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कनाडा में सिख वोट बैंक की पूरी कहानी, जिसकी वजह से ट्रूडो ने भारत से दुश्मनी मोल ले ली?

India Canada Tension: सरकार बनाने के बाद साल 2016 में जस्टिन ट्रूडो ने कहा कि उनकी सरकार में मोदी सरकार से ज़्यादा सिख हैं. इसको ग़ैर-ज़रूरी बयानबाजी के तौर पर देखा गया. लेकिन ये ट्रूडो की निजी राजनीति के लिए फ़ायदेमंद था. और ट्रूडो लगातार ऐसा करते रहे हैं.

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Justin Trudeau की रेटिंग इस समय ठीक नहीं है और अगले साल कनाडा में चुनाव हैं. (फाइल फोटो)

भारत-कनाडा के राजयनिक संबंध शायद सबसे खराब दौर से गुजर (India Canada Row) रहे हैं. दरअसल, 13 अक्टूबर को कनाडा ने भारत को डिप्लोमेटिक कम्युनिकेशन के ज़रिए एक चिट्ठी भेजी. आरोप लगाया कि भारत के उच्चायुक्त और उच्चायोग के कुछ अधिकारी एक मामले में संदिग्ध हैं. भारत के विदेश मंत्रालय ने इन आरोपों का जवाब दिया. भारत ने कहा कि कनाडा के आरोप अस्वीकार्य हैं. ये जस्टिन ट्रूडो की वोट बैंक पॉलिटिक्स है, जिसके तहत भारत पर निराधार आरोप लगाए गए हैं.

इसके साथ ही भारत सरकार ने कनाडा में अपने उच्चायुक्त संजय कुमार वर्मा और कुछ सीनियर अधिकारियों को वापस बुला लिया. और तो और, कनाडा के छह टॉप डिप्लोमेट्स को भारत छोड़ने के लिए भी कह दिया था.

भारत ने केस का नाम तो नहीं लिया. लेकिन जिस टाइमलाइन का ज़िक्र किया, वो हरदीप सिंह निज्जर की हत्या से मेल खाता है. निज्जर खालिस्तानी आतंकवादी था. फ़र्ज़ी क़ागज़ात के सहारे कनाडा पहुंचा था. फिर संदेहजनक तरीक़े से नागरिकता भी हासिल कर ली. जून 2023 में उसकी हत्या हो गई. इसी मामले के बाद भारत और कनाडा के रिश्तों में कड़वाहट पैदा हुई.

दरअसल, सितंबर 2023 में ट्रूडो ने कनाडा की संसद में कहा था कि इस बात के पुख़्ता सबूत हैं कि निज्जर की हत्या में भारत सरकार के एजेंट्स शामिल हैं. ट्रूडो के आरोपों पर भारत ने गहरी नाराज़गी जताई थी. कनाडा के उच्चायोग से कई डिप्लोमेट्स को बाहर भी निकाला था. हालांकि, हाई कमिश्नर के निष्कासन की नौबत नहीं आई थी.

अब ट्रूडो सरकार ने एक बार फिर से भारत को लपेटने की कोशिश की. अबकी दफ़ा सीधे भारत के हाई कमिश्नर को जांच के दायरे में लाने की बात कही गई. जवाब में विदेश मंत्रालय ने कनाडा के प्रतिनिधि को समन भेजा. उनके सामने नाराज़गी जताई. फिर अपने हाई कमिश्नर को वापस बुला लिया, और उनके हाई कमिश्नर समेत छह डिप्लोमेट्स को भारत छोड़ने के लिए कह दिया.

