इज़रायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू 15, अप्रैल को ग़ज़ा पहुंचे थे. सैनिक की वेशभूषा में. अपनी सेना की हौसला-अफ़ज़ाई के लिए. वहां से उन्होंने एक वीडियो अड्रेस जारी किया. बोले, हमास को एक के बाद एक झटके लगेंगे. और, हम अपने सभी मक़सद पूरा कर के ही दम लेंगे.
फिलिस्तीनियों के हाथ से जाने वाला है गजा? क्या हैं इजरायल के इरादे?
IDF अब कब्ज़ा किए गए इलाकों को खाली नहीं करेगा. बल्कि वहां स्थायी रूप से रहेगा, जैसे लेबनान और सीरिया में करता है.

लेकिन ये मक़सद क्या हैं? इसका जवाब इज़रायली रक्षा मंत्री इज़रायल काट्ज़ ने दिया. 16 अप्रैल को उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट किया. और, लिखा कि इज़रायल ग़ज़ा में अपने बफ़र ज़ोन ख़ाली नहीं करेगा. बल्कि वहां स्थायी या अस्थायी रूप से रहेगा, जैसे लेबनान और सीरिया में करता है. रिपोर्ट्स का कहना है कि गजा की लगभग 50 फ़ीसद ज़मीन अब इज़रायल के क़ब्ज़े में है. उसने अलग-अलग इलाक़ों में कॉरिडोर बना लिए हैं. और, बफ़र ज़ोन बढ़ाता जा रहा है.
ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि ग़ज़ा का भविष्य क्या होने वाला है? इज़रायल का अगला प्लान क्या है? क्या ग़ज़ा से इज़रायली सैन्य मौजूदगी कभी नहीं हट सकेगी? और, ऐसे में ग़ज़ा के लोगों का क्या होगा? कहीं ग़ज़ा पर भी इज़रायल क़ब्ज़ा तो नहीं कर लेगा?
19वीं सदी का आख़िरी दशक. उस्मानी सल्तनत यानी ओटोमन एम्पायर के नक़्शे में एक छोटा सा, पतला सा हिस्सा था. ग़ज़ा. तब ग़ज़ा पट्टी में सिर्फ दो ही शहरी केंद्र थे. ग़ज़ा शहर और ख़ान यूनुस. आप इन शहरों के नाम मौजूदा समय में भी सुनते आ रहे होंगे. उस दौरान बाक़ी की आबादी छोटे और मंझोले गांवों में बसी थी.

ये गांव मिस्र और फिलिस्तीन को जोड़ने वाले कोस्टल रोड के दोनों तरफ़ फैले हुए थे. ये गांव सड़क या रेलवे लाइन से ज़्यादा से ज़्यादा एक मील दूर होते थे. इनमें पांच सबसे बड़े गांव थे– जबालिया, दैर अल-बलाह, बनी सुहैला, अबासान और रफ़ा. ये कोई साधारण गांव नहीं थे. ये दो शहरों, ग़ज़ा और ख़ान यूनुस, के बीच संतुलन का काम करते थे. ग़ज़ा के उत्तर में, ख़ान यूनुस दक्षिण में. दोनों सिरे, और उनके बीच बसी ये बस्तियां. एक भौगोलिक लय थी. बगल में समंदर था. गज़ा समंदर के किनारे बसा एक शांत किनारा हुआ करता था. हम और आप इसको भू-मध्य सागर या मेडिटेरेनियन सी कहते हैं.

लेकिन कुछ ही समय में समंदर की लहरों से कहीं ज़्यादा तेज़ कुछ और दस्तक देने लगा. यूरोपीय औपनिवेशिक ताक़तों की दिलचस्पी. दो दशक के भीतर पहला विश्व युद्ध शुरू हुआ. तब उस इलाक़े में अरब आबादी सबसे ज़्यादा थी. और, महज़ 6 फीसद यहूदी रहते थे. फिर साल 1917 आया. ब्रिटिश फ़ौज उस्मानी साम्राज्य को पछाड़ कर फ़िलिस्तीन में दाख़िल हुईं. ग़ज़ा ब्रिटिश नियंत्रण में आ गया. और, फिर आया 'बैलफोर डिक्लेरेशन'. एक ऐसा ए’लान जिसने यहूदी राष्ट्रवाद के लिए ज़मीन पैदा की. लेकिन इसी वक़्त ज़मीन एक और चीज़ के लिए दुरुस्त हुई. फ़िलिस्तीनी अरबों की बेचैनी के लिए.

