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इस द्वीप पर कौन इतनी डॉल्स लटका गया? हजारों डरवानी गुड़ियों वाले द्वीप की कहानी

मैक्सिको (Mexico) में स्थित है एक आइलैंड होचिमोको (Xochimilco island). जहां हजारों गुड़ियों (Dolls) की बसाहट है. जानते हैं कौन ले आया इन गुड़ियों को यहां? कैसे बना ये गुड़ियों का द्वीप?History of Island of Dead Dolls.

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इस द्वीप के पीछे एक लंबी कहानी है | फोटो: इंडियाटुडे

ऊपर स्क्रीन पर दिख रही तस्वीर देखिए. गुड़िया का चेहरा धीरे-धीरे एक बच्चे के चेहरे में तब्दील हो रहा है. पहचानना आसान है- सबसे लेफ्ट में गुड़िया का चेहरा. और सबसे राइट में बच्चे का. लेकिन क्या आप ये बता सकते कि इस श्रेणी में इक्जैकटली वो कौन सा बिंदु है, जहां गुड़िया का चेहरा बच्चे में तब्दील हो गया है? इस सवाल पर सोचिएगा, अभी के लिए चलते हैं मेक्सिको. अमेरिका का पड़ोसी देश. जहां झील के बीचों बीच बना है एक द्वीप. इस द्वीप पर कोई इंसान नहीं रहता. रहती हैं डॉल्स यानी बहुत साड़ी गुड़ियां. वो भी हजारों की संख्या में, पेड़ों पर लटकी हुईं. इन्हें देखकर जो अहसास होता है- उसके लिए अंग्रेज़ी में दो शब्द हैं - creepy और spooky (Mexico Xochimilco Island of dolls).

कहां से आईं ये डॉल्स? किसने यहां लटकाया और क्यों? 

अमेरिका के नक्शे को देखें तो दक्षिण भाग में मिलेगा एक देश मैक्सिको. वैसे तो मैक्सिको की जब बात आती है, ड्रग्स और नार्कोस याद आते हैं. लेकिन इसी मैक्सिको में कई प्राचीन सभ्यताएं फली फूलीं. जैसे माया सभ्यता का उदय इसी इलाके में हुआ हो. मेक्सिको की राजधानी है मैक्सिको सिटी. हमारी आज की कहानी मेक्सिको सिटी के दक्षिण मध्य भाग में स्थित एक शहर से ताल्लुक रखती है. इस शहर का नाम है- होचिमोको. होचिमोको कृषि प्रधान इलाका है.

मुख्यतः यहां लाल मिर्च, मक्के और टमाटर की खेती होती है. लम्बे समय तक इस इलाके में खेती के जिस तरीके का इस्तेमाल किया जाता था - उसे कहते हैं चिनाम्पा. इस तरीके का ईजाद माया और एज़्टेक सभ्यता के लोगों ने किया था. इसमें किसी झील या नहर की दलदली जमीन को खेती के लिए इस्तेमाल किया जाता था. ताकि जमीन की नमी बनी रह सके. होचिमोको में ऐसी बहुत सी झीलें और नहरें हैं. जिन्हें एज़्टेक सभ्यता के लोगों ने बनाया था. इनके बीचों बीच बने चिनाम्पा अब टापू का रूप ले चुके हैं.

स्पेन के आक्रमण से शुरू हुई कहानी 

लम्बे समय तक चिनाम्पा मेक्सिको में खेती का मुख्य तरीका हुआ करते थे. फिर सब कुछ बदल गया जब 14वीं शताब्दी में स्पेन ने मेक्सिको पर आक्रमण किया. मेक्सिको में तब एज़्टेक सभ्यता के लोगों का राज था. स्पेन के राजा ने हर्नांडो कोर्टेज नाम के शख्स को मेक्सिको जीतने की जिम्मेदारी सौंपी. कोर्टेज ने एक नायाब तरीका अपनाया. दरअसल एज़्टेक सभ्यता के लोग एक भविष्यवाणी पर यकीन करते थे. जिसके अनुसार पूर्व से एक शख्स आकर उनका उद्धार करेगा, जिसका रंग गोरा होगा. कोर्टेज ने इसी मान्यता का फायदा उठाया. और एक एज़्टेक कबीले से दोस्ती कर ली. इसके बाद उसने उनका फायदा उठाकर बाकी कबीलों को दबाना शुरू किया. जब एज़्टेक लोगों को उस पर शक हुआ. तो कोर्टेज ने उनके सरदार को बंदी बना लिया. और बहुत सा पैसा लेकर भाग निकला. इसके बाद वो स्पेन का जंगी बेड़ा लेकर लौटा. और धीरे धीरे पूरे एज्टेक इलाके पर कब्ज़ा कर लिया. लाखों लोग इस मुहिम में मार डाले गए. उन्हें ईसाई धर्म कबूल करने पर मजबूर किया गया. बचने के लिए लोगों ने भागकर दूसरे इलाकों में शरण ली. इनमें से एक होचिमोको के वो टापू थे. जिन्हें खेती के लिए इस्तेमाल किया जाता था. 

