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Twitter के पूर्व CEO ने मोदी सरकार पर आरोप लगाए, वो बोली- भारत के कानून से ऊपर कोई नहीं

क्या हमारी बोलने-कहने-लिखने की आज़ादी पर सरकार की पहरेदारी है? अगर है, तो कितनी है? क्यों है?

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जैक डोर्सी​ ने मोदी सरकार पर संगीन आरोप लगाए, सरकार ने आरोपों को नकारा. (तस्वीर:सोशल मीडिया)

ट्विटर के संस्थापक और पूर्व मालिक जैक डॉर्सी ने कहा है, कि किसान आंदोलन के दौरान नरेंद्र मोदी सरकार ने ट्विटर पर दबाव डाला था. कई बार ट्विटर से "अनुरोध" किया गया कि उन ट्विटर अकाउंट्स को बंद किया जाए, जो आंदोलन को कवर कर रहे हैं और इस मुद्दे पर सरकार की आलोचना कर रहे हैं. सरकार ने धमकी भी दी थी कि ऐसा न करने पर वो भारत में ट्विटर बंद कर देगी और कर्मचारियों के घरों पर छापा मारेगी -- जो उन्होंने किया भी. सरकार का कहना है, सब झूठ है. विपक्ष का कहना है, ये लोकतंत्र की सुनियोजित हत्या है. सच क्या है? तथ्य क्या है? आज यही जानेंगे.

12 जून को ब्रेकिंग पॉइंट्स नाम के यूट्यूब चैनल को दिए एक इंटरव्यू में जैक डॉर्सी ने ये आरोप लगाए हैं. क्या-क्या कहा है? ये बताते हैं. इंटरव्यू में उनसे पूछा गया कि क्या उन्हें ट्विटर में रहते हुए कभी अन्य देशों की सरकारों का दबाव झेलना पड़ा था? जब एक ताक़तवर इंसान उनसे कुछ कहता है, तो वो उससे कैसे डील करते हैं? इस पर जैक डॉर्सी ने कहा,

"उदाहरण के तौर पर भारत को ले लीजिए. भारत सरकार ने किसान आंदोलन के दौरान हमें बहुत सारी रिक्वेस्ट भेजी थीं. ये उन पत्रकारों को लेकर थीं, जो किसान आंदोलन के दौरान सरकार की आलोचना कर रहे थे. हमें कहा गया कि भारत में ट्विटर बंद कर दिया जाएगा, जो हमारे लिए बहुत बड़ा मार्केट है. कहा गया कि आपके कर्मचारियों के घरों में रेड करेंगे, जो उन्होंने किया भी. और देखिए ये भारत है, जो एक लोकतांत्रिक देश है."

भारत के बाद उन्होंने तुर्किये की मिसाल दी. जहां की स्थिति, बकौल डॉर्सी, भारत जैसी ही है. वहां से भी उन्हें बहुत सारी रिक्वेस्ट्स भेजी गई थीं. तुर्किये में तो वो कई बार अदालती विवादों में भी उलझे थे और वहां भी दफ़्तर बंद करने की धमकी मिली थी.

अब ये तो हुआ डॉर्सी का वर्ज़न. वर्ज़न आते ही, विपक्ष ने इसे लपक लिया. केजरीवाल ने कहा, अगर ऐसा हुआ है तो बहुत ग़लत है. कपिल सिब्बल ने कहा, जैक डॉर्सी झूठ क्यों बोलेंगे? हालांकि, सरकार झूठ बोल सकती है. संजय राउत ने कहा परदे के पीछे लोकतंत्र की हत्या हो रही है. और कांग्रेस ने कहा कि हर उस आवाज का दमन हो रहा, जो सरकार के खिलाफ उठ रही है.

