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क्या ध्रुव तारा मर चुका है? जिसे हम देखते हैं, असल में वो अब नहीं है?

तारे हर समय मरते हैं. तारों का मरना कोई नई बात नहीं है. मामला फंसता जब हम ये मालूम चले कि अमुक तारा हमसे कितनी दूर है, उसकी मौत की खबर हम तक कब आएगी.

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सुपरनोवा खोजने वाले ऑस्ट्रेलिया के रॉबर्ट इवांस. (तस्वीर: astronomyhouston.org)

सूरज से धरती तक रोशनी पहुंचने में लगभग 8 मिनट 20 सेकंड लगते हैं. सिर्फ 8 मिनट 20 सेकंड. क्योंकि सूरज हमारी धरती से करीब 15 करोड़ किलोमीटर दूर है और लाइट 15 करोड़ किलोमीटर की दूरी को मात्र 8 मिनट में तय कर लेती है. ये तो चलिए सूरज की बात हुई. मालूम है, सूरज के बाद धरती के सबसे पास जो तारा (closest star to earth) है, वो कितना दूर है? करीब 4 लाइट ईयर या प्रकाश वर्ष दूर. सुनने में ये कम लग सकता है, लेकिन इतनी दूरी तय करने में…

‘भागम भाग’ का एक सीन. (फ़ोटो - यूट्यूब स्क्रीनश़ॉट)

‘भागम-भाग’ फिल्म के ‘सेठ जी’ की बेटी की पोती की शादी का तो पता नहीं. लेकिन लाइट को भी चार प्रकाश वर्ष की दूरी चलने में चार साल लग जाते हैं. वो भी तब, जब लाइट करीब 3 लाख किलोमीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से चलती है. माने 3 लाख किलोमीटर की दूरी महज 1 सेकेंड में.

अच्छा, आपने सुबह और शाम वाला ध्रुव तारा देखा है? जगमगाता प्यारा ध्रुव तारा. आपको पता है, ध्रुव तारे से धरती तक लाइट आने में समय कितना लगता है? करीब 430 साल क्योंकि ये हमसे करीब 430 लाइट ईयर दूर है या एक नई रिसर्च की मानें तो 324 लाइट ईयर. सुविधा के लिए 430 मान कर चलते हैं. क्या ऐसा मुमकिन है कि ये तारा 200-300 साल पहले मर चुका हो और हमें अब तक पता ही न चला हो? क्योंकि लाइट को इस तारे से हम तक आने में इससे ज्यादा टाइम लगता है. आखिर क्या है तारों के मरने की कहानी? और ये रात के आसमान में कैसे दिखाई देते हैं? ये सब समझने से पहले हल्के में लाइट ईयर को समझ लेते हैं.

ये लाइट ईयर क्या बला है?

चूंकि लाइट ईयर में लाइट है, तो ऐसा लग सकता है कि इसका टाइम से लेना-देना होगा. लेकिन असल में इसे दूरी नापने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. बेहद लंबी दूरी. 

लाइट ईयर का सीधा मतलब कि अगर लाइट की स्पीड से एक साल तक चलते रहें, तो कितनी दूर निकल जाएंगे. कितनी दूर? 9.46 ट्रिलियन किलोमीटर अर्थात 9.46 लाख करोड़ किलोमीटर.

दरअसल, एक लाइट डे या एक दिन में लाइट जितनी दूरी तय करती है, उतने में हमारा पूरा सौर्य मंडल (solar system) नप जाए. तुलना के लिए बता दें, 1977 में अंतरराष्ट्रीय स्पेस एजेंसी NASA ने वॉयजर-1 नाम का एक स्पेस-क्राफ्ट भेजा था. इसे सौर्य मंडल के छोर (Interstellar space) तक जाना था. इसको ऐसा करने में 35 से भी ज्यादा साल लगे. वो 2012 में जाकर पहुंचा. स्पेस क्राफ्ट के बजाय लाइट को कहा जाता, तो वो एक दिन से भी कम समय में पहुंच जाती है. अब आप को अंदाजा हो गया होगा कि लाइट ईयर कितना दूर होता होगा.

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2012 में इंटरस्टेलर स्पेस पहुंचने के बाद वॉयजर-1 (सांकेतिक तस्वीर, फिल्म: फिर हेरा फेरी)
सुपरनोवा क्या चीज है?

अमेरिकी ऐस्ट्रो-फिजिसिस्ट या अंतरिक्ष मामलों के जानकार नील डिग्रास टायसन बताते हैं कि हर तारे की अपनी उम्र होती है. कुछ तारे ज्यादा जीते हैं, कुछ कम. जो हमारे सूरज से बड़े तारे होते हैं, वो एक समय आने पर अपने ही भार से खुद में समा जाते हैं. या कहें ‘फट’ जाते हैं. इस विस्फोट से अरबों सूरजों के बराबर की ऊर्जा निकलती है. इतनी कि अरबों-खरबों हाइड्रोजन बम बन जाएं.

