करीब दो दशक पहले, 9 मई 2003 को ब्रिटिश अखबार BBC में एक खबर छपी. ये खबर एक बड़े अजीब से प्रयोग के बारे में थी. प्रयोग बंदरों से शेक्सपियर (William Shakespeare) का नाटक लिखवाने का था. इसके लिए इंग्लैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ प्लीमथ के लेक्चरर और स्टूडेंट एक चिड़ियाघर में जमा हुए. वहां पेंगटन जू में 6 बंदरों के बीच में एक कंप्यूटर दिया गया. इस प्रयोग के लिए रिसर्चर्स को बाकायदा 2000 पाउंड, यानी आज के हिसाब से करीब 2 लाख रुपये भी मिले. अब आप सोच रहे होंगे, इतना ताम-झाम क्यों? दरअसल ये सब किया जा रहा था, ‘Infinite monkey theorem’ (जबरन हिंदी में अनुवाद करें, तो अनंत बंदर प्रमेय) को टेस्ट करने के लिए. ये क्या बला है समझते हैं.
इंसानों में क्या रखा है, बंदर भी लिख देंगे शेक्सपियर का नाटक! ना यकीन हो तो खुद पढ़ लें
अगर एक बंदर रैंडम और अनंत बार टाइपराइटर की बटन दबाए. तो लिखते-लिखते एक वक्त ऐसा आएगा. जब वो विलियम शेक्सपियर (William Shakespeare) की सारी रचनाएं लिख देगा. ऐसा 'Infinite monkey theorem' में कहा जाता है. पर क्या ऐसा हो सकता है? इस साइंटिस्ट की माने तो, हां.
पहले ‘इनफाइनाइट मंकी थ्योरम’ को समझते हैं. इसमें कुछ ऐसा कहा जाता है,
गर एक बंदर रैंडम और अनंत बार टाइपराइटर की बटन दबाए. तो लिखते-लिखते एक वक्त ऐसा आएगा. जब वो विलियम शेक्सपियर की सारी रचनाएं लिख देगा.
इसी थ्योरम को टेस्ट करने की बचकानी कोशिश इंग्लैंड के जू (Zoo) में की जा रही थी. इस प्रयोग में तो कुछ ढंग का नहीं लिखा जा सका, लेकिन जो इस थ्योरम में कहा जाता है. वैसा क्या सच में हो सकता है?
बंदर बनाम शेक्सपियरये बंदर और टाइपराइटर का माजरा समझने के लिए, पहले तो हमें ये समझना होगा कि थ्योरम में हम असल के बंदरों की बात नहीं कर रहे हैं. ये तो उपमा है, जैसे कुछ लोग अपनी प्रेमिकाओं को चांद बना देते हैं. कुछ चांद को रोटी. वैसे ही बंदर का मतलब यहां एक दम रैंडम और बिना किसी सोच के टाइप करने की बात से है. जैसे कोई बंदर करता.
अब सवाल ये कि क्या सच में ऐसा हो सकता है? फर्ज करिए एक नहीं, दस लाख बंदर सब टाइपराइटर लिए बैठे हैं. खटाखट टंकण यानी कीबोर्ड पीट रहे हैं. ये काम अनंत तक चलने वाला है. तो क्या एक वक्त ऐसा आएगा? कि कोई बंदर शेक्सपियर की रचना लिख दे. या बुंदेलखंडी बंदर हो, तो ‘आल्हा-उदल’ का प्रसंग ही सही.
दरअसल ये एक तरह का थॉट एक्सपेरिमेंट है, कहें तो वैचारिक गप्प. लेकिन इस गप्प के पीछे लोगों में काफी तनातनी भी रहती है. एक धड़ा कहता है कि अनंत-बंदर हैमलेट लिख देगा, तो एक धड़ा कहता है नहीं. पूरा मामला समझने ले पहले समझते हैं, इस सब की शुरुआत कहां से हुई.
बंदर को टाइप राइटर पकड़ाया किसने?अर्जेंटिना के एक लेखक जॉर्ज लूइस बोर्जेस ने साल 1939 में एक निबंध लिखा. नाम था ‘द टोटल लाइब्रेरी’. निबंध में जार्ज ने हमारे अनंत-बंदर वाले कांसेप्ट को अरस्तु की किताब ‘मेटाफिजिक्स’ से जुड़ा हुआ बताया. जिसमें कहा गया कि दुनिया एटम के रैंडम कांबिनेशन से मिलकर बनी. दरअसल इस थ्योरम का इस्तेमाल ये बताने के लिए भी किया जाता है कि दुनिया रैंडमली बनी है.
कोई कहता है कि दुनिया बस बन गई है. क्योंकि ये बन सकती है. वहीं एक धड़ा कहता है कि अगर घड़ी है, तो फिर घड़ी बनाने वाला भी होगा. माने कोई जटिल चीज बिना किसी सोच के नहीं बन सकती है. इस तर्क में कहा जाता है कि दुनिया में कुछ ऐसे ही थोड़े बन सकता है. जैसा कि ऑक्सफोर्ड के बिशप सैमुएल विल्बरफोर्स का मत था.