इसी दौरान दुनिया भर से यहूदी आकर इस इलाक़े में बसना शुरू हुए. फ़िलिस्तीन में यहूदियों के लिए एक “नेशनल होम” की स्थापना करने की बात चली. वो इलाक़ा जिसमें आज एक मुल्क-इज़रायल है. वो इलाक़ा जिसमें आज वेस्ट बैंक है. जिसमें ग़ज़ा है. जिन्हें मुल्क का दर्ज़ा कभी नहीं मिल सका. 1920 और 1940 के दशक में यहूदी भारी संख्या में यहां आकर बसे. दूसरे विश्व युद्ध में हिटलर की यातना झेलने के बाद ये संख्या और भी बढ़ने लगी.

1947 तक फिलिस्तीन में यहूदियों की आबादी 6 फ़ीसदी से बढ़कर 33 फीसदी हो गई थी. इससे अरब और यहूदी आबादी के बीच तनाव बढ़ गया. कुछ विवाद हिंसक भी होने लगे. इसके चलते UN ने 1947 में फिलिस्तीन का बंटवारा कर दिया. 55 फीसदी ज़मीन यहूदियों को दी. 45 प्रतिशत हिस्सा अरब आबादी के लिए छोड़ दिया. और, जेरूसलम को इंटरनेशनल सिटी बना दिया गया. अरबों को ये बात नागवार गुज़री.

इधर दूसरा विश्व युद्ध ख़त्म हो गया. इसके बाद मामला और बिगड़ा. अंग्रेज़ों के जाते ही, 1948 में इज़रायल की स्थापना हुई. इसके तुरंत बाद अरब देशों ने इज़रायल के ख़िलाफ़ जंग छेड़ दी. और इसी जंग में, ग़ज़ा पट्टी मिस्र या कहिए इजिप्ट के नियंत्रण में आ गई. वेस्ट बैंक और ईस्ट जेरूसलम जॉर्डन के हिस्से आए. और, वेस्ट जेरूसलम पर इज़रायल ने क़ब्ज़ा जमा लिया. ग़ज़ा पट्टी, 1948 में इज़रायल की सेना के हाथ नहीं लगी. उस दौरान इज़रायल के एक कमांडर यिगाल अलोन कहा करते थे, "अगर दो दिन और मिलते, तो ग़ज़ा भी हमारे पास होता."

इस जंग में लाखों फ़िलिस्तीनी विस्थापित हुए. इस विस्थापन को 'नक़बा' कहा जाता है. ग़ज़ा, जो कभी एक सीमांत इलाक़ा था. वो शरणार्थियों से पट गया. शरणार्थी आए तो रिफ्यूज़ी कैम्पों की बुनियाद पड़ गई. आठ रिफ्यूज़ी कैम्प. चार बड़े: जबालिया, अश-शाती, ख़ान यूनुस और रफ़ा. और चार छोटे: नुसैरात, अल-बुरैज, अल-मुघ़ाज़ी, और दैर अल-बलाह.

ये कैम्प बसाए गए थे अस्थायी तौर पर, लेकिन आज भी वहीं हैं. इन कैम्पों को बसाने का तरीका ही बता देता है कि ये पक्के नहीं थे. न नियोजन था, न सड़कें. या तो पुरानी अरब बस्तियों के पास या छोड़े हुए मिलिट्री कैंप्स में बसा दिए गए. लेकिन आबादी? हर एक में बीस हज़ार से ऊपर. सोचिए, इतने लोग, इतनी संकरी गलियां. तंग गलियों वाले वो इलाके, जो न शहर हैं, न गांव.

इज़रायल के पहले प्रधानमंत्री और उसके संथापाक डेविड बिन-गुरियन ने बाक़ायदा 1955 में ग़ज़ा पर कब्ज़ा करने का प्रस्ताव रखा. ताकि वहां से रिफ्यूज़ीज को निकाल कर जॉर्डन भेजा जा सके. मगर न पहले ये हो सका, न 1956 के सिनाई युद्ध के बाद.

