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चाचा चौधरी से भी तेज निकली एक 'फफूंदी', जापानियों का पूरा मेट्रो नेटवर्क बना डाला!

बहुत दिमागी फफूंदी है भाई साहब. मेट्रो का नक्शा भी बना लेती है, पज़ल भी सॉल्व कर लेती है.

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टोक्यो रेल सांकेतिक तस्वीर, रिसर्च पेपर में छपी फंगस के ग्रो करने की तस्वीर (स्रोत - AAAS/Science)

25 जनवरी, 2010 की बात है. ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में एक खबर छपी. टाइटल था, ‘Slime Mold Proves to Be A Brainy Blob’. अनुवाद की नाकाम कोशिश की जाए, तो कह सकते हैं, ‘चाचा चौधरी से भी तेज दिमाग वाली फफूंदी’. जी, स्लाइम मोल्ड (slime mold) माने फफूंदी. जो ब्रेड में लग जाए, तो आप लपाक से फेंक देते हैं. उसपर अमेरिका के सबसे बड़े अखबारों में से एक में लेख छपा. लेख भी ऐसा, जो फफूंदी की बुद्धि की दाद दे रहा था. ये देख कचरे में पड़ी, ब्रेड में लगी फफूंदी भी बोल उठी -

क्यों आई फफूंदी पर खबर?

ये खबर आई थी जापान (Japan) की एक रिसर्च की वजह से. दरअसल, जापानी साइंटिस्ट्स ने एक गज्जब कारनामा किया. उन्हें राजधानी टोक्यो का रेल रूट बनवाना था, तो उन्होंने ये रूट एक तरह की ‘फफूंद’ से बनवाया. फफूंद जिसे स्लाइम मोल्ड, फंगस भी कहते हैं. और रूट बनाने वाली जो फंगस थी, उसका नाम थाफाइसेरम पॉलीसेफेलम’ (Physarum polycephalum). जितना जटिल नाम, उतना जटिल काम.

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इस फंगस ने सिर्फ एक दिन में टोक्यो सब-वे नेटवर्क (मेट्रो का नक्शा) का नक्शा बना दिया. जो इंजीनियर्स के सालों लगाकर बनाए रेल नेटवर्क जैसा ही कारगर था. ये देखकर तो इंजीनियर्स भी बोल उठे होंगे -

जापानियों ने ऐसा किया कैसे?

एक साइंस जर्नल है, जिसका नाम है ‘साइंस’(SCIENCE). नाम रखने वाला या तो इंटर्न होगा या मालिक. बीच वालों को तो ‘आउट ऑफ़ द बॉक्स’ सोचने के लिए मजबूर किया जाता है. इस जर्नल में साल 2010 में एक रिसर्च छपी. इसके अगुवा थे जापानी साइंटिस्ट अत्सुशी टेरो (Atsushi Tero). टेरो बाबू की इस रिसर्च में उन्होंने बड़े ही यूनीक तरीके से इस फंगस से जापान का मेट्रो नेटवर्क डिजाइन करवा दिया. कैसे? बताते हैं. पहले इसका वीडियो देखिए.

कैसे डिजाइन किया फफूंदी ने मेट्रो रूट का नक्शा

पहले बता दें कि फफूंद को मेट्रो नेटवर्क डिजाइन करने में कोई इंट्रेस्ट नहीं था. न उसे पता था कि उससे ऐसा कोई काम करवाया जा रहा है. उसकी शक्तियों का गलत इस्तेमाल हुआ. वो तो बस ‘पापी पेट’ के लिए ये सब कर रही थी. हां, फफूंद खाना ढूंढने के लिए ऐसा कर रही थी. असल में ये टेरो भाई साहब की साजिश थी. जहां-जहां जापान के नक्शे में बड़े शहर थे, वहां-वहां उन्होंने ओट्स के दाने रख दिए (मसाला ओट्स नहीं, सादा वाला). ताकि फंगस वहीं-वहीं ग्रो करे. 

