लेकिन लार्जर देन लाइफ छवि का एक नुकसान भी होता है. वो ये कि आपके इर्द-गिर्द कई मिथक जन्म ले लेते हैं. नेहरू और वाजपेयी दोनों के साथ ऐसा हुआ. एक मिथक तो ऐसा भी है कि नेहरू ने बहुत पहले भविष्यवाणी कर दी थी कि अटल एक दिन देश के प्रधानमंत्री बनेंगे.
ये किस्सा कुछ यूं सुनाया जाता है कि 1957 में अटल उत्तर प्रदेश के बलरामपुर से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे. अटल भाषण की कला में माहिर थे (नेहरू की ही तरह). वो संसद में अंतरराष्ट्रीय मुद्दों से लेकर देश में बिजली-सड़क-पानी पर सरकार को इस तरह घेरते कि पूरा सदन शांत होकर सुनता. नेहरू तो अटल के भाषण के मुरीद बताए जाते थे.
यहीं से ये बात उड़ी कि नेहरू ने एक राजनयिक से अटल का परिचय कराते हुए कहा था, 'देखिएगा, ये आदमी एक दिन भारत का प्रधानमंत्री बनेगा.'

विपक्ष के साथ भरपूर सौजन्य. अटल बिहारी वाजपेयी सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह के साथ. (फोटोः गेटी)
लेकिन असल बात इससे कुछ अलग थी. अलग-अलग स्रोतों में अलग-अलग बातें मिलती हैं. कहीं मिलता है कि नेहरू ने अटल को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री से मिलवाया था तो कुछ जगह एक राजनयिक से मुलाकात का ज़िक्र मिलता है. ज़्यादा पक्की बात राजनयिक वाली ही लगती है. और अब जानिए कि नेहरू ने असल में कहा क्या था.
दरअसल नेहरू ने अटल का परिचय कराते हुए कहा था कि इस नौजवान से मिलें, ये विपक्ष से हैं और मेरी खूब आलोचना करते हैं. लेकिन मैं (नेहरू) इनमें एक उज्ज्वल भविष्य की संभावना देखता हूं.
नेहरू ने कभी नहीं कहा कि अटल प्रधानमंत्री बनेंगे.
तमाम मतभेदों के बावजूद नेहरू और वाजपेयी दोनों ने एक दूसरे को हमेशा आदर दिया. 1962 के चुनाव में नेहरू अटल के खिलाफ चुनाव प्रचार करने बलरामपुर नहीं गए. पत्रकार विश्वेश्वर भट्ट ने बाद के दिनों में लिखा कि जब नेहरू को अटल के खिलाफ चुनाव प्रचार करने के लिए कहा गया तो नेहरू ने प्रचार करने से साफ मना करते हुए कहा,
''मैं ये नहीं कर सकता. मुझ पर प्रचार के लिए दबाव न डाला जाए. उसे विदेशी मामलों की अच्छी समझ है.''
मंत्री बनने से पहले भी वाजपेयी कई बार विदेश मंत्री के दफ्तर गए थे. तो जब वाजपेयी बतौर विदेश मंत्री दफ्तर पहुंचे, तो उनका ध्यान इस बात पर चला गया कि नेहरू की एक तस्वीर होती थी दीवार पर जो अब नज़र नहीं आती. इतिहासकार रामचंद्र गुहा के अनुसार वाजपेयी ने तब दीवार पर खाली जगह की ओर इशारा करते हुए अपने सेक्रेटरी से कहा,
''यहां पंडित जी की एक तस्वीर होती थी. वो कहां गई? मुझे वो तस्वीर वापस उसकी जगह पर चाहिए.''इसके बाद नेहरू की वो तस्वीर खोजकर दोबारा वाजपेयी के दफ्तर में लगा दी गई.
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