फिर आया साल 1967. इज़रायल और अरब देशों में सिक्स-डे वॉर हुई. इस वॉर में मिडिल ईस्ट का नक़्शा बहुत हद तक बदल गया. इज़रायल ने जॉर्डन के हाथ से ईस्ट जेरूसलम और वेस्ट बैंक छीन लिया. और, ग़ज़ा पर क़ब्ज़ा कर लिया. जब इज़रायल ने ग़ज़ा पूरी तरह से क़ब्ज़ा किया, तो अगला सवाल यही था. इन हज़ारों रिफ्यूज़ीज का क्या? बात-बात पर मंसूबे बने. कभी उन्हें मिस्र भेजने की बात हुई, कभी जॉर्डन, कभी वेस्ट बैंक. लेकिन सच्चाई ये रही कि कोई कहीं गया नहीं.

इज़रायली क़ब्ज़े के बाद मामला सिर्फ़ हुकूमत तक सीमित नहीं रहा. एक नए क़िस्म के सैन्य क़ब्ज़े की शुरुआत हुई. ग़ज़ा में इज़रायली बस्तियां बसाईं गईं. यहीं से शुरू होती है 'प्रतिरोध' की राजनीति. और, हमास जैसे संगठतन जन्मे. 1987 में पहला इंतिफ़ादा हुआ. इंतिफादा अरबी भाषा का एक शब्द है. इसका अर्थ होता है, झकझोडरना. फ़िलिस्तीन में शुरू हुए इंतिफ़ादा मूवमेंट का मकसद था, वेस्ट बैंक, ग़ज़ा और पूर्वी जेरुसलम को इज़रायली क़ब्ज़े से मुक्त करवाना. इसी इंतिफ़ादा के दौरान शेख अहमद यासीन ने हमास की स्थापना की. हमास का पूरा नाम है, हरक़त अल-मुक़ावमा अल-इस्लामिया. मतलब, इस्लामिक रेसिस्टेंस मूवमेंट. हमास को इज़रायल, अमेरिका, अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, ब्रिटेन, पराग्वे, यूरोपियन यूनियन, कनाडा, ईजिप्ट और जापान ने आतंकवादी संगठन घोषित किया हुआ है. बाकी दुनिया हमास को आतंकी संगठन नहीं मानती. इसमें भारत भी शामिल है. बहरहाल, हमास ने हथियारों के ज़रिए फिलिस्तीन को आज़ादी दिलाने की बात कही. हमास इज़रायली सेना, सेटलर्स और इज़रायली नागरिकों पर हमले करने के लिए कुख्यात हुआ.
2004 तक, लगभग सात हज़ार इज़रायली ग़ज़ा में रह रहे थे. तीन इलाकों में बंटे हुए: उत्तर का इलाका, नेज़ारिम, और सबसे बड़ा, क़तीफ़ ब्लॉक. इस क़तीफ़ ब्लॉक में 13 सेटलमेंट्स थे. इनके पूरब में एक पुराना सेटलमेंट था—मोराग. मोराग शब्द को याद रखिएगा. इसका ज़िक्र हम आगे करेंगे. ख़ैर, इन सेटलमेंट्स में रहने वाले लोग, वो लोग थे जिनके लिए ज़मीन, पैसा, बिजली, पानी और पूरी फौज तैनात की गई थी. फिर आया इज़रायल के पूर्व प्रधानमंत्री एरियल शैरोन का प्लान. 2004 का 'डिसएंगेजमेंट प्लान'. शैरोन, जो खुद सेटलमेंट्स के जनक माने जाते थे, उन्होंने कहा. अब समय आ गया है कि ग़ज़ा से सब हटाया जाए. सारे इज़रायली नागरिक, सारी बस्तियां, और फ़ौज. सब बाहर. सैनिक हटाए गए, इमारतें खाली की गईं, और धीरे-धीरे ग़ज़ा में इज़रायल की स्थायी मौजूदगी खत्म हो गई. सिवाय एक चीज़ के: फिलाडेल्फी कॉरिडोर. मिस्र और ग़ज़ा के बीच की सीमा पर इज़रायल की सेना आज भी मौजूद है. एक बफ़र, ज़ोन. इज़रायल ने साफ़ किया. हम अब कोई स्थायी बेस ग़ज़ा में नहीं रखेंगे. लेकिन एयरस्पेस हमारा रहेगा, कोस्टलाइन पर नज़र हमारी रहेगी, और जब ज़रूरत हो, तो हम मिलिटरी एक्शन भी करेंगे. ग़ज़ा अब हमारी अधिकृत ज़मीन नहीं है. लेकिन निगरानी से मुक्त भी नहीं.
मौजूदा भू-राजनीतिक स्थिति क्या है? इज़रायल पिछले सात दशक से एक मुल्क है. और उसके पूर्वी और दक्षिणी किनारे पर ज़मीन के दो टुकड़े हैं. इन्हें फ़िलिस्तीन टेरिटरिज़ कहते हैं. पूर्वी छोर पर वेस्ट बैंक और दक्षिण में ग़ज़ा पट्टी. हम इन्हें ज़मीन के दो टुकड़े इसलिए कह रहे हैं क्योंकि अभी इन्हें एक मुल्क का दर्ज़ा नहीं मिला.