फंगस के बनाए नक्शे और टोक्यो रेल नेटवर्क के ग्राफिक और समय के साथ फंगस के ग्रो करने की तस्वीर (स्रोत -AAAS/Science)

लेकिन इसमें एक दिक्कत आ गई. प्लास्टिक की जिस शीट पर फंगस को ग्रो किया जा रहा था, वो थी प्लेन. एकदम चपटी. लेकिन असल में तो जापान में पहाड़, नदी और बाकी तरह के भूभाग भी हैं. सो इसका भी इंतजाम किया गया, लाइट की मदद से.

जिसफाइसेरम फंगस से नेटवर्क बनवाया जा रहा था, उसे तेज रोशनी नहीं पसंद. तो टेरो ने किया ये कि जहां-जहां पहाड़ और नदी वगैरह थे, वहां-वहां तेज लाइट की रोशनी डाल दी. ताकि वहां फंगस ग्रो ही न करे. अब बस बचा एक काम, फंगस को ग्रो होने देना था. यही किया भी गया और जो नतीजे आए, उन्हें जानकर आप भी कहेंगे -

जब फंगस पूरी तरह से ग्रो कर गई, तो साइंटिस्ट्स ने फंगस के मेट्रो नक्शे और टोक्यो के असली नक्शे को मिलाया. मालूम हुआ कि दोनों में कमाल की सिमिलैरिटी थी. एकदम ऋतिक रोशन और हर्मन बवेजा टाइप सिमिलैरिटी. यकीन न हो तो नीचे फोटो में खुद देखकर तसल्ली कर लीजिए.

( स्रोत: AAAS/Science)
क्या फफूंद में सच में इतना दिमाग है?

साल 2000 की बात है. जापान के एक और साइंटिस्ट नाकागाई ने एक रिसर्च की थी, जिसमें इस फंगस को एक पजल में ग्रो करवाया गया. वैसी ही पजल, जो किताब के पीछे हुआ करती थीं. जिनमें ‘गुड्डी को घर पहुंचाएं’ जैसा कुछ लिखा रहता था. इस फंगस और इसकी ‘बुद्धि’ की चर्चा तब शुरू हुई, जब इसने ऐसी ही एक पजल को सॉल्व कर डाला.

‘गुड्डी को घर पहुंचाएं’ टाइप पहेली हल कर फंगस ने रास्ता निकाला Source: Nakagaki et al. (2000)


देखिए, अगर इंसानों जैसे दिमाग की बात की जाए, तो वो इनमें नहीं होता. लेकिन फिर भी ये किसी पजल को सॉल्व कर सकती हैं. सबसे छोटा रास्ता निकाल सकती है. इसको साइंटिस्ट लोग सेल्युलर इंटेलिजेंस कहते हैं. सेल्युलर इंटेलिजेंस माने कई कोशिकाएं मिलकर किसी बुद्धि वाले काम को कर डालें. 

दरअसल, इनमें इंसानों की तरह कोई सेंट्रल दिमाग नहीं होता, जो अलग-अलग अंगों को बताता हो कि क्या करना है. बल्कि इनमें हर कोशिका की अपनी क्षमता होती है कि वो अपने आस-पास के एनवायरमेंट की खोज-खबर रख सके. मल्लब एक कोशिका दूसरी कोशिका को बता सकती है - ‘भईया, खाना (ओट्स) इधर है, आ जाओ.’  

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शुरुआत में तो फंगस बेलगाम बढ़ती है. जिसे गांव में कहते हैं ‘अन्ना’ हो कर ग्रो करती है. लेकिन जैसे ही उसे ओट्स का दाना मिल जाता है, तो वो सबसे छोटे रास्ते को छोड़कर बाकी रास्ते खत्म कर देती है. बाकी कोशिकाओं को बता भी देती है कि भइया खाना मिल गया है बाकी जगह घूमना बंद कर दो. ऐसा करके ये सबसे एफिसिएंट और छोटा रास्ता तलाशती है. और एफिसिएंट रूट बना देती है. 

अब भईया (और दीदी), भले ही इसमें हमारे जैसी बुद्धि हो न हो. लेकिन इसके काम बड़े कमाल के हैं. क्या कहते हैं आप? चौंका डाला न?

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