इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू (Benjamin Netanyahu) ने देश के युद्ध मंत्रिमंडल (War Cabinet) को भंग कर दिया है. ये फ़ैसला उन्होंने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी बेनी गैंट्ज़ के हटने के बाद लिया है. अब वॉर कैबिनेट की जगह नेतन्याहू ग़ाज़ा में चल रहे युद्ध के बारे में सलाह अपनी ‘किचन कैबिनेट’ से लेंगे.
गाजा पर बम बरसा रहे इजरायल की वॉर कैबिनेट भंग, नेतन्याहू ने इस एक तीर से कितने निशाने साध लिए?
कहा ऐसा जा रहा है कि नेतन्याहू ने वॉर कैबिनेट खत्म कर के अपने धुर-दक्षिणपंथी सहयोगियों को मना लिया है, जो उचटने को तैयार थे. इसके साथ युद्धविराम के लिए बढ़ रहे इंटरनैशनल प्रेशर को भी हटाने की कोशिश की है.
कहा ऐसा जा रहा है कि नेतन्याहू ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं. एक तो उन्होंने ऐसा कर के अपने धुर-दक्षिणपंथी सहयोगियों को मना लिया है, जो उचटने को तैयार थे. इसके साथ युद्धविराम के लिए बढ़ रहे इंटरनैशनल प्रेशर को भी हटाने की कोशिश की है.
इसीलिए जानेंगे:
- वॉर कैबिनेट क्या है?
- धुर-दक्षिणपंथी पार्टियां क्या चाहती थीं?
- इंटरनैशल प्रेशर को कैसे साधा?
7 अक्टूबर, 2023 को चरमपंथी समूह हमास ने इज़रायल पर हमला किया था, जिसके बाद इज़रायल ने हमास के ख़िलाफ़ जंग का एलान कर दिया. जंग के एलान के साथ ही - 11 अक्टूबर को - सिक्योरिटी कैबिनेट के अंतर्गत वॉर कैबिनेट का गठन किया गया. मक़सद, कि चल रही जंग में तुरंत-तुरंत फ़ैसले लिए जाएं. वॉर कैबिनेट जो भी निर्णय लेती थी, उसे बाद में व्यापक मंत्रिमंडल के अनुमोदन के लिए भेजा जाता था.
इसमें प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू, उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी पूर्व-जनरल बेनी गैंट्ज़ और रक्षा मंत्री योआव गैलेंट शामिल थे. इन तीनों के साथ तीन पर्यवेक्षक भी थे: सरकार में मंत्री आर्ये डेरी और मंत्री गादी ईसेनकोट, और सामरिक मामलों के मंत्री रॉन डेरमर.
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हर मंत्रिमंडल की तरह इस मंडल के भीतर मतभेद और झगड़े थे. जनवरी महीने में ही इज़रायली अख़बार हारेत्ज़ ने विपक्षी नेता यायर लैपिड के हवाले से छापा था कि गैलेंट और नेतन्याहू एक-दूसरे से बात नहीं कर रहे हैं और वॉर कैबिनेट की बैठकें ईगो के झगड़ों का अड्डा बन चुकी हैं.
क्या इसी वजह से इसे भंग कर दिया गया? आंशिक रूप से हां. 9 जून को, नैशनल यूनिटी पार्टी के गैंट्ज़ और पर्यवेक्षक ईसेनकोट ने मंत्रिमंडल छोड़ दिया. वजह दी कि ग़ाज़ा को लेकर कोई दीर्घकालिक विज़न नहीं है. इसके तुरंत बाद नेतन्याहू ने सुरक्षा मंत्रिमंडल से कहा:
ये कैबिनेट गैंट्ज़ के साथ गठबंधन समझौते का हिस्सा थी. उनकी मांग पर. जिस क्षण वो गए, मंत्रिमंडल ख़त्म.
अब क्या गैंट्ज़ की जगह किसी और को लाया नहीं जा सकता था? बिल्कुल लाया जा सकता था. गैंट्ज़ के जाते ही राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री इतामार बेन-ग्वीर और वित्त मंत्री बेज़ेलेल स्मोत्रिच दोनों इस पद के लिए अपना पाला भारी कर रहे थे.
तो इन्हें मंत्री क्यों नहीं बनने दिया? दरअसल, बेन-ग्वीर और स्मोट्रिच, दोनों ही इज़रायल के धुर-दक्षिणपंथी नेता हैं.
- दोनों ही फ़िलिस्तीन में और अवैध यहूदी बस्तियों बसाने के पक्षकार हैं. बेन ग्वीर, ख़ुद ऐसी ही एक अवैध बस्ती में रहते हैं.
- दोनों ने यहां तक धमकी दी थी कि अगर इज़रायल ने ग़ाज़ा के रफ़ा शहर पर हमला नहीं किया, तो वो इस्तीफ़ा दे देंगे. उस वक़्त वहां 15 लाख विस्थापित लोग रह रहे थे.
- दोनों ने ये भी धमकी दी कि अगर नेतन्याहू हमास को बर्बाद करने से पहले अमेरिका के युद्ध-विराम समझौते पर साइन कर देते हैं, तो वो सरकार गिरा देंगे.
- उनकी अंतरराष्ट्रीय छवि भी विवादास्पद है. अमेरिका सहित इज़रायल का कोई भी सहयोगी उनके साथ मंच साझा नहीं करना चाहेगा.
क्या नेतन्याहू उनसे पिंड नहीं छुड़ा सकते? बिल्कुल नहीं. बेन-ग्वीर और स्मोट्रिच की पार्टियों के पास संसद में कुल 14 सीटें हैं. उनके जाने का मतलब गठबंधन का ख़ात्मा और नेतन्याहू का टाटा.
अंतरराष्ट्रीय न्यूज़ एजेंसियों की रिपोर्ट के मुताबिक़, नेतन्याहू ने इस बात पर ज़ोर दिया है कि कोई नया मंत्रिमंडल नहीं बनाया जाएगा. नाम न बताने की शर्त पर कैबिनेट के अफ़सरों ने बताया कि आगे की रणनीति और युद्ध से जुड़े अन्य संवेदनशील मुद्दों के लिए प्रधानमंत्री सरकार के कुछ सदस्यों के साथ छोटी-छोटी बैठकें करते रहेंगे.
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आलोचकों का कहना है कि युद्ध के दौरान नेतन्याहू ने जो भी निर्णय लिए हैं, उनमें अति-राष्ट्रवादी नेताओं की सलाह और सत्ता में बने रहने की उनकी इच्छा का बहुत बड़ा रोल है. नेतन्याहू और उनके समर्थक इन आरोपों से इनकार करते हैं और कहते हैं कि उनके मन में देश का हित सर्वोत्तम है.
दूसरी तरफ़, US समेत इज़रायल के अधिकतर सहयोगी उनसे युद्धविराम की अपील कर रहे थे. इससे नेतन्याहू मजधार में थे. सरकार भी बचानी थी और कट्टरपंथियों को साथ में आने भी नहीं देना था. अब इस क़दम से नेतन्याहू ने सीधे-सीधे किसी को नाराज़ भी नहीं किया और उन्हें साथ बैठाने की ‘फ़जीहत’ से भी बच गए.
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