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लगातार 113 रेस हारने वाली घोड़ी ने पूरे जापान का दिल कैसे जीत लिया?

'दुनिया हमेशा उगते हुए सूरज को सलाम ठोकती है' – कभी किसी युट्यूबिया मोटिवेशनल स्पीकर के मुंह से ये बात सुनी थी. सुनते ही यही ख्याल आया था कि अगर कभी ट्रक खरीदा गया, तो फौरन ये लाइन पुतवाई जाएगी. लेकिन जापान की इस 'नाकामयाब कहानी' जानने के बाद कुछ हमारा, कुछ आपका नजरिया बदल सकता है.

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हारु की हार की कहानी के चर्चे जीत से ज़्यादा थे. (सांकेतिक तस्वीर)

22 मार्च, 2004. जापान के कोची शहर (Kochi, Japan) में घोड़ों की एक रेस शुरू होने वाली है. ट्रैक के इर्द-गिर्द भारी भीड़ जुटी है. एक खास रेस देखने के लिए पूरे देश से लोग आए हैं. देश-विदेश से मीडिया भी जमा है. इतना क्या खास है? दरअसल, इस रेस में जापानी घुड़सवारी के दो बड़े सेलिब्रिटीज हिस्सा ले रहे थे. पहले, युटाका टेक (Yutaka Take). जापान में घुड़सवारी का पर्याय. 3000 रेस जीतने वाले जॉकी. तीन बार जापानी डर्बी या घुड़सवारी प्रतियोगिता का चैंपियन. युटाका के साथ थी एक घोड़ी, हारू उरारा (Haru Urara). अब तक लगातार 100 से भी ज्यादा रेस हारने वाली घोड़ी. चैम्पियन जॉकी और हारने वाली घोड़ी को देखने के लिए पूरे जापान से लोग पहुंचे थे. मगर क्यों?  

हारने वाली घोड़ी का इतना भौकाल?

साल 2016 में हारू उरारा पर एक शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री फिल्म आई. टाइटल था, ‘द शाइनिंग स्टार ऑफ लूजर्स एवरीवेयर’ (The Shining Star of Losers Everywhere). हिंदी अनुवाद - ‘फिसड्डियों की उम्मीद की किरण.’ हारू इसी नाम से मशहूर भी हुई थी. पर क्यों और कैसे? कैसे ये जापानियों के बीच उम्मीद की किरण बन गई? सब जानेंगे-जनवाएंगे. लेकिन पहले हारू की फिल्म का ट्रेलर देख लीजिए. 

घोड़े जापानी संस्कृति और इतिहास का एक जरूरी हिस्सा हैं. समुराई युग से ही. तब घोड़े जंग में इस्तेमाल होते थे और उन्हें ‘कामी’ (जापानी देवताओं) से जोड़ा जाता रहा. घुड़दौड़ का इतिहास आठवीं शताब्दी में मिलता है. तब मूल रूप से शाही दरबारों के धार्मिक समारोह में घुड़दौड़ करवाई जाती थी. समय के साथ फली-फूली और पूरे देश में फैल गई, और आज की तारीख में देश के सबसे लोकप्रिय खेलों में से एक है.

अब फास्ट फॉरवर्ड टू 2003. जापान की अर्थव्यवस्था काफी बुरे दौर से गुजर रही थी. बेरोजगारी चरम पर थी. कोची जैसे रिमोट इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित थे. कोची का रेस ट्रैक भी मंदी की मार झेल रहा था. इस ट्रैक के प्रचार से जुड़े मसाशी योशिदा (Masashi Yoshida) के शब्दों में कहें, तो रेस ट्रैक बंद होने की कगार पर था.

गुलाबी मास्क पहने हारू की तस्वीर

ऐसे में उनके हाथ एक कहानी लगी. कहानी एक ऐसी घोड़ी की, जो 1998 से कभी कोई रेस नहीं जीती थी. उस वक्त तक 60 से भी ज्यादा रेस हार चुकी थी, फिर भी दौड़े जा रही थी. वैसे रेस के बिजनेस में अक्सर हारने वाले घोड़ों को मौत के घाट उतार दिया जाता है. लेकिन हारू के केयर-टेकर को मुमेशी को ये मंजूर न था. उन्होंने हारू को न मार कर रेस में दौड़वाने का फैसला कर लिया था.

खैर, रेस ट्रैक के प्रचारक योशिदा को कभी हार न मानने वाली घोड़ी की कहानी तो मिल गई. लेकिन शुरुआत में उन्हें डर था कि कहीं हारने की कहानी रेस ट्रैक की छवि पर गलत असर न डाले. खैर बड़ा फैसला लिया गया और रेस ट्रैक को कभी हार न मानने वाली हारू की कहानी से जोड़ दिया गया. बात लोकल न्यूज पेपर तक पहुंची. तब तक हारू 88 रेसें हार चुकी थी. 