हर्नांडो कोर्टेज जिसे स्पेन के राजा ने मेक्सिको जीतने की जिम्मेदारी सौंपी

समय बदला. 17वीं सदी में स्पेन की मैक्सिको से रुखसती हुई. फिर अमेरिका और मेक्सिको के बीच युद्ध शुरू हो गया. मेक्सिको का एक बड़ा हिस्सा अमेरिका के हिस्से चला गया. मैक्सिको के बचे-खुचे भू-भाग को तमाम संघर्ष के बाद 1917 में अपना संविधान मिला. मेक्सिको आजाद हुआ. लेकिन होचिमोको जैसे इलाके बर्बाद हो गए. खेती के पुराने तरीके नष्ट हो चुके थे. लिहाजा होचिमोको के द्वीप वीरान पड़ गए. जो लोग जान बचाकर यहां आए थे, मेक्सिको की आजादी के बाद वे भी इन्हें छोड़कर चले गए. ये इलाका गुमनामी में खो गया.

फिर 21 वीं सदी में ये इलाका ख़बरों में आया. 2003 में होचिमोको के द्वीपों को टूरिज्म के लिए खोल दिया गया. तब जो लोग यहां पहुंचे. उन्हें एक अजीब नजारा दिखाई दिया. पूरे आइलैंड में हजारों गुड़ियां रखी हुई थीं. कुछ जमीन पर कुछ पेड़ों से लटकी हुईं.

ये गुड़ियां आईं कहां से? 

ठीक-ठीक साल तो नहीं पता, लेकिन कहानी कुछ यूं है कि 20 वीं सदी में जूलियन नाम का एक शख्स इस आइलैंड में आया. पूरा नाम डॉन जूलियन सेंटाना बरेरा. जूलियन यहां क्यों आया, ये भी साफ नहीं है. मान्यताएं कहती हैं कि उसका दिमागी संतुलन ठीक नहीं था. हालांकि संभव है कि किसी दूसरी वजह से यहां आया हो. वजह जो भी रही हो, जूलियन अपना परिवार और काम धंधा छोड़कर द्वीप पर बस गया. यहीं खेती कर उसने अपना गुजारा चलाया. फिर एक रोज उसके साथ एक घटना हुई.

एक रोज जूलियन जब आराम कर रहा था. उसे एक लड़की की आवाज सुनाई दी. जाकर देखा तो लड़की पानी में डूब रही थी. जूलियन ने उसे पानी से बाहर निकाला. वो बार-बार कुछ बड़बड़ा रही थी. जूलियन को और कुछ तो समझ नहीं आया. लेकिन उसके अनुसार वो बार बार गुड़िया-गुड़िया कह रही थी. कुछ देर बाद उस लड़की की मौत हो गई. और जूलियन ने उसे वहीं द्वीप पर दफना दिया. 

डॉन जूलियन सेंटाना बरेरा जिसने आईलैंड ऑफ डॉल बनाया

आगे कहानी कहती है कि कुछ दिन बाद जूलियन को पानी के किनारे एक डॉल दिखाई दी. उसे याद आया कि डूबने वाली लड़की किसी गुड़िया की बात कह रही थी. उस बच्ची को न बचा पाने का गिल्ट जूलियन के मन में था. इसलिए उसने उसकी याद में गुड़िया को अपने पास रख लिया. और फिर कुछ रोज़ बाद उसे एक पेड़ पर टांग दिया.

आगे आने वाले दिन जूलियन के लिए और मुश्किल होने वाले थे. बच्ची की मौत का सदमा रह रह कर जूलियन पर हावी होता गया. नतीजतन उसे लड़की की परछाई और आवाजें सुनाई देने लगीं. उसकी फसल खराब होने लगी. इस समस्या से निजात पाने के लिए जूलियन ने एक तरीका निकाला. उसने टापू पर डॉल्स को इकठ्ठा करना शुरू कर दिया. उसे लगा ऐसा करके लड़की की आत्मा को शांति मिलेगी. वो रोज़ झील के किनारे जाता और गुड़िया ढूंढता. ये कवायद कई साल यूं ही चलती रही. इस दौरान जूलियन ने बहुत सी डॉल्स इकठ्ठा कर लीं. और पूरे आइलैंड को गुड़ियों से भर दिया. पेड़ पर लटकी, तारों से झूलती डॉल्स. जिन्हें देखना एक डरावना एहसास देता है.