भारत-कनाडा संबंध

कई जानकारों का मानना है कि कनाडा को इस तरह की सख्त प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं थी. इसलिए, ट्रूडो ने आनन-फानन में प्रेस कॉन्फ़्रेंस बुलाई. भारत पर गंभीर आरोप लगाए. ये भी कहा कि वो इस मुद्दे को G7 और फ़ाइव आइज देशों के सामने रखेंगे. यानी, हाल-फिलहाल में तनाव कम होने की कोई गुंज़ाइश नहीं दिखती. जानकारों का मानना है कि ट्रूडो ये सब अपनी राजनीति साधने के लिए कर रहे हैं. खासकर, सिख वोट बैंक की पॉलिटिक्स. इस बारे में हम आपको आगे बताएंगे, लेकिन पहले एक सरसरी नजर भारत-कनाडा संबंधों पर डाल लेते हैं.

- दोनों देशों के बीच डिप्लोमेटिक संबंधो की शुरुआत 1947 में हुई.

- भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू अक्टूबर 1949 में कनाडा के दौरे पर गए. वहां उन्होंने संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित किया.

- 1950 और 60 के दशक में कनाडा ने भारत को कई इंफ़्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में मदद दी.

- रिश्तों में पहली दरार 1974 में आई. जब भारत ने पोखरण में पहला परमाणु परीक्षण किया. कहा गया कि इसके लिए भारत ने कनाडा से मिले न्यूक्लियर रिसर्च रिएक्टर का इस्तेमाल किया था. इससे कनाडा काफ़ी नाराज़ हुआ.

- फिर 1980 का दशक आया. भारत में खालिस्तान आंदोलन ने रफ़्तार पकड़ी. सरकार ने इसके ख़िलाफ़ अभियान चलाया. इस दौरान कई खालिस्तानी चरमपंथी भागकर कनाडा पहुंचे. उस समय पियेर ट्रूडो, कनाडा के प्रधानमंत्री हुआ करते थे. भारत ने उनसे कार्रवाई की अपील की. मगर कोई असर नहीं हुआ.

- एक मामला तलविंदर सिंह परमार का था. 1981 में वो पंजाब में दो पुलिसवालों की हत्या कर कनाडा भाग गया. भारत ने उसके प्रत्यर्पण की मांग की. लेकिन पियेर ट्रूडो ने मना कर दिया. जस्टिन ट्रूडो उन्हीं पियेर ट्रूडो के बेटे हैं.

- बहरहाल, जून 1985 में एयर इंडिया की फ़्लाइट संख्या 182 में बम धमाका हुआ. इसमें सवार सभी 329 लोग मारे गए. तलविंदर परमार को इसका मास्टरमाइंड बताया गया. मगर उसके ख़िलाफ़ कभी कोई कार्रवाई नहीं हुई. इस घटना में सिर्फ़ एक शख़्स को सज़ा मिली. वो भी जेल से छूट चुका है.

- फिर आया 1998 का साल. भारत ने दूसरा परमाणु परीक्षण किया. इसके बाद अमेरिका समेत अधिकतर पश्चिमी देशों ने भारत की आलोचना की. प्रतिबंध लगाए. इसमें कनाडा भी शामिल था. कनाडा के तत्कालीन विदेश मंत्री मिचेल स्टार्प ने तब कहा था, दोनों देशों के बीच भरोसा खत्म हो चुका है.

- हालांकि, थोड़े समय बाद तल्खी कम होने लगी. 2000 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भारत के दौरे पर आए. इसके बाद प्रतिबंधों में ढील दी जाने लगी. कनाडा ने भी वही रुख अपनाया. फिर 2006 में स्टीफ़न हार्पर कनाडा के प्रधानमंत्री बने. वो कंज़र्वेटिव पार्टी के थे.

सेंट जेरोम्स यूनिवर्सिटी में इतिहास के अध्यापक रयान तौहे, बीबीसी से बातचीत में कहते हैं, हार्पर ने खालिस्तान और न्यूक्लियर टेस्ट को पीछे छोड़कर भारत से बातचीत शुरू की. उनका फ़ोकस व्यापार और शिक्षा पर रहा. उनके दौर में खालिस्तान का मुद्दा लगभग ग़ायब हो गया था.