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वहीं दूसरी तरफ वाले सब कुछ एक दम रैंडम बताते हैं. इस बारे में ब्रिटिश जीववैज्ञानिक रिचर्ड डॉकिंस अपनी किताब ‘द ब्लाइंड वाचमेकर’ में लिखते हैं. उनके मुताबिक,
अनंत समय या अनंत अवसर मिलने पर कुछ भी संभव है.
इस तर्क से हम समझ सकते हैं कि बंदर भी शेक्सपियर बन सकता है. बशर्ते उसे दुनियाभर का समय दिया जाए. ये वैज्ञानिक ऐसा किस आधार पर कहते हैं. इसे समझने के लिए हमें प्रोबेबिलिटी को समझना होगा. माने किसी चीज के होने के चांस कितने हैं.
फर्ज करते हैं कि एक कीबोर्ड में अंग्रेजी के 26 अक्षर लिखे हैं. सुविधा के लिए इसमें फुल स्टाप और कॉमा वगैरह को नहीं जोड़ते हैं. अब हमारा बंदर कीबोर्ड पीटे पड़ा है, तो AND लिखने के लिए पहले उसे A लिखना होगा. फिर उसे N और D लिखना होगा. अब हम जानते हैं कि A लिखने का चांस 26 में से 1 है. A के बाद N लिखने का चांस होगा 26X26 यानी 676 में से 1 होगा.
ऐसे करते-करते अगर शेक्सपियर के नाटक ‘हैमलेट’ के 130,000 अक्षर एक क्रम में लिखे जाने के चांस निकाले जाएं, तो नंबर आएगा कुछ 4.4 × 10360,783 . माने 4.4 के बाद 360,783 जीरो. इतने जीरो लिखने में कैल्कुलेटर भी टें बोल जाए.
तो इतने में से 1 बार चांस आएगा कि बंदर ‘हैमलेट’ लिख देगा. लेकिन एक पेंच है. एक्सपर्ट्स कहते हैं कि दुनिया में जितने प्रोटान हैं, अगर उतने बंदर बैठें.
और दुनिया बनने (बिगबैंग) के समय से या करीब 1300 करोड़ साल बैठकर टंकण खटपटाते रहें. तब भी हैमलेट लिखने के चांस बहुत-बहुत-बहुत ही कम होंगे. लेकिन याद रखने वाली बात ये है कि चांस कम होंगे, जीरो नहीं होंगे…
यक्ष प्रश्न क्या हमारा बंदर ‘हैमलेट’ लिख पाएगा?अब फर्ज करिए अनंत बंदर हैं, अनंत टाइपराइटर और इनके पास अनंत समय है. तब क्या बंदरों के हैमलेट लिखने की कल्पना करना थोड़ा आसान होता है?
इस बारे में यूनिवर्सिटी ऑफ मैंचेस्टर में पार्टिकल फिजिक्स के प्रोफेसर और जाने माने लेखक ब्रायन कॉक्स भी बताते हैं. वो कहते हैं कि लोग ऐसे मामलों में सबूत मांगते हैं, जैसा हमने चिड़ियाघर में बंदरों वाले प्रयोग में देखा. लोग कहते हैं कि प्रयोग करके दिखाया गया है. बंदर कितना भी कीबोर्ड पीट लें, वो कोई ढंग की चीज नहीं लिख सकते हैं.
बकौल कॉक्स हमें ये समझना होगा कि अनंत बंदरों और 10 बंदरों में अंतर होता है. हां, इसका सबूत देना मुश्किल है. क्योंकि अनंत, दस से बहुत बड़ी संख्या है.
वो कहते हैं कि बेशक इस थॉट एक्सपेरिमेंट में किसी बंदर के हैमलेट लिखने के चांस बहुत कम हैं. लेकिन ये चांस जीरो से ज्यादा है. अनंत यूनिवर्स में जो कुछ हो सकता है, वो होगा ही.
हम बंदरों के उदारहण को असल के बंदरों से जोड़कर देखते हैं. इसलिए बंदरों के हैमलेट लिखने की कल्पना करना मुश्किल हो जाता है. लेकिन अगर हम इसे किसी कंप्यूटर प्रोग्राम से बदलकर सोचें. प्रोग्राम जो रैंडमली सातों दिन, चौबीसों घंटे अंग्रेजी के अक्षर लिख रहा है. तो हैमलेट का पहला शब्द लिखे जाने के कुछ तो चांस होंगे. पहला शब्द लिखे जाने के चांस होगें, तो पहली लाइन लिखे जाने के चांस भी होंगे. हालांकि ये चांस शब्दों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ कम होते जाएंगे. लेकिन जीरो नहीं होगें. यानी किसी चीज के होने का चांस अगर एक अरब में एक बार है. तो अनंत समय में, भले एक अरब बार में एक बार ही सही, वो चीज हो तो सकती है.
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