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इंदिरा गांधी को मारी गई एक गोली कहां गुम हो गई थी, पोस्टमॉर्टम करने वाले डॉक्टर ने बताया

फ़ॉरेंसिक डॉक्टर की ज़ुबानी जानिए इंदिरा गांधी की हत्या के बाद एम्स अस्पताल में क्या-क्या हुआ था?

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फोटो - इंडिया टुडे

31 अक्टूबर 1984. देश की तात्कालिक प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई. प्रधानमंत्री दो बॉडीगार्ड्स ने उनके शरीर को गोलियों से छलनी कर दिया. इंदिरा को जब दिल्ली के एम्स अस्पताल ले जाया गया, तब तक उनकी सांसे चल रही थी. देश के सबसे बड़े डॉक्टरों की टीम ने इंदिरा गांधी को बचाने की भरसक कोशिश की. लेकिन कोशिशें नाकामयाब रहीं. जब उनका पोस्टमॉर्टम हुआ तो पता चला कि इंदिरा के शरीर में 31 गोलियां लगी थीं. वैसे तो इस हत्याकांड के बारे में तमाम बातें कही-सुनी जाती हैं. लेकिन आज आपको इंदिरा का पोस्टमॉर्टम करने वाले फ़ॉरेंसिक डॉक्टर की ज़ुबानी में वो मंज़र बताते हैं, जिसने इंदिरा गांधी के शरीर में लगीं गोलियां गिनी थीं.

इस बार हमारे गेस्ट बने डॉ तीरथ दास डोगरा. डॉ डोगरा टॉप के फ़ॉरेंसिक पैथोलॉजिस्ट हैं. डॉ डोगरा AIIMS में फ़ॉरेंसिक साइंस के पहले छात्र  थे और फिर AIIMS के डायरेक्टर और फ़ॉरेंसिक मेडिसिन के विभाग के HOD बने. दिसंबर 2013 से सितंबर 2018 तक मेडिकल काउंसिल ऑफ़ इंडिया के भी मेम्बर रहे. 2012 से 2017 तक नेशनल मेडिकोज़ असोसिएशन के प्रेसिडेंट रहे. मेडिकल काउंसिल ऑफ़ इंडिया के भी सदस्य रहे. अभी डॉ डोगरा, गुड़गांव की SGT यूनिवर्सिटी में फॉरेंसिक मेडिसिन और फोरेंसिक साइंस के एमेरिट्स प्रोफेसर हैं.

मर्डर था या कल्पेबल होमिसाइड?

अपने करियर में डॉ. डोगरा ने देश के सबसे बड़े केस डील किए. इंदिरा गांधी हत्या, निठारी हत्याकांड, गोधरा हिंसा, बाटला हाउस एनकाउंटर, हरेन पांड्या मर्डर केस, आरुषी तलवार मर्डर. जो केस राष्ट्रीय लेवल की बहस बने, लगभग सभी की जांच में डॉ. डोगरा शामिल थे. इसी सिलसिले में हमने उनके कुछ हाई-प्रोफ़ाइल केसेज़ पर बात की. इंदिरा गांधी की हत्या के बारे डॉ. डोगरा ने बताया,

"इम्तिहान चल रहा था. मैं अंडर-ग्रेजुएशन वालों का एग्ज़ाम करवा रहा था. उस वक़्त मेरे पास दो हवलदार होते थे. अचानक से उनमें से एक दौड़ता हुआ एक मेरे पास आया और कहा कि इंदिरा गांधी को कुछ हो गया है; फ़ौरन चलिए. मैं पहली मंज़िल पर था और ग्राउंड फ़्लोर पर इमरजेंसी वार्ड था. मैं नीचे उतरा और उस समय वो इंदिरा गांधी को लाए ही लाए थे. साथ में माखनलाल फोतेदार थे, आर के धवन थे और परिवार के लोग थे. अब इसमें एक बात है, कि जब इंदिरा गांधी को अस्पताल लाया गया, तो क्या वो ज़िंदा थीं? ये बात मीडिया में भी ख़ूब छपी और अदालत में भी बार-बार उठाई गई.

असल में होता ये है कि जब भी कोई ऐसा मरीज आता है, एक्सीडेंट से हो या उसे गोली लगी हो, डॉक्टर का पहला फ़र्ज़ यही है कि उसे वापस होश में लाया जाए. उसका दिल वापस काम करे. उसे सांस देने की कोशिश की जाए. उस जगह पर एक रेसिडेंट डॉक्टर था. नया लड़का था. उस लड़के ने उनके गले में एक ट्यूब डाली और सांस देना शुरू कर दिया. तो जब सांस चलने लगी, तो प्रैक्टिकली वो हम लोगों के लिए ज़िंदा हैं. हम उन्हें मृत तभी मानेंगे, जब हम अपना आर्टिफिशियल रेस्पिरेट्री सिस्टम बंद करेंगे. टेक्निकली तो वो अब हमारे लिए ज़िंदा हो गई थीं. इतने में और डॉक्टर्स आ गए थे. वो उन्हें ऑपरेशन थियेटर में ले गए. ख़ून चढ़ाया गया. कोशिश यही की गई कि वो वापस आ सकें. फिर 2:20 पर डॉक्टर्स ने सोचा कि अब वापस आना संभव नहीं है. तब हमने उन्हें मृत घोषित कर दिया."

