31 जनवरी 2024. झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने कथित जमीन घोटाले में गिरफ्तार किया था. इस गिरफ्तारी से पहले हेमंत सोरेन ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था. तब राज्य में सरकार की स्थिरता को लेकर कई अटकलें चलने लगीं थीं. लेकिन कुछ महीने बाद सोरेन जेल से बाहर आए और दोबारा सीएम बने. अब साल के अंत होते-होते हेमंत सोरेन के नेतृत्व में INDIA गठबंधन ने विधानसभा चुनाव में जबरदस्त जीत दर्ज की है. INDIA गठबंधन को 56 सीटें मिली हैं. राज्य में "बांग्लादेशी घुसपैठ" और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर चुनाव प्रचार में उतरी बीजेपी की बुरी हार हुई है.
झारखंड में हेमंत सोरेन ने ऐसे पलटा BJP का खेल!
राजनीतिक जानकार Jharkhand election नतीजों से पहले दोनों गठबंधन के बीच कड़ी टक्कर की संभावना जता रहे थे. लेकिन परिणाम बताते हैं कि INDIA गठबंधन ने आसानी से जीत दर्ज की है.
राज्य में विधानसभा की 81 सीटें हैं. यानी INDIA गठबंधन ने बहुमत के आंकड़े को आसानी से पार किया है. JMM ने 43 सीट पर चुनाव लड़ा था, इनमें से 34 सीटों पर पार्टी को जीत मिली है. वहीं कांग्रेस 30 सीटों पर लड़कर 16, आरजेडी 6 सीटों पर लड़कर चार और भाकपा (माले) चार सीट पर लड़कर 2 पर जीती हैं. वहीं, बीजेपी 21 सीटों पर सिमट गई. राज्य में बीजेपी के तीन सहयोगी दलों के हिस्से एक-एक सीट आई.
राजनीतिक जानकार नतीजों से पहले दोनों गठबंधन के बीच कड़ी टक्कर की संभावना जता रहे थे. लेकिन परिणाम बताते हैं कि INDIA गठबंधन ने आसानी से जीत दर्ज की है. इसमें राज्य सरकार की मुख्यमंत्री मंईयां सम्मान योजना की सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है. इस योजना को चुनाव का गेम चेंजर माना जा रहा है.
महिलाओं को डायरेक्ट कैश ट्रांसफर करने की योजना कई राज्यों में राजनीतिक दलों के लिए सफल साबित हुई है. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश में इस मॉडल का राजनीतिक दलों का सीधा लाभ मिला. इसी तर्ज पर झारखंड सरकार ने अगस्त में मुख्यमंत्री मंईयां सम्मान योजना शुरू की थी. इसके तहत 18 से 51 साल की महिलाओं को हर महीने 1000 रुपये दिए जा रहे हैं. इस योजना से राज्य में करीब 50 लाख महिलाओं को लाभ हो रहा है.
इस योजना के काउंटर में बीजेपी ने भी अक्टूबर में ‘गोगो दीदी योजना’ शुरू करने का एलान किया था. इसके तहत 2100 रुपये प्रति महीने देने का वादा किया गया था. लेकिन चुनाव से पहले जेएमएम ने भी घोषणा कर दी कि अगर वो सत्ता में लौटती है तो मंईयां सम्मान योजना के तहत राशि को बढ़ाकर 2500 रुपये प्रति महीने कर देगी.
जानकार बताते हैं कि इससे महिलाएं जेएमएम के पक्ष में खुलकर आईं. इसका असर वोटिंग में भी देखने को मिला. राज्य में दोनों चरणों के विधानसभा चुनावों में महिलाओं का वोट परसेंट पुरुषों से ज्यादा था.
चुनाव आयोग के डेटा के मुताबिक, इस बार कुल 91.16 लाख महिला मतदाताओं ने वोट डाला. यह आंकड़ा पुरुष वोटर्स के मुकाबले 5.52 लाख ज्यादा है. इस डेटा को एक और तरीके से देखें तो पता चलता है कि 85 फीसदी विधानसभा सीटों पर पुरुषों के मुकाबले महिलाओं ने ज्यादा मतदान दिया.
बिजली बिल की माफीझारखंड सरकार की एक और योजना बिजली बिल माफी है. योजना का नाम है - मुख्यमंत्री ऊर्जा खुशहाली योजना. इसकी चर्चा चुनाव परिणामों में मिली जीत के फैक्टर्स में कम हो रही है. लेकिन स्थानीय पत्रकार बताते हैं कि इसका असर भी देखने को मिला है. अगस्त महीने में राज्य सरकार ने 200 यूनिट तक बिजली फ्री करने की घोषणा की थी. इसका फायदा आम लोगों को सीधे-सीधे मिला.
इस योजना से राज्य के करीब 39.44 लाख उपभोक्ताओं को फायदा मिला है. राज्य के लोगों को जुलाई की बिलिंग से ही इसका फायदा पहुंच रहा है. इस योजना के लिए राज्य सरकार हर महीने झारखंड बिजली वितरण निगम लिमिटेड को 350 करोड़ सब्सिडी के रूप में दे रही है.