एक दिलचस्प बात ये कि यूं तो गुड़िया बच्चों के खेलने की चीज है. लेकिन इन्हें हॉरर से जोड़कर भी देखा जाता रहा है. इसी कारण गुड़ियों पर आधारित सैकड़ों हॉरर फ़िल्में बनती हैं. बॉलीवुड की बात करें तो पापी गुड़िया, तातिया बिच्छू जैसे भूतिया खिलौने से हम सब रूबरू हैं. 

गुड़िया डरावनी क्यों लगती है?

अमेरिकी न्यूरो साइंटिस्ट थालिया व्हीट्ली के अनुसार, इसके पीछे एक दिलचस्प कारण है. दरअसल हमारा दिमाग चेहरे पहचाने में माहिर है. नाम हम चाहें याद न रख पाएं, चेहरे पहचानने में मानव मस्तिष्क का कोई जवाब नहीं है. यहां तक कि कंप्यूटर, जो हमसे ज्यादा जानकारी याद रख सकता है, बड़े-बड़े कॅल्क्युलेशन कर सकता है, वो भी चेहरों में अंतर कर पाने के मामले में इंसानी दिमाग से काफी पीछे है. चूंकि हम चेहरा पहचानने में माहिर हैं, इसलिए आलू से लेकर बादल तक में हम चेहरा बनता हुए देख लेते हैं. हालांकि इसी के चलते कुछ चेहरे हमें असहज कर देते हैं. मसलन गुड़िया का चेहरा इंसानी बच्चे जैसा दिखाई देता है. हम जानते हैं कि वो जिंदा नहीं है. लेकिन गुड़िया की मुस्कान असली लगती है. आंखें देखकर लग सकता है कि निहार रही है. इसी कन्फ्यूजन के चलते डर का अहसास पैदा होता है. विज्ञान की भाषा में इस डर को पीडोफोबिया कहते हैं.

मैक्सिको के आईलैंड ऑफ डॉल का सूरत-ए-हाल

ये फीलिंग आपको आइलैंड ऑफ डॉल्स की तस्वीरों को देखकर भी महसूस होगी. ये आइलैंड पहली बार 1990 के दशक में चर्चा में आया. जब डॉन जूलियन पर बनी एक डॉक्यूमेंट्री टेलीविजन पर प्रसारित हुई. ये पहला मौका था जब लोगों ने डॉल्स वाले आइलैंड के बारे में सुना. शुरुआत में तो इस पर खूब चर्चा हुई, लेकिन चूंकि ये सोशल मीडिया का दौर नहीं था. इसलिए कुछ समय बाद सब इसे भूल गए.

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ये आइलैंड दोबारा चर्चा में आया साल 2000 में. जूलियन की मौत के बाद. लोगों ने बताया कि जूलियन की मौत हार्ट अटैक से हुई. ठीक उसी जगह जहां जूलियन दावा करता था कि उसे वो बच्ची मिली थी. इस कहानी के सामने आने के बाद आइलैंड का नाम ही पड़ गया - ‘आइलैंड ऑफ डॉल्स’.

जूलियन अब नहीं है. लेकिन हजारों लोग हर साल इस आइलैंड पर डॉल्स को देखने आते हैं. 30 -40 साल पुरानी डॉल्स पूरे आइलैंड में फ़ैली हुई हैं. इतना ही नहीं, टूरिस्ट यहां जूलियन की याद में नई डॉल्स लाते रहते हैं. जिसके चलते आइलैंड पर गुड़ियों की तादाद बढ़ती जा रही है. अनुमान के अनुसार यहां 4 हजार के अधिक डॉल्स हैं, जो पेड़ों और लकड़ी से बनी दीवारों पर टंगी रहती हैं. ज्यादातर मिट्टी से सनी और क्षत-विक्षत अवस्था में हैं. इनमें वो डॉल्स भी शामिल हैं, जिनसे इस कहानी की शुरुआत हुई थी. मतलब जूलियन द्वारा लाई गई वो पहली डॉल जो एक बच्ची की थी.

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