ये तो वो मंज़र हुआ, जब उन्हें एम्स लाया गया था. डॉ. डोगरा की भूमिका मृत घोषित होने के बाद शुरू हुई. पोस्टमॉर्टम और अटॉप्सी. डॉ डोगरा ने हमें बताया कि एक तो ये विनती की गई कि उन्हें मुर्दाघर न ले जाया जाए, जहां आमतौर पर पोस्ट-मॉर्टम होता है. चूंकि ये कोई क़ानून है नहीं कि मुर्दाघर में ही पोस्टमॉर्टम होगा, तो विशेष परिस्थितियों में ऐसा करने की इजाज़त है. एक विनती और थी, कि इंदिरा गांधी के शरीर को तीन दिन तक लोगों के दर्शन के लिए रखना है. तो इसलिए उनके स्कल को न छूआ जाए. इस पर भी डॉ. डोगरा ने बताया कि सारी गोलियां छाती से घुटने के बीच लगी थीं, तो स्कल खोलने की नौबत नहीं आई.

"पोस्टमॉर्टम में दो मुख्य चीज़ें पता लगानी थीं. एक तो ये कि उनको कितनी गोलियां लगीं. और दूसरा, ये कि कौन सी गोली से उनकी जान गई. किसी भी केस को तब तक मर्डर नहीं कहा जा सकता, जब तक चोट जानलेवा न हो. तब वो कल्पेबल होमिसाइड कहलाएगा. यानी मौत, जो हत्या न हो. मिसिज़ गांधी के केस में तो उन्हें गोलियां लगी ही थीं. एक गोली थी जो उन्हें सामने से लगी थी और उनकी रीढ़ में अटक गई थी. उसी गोली पर उन्होंने दम तोड़ा था.  

गोलियां कितनी चलीं, ये किसी को पता नहीं था. हमें भी नहीं पता था. सिस्टम फूट गया था. पूरा शहर आग की ज़द में था. अस्पताल के चारों ओर लाखों लोग जमा हो गए थे. कुछ भी काम नहीं कर रहा था, तो बहुत मुश्किल था ये पता लगाना कि गोलियां लगी कितनी हैं. फिर जितना मेरा अनुभव था, जो मुझे दिखा-मिला, उस हिसाब से मैंने कहा कि क़रीब 33 गोलियां चली हैं और 31 लगी हैं."

एक गोली नहीं मिली!

इसके बाद डॉ. डोगरा ने बताया कि गोलियां निकालनी भी होती हैं, जिसे बाद में बंदूक़ से मैच कराया जाता है. उस दिन दो तरह की बंदूक़ों से गोली चली थी, तो दोनों गोलियां निकालनी थी. कुल छह गोलियां शरीर के अंदर फंसी हुई थी, जिसमें से दो डॉ डोगरा ने निकाली. बाक़ी छोड़नी पड़ीं, नहीं तो शरीर कोलैप्स कर जाता. लेकिन, एक गोली का पेच फंस गया.

"मैं आपको बताऊं, मेरा काम यहां ख़त्म नहीं होता है. यहां से शुरू होता है. कठघरे में खड़े होकर जवाब देना होता है. क्राइम सीन की जब जांच हुई, तो खोखे की गिनती में एक खोखा मेरी गिनती से ज़्यादा निकल गया. यानी मैंने 33 बोली और खोखे या ख़ाली कारतूस निकले 34. अब मैंने कहा, ये तो बड़ी गड़बड़ हो गई. मैंने कहा, मुझे थोड़ी तलाश करने दो. मैं देखता हूं. मैं प्रधानमंत्री के घर चला गया. ढूंढ रहा था. उनकी छत पर गया, तो एक तसला मिल गया. मिट्टी का तसला. वहां एक सहायक था, जिसने बताया कि मैडम रोज़ सुबह उठ कर चिड़ियों को पानी देती थीं. मैंने देखा, तो बुलेट उसी में पड़ी थी. मैंने बुलेट निकाली और अपने साथियों को दिखाई, कि भई मेरा काम तो हो गया. गिनती पूरी हो गई.

अब बात ये थी कि गोली ऊपर कैसे गई. तो हमने बुलेट को जांचा, तो उसपर कोई टिशू नहीं मिला. तो ये तो पक्का है कि वो गोली इंदिरा गांधी को छुई भी नहीं थी. मिस हो गई. और, उसका ऐंगल ऊपर रहा होगा, तो वो ऊपर चली गई और संभवतः किसी पेड़ से लड़कर या गति खो जाने के बाद तसले में गिर गई."

अब ये तो हुई जांच. जांच के बाद आया मुक़दमा. और, इस मुक़दमे में वरिष्ठ वक़ील सोढ़ी, लेखी और जेठमलानी कोर्ट से कह रहे थे कि डॉ डोगरा की गवाही को मान्यता न दी जाए. क्या था पूरा मामला, पूरा इंटरव्यू देखिए -

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