वेस्ट बैंक पर फ़िलिस्तीन अथॉरिटी (PA) का शासन चलता है. उसमें फ़तह मूवमेंट का दबदबा रहा है. PA को फ़िलिस्तीन का आधिकारिक प्रतिनिधि माना जाता है. हालांकि, वेस्ट बैंक पर उनका फ़ुल कंट्रोल नहीं है. इज़रायल का असर बना रहता है. दूसरी टेरिटरी है, ग़ज़ा पट्टी. ये लगभग 41 किलोमीटर लंबा ज़मीन का टुकड़ा है. चौड़ाई 06 से 12 किलोमीटर के बीच है. इसकी पश्चिमी सीमा, भूमध्यसागर से मिलती है. दक्षिणी सीमा ईजिप्ट से. जबकि उत्तरी और पूर्वी सीमा इज़रायल से लगी है. जून 2007 से ग़ज़ा पट्टी का कंट्रोल हमास के पास है.
अब कहानी में सीधे 7 अक्टूबर, 2023 पर आ जाते हैं. इस दिन हमास और दूसरे फ़िलिस्तीनी गुटों ने इज़रायल पर आतंकी हमला किया. लड़ाके सीमा पार इज़रायली इलाक़े में दाख़िल हुए. इज़रायल में 1,200 से ज़्यादा लोग मारे गए. हमास, क़रीब 250 लोगों को बंधक बना कर ले गया. हमास के हमले के बाद इज़रायल ने ग़ज़ा में युद्ध का ए’लान कर दिया. 15 महीनों की लड़ाई के बाद 17 जनवरी, 2025 को दोनों पक्ष तीन चरणों में युद्धविराम लागू करने के लिए तैयार हुए थे. 19 जनवरी को पहला चरण शुरू हुआ. 1 मार्च को ख़त्म भी हो गया. लेकिन दूसरे चरण पर बात बन नहीं पाई. क्योंकि अगले चरणों पर बढ़ते हुए कुछ सवालों के जवाब ढूंढने थे जो दोनों ही पक्षों के लिए मुश्किल थे. इज़रायल बार-बार ये कहता रहा है कि वो हमास के ख़ात्मे के बग़ैर जंग ख़त्म नहीं करेगा. और, अगर ऐसा है तो ये सवाल पैदा होने ही थे कि जंग के बाद ग़ज़ा पर शासन कौन करेगा? हमास का क्या होगा? इजरायल के साथ ग़ज़ा का भविष्य का रिश्ता कैसा होगा? इसके लिए कोई स्पष्ट दृष्टिकोण मौजूद नहीं था.