विपक्ष ने तो आरोप लगाए ही, लेकिन सरकार ने विपक्ष को कुछ नहीं कहा. उनका निशाना था, जैक डॉर्सी. Electronics & IT राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने "ट्वीट" किया-

"जैक डॉर्सी सरासर झूठ बोल रहे हैं. शायद वो अपने संदिग्ध कार्यकाल को छिपाना चाह रहे हैं. तथ्य और सच ये है कि डॉर्सी और उनकी टीम ने बार-बार भारत के क़ानून का उल्लंघन किया था. 2020 से 2022 तक उन्होंने क़ानून का उल्लंघन किया. मगर कोई जेल नहीं गया और न ही ट्विटर शटडाउन हुआ. डॉर्सी के कार्यकाल में उन्होंने भारतीय कानून की संप्रभुता को स्वीकार नहीं किया. ऐसा व्यवहार करते थे, जैसे भारत का क़ानून उन पर लागू ही नहीं होता. एक संप्रभु राष्ट्र के तौर पर भारत के पास अधिकार है कि देश में काम करने वाली सारी कंपनियां हमारे क़ानूनों का पालन कर रही हैं या नहीं, ये सुनिश्चित करे."

आपने सुना ही कि राजीव चंद्रशेखर का सीधा निशाना था, जैक डॉर्सी पर. तो पहले आपको जैक डॉर्सी के बारे में ही बता देते हैं. ट्विटर से दुनिया का परिचय 2011 की अरब क्रांति के दौरान हुआ, लेकिन इसकी शुरुआत हुई थी 2006 में. इसे बनाया था नोआ ग्लास, एवन विलियम्स, बिज स्टोन और जैक डॉर्सी ने. दुनिया जैक डॉर्सी को ट्विटर के को-फाउंडर के रूप में जानती है. हालांकि, ट्विटर शुरू होने के दो साल बाद ही 2008 में CEO पद से डॉर्सी को हटा दिया गया था. 2015 में दोबारा उन्होंने ट्विटर में वापसी की और 2021 में पराग अग्रवाल के टेकओवर करने तक इस पद पर बने रहे.

ट्विटर का को-फाउंडर और CEO होने के अलावा वे एक अनुभवी आंत्रप्रेन्योर भी रहे हैं. डॉर्सी ने 2011 में पेमेंट प्लेटफॉर्म Square और 2019 में ब्लॉक इंक डेवलप किया. जिसने महामारी के समय हर महीने 5.1 करोड़ रुपये से अधिक के ट्रांजैक्शन किए और मोटा पैसा बनाया. जैक ने कुछ महीने पहले एक और सोशल मीडिया ऐप ब्लू स्काइ भी लॉन्च किया है.

ये तो हो गया जैक डॉर्सी का मोटा-माटी परिचय. लेकिन बिना विवादों की चर्चा किए ये पूरा नहीं होता. कहा जाता है कि विवाद और जैक दोनों साथ-साथ चलते हैं.
> इसी साल मार्च महीने में अमेरिकी रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग ने जैक डॉर्सी पर गंभीर आरोप लगाए थे. जैक की कंपनी Block Inc पर फ्रॉड, खाते में हेरफेर और सरकार से मिली राहत का गलत इस्तेमाल करने के आरोप लगे. हिंडनबर्ग के इस खुलासे के बाद Block Inc को बड़ा झटका लगा और कंपनी के शेयर 20 फीसदी तक गिर गए. चंद घंटों में 80 हजार करोड़ रुपये का फटका लगा.
> डॉर्सी नवंबर 2018 में तब विवादों में आए थे जब वे भारत दौरे पर थे. यहां उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी और अभिनेता शाहरुख खान समेत कई महिला पत्रकारों और एक्टिविस्ट्स से मुलाकात की थी. इसी दौरान ट्विटर पर जैक की एक फोटो वायरल हुई जिसमें वो एक पोस्टर लिए खड़े नजर आए थे. पोस्टर में लिखा था- 'ब्राह्मणवादी पितृसत्ता को नष्ट करो'. फोटो के वायरल होने के बाद कई लोगों ने डॉर्सी की आलोचना की थी. कइयों ने उनका समर्थन भी किया था.
> इसके बाद जून 2021 में ट्विटर ने लाइव ब्रॉडकास्ट के दौरान एक नक्शे में लेह को चीन का हिस्सा दिखा दिया. इस विवाद ने इतना तूल पकड़ा कि केंद्र सरकार ने ट्विटर को वॉर्निंग जारी की थी. इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने ट्विटर को पत्र लिखकर चेतावनी दी थी कि इस तरह का मानचित्र दिखाना गैर-कानूनी है.
> इसके अलावा जैक के ऊपर अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को प्रभावित करने के आरोप लगे थे. उनके ऊपर भारत के कानूनों को ना मानने के भी आरोप लगे थे. उनके CEO रहते हुए केंद्र सरकार की तरफ से ट्विटर को कई बार इस संबंध में नोटिस दिए गए थे.