जब ऐसा होता है, तब वो तारा आखिरी बार तेज रोशनी के साथ जलता है. अपनी आकाशगंगा की तुलना में बाकी तारों से तेज रोशनी से. जैसे दिया बुझने से पहले फड़फड़ाता है, वैसा कुछ. इसको वैज्ञानिक लोग सुपरनोवा (supernova) कहते हैं. 

हालांकि, दिया की रोशनी के मानिंद सुपरनोवा देखना इतना आसान नहीं. इसके लिए हजारों आकाशगंगा (milky way) में तारों के पैटर्न पर नजर रखनी पड़ती है. पता नहीं कब कौन सा तारा ‘टें’ बोल जाए. इसके लिए बड़े टेलिस्कोप्स और कंप्यूटर की मदद से आसमान के तारों में होने वाले बदलावों पर लगातार नजर रखी जाती है. लेकिन एक आदमी ऐसा भी था, जो अपने घर के पिछवाड़े से ही ऐसा कर लेता था. वो भी बिना ज्यादा तामझाम के.

तस्वीर: तारक मेहता का उल्टा चश्मा (सोनी सब)
मुर्दा तारे खोजने वाला पादरी

अमेरिकी पत्रकार और लेखक बिल ब्रायसन ने अपनी किताब ‘अ शॉर्ट हिस्ट्री ऑफ नियरली एवरीथिंग’ (A short history of nearly everything) में एक दिलचस्प किस्सा लिखा है. लिखा है कि ऑस्ट्रेलिया के रॉबर्ट इवांस (Robert Evans) दिन में तो चर्च में पादरी थे, और इतिहास में रिसर्च का काम करते थे. वहीं रात में अपने घर के पीछे बैठकर सुपरनोवा खोजते थे. और ऐसा खोजा कि रिकॉर्ड  ही बना डाला. कुल 42 सुपरनोवा खोजे बंदे ने. वो भी बिना किसी हाइटेक लैब के. बस मामूली से टेलीस्कोप भर से. जो उनके घर के पिछवाड़े में पाया जाता था. 

ये कितना गज्जब काम है. ये समझाने के लिए एक उदाहरण. फर्ज कीजिए एक टेबल है, जिस पर एक काला कपड़ा डाला गया है. अब इस कपड़े पर मुट्ठी भर नमक डाल दीजिए. ये हो गई एक आकाशगंगा, या गैलेक्सी (galaxy). अब ऐसे पंद्रह सौ टेबल और सोचिए. ये हो गईं और दूसरी गैलेक्सियां. अब मान लीजिए कोई आकर नमक का एक दाना किसी एक टेबल में एक्सट्रा रख जाए. तो रॉबर्ट इवांस इस एक दाने को पहचान लेंगे. (क्यााााा!?) यही नमक का एक दाना हुआ सुपरनोवा.

NASA के हबल टेलीस्कोप ने एक सुपरनोवा का वीडियो रिकॉर्ड किया था. नीचे उसका वीडियो टांक दिया है. 

क्या ध्रुव तारा ‘टें’ बोल गया है?

बिल ब्रायसन ने अपनी किताब में ध्रुव तारे (North Star/Polar star) के बारे मेें भी एक दिलचस्प बात लिखी है. वो बताते हैं कि हम इस बारे में श्योर नहीं हो सकते कि नॉर्थ स्टार अभी है या निपट गया है. हो सकता है, वो पिछली जनवरी में बुझ गया हो. या हो सकता है, 1884 में ही. बस इसकी खबर हम तक अभी आई नहीं है.

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एक चीज जिसके बारे में हम एकदम श्योर हो सकते हैं, वो ये कि 680 साल पहले ये जल रहा था… पूरा-पूरा 'जिंदा' था. कैसे पता? हमने आपको बताया ही कि ध्रुव तारा हमसे करीब 430 लाइट ईयर दूर है. यानी 430 सालों में इसकी लाइट धरती तक पहुंचती है. मतलब अगर 200 साल पहले इस तारे की ज्योती बुझ गई होगी, तो 230 साल बाद हमें इस बारे में मालूम चलेगा. ऐसा हुआ है या नहीं, मालूम नहीं. लेकिन बिल का लिखा मानें, तो ऐसा हो सकता है.

हालांकि एक्सपर्ट्स के मुताबिक इसके चांस कम हैं. ये काफी रेयर है. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि जितने तारे हमें रात में दिखाई देते हैं, वो सब जिंदा हों. ये बिल्कुल मुमकिन है कि आज दिखाई देने वाला कोई तारा काफी पहले खत्म हो चुका हो.