युद्धविराम आगे नहीं बढ़ा और इज़रायल ने ग़ज़ा में पहुंचने वाली मानवीय मदद पर रोक लगा दी. खाने, पानी और ईंधन की किल्लत शुरू हुई. रमज़ान के महीने में इन बुनियादी ज़रूरतों का न होना और भी मुश्किलें पैदा करने लगा. 18 मार्च को इज़रायल ने युद्धविराम भंग कर दिया. फिर से हवाई हमले शुरू कर दिए. ग़ज़ा में अपनी सेना भी उतार दी. इज़रायली सेना का दावा है कि 18 मार्च के बाद से अब तक उसने सैकड़ों हमास लड़ाकों को मार गिराया है, जिनमें कई वरिष्ठ कमांडर भी शामिल हैं. लेकिन इन दावों के बीच हकीकत कुछ और भी है. ग़ज़ा के हेल्थ मिनिस्ट्री के मुताबिक़ 18 मार्च से अब तक 1600 से ज़्यादा लोग मारे जा चुके हैं. इस मिनिस्ट्री ने अब तक की जंग में 51,065 मौतों की पुष्टि की है. 1 लाख 16 हज़ार से अधिक घायल हैं. एक बात याद रखिए कि ये मिनिस्ट्री आम नागरिकों और हमास के लड़ाकों में फ़र्क़ नहीं करती. ग़ज़ा की सरकार के मीडिया ऑफ़िस का दावा है कि हकीकत इससे कहीं भयावह है. उसका कहना है कि 61,700 से ज़्यादा मौतें हो चुकी हैं, क्योंकि हज़ारों शव अब भी ढहे हुए मकानों के नीचे दबे हुए हैं. और वहां कोई पहुंच भी नहीं सकता. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, इसी बीच चार लाख से ज़्यादा फ़िलिस्तीनी एक बार फिर अपने घरों से बेघर हो चुके हैं. कई वो थे जो पहले ही दर-ब-दर थे. अब वो फिर से किसी कोने की तलाश में हैं, जहां कम से कम बम न गिरें. ग़ज़ा के अस्पताल अब सांस लेने को तरस रहे हैं. ऑपरेशन थियेटर ठप हैं. दवाएं खत्म हो चुकी हैं. जिन बच्चों को बचाया जा सकता था, उन्हें अब मरने के लिए छोड़ना पड़ रहा है. इसी बीच इज़रायली सेना ने ग़ज़ा में कॉरिडोर्स पर भी क़ब्ज़ा जमा लिया है. एक-एक कर के इन्हें जानते हैं.
पहला है, नेटज़रिम कॉरिडोर. 19 मार्च को इज़रायली सेना ने एलान किया हम सैनिकों को नेटज़रिम कॉरिडोर में भेज रहे हैं. इसके तहत हम उत्तरी और दक्षिणी ग़ज़ा के बीच बफ़र ज़ोन बनाएंगे. नेटज़रिम कॉरिडोर क्या है? नक़्शा देखिए. ये कॉरिडोर ग़ज़ा के उत्तरी एक तिहाई भाग को दक्षिणी भाग से अलग करता है. दो हिस्सों में. ऊपर वाला हिस्सा उत्तरी ग़ज़ा हुआ. और, नीचे वाला दक्षिणी ग़ज़ा.

