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जेल जाने वाले जस्टिस कर्णन की कहानी, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट और CJI के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया था

Former Justice Karnan देश के ऐसे पहले जज हैं जिन्हें अपने पद पर रहते हुए जेल की सजा हुई. वो कई और कारणों से भी चर्चा में रहे. एक बार तो उन्होंने खुद के ट्रांसफर ऑर्डर पर ही रोक लगा दी थी और एक बार CJI समेत सुप्रीम कोर्ट के सात जजों को ही अपने ‘रेजिडेंशियल कोर्ट’ में पेश होने का आदेश दे दिया था.

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जस्टिस कर्णन. (फाइल फोटो: PTI)

देश में आजकल जजों की खूब चर्चा है. हाईकोर्ट जस्टिस यशवंत वर्मा को ही ले लीजिए. सरकारी आवास पर कथित तौर पर पैसे बरामद होने के बाद से बवाल मचा है. सुप्रीम कोर्ट में उनके खिलाफ FIR को लेकर सुनवाई होनी है. वहीं, इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा भी सुर्खियों में हैं. एक केस का फैसला सुनाते वक्त उन्होंने टिप्पणी की थी- ‘ब्रेस्ट पकड़ना रेप नहीं’. उच्चतम न्यायालय ने इसे असंवेदनशील और अमानवीय बताया है. जब बात जजों के सुर्खियां बनने की हो तो कलकत्ता हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस कर्णन (Justice Karnan Case) कैसे भूला जा सकता है. 2017 में तो उन्होंने तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) समेत सुप्रीम कोर्ट के सात जजों को पांच-पांच साल की सजा सुना दी थी. 

प्रधानमंत्री के नाम खुला खत

साल 2017 की शुरुआत में (पूर्व) जस्टिस कर्णन ने एक खत लिखा. चिट्ठी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन CJI जेएस खेहर के नाम थी. उन्होंने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के 20 जजों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए. उन्होंने कहा कि जांच एजेंसियों को उन जजों से पूछताछ करनी चाहिए. इस घटना ने भारतीय न्यायापालिका में एक बड़े विवाद को जन्म दिया. 

सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कर्णन को हाजिर होने को कहा. इसके लिए एक गैर-जमानती वारंट जारी किया गया. मार्च 2017 में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में पेश होने से इनकार कर दिया. इसके बाद जस्टिस कर्णन ने CJI समेत सुप्रीम कोर्ट के सात जजों को ही अपने ‘रेजिडेंशियल कोर्ट’ में पेश होने का आदेश दे दिया. उन्होंने आरोप लगाया कि इन जजों ने ‘ओपेन कोर्ट’ में उनका अपमान किया.

उच्चतम न्यायालय ने इसे कोर्ट के अवमानना के तौर पर देखा. सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कर्णन की मानसिक स्थिति पर सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि जस्टिस कर्णन सुनवाई के लिए मेडिकली फिट नहीं हैं. उन्हें एक मेडिकल टेस्ट से गुजरने को कहा गया. कोर्ट ने ये भी कहा कि जस्टिस कर्णन के किसी भी आदेश पर कोई कार्रवाई न की जाए. इसके बाद जस्टिस कर्णन ने CJI समेत सभी सात जजों को पांच-पांच साल की सजा सुना दी. उन पर जुर्माना भी लगाया. हालांकि, इस आदेश का कोई मतलब नहीं था. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही उनके अधिकार खत्म कर दिए थे. 

मई, 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना के मामले में उन्हें छह महीने की सजा दी. इस तरह वो देश के पहले जज बने जिन्हें पद पर रहते हुए जेल की सजा हुई. इसके बाद करीब एक महीने तक वो गिरफ्तारी से बचने के लिए गायब रहे. इसी दौरान वो रिटायर भी हो गए. बाद में पुलिस ने उन्हें कोयंबटूर के एक रिसॉर्ट से गिरफ्तार किया. उन्होंने इस मामले में कोलकाता के प्रेसीडेंसी जेल में अपनी सजा काटी.