- स्टीफ़न हार्पर 2015 तक प्रधानमंत्री रहे. 2015 में लिबरल पार्टी की सरकार बनी. जस्टिन ट्रूडो प्रधानमंत्री बने. उनके सत्ता में आते ही रिश्ते बिगड़ने लगे थे.

‘सिख वोट बैंक पॉलिटिक्स’

सरकार बनाने के बाद साल 2016 में जस्टिन ट्रूडो ने कहा कि उनकी सरकार में मोदी सरकार से ज़्यादा सिख हैं. इसको ग़ैर-ज़रूरी बयानबाजी के तौर पर देखा गया. लेकिन ये ट्रूडो की निजी राजनीति के लिए फ़ायदेमंद था.

दरअसल, कनाडा में सिखों की आबादी लगभग 8 लाख है. ये कुल जनसंख्या का दो फीसदी है. इसकी तुलना में संसद में उनका प्रतिनिधित्व चार फीसदी हैं. वे किसी भी सरकार को बनाने-बिगाड़ने में अहम भूमिका निभा सकते हैं.

जहां तक खालिस्तान समर्थकों की बात है, ये आबादी का बहुत छोटा हिस्सा है. लेकिन कनाडा की लोकल पॉलिटिक्स में उनका अच्छा-खासा दबदबा है. इनका गुरुद्वारों पर कब्जा रहता है और इसके जरिए वो सिख मतदाताओं को प्रभावित करने की ताकत रखते हैं.

एक उदाहरण जगमीत सिंह का है. वो खालिस्तान के समर्थन के लिए कुख्यात रहे हैं. उनकी न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP) के पास कनाडा की संसद के निचले सदन में 25 सीटें हैं. अपने दूसरे कार्यकाल में ट्रूडो ने उन्हीं के सहयोग से बहुमत जुटाया था. मगर सितंबर 2024 में NDP ने सपोर्ट खींच लिया. इसके बाद से ट्रूडो सरकार अल्पमत में है. विपक्षी कंजर्वेटिव पार्टी अविश्वास प्रस्ताव ला चुकी है. मगर ये इसलिए पास नहीं हो रहा है, क्योंकि NDP प्रस्ताव का समर्थन नहीं कर रही है. वरना ट्रूडो को बहुत पहले कुर्सी छोड़नी पड़ती. माना जा रहा है कि जगमीत सिंह इसका इस्तेमाल बारगेनिंग चिप की तरह कर रहे हैं.

कनाडा में अगला आम चुनाव अक्टूबर 2025 तक होना है. अगर ट्रूडो की सरकार पहले गिरती है तो चुनाव जल्दी कराने होंगे. आज के समय में कनाडा के अंदर ट्रूडो की लोकप्रियता सबसे ख़राब स्तर पर है. इप्सोस के एक सर्वे के मुताबिक़, महज 28 फीसदी लोग उनको प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं. कहा जा रहा है कि इसी वजह से वो एंटी-इंडिया सेंटीमेंट को तूल दे रहे हैं. भारत पर गंभीर आरोप लगा रहे हैं. हमने ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन (ORF) में स्ट्रैटज़िक स्टडीज़ प्रोग्राम के डिप्टी डायरेक्टर विवेक मिश्रा से पूछा, ट्रूडो के भारत-विरोध की असल वजह क्या है? क्या उनका ज़ोर वोट बैंक पॉलिटिक्स पर है?

"जो भी लोग डिप्लोमैसी की समझते हैं, उनको यही लग रहा है कि ये ट्रूडो की डोमेस्टिक पॉलिटिक्स की बौखलाहट है. डिप्लोमैसी का तो यही मतलब होता है कि आप शांतिपूर्ण तरीके से विवादों का हल निकाल लें. लेकिन ट्रूडो को सीधे भारत के टॉप डिप्लोमैट्स पर आरोप लगा रहे हैं. जांच की बात कर रहे हैं. कनाडा में अगले साल चुनाव हैं और ट्रूडो की स्थिति ठीक नहीं है. उनकी रेटिंग्स गिरी हुई हैं. जगमीत सिंह की पार्टी ने पहले ही कह दिया है कि वो लिबरल पार्टी से किसी तरह के बातचीत नहीं करेगी. ऐसे में ट्रूडो सिख वोट बैंक को अपने साथ लाना चाहते हैं. दूसरी तरफ, उन्होंने भारत को एक दुश्मन के तौर पर भी प्रोजेक्ट करना शुरू कर दिया है. ये सब उनकी बौखलाहट है."