न्यूज वेबसाइट 'फॉलोअप' से जुड़े सीनियर पत्रकार संजय रंजन कहते हैं कि हेमंत सरकार का फोकस आम लोगों के लिए योजनाएं शुरू करने में था, जिसकी चर्चा चुनाव में कम हुई. लेकिन उन योजनाओं का असर देखने को मिला है.
कथित बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा नहीं चलाभारतीय जनता पार्टी लंबे समय से संथाल परगना इलाके में कथित घुसपैठ का मुद्दा उठा रही थी. पार्टी ने बार-बार आरोप लगाया कि बांग्लादेशी मुस्लिम झारखंड में घुसपैठ कर रहे हैं. वे कथित रूप से आदिवासी महिलाओं से शादी कर जमीन हड़प रहे हैं और संथाल इलाके की डेमोग्राफी को बदल रहे हैं. हालांकि जानकार बताते हैं कि बीजेपी का ये नैरेटिव चुनाव में ज्यादा काम नहीं कर पाया.
जेएमएम इस मुद्दे का काउंटर दे रही थी कि झारखंड की सीमा बांग्लादेश से नहीं लगती है. और घुसपैठ रोकने का काम केंद्र सरकार का है. बीएसएफ या दूसरी सुरक्षा एजेंसियों का है.
रांची यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस डिपार्टमेंट के अध्यक्ष डॉ बागीश वर्मा न्यूज एजेंसी पीटीआई से कहते हैं कि बीजेपी अपने पूरे अभियान के दौरान जमीनी मुद्दों को उठाने में विफल रही. उनके मुताबिक, बीजेपी का कैंपेन राष्ट्रीय मुद्दों और ‘घुसपैठ’ पर केंद्रित था, जिससे ग्रामीण जनता जुड़ने में विफल रही.
संजय रंजन भी मानते हैं कि बीजेपी के लिए ये मुद्दा बैकफायर कर गया. बीजेपी स्थानीय मुद्दों को छोड़कर सिर्फ इसी मुद्दे के सहारे आगे बढ़ रही थी.
आदिवासी सीटों पर बीजेपी की करारी हारझारखंड में 28 विधानसभा सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी इनमें से सिर्फ 2 सीट जीत पाई थी. लेकिन इस बार सिर्फ एक सीट पर सिमट गई. सरायकेला से पूर्व मुख्यमंत्री और जेएमएम के पूर्व नेता चम्पाई सोरेन को जीत मिली है. सीएम पद से हटने के कुछ समय बाद चम्पाई बीजेपी में शामिल हो गए थे.
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सोरेन की गिरफ्तारी और आदिवासी अस्मिताइस साल की शुरुआत में कथित जमीन घोटाले में ईडी ने हेमंत सोरेन को गिरफ्तार किया था. करीब 5 महीने तक वे जेल में बंद रहे. इस दौरान उनकी पत्नी कल्पना सोरेन ने मोर्चा संभाल रखा था. उन्होंने राज्य भर में घूम-घूम कर प्रचार किया और लोगों के बीच हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के खिलाफ संदेश दिया. इस दौरान कल्पना की सियासी हैसियत भी स्थापित हुई.
संजय कहते हैं कि जेल जाने के कारण हेमंत सोरेन के प्रति सहानुभूति बढ़ी. आदिवासियों के बीच ये मैसेज गया कि उनका इकलौता नेता है, उसे बंद कर दिया गया. इसका असर लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिला था. राज्य की पांचों ST लोकसभा सीटों पर बीजेपी की हार हुई थी.
बाहरी नेताओं पर निर्भरताझारखंड चुनाव में एक तरफ हेमंत सोरेन का बड़ा चेहरा था. दूसरी तरफ बीजेपी में बाबू लाल मरांडी के रूप में बड़ा आदिवासी चेहरा था. लेकिन चुनाव में बीजेपी ने उन्हें मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में पेश नहीं किया.
जानकार बताते हैं कि लंबे समय से राज्य में BJP नेतृत्व संकट से जूझ रही थी. पिछले विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद BJP को एक बड़े आदिवासी चेहरे की जरूरत महसूस हो रही थी. 17 फरवरी 2020 को बाबू लाल मरांडी बीजेपी में शामिल हो गए और अपनी पार्टी जेवीएम का बीजेपी में विलय करवाया था. वे पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी बनाए गए.
इसके बावजूद इस चुनाव में असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा और केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने चुनावी मोर्चा संभाल रखा था. संजय रंजन कहते हैं,
“झारखंड को समझने की जरूरत है कि यहां की स्थानीयता का मुद्दा काफी माइक्रो लेवल का है. यहां हिमंता चेहरा बने हुए थे. उनके सामने स्थानीय व्यक्ति (हेमंत) चेहरा बना हुआ था. अगर बाबू लाल मरांडी चेहरा होते तो बीजेपी इतना बुरा नहीं करती.”
पत्रकारों का कहना है कि बाबू लाल मरांडी को बीजेपी ने उस तरीके से पनपने नहीं दिया, जितना देना चाहिए था. वे कभी चुनाव को लीड नहीं कर पाए. इसलिए भी लोगों ने बीजेपी से दूरी बनाई.
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