ये कॉरिडोर पूरब में इज़रायल की सीमा से शुरू होता है. और, पश्चिम में भूमध्यसागर से जाकर मिलता है. लगभग 6 किलोमीटर चौड़ा है. 7 अक्तूबर, 2023 को हमास का हमला हुआ. 27 अक्तूबर, 2023 को इज़रायल ने अपनी पहली ज़मीनी कार्रवाई शुरू की. इस दौरान सबसे पहले ऑपरेशंस में से एक था नेटज़रिम कॉरिडोर पर क़ब्ज़ा करना. जब तक ग़ज़ा में जंग चल रही थी. इज़रायली सैनिकों ने इस रोड पर घेराबंदी कर रखी थी. अपने मिलिट्री बेस बना रखे थे. इसके इर्द-गिर्द कई मील तक बिल्डिंग्स गिरा दी थीं. ज़मीन को समतल कर दिया था. इससे उनको दूर तक साफ़-साफ़ दिखता था. कई दफ़े ऐसी ख़बरें भी आईं की इन मिलिट्री पोस्ट से आर-पार गुज़रने वालों पर इज़रायल ने हमला भी किया. 15 महीने तक यह सब कुछ चला. फिर, जनवरी, 2025 में आप जानते हैं युद्धविराम लागू हुआ. तब जाकर इज़रायली सेना धीरे-धीरे इस कॉरिडोर से पीछे हटी थी. दक्षिणी ग़ज़ा में विस्थापित हो चुके लोग उत्तर की तरफ़ वापस लौटे थे. बेहद मार्मिक तस्वीरें आईं. दुनिया ने देखा. लोग अपने घरों की ओर लौटे. जो टूट चुके थे. उनकी जगह महज़ मलबे रह गए थे. लोगों ने तम्बू लगाकर रहना शुरू किया.
इस कॉरिडोर पर क़ब्ज़ा क्यों अहम है? पहला, इससे फ़िलिस्तीनियों को ग़ज़ा के दोनों हिस्सों में आवाजाही कंट्रोल की जा सकती है. क्योंकि इसी कॉरिडोर को काटती हुई दो अहम सड़कें गुज़रती हैं, जिनसे दोनों तरफ़ आवाजाही संभव है. इज़रायल का कहना है कि अगर आवाजाही की खुली छूट दी गई तो इस आड़ में हमास एकजुट हो सकता है. दूसरा, सैनिकों की कार्रवाई के लिए के लिए भी आसानी मिलती है. क्योंकि दोनों तरफ़ तेज़ी से पहुंच बनाई जा सकती है. तीसरा, मानवीय मदद को भी कंट्रोल किया जा सकता है. और, आप जानते ही हैं, ये ग़ज़ा के लोगों के लिए कितना अहम है. चौथा, जब भी युद्धविराम की बातचीत आती है. तो दो कॉरिडोर्स को लेकर बात ज़रूर होती है. एक तो नेटज़रिम कॉरिडोर.
दूसरा है, फ़िलाडेल्फ़ी कॉरिडोर. ये 14 किलोमीटर लंबा और 100 मीटर चौड़ा बफर ज़ोन है. ईजिप्ट और ग़ज़ा की सीमा पर बना हुआ है. ये ईजिप्ट और ग़ज़ा को जोड़ने वाली एक मात्र क्रोसिंग है. 1979 में इज़रायल और ईजिप्ट ने शांति समझौते के तहत इसे बनाया था. उस समय ग़ज़ा, ईजिप्ट के रूल से बाहर ही निकला था. तब ईजिप्ट के लोग इसे सलाहुद्दीन कॉरिडोर कहा करते थे. सलाहुद्दीन, ईजिप्ट के बादशाह थे.

1979 में जब ये बनाया गया तो इज़रायली सैनिकों की टुकड़ी यहां तैनात रहती थी. यहां इज़रायल ने कई अवैध बस्तियां भी बनाई थीं. पर इज़रायल 2005 में इस क़ब्ज़े को छोड़कर चला गया था. फिर 2007 में हमास का पूरे ग़ज़ा में नियंत्रण हो गया. उसके बाद से ये कॉरिडोर गाज़ा के नियंत्रण में आ गया था. कहा जाता है कि हमास ने इस कॉरिडोर के नीचे कई सुरंगे बना रखी हैं. जो ईजिप्ट और ग़ज़ा को जोड़ती हैं. इज़रायल कहता है कि जंग के बाद हमास इन सुरंगों का इस्तेमाल हथियार खरीदने के लिए कर सकता है. जनवरी वाले युद्धविराम समझौते के तहत इज़रायल को इस कॉरिडोर से हटना था. लेकिन इज़रायल ने हमास पर नज़र बनाए रखने का हवाला देकर अपनी मौजूदगी बनाए रखी.
अब तक तो इन्हीं दो कॉरिडोर्स की बात होती थी. लेकिन 2 अप्रैल को बेंजामिन नेतन्याहू ने एक एलान किया. एक नए कॉरिडोर की बात शुरू हुई. नेतन्याहू के एलान के बाद 12 अप्रैल को इज़रायल सेना ने कहा कि उसने ग़ज़ा के दक्षिणी हिस्से में एक नया सुरक्षा कॉरिडोर तैयार कर लिया है. इसे कहा गया. मोराग एक्सिस.