कोची के लोकल पेपर में छपी हारू की 88 हारों की खबर (The Shining Star of Losers Everywhere)
बात निकली तो प्रधानमंत्री तलक पहुंची

कोची के लोकल पेपर पर खबर छपने के बाद योशिदा पेपर की कॉपी लेकर रेस ट्रैक के अधिकारियों के पास पहुंचे. कहा कि इस कहानी को तो पूरे जापान को जानना चाहिए. ऐसा किया भी गया. योशिदा ने खबर को कई बड़े न्यूज पेपर्स को फैक्स कर डाला. जापान के मैनिचि न्यूज पेपर ने खबर को नेशनल एडिशन में छाप डाला. फिर ये ब्रॉडकास्ट भी की गई. ऐसे खबर जापान के शहर कोची से निकल कर पूरे जापान तक पहुंच गई. विदेशी मीडिया ने भी इसे कवर किया, कि कैसे कोई 93 रेस हार कर भी लगातार रेस में हिस्सा ले सकता है? जी हां, जब तक ये खबर, नेशनल न्यूज बनती, तब तक वो घोड़ी 93 रेस हार चुकी थी.

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मंदी की मार झेल रहे आम लोग हारू के जज्बे की दाद देने लगे. जापान के प्रधानमंत्री कोईजूमी (Koizumi) भी हारू के जज्बे के मुरीद हो गए. उन्होंने कहा,

मैं हारू को जीतता हुआ देखना चाहता हूं. वो कभी हार न मानने का  बेहतरीन उदाहरण है.

कैंसर पीड़ित महिला कोची रेस ट्रैक पहुंची

योशिदा बताते हैं कि एक बार रेस ट्रैक में दो बुजुर्ग औरतें आईं. उनमें से एक को ब्रेस्ट कैंसर था. लेकिन वो हारू को देखने आईं थीं, क्योंकि हारू उनमें उम्मीद भर रही थी. जीने का जज्बा दे रही थी. लोग हारू की रेस में हारे हुए टिकटों को गाड़ियों में टोटके की तरह रखने लगे. उनका मानना था कि ये उनके लिए लकी है.

कोची रेस ट्रैक की दीवार पर लगा हारू का पोस्टर (The Shining Star of Losers Everywhere)
जापान के टॉप जॉकी ने हारू की सवारी की

22 मार्च, 2004 का दिन था. जापान के कोची रेस ट्रैक में मौसम का मिजाज कुछ ठीक नहीं था. आसमान में बादल छाए थे, बारिश हो रही थी. लोगों को लगा कि रेस नहीं हो पाएगी. लेकिन मौसम खुल गया. लोगों ने कयास लगाए कि ये जापान के टॉप घुड़सवार युटाका टेक और हारू की यूनिक जोड़ी की वजह से हुआ है. एक तरफ युटाका, जो उस वक्त तक 3000 से ज्यादा रेस जीत चुके थे. वहीं दूसरी तरफ हारू जो उसी समय तक 100 से भी ज्यादा रेस हार चुकी थी.

फिर भी जापानियों को हारू से कोई गिला नहीं था. यहां तक की इस रेस में लोगों ने हारू पर 1 मिलियन डालर की बेट लगाई. आज के हिसाब से रुपयों में बदलें तो करीब 8 करोड़ रुपए. रेस शुरू हुई और जैसा सबने सोचा था वही हुआ, हारू रेस हार गई. लोग पैसा हार गए, लेकिन शायद ही किसी को इस बात का गिला हुआ. जीत से ज्यादा चर्चे हारू की हार के थे.

इसके बाद हारू ने कुछ रेस और दौड़ीं. लेकिन हारने का रिकार्ड कायम रखा. हारू की हार किसी को खली नहीं. लोग हारू के नाम पर ‘NEVER GIVE UP’ की टी शर्ट तक पहनने लगे. अगस्त 2004 में हारू ने अपनी आखिरी रेस हारी. 0:113 के रिकार्ड के साथ हारू कहीं गुम हो गई. फिर अचानक 2014 में खबर आई कि हारू जिस अस्तबल में है, उसे रुपयों की जरूरत है. हारू के चाहने वालों ने पैसों की बौछार कर दी. क्यों न करते! आखिर हारू फिसड्डियों की उम्मीद की किरण जो थी.

'दुनिया हमेशा उगते हुए सूरज को सलाम ठोकती है' – कभी किसी युट्यूबिया मोटिवेशनल स्पीकर के मुंह से ये बात सुनी थी. सुनते ही यही ख्याल आया था कि अगर कभी ट्रक खरीदा गया, तो फौरन ये लाइन पुतवाई जाएगी. लेकिन जापान की इस 'नाकामयाब कहानी' जानने के बाद कुछ हमारा, कुछ आपका नजरिया बदल सकता है.

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