दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनिया दो ध्रुवों में बंट गई. एक ध्रुव अमेरिका और दूसरा ध्रुव सोवियत संघ वाला था. दूसरे विश्व युद्ध के खात्मे के बाद दोनों देशों के बीच कोल्ड वॉर शुरू हुई. इसी कोल्ड वॉर ने दोनों देशों को अंतरिक्ष रेस में उतार दिया. प्रतिस्पर्धा शुरू हुई कि कौन पहले अंतरिक्ष में जाएगा. दोनों देश इसमें जुट गए. देश के बजट का बड़ा हिस्सा स्पेस मिशन में खर्च होने लगा,
4 अक्टूबर 1957 को रूस ने अंतरिक्ष में पहला अंतरिक्ष यान स्पुतनिक 1 भेजा. ये पहली बार हो रहा था कि जब इंसान की बनाई हुई कोई चीज़ अंतरिक्ष में पहुंचाई गई थी. इस मिशन के सफल होने के बाद एक सवाल पैदा हुआ? कि क्या इंसान को भी अंतरिक्ष में भेजा जा सकता है? क्या इंसान अंतरिक्ष में जीवित रह सकता है? क्या इंसान को अंतरिक्ष में भेजकर वापस लाया जा सकता है? उस दौर में किसी भी रॉकेट, अंतरिक्ष यान या उपकरणों पर लोगों को भरोसा नहीं था. अंतरिक्ष में मनुष्यों के जीवित रहने को लेकर भी कोई ख़ास जानकारी नहीं थी. पर स्पुतनिक 1 की सफलता ने सोवियत संघ के वैज्ञानिकों को हौसला दिया और वो इस मिशन में लग गए. सोवियत के वैज्ञानिकों ने कई तरह के राकेट बनाए, कई प्रयोग किए. लेकिन ज़्यादातर असफल रहे.
एस्ट्रोनॉट बनने की ट्रेनिंग कैसे होती है?
गगनयान मिशन के पीछे भारत की स्पेस एजेंसी इसरो की कड़ी मेहनत है. इसरो पिछले कुछ समय में दो अहम स्पेस मिशन लॉन्च कर चुकी है, पहला है चंद्रयान और दूसरा है आदित्य एल वन. इन दो बड़े मिशंस की सफलता के बाद इसरो गगनयान मिशन को सफल बनाने में जुटा हुआ है.
लेकिन 12 अप्रैल 1961 को सोवियत संघ ने इसमें सफलता हासिल कर ली. उसने पहली बार अंतरिक्ष में इंसान भेजा. अंतरिक्ष में जाने वाले पहले इंसान का नाम था, यूरी गागरिन. ये अंतरिक्ष की लड़ाई में अमेरिका पर सोवियत संघ की जीत थी. उनकी सकुशल वापसी ने तो इस जीत को निर्विवाद बना दिया था. उसके बाद अमेरिका और चीन ने भी अंतरिक्ष में इंसान भेजकर ये उपलब्धि हासिल की है. लेकिन इन 3 मुल्कों के अलावा और कोई देश इसमें कामयाब नहीं हो पाया है.
भारत पहली बार इंसान को अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी कर रहा है, इस मिशन को नाम दिया गया है. गगनयान. और आज भारत सरकार ने गगनयान मिशन के तहत अंतरिक्ष में जाने वाले 4 यात्रियों के नाम की घोषणा कर दी है.
गगनयान मिशन के पीछे भारत की स्पेस एजेंसी इसरो की कड़ी मेहनत है. इसरो पिछले कुछ समय में दो अहम स्पेस मिशन लॉन्च कर चुकी है, पहला है चंद्रयान और दूसरा है आदित्य एल वन. इन दो बड़े मिशंस की सफलता के बाद इसरो गगनयान मिशन को सफल बनाने में जुटा हुआ है.
क्या है गगनयान मिशन?
इस मिशन के तहत अंतरिक्ष यात्रियों को 400 किलोमीटर की कक्षा में भेजा जाएगा और तीन दिन बाद उन्हें वापस पृथ्वी में सफलतापूर्वक लाया जाएगा. ये मिशन कई चरणों में होगा. सबसे पहले एक मानव रहित मिशन को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा. इसके सफल होने के बाद ही एस्ट्रोनॉट्स को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा. इस मिशन में जिस क्रू मॉड्यूल में बैठकर यात्री स्पेस में जाएंगे, उसी हिस्से को गगनयान कहा जा रहा है. क्रू मॉड्यूल दोहरी दीवार वाला केबिन है, जिसमें कई प्रकार के नेविगेशन सिस्टम, हेल्थ सिस्टम, फूड हीटर, फूड स्टोरेज, टॉयलेट आदि लगे हैं.
कब शुरू हुआ ये मिशन?
इसपर काम साल 2007 से ही शुरू हो गया था. लेकिन बजट की कमी के चलते ये प्रयोग आगे नहीं बढ़ सका था. बाद में जाकर इस मिशन को लेकर बजट एलोट हुआ. मिशन में एक समस्या और आई कि पहले इस मिशन के लिए GSLV रॉकेट तैयार किए गए थे, लेकिन वो उतने कारगर साबित नहीं हुए. वो भारी क्रू मॉड्यूल का वज़न उठाने में सक्षम नहीं थे. फिर साल 2014 आते-आते बजट की समस्या भी सुलझ चुकी थी. इसी साल GSLV मार्क 2 रॉकेट बनाया गया. और इस समस्या का समाधान हुआ. लेकिन अब भी इसमें समस्या थी. इसलिए अब जाकर गगनयान को लॉन्च करने के लिए LVM3 का इस्तेमाल किया जाएगा.