मोराग शब्द का ज़िक्र हमने पहले किया था. मोराग पहले इज़रायल का एक सेटलमेंट हुआ करता था. मोराग कॉरिडोर रफ़ा और ख़ान यूनुस के बीच ग़ज़ा को काटता है, और सीधे मिस्र की सीमा से लगे फिलाडेल्फ़ी रूट से जुड़ जाता है. इस कॉरिडोर के ज़रिए इज़रायल अब रफ़ा शहर को भी बाकी ग़ज़ा से अलग करने की तैयारी में है. यानी, हर बड़ा शहर. ग़ज़ा सिटी, ख़ान यूनुस, रफ़ा. अब धीरे-धीरे टुकड़ों में बांटा जा रहा है. और इन टुकड़ों के बीच फैला है एक ‘क्लियर ज़ोन’. यानी, वो ज़मीन जहां न घर बचे हैं, न खेत, न लोग. अब ग़ज़ा के भीतर तीन प्रमुख कॉरिडोर बन चुके हैं. तीनों एक-दूसरे से कनेक्टेड हैं. और, इनके साथ-साथ जो बफर ज़ोन बनाया गया है. अगर सब मिला दें तो 50% से ज़्यादा ग़ज़ा की ज़मीन इज़रायली सैन्य नियंत्रण में आ चुकी है. एक इज़रायली सैनिकों की संस्था "ब्रेकिंग द साइलेंस" की रिपोर्ट कहती है कि युद्ध के पहले चरण में सेना ने सीमा से लगे फ़िलिस्तीनी गांवों को खाली कराया. ज़मीन को समतल किया गया. मकानों को उड़ाया गया. एक किलोमीटर गहरा बफर ज़ोन बनाया गया. लेकिन जब मार्च में जंग फिर शुरू हुई. इस बफर को दुगुना कर दिया गया. कुछ इलाकों में ये अब 3 किलोमीटर तक फैला है.

इस ज़ोन के भीतर क्या हुआ, उसका ज़िक्र रिपोर्ट में दिल दहला देने वाला है. रिपोर्ट के मुताबिक़ सैनिकों को आदेश दिया गया था कि वे पूरे इलाक़े को सुनियोजित ढंग से साफ़ कर दें. मकान, स्कूल, मस्जिदें, अस्पताल, सबके लिए एक ही आदेश मिला: मिटा दो. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि इज़रायल की योजना क्या है? वो कॉरिडोर्स और बफ़र ज़ोन बढाकर क्या हासिल करना चाहता है? ज़मीनी हकीकत अब ये है कि ग़ज़ा का एक बड़ा हिस्सा IDF के स्थायी सैन्य नियंत्रण में तब्दील हो चुका है. और, इसमें कोई बदलाव आने की संभावना भी 16 अप्रैल को खत्म हुई.
इस दिन इज़रायली रक्षा मंत्री इज़रायल काट्ज़ ने एक्स पर पोस्ट किया. उन्होंने इस बयान में इज़रायल के मक़सदों को बहुत स्पष्ट और सीधी भाषा में रखा. पहला, मानवीय सहायता को रोका जाएगा, ताकि हमास की जनता पर पकड़ कमजोर हो. दूसरा, हमास के आतंकियों और उनके ठिकानों पर लगातार हमले जारी रहेंगे. और, इन इलाकों को सेक्यूरिटी ज़ोन में शामिल किया जाएगा. तीसरा, लड़ाई के इलाकों से जनता को निकाला जाएगा, और हवाई ज़मीनी, और समुद्र के रस्ते ज़बरदस्त बमबारी की जाएगी. चौथा, ग़ज़ा के नागरिकों के लिए 'स्वैच्छिक विस्थापन' योजना को आगे बढ़ाया जा रहा है. वही ट्रंप का प्लान.
लेकिन इन सबमें सबसे अहम बात थी–पांचवीं बात. काट्ज़ ने कहा कि IDF अब कब्ज़ा किए गए इलाकों को खाली नहीं करेगा. बल्कि वहां स्थायी रूप से रहेगा, जैसे लेबनान और सीरिया में करता है.
ऐसे में इज़रायल और हमास के बीच युद्धविराम की बची खुची संभावना पर भी सवाल उठने लगे हैं. पेच फंसता चला जा रहा है. इज़रायल को हमास का खात्मा चाहिए. और हमास को चाहिए कि इज़रायल पीछे हटे. दोनों अपनी ज़िद पर अड़े हैं. और, नुक़सान हो रहा है आम नागरिकों का.
वीडियो: दुनियादारी: गजा पर कब्जे को लेकर इज़रायल का अगला प्लान क्या है?