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कई और विवादों से रहा है नाता

तमिलनाडु के कर्णातम गांव में जन्मे कर्णन, इससे पहले भी विवादों में रह चुके थे. जनवरी 2014 में उन्होंने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति/जनजाति आयोग (SC/ST आयोग) में जातीय भेदभाव की शिकायत दर्ज कराई. ऐसा करने वाले वो पहले जज बने. तब वो मद्रास हाईकोर्ट में थे. उन्होंने आरोप लगाया था कि कुछ जज बहुत ही संकीर्ण सोच वाले हैं, वो दलित समुदाय से आने वाले जजों पर हावी होना चाहते हैं. खुद जस्टिस कर्णन भी दलित समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. 

कोर्टरूम में अचानक घुस गए जस्टिस कर्णन

2014 में ही मद्रास हाईकोर्ट के किसी अन्य कोर्टरूम में अचानक घुस गए. उन्होंने आरोप लगाया कि जजों की नियुक्ति का तरीका सही नहीं है और इसमें अनियमितताएं हैं. सुप्रीम कोर्ट ने उनके इस व्यवहार को ‘अशोभनीय’ और ‘अनुचित’ माना. जस्टिस बीएस चौहान की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि जब हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति को लेकर एक याचिका पर सुनवाई चल रही थी, उस वक्त जस्टिस कर्णन का कोर्ट में घुसकर बयान देना ठीक नहीं था. इससे न्यायिक प्रक्रिया की गरिमा पर सवाल खड़े होते हैं.

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खुद के ही ट्रांसफर ऑर्डर पर रोक लगा दी 

फरवरी 2016 में जस्टिस कर्णन ने खुद के ट्रांसफर ऑर्डर पर ही रोक लगा दी थी. ये आदेश CJI का था, उनका ट्रांसफर कलकत्ता हाईकोर्ट किया गया था. कानून के मुताबिक, कोई भी निचली अदालत या जज, सुप्रीम कोर्ट या मुख्य न्यायाधीश के फैसले को नहीं रोक सकता, खासकर जब मामला उससे संबंधित हो. 

जस्टिस कर्णन ने अपने आदेश में कहा,  

मुख्य न्यायाधीश ने मुझे बेहतर प्रशासन के लिए कलकत्ता हाईकोर्ट ट्रांसफर करने का जो प्रस्ताव भेजा है, उसका जवाब मैंने पहले ही उस प्रस्ताव की जेरॉक्स कॉपी पर दे दिया है.

उन्होंने 1993 के एक फैसले का हवाला दिया, जिसमें 9 जजों की सुप्रीम कोर्ट बेंच ने ये तय किया था कि ट्रांसफर किस तरह से किया जाना चाहिए. जस्टिस कर्णन की दलील थी कि CJI का दिया ट्रांसफर ऑर्डर उस पुराने फैसले के खिलाफ है. इतना ही नहीं, उन्होंने CJI से लिखित जवाब मांगा और अपने हाई कोर्ट के चैंबर से प्रेस कॉन्फ्रेंस भी कर डाली.

2017 के बाद से जस्टिस कर्णन के खिलाफ कई केस चल रहे हैं.

न्यायापालिका छोड़कर शुरू की राजनीति

साल 2018 में उन्होंने 'एंटी करप्शन डायनमिक पार्टी' के नाम से एक राजनीतिक दल का गठन किया. 2019 लोकसभा चुनाव में उन्होंने दो सीटों से चुनाव लड़ने की घोषणा की. एक सीट थी- वाराणसी. यहां से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव लड़ते हैं. दूसरी सीट थी- चेन्नई सेंट्रल. हालांकि, बाद में उन्होंने सिर्फ चेन्नई सेंट्रल से ही चुनाव लड़ा. कुल 5763 वोट मिले. जमानत जब्त हो गई.

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