प्रेमचंद की 300+ कहानियों का संग्रह पहली बार अंग्रेजी में प्रस्तुत किया जा रहा है. इसे पब्लिश कर रहा है पेंगुइन रैंडमहाउस. इसका नाम है प्रेमचंद – दी कंप्लीट शॉर्ट स्टोरीज. इसे ‘संपूर्ण कहानी संग्रह’ इसलिए कहा जा रहा है क्यूंकि इसमें प्रेमचंद की सारी कहानियों को ‘अंडर वन अम्ब्रेला’ लाया गया है. हिंदी और उर्दू दोनों ही भाषाओं में लिखीं कहानियों को. इस संग्रह की सबसे ख़ास बात ये है कि कुछ कहानियों को अन्य कहीं भी पढ़ पाना बहुत मुश्किल है, और कुछ कहानियां तो ऐसी भी हैं जो कहीं और अनुपलब्ध है – अंग्रेजी में ही नहीं हिंदी और उर्दू में भी. इस संग्रह के संपादक और इसकी कई कहानियों के अनुवादक एम. असदुद्दीन से दी लल्लनटॉप में बात की. उन्होंने इन किताबों के संग्रह (जिसमें कुल चार किताबें हैं) के बारे में तो बात कीं हीं, साथ ही अपने अन्य कार्यों के विषय में भी कई रोचक जानकारियां दीं. आइए जानते हैं, क्या बातें कहीं और क्या जानकारियां दीं:
'उर्दू में जो पात्र हज करने जाते हैं, हिंदी संस्करण में वही चार धाम की यात्रा करते हैं'
'प्रेमचंद – दी कंप्लीट शॉर्ट स्टोरीज' के संपादक एम. असदुद्दीन का इंटरव्यू.
# इसका आइडिया कैसे आया, कैसे टीम बनी, क्या क्या कठिनाईयों का सामना करना पड़ा?
प्रेमचंद की कहानियों का अनुवाद जामिया मिल्लिया इस्लामिया में एक परियोजना के तहत कार्यशाला से शुरू हुआ था, जिसके तहत साल में एक बार एक कार्यशाला का आयोजन किया जाता था. इन कार्यशालाओं में भाग लेने वाले अनुवादक जामिया सहित देश के शीर्ष विश्वविद्यालयों के विद्यार्थी, अध्यापक और विद्वान होते थे. प्रारंभ में समस्या यह हुई कि प्रेमचंद की कहानियों का कालक्रमानुसार सुनियोजित दस्तावेज उपलब्ध नहीं था, इसलिए सबसे पहले विश्वसनीय स्रोतों से दस्तावेज प्राप्त कर इनका काल क्रम बनाना पड़ा. यहां भी एक प्रश्न था कि इनको काल क्रम के अनुसार संजोया जाए या प्रसंग के अनुरूप. लेकिन व्यापक चिंतन-विमर्श के बाद तय किया गया कि इन कहानियों को काल क्रम के अनुरूप संयोजित किया जाना उचित होगा ताकि लेखक के साहित्यिक उद्विकास को भी समझा जा सके.
# टीम, पेंगुइन पब्लिकेशन, मुखपृष्ठ, रंग संयोजन आदि के विषय में बताएं?
पेंगुइन रैंडमहाउस ने शुरु से इस संकलन में खास दिलचस्पी दिखाई. और अपने कॉपी संपादको के एक टीम को इस कार्य में लगा दिया. इसके डिज़ाइन, कवर पेज आदि, सब उन्हीं के ग्राफ़िक्स वालों ने किया है.
# क्या कभी लगा की ये नहीं हो पायेगा, उसके बाद क्या किया?
एक बार ऐसी स्थिति बनी जब हमें अनुवादक नहीं मिल रहे थे, हालांकि तब तक कुछ कहानियों का अनुवाद हो चुका था. वहीं जिन लोगों ने अनुवाद किया था वे चाहते थे संकलन शीघ्र प्रकाशित हो जाए. उनसे शेष अनुवाद करने का अनुरोध करने पर उनका जवाब होता था कि आप छापते तो हैं नहीं, अनुवाद करके क्या फायदा? इसलिए हमने दो उपाय किए पहला यह कि हमारे जो अनुवादक मित्र और छात्र थे उनको इस काम के लिए कहा गया. और दूसरा यह कि मैंने स्वयं अधिक से अधिक कहानियों को अनूदित किया. इस तरह से सभी कहानियों का अनुवाद संग्रह तैयार हो सका.