ये तो वोट बैंक पॉलिटिक्स की कहानी हुई. हमने एक सिरा 2016 के बयान पर छोड़ा था. मगर मामला यहीं तक सीमित नहीं है. फ़रवरी 2018 में जस्टिन ट्रूडो आठ दिनों के भारत दौरे पर आए. उनके दफ़्तर की तरफ़ से 423 मेहमानों की लिस्ट जारी हुई. उनको अलग-अलग कार्यक्रमों में बुलाया जा रहा था. इस लिस्ट में एक नाम जसपाल अटवाल का भी था. वो एक भारतीय मंत्री की हत्या की साज़िश में शामिल रह चुका था. उस मामले में उसको सज़ा भी हुई थी. भारत ने अटवाल को न्यौते का विरोध किया. इसका असर पूरे दौरे पर दिखा.

अगला मौका आया, 2020 में. जब ट्रूडो सरकार ने किसान आंदोलन पर बयानबाज़ी की. भारत ने इसपर भी नाराज़गी जताई थी.

फिर आया 2023 का साल. 18 जून को वेंकूवर में एक गुरुद्वारे के बाहर हरदीप सिंह निज्जर की हत्या कर दी गई. वो खालिस्तान टाइगर फ़ोर्स (KTF) को मास्टरमाइंड था. KTF पर पंजाब में आतंकवाद बढ़ाने और टारगेटेड किलिंग्स के आरोप हैं. इसको भारत ने आतंकी संगठन घोषित कर रखा है. निज्जर कुछ सिखों के लिए अलग देश ‘खालिस्तान’ की मांग करने वाले लोगों में से था. भारत में हुई कई हत्याओं से भी उसका नाम जुड़ता था.

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बहरहाल, निज्जर की हत्या के विरोध कनाडा में भारत के उच्चायोग और कई हिंदू मंदिरों पर हमले हुए. भारत ने आपत्ति जताई. मगर कनाडा सरकार ने ज़िम्मेदारों पर कोई कार्रवाई नहीं की.

फिर 09 सितंबर 2023 को ट्रूडो G20 समिट में हिस्सा लेने भारत आए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात की. सरकार की तरफ़ से जारी प्रेस रिलीज़ के मुताबिक, पीएम मोदी ने सख्त लहजे में भारत-विरोधी गतिवधियों पर रोक लगाने की मांग की. कनाडा की मीडिया में ये भी छपा कि मोदी ने बंद कमरे में ट्रूडो को डांटा. इसके इर्द-गिर्द भी कई ऐसी घटनाएं हुईं, जिनसे साफ़ हो चुका था कि दोनों देशों के बीच कुछ भी ठीक नहीं है. ट्रूडो स्पेशल डिनर में नहीं गए. एक ज़रूरी लॉन्च से दूर रहे. जाते-जाते उनका प्लेन ख़राब हो गया. भारत ने मदद का हाथ बढ़ाया. ट्रूडो ने उससे भी मना कर दिया.

यानी ये कोई पहला मौका नहीं है जब ट्रूडो ने सिख वोट बैंक के लिए भारत के ऊपर इस तरह के आरोप लगाए हों. उनकी तरफ से लगातार ये सब किया गया है. अब मामला बहुत आगे बढ़ गया है. भारत ने बहुत ही कड़ी प्रतिक्रिया दी है. भारत-कनाडा के संबंधों में सुधार होगा या नहीं, ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा.

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