तो जैक डॉर्सी की जो पॉलिटिक्स है, वो कमोबेश जग-ज़ाहिर है. लेकिन केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर जिन नियमों की बात कर रहे हैं, उनकी भी तहक़ीक़ात कर लेनी चाहिए. इसके लिए एक रिपोर्ट पर नज़र डालते हैं. अप्रैल में रिपोर्ट छपी है. ये रिपोर्ट ट्विटर ही छापता है. डॉर्सी के वक़्त भी छापता था और उनके बाद भी छाप रहा है. इस रिपोर्ट में उन सभी रिमूवल रिक्वेस्ट्स का ब्योरा है, जो अलग-अलग देशों से आई हैं.
> रिपोर्ट के मुताबिक़, 1 जनवरी 2022 से 30 जून 2022 के बीच ट्विटर को दुनियाभर की सरकारों ने कॉन्टेंट हटाने की मांग करते हुए 53 हज़ार क़ानूनी नोटिस भेजे.
> और, भारत ट्विटर से कॉन्टेंट हटाने की मांग करने के मामले में दुनिया में सबसे आगे है.
> 85 से अधिक देशों की सरकारों ने यूज़र डेटा हासिल करने की 16 हज़ार से अधिक मांगें भेजीं. और ये मांग करने वाले शीर्ष देश हैं- भारत, अमेरिका, फ़्रांस, जापान और जर्मनी. केवल ये पांच देश ही कुल डिमांड्स का 97% हिस्सा रखते हैं.
और, आज से नहीं. बीते तीन सालों से स्थिति कुछ-कुछ ऐसी ही है.

माने एक बात तो साफ़ है. भारत ने अकाउंट हटाने की रिक्वेस्ट्स भेजी हैं. और ख़ूब भेजी हैं. हालांकि, इन रिपोर्ट्स में ये साफ़ नहीं है कि क्या किसान आंदोलन के दौरान इनमें तेज़ी आ गई थी. इसको जांचने का एक तरीक़ा ये हो सकता था, कि ट्विटर की महीनावार रिपोर्ट खंगाली जाए. लेकिन ट्विटर ने जब से ये रिपोर्ट निकालनी शुरू की, तब तक आंदोलन ख़त्म होने की कगार पर था.

मगर ट्विटर और भारत सरकार का संघर्ष आज का नहीं है. 2021 में जब दिल्ली में किसान आंदोलन चल रहा था, तब भी ट्विटर और भारत सरकार के बीच बहस हुई थी. केंद्र ने भ्रामक जानकारियां फैलाने का हवाला देते हुए ट्विटर से कुछ ट्वीट हटाने को कहा था. ट्विटर ने इस आदेश को मानने से इंकार कर दिया. ख़बरों के मुताबिक़, केंद्र ने ट्विटर को धमकी दी कि अगर वो ट्वीट नहीं हटाते हैं तो ट्विटर इंडिया के कर्मचारियों को जेल में डाल दिया जाएगा. कहते हैं कि इस धमकी के बाद ट्विटर पीछे हटा. और बाद में ट्विटर ने कहा कि उसने केंद्र सरकार की 95 प्रतिशत शिकायतों का निराकरण कर दिया है.