# प्रेमचंद ही क्यूं?
प्रेमचंद का चयन इसलिए किया गया क्योंकि वह एक ऐसे अद्वितीय लेखक हैं जो हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं और उनकी साहित्यिक परंपरा पर समान अधिकार रखते हैं. उन्होंने दोनों भाषाओं की कहानियों और उपन्यास को तिलिस्मी परिवेश से निजात दिलाकार उसे यथार्थवाद के प्रारूप में ढाला. उन्ही के लेखन में पहली बार दैनिक जीवन और साधारण पात्रों का चित्रण देखने को मिला. हम आज के संदर्भ को देखें तो भी प्रेमचंद बहुत प्रासंगिक नज़र आते हैं. आजकल जो भारत की अवधारणा को लेकर विमर्श हो रहा है उसका सही जवाब हमें प्रेमचंद के साहित्य में मिलता है. उन्होंने अपने लेखन में ऐसे भारत की परिकल्पना की जहां अलग धर्म और मज़हब के लोग मिलजुल कर एक खूबसूरत भारतीय संस्कृति का निर्माण करते हैं. शायद यह इसलिए भी संभव हुआ क्योंकि प्रेमचंद हिंदू और मुस्लिम संस्कृति को समान रूप से जानते और समझते थे.
# पेस्सोवा की अलमारी से अब भी कविताएं निकल रही हैं, काफ्का की मृत्यु के बाद उसके दोस्त ने कहानियां पब्लिश की, आर.डी. बर्मन का लेटेस्ट गीत अक्षय कुमार की मूवी में आया है. मतलब ये की निशचित तौर पर नहीं कहा जा सकता कि कलाकारों का काम कहां-कहां तक फैला है और उसको कैसे ‘अंडर वन अम्बरेला’ इकट्ठा किया जाए. अब चूंकि इसमें लिखा है – दी कंप्लीट शार्ट स्टोरीज तो (a) क्या आप निशचित हैं कि कोई कहानी इसमें नहीं छुटी और (b) इस बात को सुनिशचित करने के लिए आपने क्या किया? (c) जब सारी कहानियां इकट्ठा हो गई तो कैसे वेरीफाई किया, कि हां अब कुछ नहीं छूटा?
प्रेमचंद रचनावली हिन्दीं में पहले छप चुकी थी, उर्दू में भी कुल्लियाते प्रेमचंद छप गया है. इन दोनों का दावा है इसमें प्रेमचंद की तमाम कहानियों को संकलित कर लिया गया है. लेकिन अंग्रेजी संस्करण के खंडों में तीन ऐसी कहानियां है जो ना तो हिंदी में और न ही उर्दू में उपलव्ध की गई हैं. इन कहानियों का हमने बहुत दुर्लभ स्रोतों से प्राप्त किया है. यह ऐसे पत्र या पत्रिकाओं में छपी थीं जो हमें बहुत कठिनाईयों से मिल सकीं. इसके लिए हमने भारत-पाकिस्तान और बाहरी देशों के अभिलेखागारों में अनुसंधान किया. अब भी मुमकिन है कि कहीं से कुछ नया निकल आये लेकिन अब तक जो भी स्रोत या अभिलेख सुलभ हैं, उनको हम ने पूरी तरह से खंगाल लिया है.
# क्या प्रेमचंद्र के बाद किसी और अनुवाद का इरादा है, इससे पहले और इसके बाद क्या किया है आपने (लेखन और प्रेमचंद्र से संबंधित)? संप्रति क्या चल रहा है?
