अगर इस डायलॉग से भी आपको कुछ याद नहीं आया, तो फिर आपको तुरंत बादाम खाना शुरू कर देना चाहिए. अब अगर मैं कहूं शराबी, तो आपके दिमाग में सबसे पहले क्या आएगा? चाहे जो आए, 1984 की अमिताभ बच्चन की फिल्म ज़रूर याद आएगी. 'शराबी', जिसके डायलॉग्स के साथ-साथ गाने भी सुपरहिट थे. कहते हैं जब तक कोई शराबी ना हो, तब तक वो शराबी की एक्टिंग नहीं कर सकता. कहा जाता है कि रियल लाइफ में शराब को हाथ न लगाने वाले अमिताभ बच्चन ने बड़े पर्दे पर एक असली शराबी की एक्टिंग करके सबको गलत साबित कर दिया था.
नथ्थूलाल जी और उनकी मूछें (यूट्यूब स्क्रीनशॉट)
'शराबी', 18 मई 1984 को रिलीज़ हुई थी.
# कहां से आया था 'शराबी' बनाने का आइडिया?
अमिताभ ने एक बार अपने ब्लॉग में फ़िल्म के बारे में काफी कुछ बताया था. ये भी कि फिल्म का आईडिया कब और कैसे आया. उनके मुताबिक़-
1983 में हम लोग वर्ल्ड टूर कर रहे थे. फ़िल्म जगत के लिए वो अपने आप में एक अनोखे तरह का फ़िल्मी दौरा था. हम न्यूयॉर्क सिटी से त्रिनिदाद और टोबैगो के लिए फ्लाइट में जा रहे थे. तब प्रकाश मेहरा भी मेरे साथ ही थे. बातचीत के दौरान प्रकाश मेहरा ने मुझसे कहा कि क्यों ना हम बाप-बेटे के रिश्तें पर एक फ़िल्म बनाएं, जिसमें बेटा शराबी हो. हम आधे रास्ते में पहुंच चुके थे. हवा में करीब 35,000 फीट की ऊंचाई पर थे, अटलांटिक ओशियन के ऊपर.# जब अमिताभ को डायलॉग छोटे करवाने पड़े
शूट के पहले ही दिन अमिताभ ने एक बात नोटिस की. उनके डायलॉग बहुत ही ज़्यादा लंबे थे. फ़िल्म में ज़्यादातर उनका किरदार नशे की हालत में रहता था. इस पर उन्होंने प्रकाश मेहरा से कहा कि अगर डायलॉग इतने ही लंबे रहेंगे, तो फ़िल्म कम से कम 5 घंटे की बनेगी. क्योंकि एक आदमी जब नशे की हालत में होता है तो उसे बड़े डायल़ॉग बोलने में वक़्त लगता है. इसलिए उन्होंने प्रकाश मेहरा को सलाह दी कि फ़िल्म में उनके डायलॉग छोटे रखें जाएं. ऐसा किया भी गया.
# मजबूरी से जन्मा आइकॉनिक स्टाइल
अमिताभ ने पूरी फ़िल्म के दौरान अपना बायां हाथ अपनी जेब में ही रखा था. ये किया तो एक मजबूरी में गया था लेकिन फैंस के लिए वो एक स्टाइल बन गया. दरअसल उस दौरान अमिताभ के हाथ में भयंकर चोट लगी थी. उनके शब्दों में कहा जाए तो-
'शराबी' की शूटिंग के समय एक दिवाली बॉम्ब मेरे हाथ पर गिर गया था. शूटिंग कैंसिल नहीं की जा सकती थी. डेट को भी आगे नहीं बढ़ाया जा सकता था. मैं भी किसी तरह की देरी करना नहीं चाहता था. इसीलिए मैंने शूटिंग नहीं रोकी. मेरे हाथ का पूरी तरह से भर्ता बन गया था. वो बिल्कुल कच्चे-पक्के तंदूरी चिकन के जैसा लग रहा था. मेरे हाथ का हर एक हिस्सा गल गया था. लेकिन मैंने अपना काम नहीं छोड़ा.
अमिताभ ने पूरी फ़िल्म के दौरान अपना बायां हाथ मजबूरी में अपनी जेब में ही रखा था. (यूट्यूब स्क्रीनशॉट)
अमिताभ उस चोट को छुपाने के लिए अपना हाथ जेब में रखे रहे और वो उनका सिग्नेचर स्टाइल बन गया.
जाते-जाते फिल्म के कुछ फेमस डायलॉग्स पढ़ जाइए -
# कलाकार सिर्फ तारीफ का भूखा होता है, पैसे का नहीं.
# मैं एक कलाकार हूं, मक्कार नहीं.
# हमारी ज़िंदगी का तंबू तीन बम्बुओं पर खड़ा हुआ है. शायरी, शबाब और आप.
# तोहफा देने वाले की नियत देखी जाती है. तोहफे की कीमत नहीं देखी जाती.
# शराबी को शराबी नहीं तो क्या पुजारी कहोगे? गेंहू को गेंहू नहीं तो क्या ज्वारी कहोगे?
# जिसने पी नहीं व्हिस्की, किस्मत फूट गई उसकी.
# जिनका अपना दिल टूटा होता है, वो दूसरों का दिल नहीं तोड़ा करते.
# आप भी इतना समझ लें मुझको समझाने के बाद, आदमी मजबूर हो जाता है दिल आने के बाद.
# शराब की बोतल पर अगर मैं लेबल की तरह चिपक गया हूं, तो उस लेबल को चिपकाने वाले आप हैं.ये इंसान नहीं है, ये तो मशीन है. ऐसी मशीन जो सिर्फ नोट छापती है और नोट खाती है.
ये स्टोरी हमारे साथ इंटर्नशिप कर रही मेघा ने लिखी है.