हालांकि, केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने ट्विटर पर भेदभावपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप लगाया था. रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि ट्विटर अमेरिका में कैपिटल हिल की घटना की निंदा करता है, लेकिन दिल्ली में लाल किले की हिंसा पर उनका स्टैंड अलग है. इसी साल सरकार नए IT रूल्स लेकर आई. इसमें सरकार ने कहा कि जो कंपनियां भारत में काम करती हैं उन सोशल मीडिया इंटरमीडियरीज को तीन अधिकारी नियुक्त करने होंगे. इन तीनों अधिकारियों को भारत में रहना होगा. कंपनियां हर महीने एक कंप्लायंस रिपोर्ट भी जारी करेंगी. इसमें वे बताएंगी कि महीने भर में उनके पास कैसी और कितनी शिकायतें आईं, और उन पर क्या एक्शन लिया गया. ऐसी ही एक कंप्लायंस रिपोर्ट हर छह महीने में भी छापनी होगी.

इन नियमों पर भी ट्विटर और भारत सरकार के बीच अनबन हुई थी. इसके अलावा 24 मई 2021 को दिल्ली पुलिस टूलकिट मैनिपुलेशन मामले की जांच के सिलसिले में ट्विटर इंडिया के गुरुग्राम और दिल्ली स्थित दफ्तर पहुंची थी. दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने इस मामलें में ट्विटर इंडिया को एक नोटिस भेजा था.

हालांकि, अगले साल एलन मस्क ट्विटर के CEO बने और उन्होंने भारत के कानूनों को मानने की बात कही. एक ट्विटर स्पेस में BBC से बात करते हुए मस्क ने कहा कि भारत का सोशल मीडिया कानून पश्चिमी देशों के मुकाबले सख्त है. हम किसी देश के कानून से ऊपर नहीं हैं. अगर, मेरे पास एक विकल्प होगा कि हमारे लोग या तो जेल जाएं या फिर कानून का पालन करें तो मैं कानून का पालन करना चाहूंगा.

इस पूरे विवाद में एक और मसला उठ रहा है. मसले से पहले चैनल ब्रेकिंग पॉइंट को समझते हैं. अमेरिका के दो राजनीतिक टिप्पणीकार और मीडिया होस्ट - क्रिस्टल बॉल और भारतीय-अमेरिकी सागर एनजेटी - ने जून 2021 में ये चैनल लॉन्च किया था. बॉल और एनजेटी, दोनों ही अमेरिकी मीडिया ऑर्गनाइज़ेशन 'द हिल्स राइज़िंग' के होस्ट थे. और दोनों के राजनीतिक झुकाव ही पब्लिक डोमेन में हैं. क्रिस्टल, लेफ़्ट-लीनिंग हैं और सागर राइट. उनका दावा तो यही है कि ये प्रोग्राम निडर है, सत्ता-विरोधी है. इसमें राजनीतिक घटनाओं पर टिप्पणी होती है, विश्लेषण होता है. पत्रकारों, राजनेताओं, राजनीति के पढ़े-लिखों, कॉरपोरेट दुनिया की हस्तियों के इंटरव्यू होते हैं. इसी क्रम में जैक डॉर्सी का भी इंटरव्यू हुआ. लेकिन चूंकि, दोनों के आग्रह सबको मालूम हैं. सो लोगों ने गणित लगाई. इंटरव्यू की टाइमिंग को लेकर सवाल उठाए. दर्शक जानते ही हैं कि नरेंद्र मोदी 21 जून को अमेरिकी दौरे पर जाने वाले हैं. वहां उनका स्वागत कार्यक्रम होना है, भारतवंशी उत्साहित हैं. इसीलिए दौरे से दस दिन पहले ये इंटरव्यू आया, तो इसकी मंशा पर सवाल उठने लगे.
- कि कुछ दिन पहले राहुल गांधी अमेरिका में घूम-घूम कर नरेंद्र मोदी की आलोचना कर रहे थे.
- दूसरा, कि दौरे की घोषणा के बाद कुछ संगठनों ने कहा है कि वो नरेंद्र मोदी पर बनी BBC डॉक्यूमेंट्री को भी स्क्रीन करेंगे.
- और, अब ये इंटरव्यू. भाजपा और प्रधानमंत्री के समर्थकों का कहना है कि ये नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को तोड़ने का सुनियोजित प्रयास है. इसे लेकर हमने बात की जानकारों से, कि इन आरोपों का नरेंद्र मोदी की छवि पर कितना असर पड़ सकता है?