प्रेमचंद पर मेरी एक किताब 2016 में छपी है इसका शीषर्क है, Premchand in World Languages: Translation, Reception and Cinematic Representations. इसमें यह जानने का प्रयास किया गया है कि अनुवाद के जरिए प्रेमचंद के साहित्य की पहुंच पश्चिमी देशों में विशेषकर फ्रांस, जर्मनी, स्पेन और रूस में कितनी व्यापक है. जहां तक अनुवाद का प्रश्न है, इसके पहले मैंने मंटो और इस्मत चुगताई के साहित्य को अंग्रेजी में अनूदित किया है. मैंने इस्मत की आत्म कथा ‘कागज़ी है पैरहन’ का भी अनुवाद किया है. साथ ही मुझे पाकिस्तानी लेखक इंतेज़ार हुसैन की संपूर्ण कहानियों का अनुवाद करना है.
# आपकी नज़र में प्रेमचंद की तीन प्रिय कहानियां, और क्यूं?
प्रेमचंद की 300 कहानियों के वृहत कोष से तीन कहानियों का चयन दुरूह काम है. फिर भी, मुझे यदि ऐसा करने को कहा जाए तो मैं ‘ठाकुर का कुआं,’ ‘पंच परमेश्वर’ और ‘कुसुम’ का चयन करूंगा. ‘ठाकुर का कुआं’ का चयन इसलिए कि इसमें समाज के एक वर्ग की दुर्दशा और उच्च जातियों द्वारा उनके साथ किए जाने वाले अन्यायों का वर्णन है. प्रेमचंद का झुकाव दमित और शोषितों के प्रति था और उन्होंने उनकी परिस्थितियों का सजीव चित्रण किया.
‘पंच परमेश्वर’ का चयन इसलिए कि उसमे दिखाया गया है कि कैसे हिंदू और मुस्लिम एक गांव में शांतिपूर्ण तरीके से रहते हैं. और गांव की पंचायत बिना किसी धार्मिक पूर्वाग्रह के विवादों को सुलझाती है. प्रेमचंद ने हिंदू और मुसलमानों के संबंधो पर गहरी समझ और संवेदना के साथ कई कहानियां लिखी हैं. यह कहानी हमें सिखाती है कि पंथ, जाति या रंगभेद से परे मानव को मानव की तरह ही समझा जाना चाहिए.
मैं ‘कुसुम’ का चयन इसलिए करूंगा कि इसमें प्रेमचंद दिखाते हैं कि कैसे पति द्वारा अपने ससुर से दहेज़ के रूप में बाहर पढ़ने का खर्च मांगने पर कुसुम उसका परित्याग कर देता है. यह लैंगिक समानता की प्रतिनिधि कहानी है, और इस को ऐतिहासिक सन्दर्भ में समझा जाना चाहिए. प्रेमचंद ने लैंगिक समानता पर दर्जनों कहानियां लिखी हैं जो कि आज भी प्रासंगिक हैं.
# आप प्रेमचंद की किस एकाधिक कहानियों के अंत से संतुष्ट नहीं है, और आपके अनुसार क्या होना चाहिए था?
पहले मैं यह कहना चाहता हूं कि प्रेमचंद की कई कहानियां ऐसी हैं जिनका उन्होंने हिंदी से उर्दू या उर्दू से हिंदी करते समय निष्कर्ष को पूरी तरह बदल दिया है. 'पूस की रात', 'विद्यवस', 'मृतक भोज' तीन ऐसी कहानियां हैं जहां अंत बदल दिया है. ऐसे ही हजे अकबर (महातीर्थ) एक ऐसी कहानी है जिसके उर्दू संस्करण में सारे पात्र मुस्लिम हैं, लेकिन हिंदी संस्करण में सारे पात्र हिंदू हैं. उर्दू कहानी में पात्र हज करने जाते हैं लेकिन हिंदी संस्करण में वह चार धाम की यात्रा करते हैं. ये शायद इसलिए हुआ क्योंकि प्रेमचंद जब उर्दू में लिखते थे तो उनका लक्षित पाठक वर्ग मुस्लिम हुआ करते थे और जब हिंदी में लिखते थे, वे हिंदू पाठकों को ध्यान में रखकर लिखते थे.