ये तो हुई मिशन की बात. अब आते हैं उन अंतरिक्ष यात्रियों पर जिनके नाम की घोषणा हुई है.
इस मिशन के लिए एयर फ़ोर्स से 4 लोगों को लिया गया है, उनके नाम हैं. ग्रुप कैप्टन प्रशांत बालकृष्ण नायर, ग्रुप कैप्टन अजीत कृष्णन, ग्रुप कैप्टन अंगद प्रताप और विंग कमांडर शुभांशु शुक्ला शामिल हैं. मिशन के लिए सैकड़ों पायलट्स का टेस्ट हुआ, उनमें से 12 चुने गए थे. इनका चुनाव इंस्टीट्यूट ऑफ एयरोस्पेस मेडिसिन से किया गया था. इसके बाद कई और राउंड तक चुनाव प्रक्रिया चली. तब जाकर ISRO ने गगनयान मिशन के लिए चार पायलटों के नाम फाइनल किए. चुने गए चारों पायलटों ने रूस के यूरी गागरिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर में अपनी ट्रेनिंग को पूरा किया है.
कैसे होती है ट्रेनिंग?
- एस्ट्रोनॉट्स ज़ीरो ग्रैविटी में काम करते हैं लिहाज़ा उनकी ट्रेनिंग के लिए वैक्यूम चैंबर बनाया गया है जिससे उन्हें जीरो ग्रेविटी में हवा में तैरते रहने का अभ्यास करवाया जाता है.
- उन्हें गोल घूमने वाली मशीन पर बैठाया जाता है. फिर मशीन को जीरो ग्रैविटी में तेज़ रफ्तार से घुमाया जाता है. इस दौरान एस्ट्रोनॉट की सहनशीलता का टेस्ट होता है.
-फिर एस्ट्रोनॉट को स्पेसवॉक की ट्रेनिंग दी जाती है. इस दौरान उन्हें एक बड़े से इनडोर पूल में चलाया जाता है. इस पूल का वातावरण बिल्कुल स्पेस जैसा बनाया जाता है.
-एस्ट्रोनॉट को इमरजेंसी लैंडिंग और रेगिस्तान में सर्वाइव करना भी सिखाया जाता है.
-एस्ट्रोनॉट को फिजिकल फिटनेस के साथ साथ मेंटल फिटनेस की भी ट्रेनिंग दी जाती है जिससे किसी खतरनाक सिचुएशन में वो पैनिक न करें.
-असल में स्पेस में जैसी सिचुएशन होगी, उसे सिमुलेट करके ट्रेनिंग दी जाती है जिससे एस्ट्रोनॉट स्पेस में जाने पर रियल टाइम सिचुएशन के बारे में जानते हों.
-अंतरिक्ष में आने वाली दिक्कतों के साथ वापस आने पर दोबारा धरती के अनुकूल होने की भी ट्रेनिंग दी जाती है.
- इसरो के मानव मिशन 'गगनयान' से जुड़े एस्ट्रोनॉट्स ने रूस के गोरोडोक शहर में एक साल की ट्रेनिंग कोर्स को पूरा किया है. और अब इन्हें बेंगलुरु के चल्लकेरे में बने ट्रेनिंग सेंटर में ट्रेनिंग दी जा रही है.
स्पेसफ्लाइट प्रोग्राम से जुड़े इसरो के अलग-अलग सेंटर्स से सारी सुविधाओं को एक छत के नीचे लाया गया है. स्पेसक्राफ्ट के क्रू, सर्विस मॉड्यूल से लेकर अंतरिक्ष यात्रियों की ट्रेनिंग और मिशन कंट्रोल इसी सेंटर में किया जाएगा. भारत का अपना खुद का एस्ट्रोनॉट ट्रेनिंग सेंटर दुनिया में छठा स्पेस ट्रेनिंग सेंटर होगा. इससे पहले
:नासा -अमेरिका,
:रॉसकॉसमॉस -रूस,
:जर्मनी-यूरोप,
:सुकुबा स्पेस सेंटर-जापान और
:चाइनीज नेशनल स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन में अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षित करने और अंतरिक्ष में भेजने की सुविधा उपलब्ध है.
27 फरवरी 2024 से भारत भी स्पेस की ट्रेनिंग देने वाले चुनिंदा देशों में शामिल हो गया है. पीएम मोदी ने तिरुवनंतपुरम स्थित विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर में स्पेस इन्फ्रस्ट्रक्चर से जुड़े प्रोजेक्ट्स का उद्घाटन किया. गगनयान मिशन की भी जानकारी ली. साथ ही स्पेस में जाने के लिए चयनित चारों ऐस्ट्रनॉट्स के नाम का भी ऐलान किया.
अब जानते हैं कि इस मिशन में अबतक क्या-क्या हुआ है और आगे क्या होगा?
-फरवरी 2024 में इसरो ने इसमें इस्तेमाल होने वाले क्रायोजनिक इंजन का सफल परीक्षण कर लिया है.
-इस इंजन का एक हिस्सा है, 'क्रू एस्केप सिस्टम'. अगर आपात स्थिति में स्पेसक्राफ्ट में कोई खराबी आती है तो उससे निपटने के लिए ये सिस्टम लगाया गया है. इसरो ने अक्टूबर 2023 में इसका सफल परीक्षण किया था.
-अब जिस स्टेज में गगनयान मिशन पहुंचा है, वो है Unmanned Flights. यानी इसरो मानव रहित स्पेसक्राफ्ट को अंतरिक्ष में भेजेगा. अगर ये मिशन सफल रहता है तो इसके बाद चुने गए पायलटों में से 3 को स्पेस में भेजा जाएगा.