दिसंबर, 2010. उत्तरी अफ्रीका का एक देश है ट्यूनीशिया. यहां के सिदी बुज़ीद शहर में मोहम्मद बज़ीज़ी नाम का एक नौजवान फल का ठेला लगाता था. वो घर का इकलौता कमाऊ शख़्स था. एक दिन उसके ठेले पर नगरपालिका वाले आए. बज़ीज़ी के पास परमिट नहीं था. उसका ठेला ज़ब्त कर लिया गया. वापस लौटाने के लिए घूस मांगी गई. घूस के लिए पैसे थे नहीं. असहाय बजीजी ने अपने शरीर में आग लगा ली. इस घटना के बाद जो कुछ हुआ दुनिया उसे अरब स्प्रिंग या अरब क्रांति के नाम से जानती है. अरब देशों में लोगों ने सरकार के ख़िलाफ़ गदर काट दिया. ट्यूनीशिया, लीबिया, मिस्र जैसे देशों में सरकार गिर गई. और ये सब हुआ कैसे? सोशल मीडिया के ज़रिए. बज़ीज़ी का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ और फिर शुरू हुई बगावत. प्रदर्शनकारियों ने ट्विटर, फ़ेसबुक और यूट्यूब के ज़रिए अपनी आवाज़ को दुनिया तक पहुंचाया. तब एक प्रोटेस्टर ने कहा था-

"हम फ़ेसबुक के जरिए प्रोटेस्ट का समय तय करते हैं, ट्विटर के माध्यम से प्रोटेस्ट को को-ऑर्डिनेट करते हैं और यूट्यूब के जरिए दुनिया को अपनी कहानी बताते हैं."

ट्विटर इतना मशहूर हुआ कि अरब क्रांति को 'ट्विटर क्रांति' का नाम दिया गया. क़िस्से का लब्बुलुवाब साफ़ है, तब का दौर हो या आज का, सोशल मीडिया बहुत ज़रूरी है. किसी को ऑक्सिजन या अस्पताल में बेड दिलाने से लेकर किसी कलेक्टर का उसकी करतूतों के लिए तबादला कराने तक, सूचना पहुंचाने से लेकर सरकार से सवाल पूछने तक. सबकुछ के बीच सोशल मीडिया एक ज़रूरी और अपरिहार्य माध्यम है. तो हमें सवाल पूछने हैं अपनी सरकार से और सोशल मीडिया कम्पनियों से कि
> हमारी निजी जानकारी कितनी सुरक्षित है?
> सरकार क़ानून, लॉ एंड ऑर्डर और फ़ेक न्यूज़ के लिए सोशल मीडिया संदेश चुनने का कौन सा पैमाना इस्तेमाल कर रही है?
> क्या हमारी बोलने-कहने-लिखने की आज़ादी पर सरकार की पहरेदारी है? अगर है, तो कितनी है? क्यों है?
> क्या सरकार ने सच में कंपनियों को धमकियां दीं? रेड पड़वाई? इसकी पुष्टी हम अपनी तई नहीं करते. लेकिन सरकार ने ट्विटर से अनुरोध बहुत सारे किए, ये तो ख़ुद ट्विटर की रिपोर्ट में दर्ज है. क्या सरकार इसका स्पष्टीकरण देगी?
सवाल हैं. और हम पूछते रहेंगे. जवाब आएगा, तो बताएंगे भी. तब तक आप हमारे साथ बने रहिए.