर लिखते थे कि सम्राट के लिए मरने का मौका मिलना, उनके लिए सम्मान की बात है. मिशन पर जाते हुए कई पायलट प्लेन में सम्राट हिरोहितो की तस्वीर रखते थे.
क्या कामेकाज़ी पायलटों का मरना जरूरी था?
इरोकोवा लिखते हैं, नहीं. अगर टारगेट नहीं मिला तो पायलट लौट आता था. हालांकि एक बार ऐसा हुआ कि एक बेचारा लड़का जो अभी-अभी यूनिवर्सिटी से निकला था, 9 बार लगातार बिना हमला किए वापस आ गया. और उसे गोली मार दी गयी. जापानी पायलटों को जो मैन्युअल दिया जाता था. उसमें हमले की पूरी तकनीक लिखी रहती थी और उन्हें उसे कंठस्थ करना होता था. मैन्युअल के अनुसार, जमीन से टेक ऑफ कर पायलट नीचे एल्टीट्यूड पर उड़ान भरता. ताकि रेडार उसे न पकड़ सकें. सबसे अच्छा एल्टीट्यूड 3 हजार मीटर था. जैसे ही दुश्मन नजर आता. प्लेन 500 मीटर तक उतर आता. और फिर 45 डिग्री के एंगल पर गोता लगाकर अपने निशाने पर जाकर टकरा जाता.
कामेकाज़ी अटैक के लिए इस्तेमाल होने वाले प्लेन की नोक पर विस्फोटक भरा होता था. ये अटैक अधिकतर चांदनी रात में होते थे. और इनका पहला निशाना एयरक्राफ्ट कैरियर थे. कभी-कभी क्रूजर और डिस्ट्रॉयर जहाजों को भी निशाना बनाया जाता. मैन्युअल में मरने का तरीका भी दर्ज़ होता था. जिसमें लिखा था कि मौत सामने देखकर भी पायलट को अपनी आंखें नहीं बंद करनी चाहिए. क्योंकि इससे निशाना चूक सकता था. हमले के आख़िरी क्षणों में पायलट को जोर से चिल्लाना होता था, हिसातसु - जिसका मतलब होता था- पक्की मौत.
कामेकाजी पायलट का सबसे बड़ा हमला
कामे काज़ी पायलटों का सबसे बड़ा इस्तेमाल ओकिनावा द्वीप की लड़ाई में हुआ (Battle of Okinawa). ओकिनावा जापान मेनलैंड से करीब 650 किलोमीटर दूर है. मार्च 1945 में मित्र राष्ट्रों की सेना ओकिनावा पहुंच चुकी थी. जहां द्वितीय विश्व युद्ध की आख़िरी नेवल बैटल लड़ी गयी. ओकिनावा में अमेरिकी नेवी का पांचवी जंगी बेड़ा तैनात था.जो दुनिया का सबसे बड़ा जंगी बेड़ा था. इसमें 535 जंगी जहाज थे. लेकिन अमेरिका के लिए एक बड़ी दिक्कत ये थी कि वो चारों तरफ से एक्सपोज्ड थे. जंगी बेड़ा एक जगह पर खड़ा था जिसके कारण जापान के लिए उनकी पोजीशन पता लगाना बिल्कुल आसान काम था.
ओकिनावा में अमेरिका की पांचवी फ़्लीट को नष्ट करने के लिए 2000 से ज्यादा कामेकाजी हमले किए गए. जापान के सेनाध्यक्षों का प्लान अमेरिकी फ़्लीट के ज़्यादा से ज़्यादा जहाज डुबाने का था. ताकि बेड़ा वापस लौटने पर मजबूर हो जाए. और ओकिनावा में अमेरिकी फ़ौजी अकेले पड़ जाएं. इसके बाद जापनी फ़ौज ज़मीन से भी उनका सफाया कर देती. जापान ने इस प्लान को अंजाम देने के लिए अपने 2000 पायलट झोंक दिए लेकिन अंत में फायदा कुछ ना हुआ.
कामेकाजी हमलों में अमेरिका के 50 से ज़्यादा जहाज नष्ट हुए और 5000 लोग मारे गए. इतने ही घायल हुए लेकिन फिर भी ये हमला नाकाफ़ी रहा. जापान की तरफ़ से सिर्फ़ प्लेन से हमले नहीं हुए. आत्मघाती हमलों के लिए टॉरपीडो का इस्तेमाल भी किया गया. जिसमें एक शख्स के बैठने की जगह होती थी. और वो टॉरपीडो को सीधा शिप से टकरा देता था. इन्हें काइटेन कहा जाता था. तमाम हमलों के बाद भी जापान अमेरिका को ओकिनावा में रोक नहीं पाया. कामे काजी हमलों में जापान के सात हज़ार पायलट मारे गए. लेकिन जीत अमेरिका की हुई. हालांकि ओकिनावा की जंग से अमेरिका को ये पता चल गया कि जापानी मर जाएंगे लेकिन आत्मसमर्पण नहीं करेंगे. माना जाता है कि कामेकाज़ी हमलों के चलते ही अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमेन ने जापान पर परमाणु हमले को मंजूरी दी थी.
युद्ध के बाद एक अद्भुत बात जो पता चली वो ये थी कि जापान ने पांच हज़ार के क़रीब प्लेन बचाकर रखे थे, जिन्हें कामेकाज़ी अटैक के लिए तैयार किया गया था. इनका इस्तेमाल तब किया जाना था जब अमेरिकी फ़ौज जापान के मेनलैंड पर हमला करती. हालांकि इसकी ज़रूरत नहीं पड़ी. जैसा कि हम जानते हैं अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु हमला कर दिया. जिसके कारण जापान को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर होना पड़ा. जापान के समाज में सम्राट की महत्ता देखते हुए उन्हें पद पर बरकरार रहने दिया गया. हालांकि एक नए संविधान के तहत सम्राट से सारी ताकत छीन ली गई. समर्पण की शर्तों के तहत जापान को सिर्फ़ रक्षा के लिए एक फ़ोर्स बनाने का अधिकार दिया गया. और कामेकाजी का अध्याय हमेशा के लिए समाप्त हो गया.
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