# प्रेमचंद का लेखन बाकियों से किस लिहाज से अलग लगता है? और इसके चलते अनुवाद में क्या दिक्कत आई?
प्रेमचंद को हिंदू और मुस्लिम संस्कृति की गहरी समझ थी, वे शायद हिंदुस्त्तान के सबसे अनोखे लेखक इस अर्थ में है कि उन्होंने हिंदू और मुस्लिम दोनों के साधारण परिवार के सामान्य जीवन को वस्तुनिष्ठता और ईमानदारी से चित्रित किया है. उदाहरण के तौर पर 'ईदगाह' में उन्होंने बहुत खूबसूरती के साथ एक मुस्लिम परिवार के जीवन और मुस्लिम परिवेश को दर्शाया है. जि़सकी मिसाल मुस्लिम लेखकों की कहानियों में भी मिलना कठिन है. दूसरी तरफ एक कहानी 'आत्माराम' है जो हिंदू संस्कृति से गहराई से जुड़ी हुई है, जोकि खासतौर पर हिंदू दर्शन के दो अवधारणाओं 'माया' और 'मोह' पर आधारित है. ऐसी कहानियों के अनुवाद करते वक्त एक सबसे बड़ी समस्या उसी सांस्कृतिक तत्वों का अनूदन होता है, फिर यह इस लिहाज से दिलचस्प भी है कि आप अपने संस्कृति के कुछ दिलचस्प पहलुओं को दूसरे लोगों तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं.
# हिंदी से अंग्रजी अनुवाद के इतर 'हिंदी परिवेश' का 'अंग्रेजी' पाठको के लिए अनुवाद कैसे किया है इसी के साथ ये सवाल भी जोड़ सकते हैं कि क्या ये भारत के अंग्रजी पढने वाले पाठको के लिए क्या किया गया अनुवाद है या विश्व भर के पाठको को टारगेट किया गया है?
किसी भी सांस्कृतिक परिवेश को दूसरी संस्कृति, और वह भी ऐसी संस्कृति जो आपसे बहुत अलग है, में अनुवाद करना बहुत मुश्किल काम होता है. अनुवादक को दोनों साहित्यों और संस्कृतियों में जीना होता है. द्विभाषीय होने के साथ-साथ द्विसांस्कृतिक व्यक्तित्व वाला होना पड़ता है. इन सारी अवधारणाओं को कार्यशाला के जरिए अनुवादकों तक पहुंचाने का प्रयास किया गया था. क्लिष्ट शब्दावली पर काफी विमर्श के बाद उसका अनुवाद किया गया. यूं तो यह अनुवाद भारत के पाठकों को ध्यान में रखकर किया गया है लेकिन बाहर के पाठक भी इसका आनंद ले सकते हैं. उनकी मदद के लिए एक व्यापक शब्दावली दी गयी है. इसके अलावा प्राक्कथन और प्रस्तावना में भी प्रेमचंद के लेखनी के संबंधी पहलुओं के बारे में विश्लेषण किया गया है और अनुवाद के बारे में भी लिखा गया है, जिससे पाठकों को मदद मिलेगी.
# अब चूंकि इंग्लिश में अनुवाद हो चुका, तो क्या इस अनुवाद को ब्रिज/पुल बनाकर प्रेमचंद की सभी कहानियों का स्पेनिश, फ्रेंच में भी अनुवाद आएगा? क्या ऐसा कोई प्लान आपका या आपके पब्लिकेशन का?
भारतीय साहित्य का जो भी अनुवाद पश्चिमी भाषा में होता है वह सामान्य तौर पर अंग्रेजी के जरिए ही होता है. अब जबकि प्रेमचंद के सारी कहानियों का अंग्रेजी अनुवाद मौजूद है तो उम्मीद की जा रही है कि इनका अनुवाद सिर्फ पश्चिमी भाषाओं में नहीं बल्कि दुनिया के और भाषाओं में भी किया जाएगा.
पुस्तक का नाम: प्रेमचंद – दी कंप्लीट शॉर्ट स्टोरीज (चार किताबों का सेट) लेखक: प्रेमचंद संपादक: एम. असदुद्दीन प्रकाशक: पेंगुइन रैंडमहाउस ऑनलाइन उपलब्धता: अमेज़न मूल्य: 1,949 रूपये
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