इंडियन सुपर लीग (आईएसएल) की शुरुआत हुई थी, तब कहा गया था कि ये ऐसी सुंघनी है जिसे सूंघते ही भारतीय फुटबॉल का सोया हुआ शेर जाग जाएगा. आईएसएल अपने तीसरे सीज़न में है. इंग्लैंड, जर्मनी और स्पेन की लीग के बाद दुनिया की चौथी सबसे ज़्यादा देखी जाने वाली लीग बन गई है.
इंडियन सुपर लीग: फुटबॉल या फुटबॉल का जियो सिम
इंडिया के फुटबॉल में पैसा है, पर गोल नहीं
अरबों का देश है, तो करोड़ों में डील करता है. इस बात पर गर्व करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि अभी भी 125 करोड़ के देश में करीब 300-400 खिलाड़ी ही होंगे, जो स्तरीय-पेशेवर फुटबॉल खेलते हैं, 150 खिलाड़ी ही होंगे जो आला दर्ज़े की फुटबॉल खेलते हैं और 30 खिलाड़ी ही होंगे, जिनमें टीम चुननी है. जबकि कॉस्टा रिका की जनसंख्या ही 60 लाख है, फिर भी हज़ारों खिलाड़ी खेलते भी हैं और वर्ल्ड कप तक पहुंचाते भी हैं.
आईएसएल के साथ ‘कमॉन इंडिया लेट्स फुटबॉल’ का नारा ज़रूर जुड़ा है लेकिन खिलाड़ियों की संख्या में कोई इज़ाफा नहीं हुआ है. बल्कि आईएसएल पुराने क्लबों के लिए खतरा और बन गया है. कोलकाता स्थित एशिया के 2 सबसे पुराने क्लबों में शुमार मोहन बागान और ईस्ट बंगाल के फैन्स के पास अब एथलेटिको द कोलकाता भी है. पुराने क्लबों के पास अपनी लोकप्रियता भुनाने का कोई तरीका नहीं है. आईएसएल की वजह से न केवल पुराने क्लब बल्कि पूरी की पूरी पहली डिवीज़न, आई-लीग ही खतरे में पड़ गई है. क्रिकेट के मायनों में समझें तो आईलीग हो गई है रणजी और आईएसएल है आईपीएल. बीसीसीआई के पास पैसा है तो रणजी को कोई खतरा नहीं है लेकिन आईलीग क्लबों के पास कुछ नहीं है. वो अभी भी 19वीं सदी के ढंग से फुटबॉल चलाना चाह रहे हैं. सिर्फ मैच के टिकट बेचकर.
अब योजना ये है कि आईएसएल को पहली डिवीज़न बना दिया जाए, आईलीग को डिवीज़न 2 और एक तीसरी डिवीज़न और बनाई जाए. डिवीज़न 2 और 3 में टीमें हार-जीत के हिसाब से अंदर बाहर होती रहें. इन टीमों के लिए आईएसएल के दरवाज़े बंद ही रहेंगे. खूब पैसा लगाकर आईएसएल को लोकप्रिय बनाने वाली टीमें नहीं चाहतीं कि ये टीमें डिवीज़न 1 यानी आईएसएल में आएं. और ये क्लब नहीं चाहते कि हमें सिर्फ दोयम-तीयम टीम समझा जाए. तो एक ही रास्ता है दुकान बंद कर दो.
आईएसएल में विदेशी खिलाड़ियों के आने का भी कोई फायदा नहीं हुआ है. क्योंकि बाहर से आने वाले ज़्यादातर खिलाड़ी वो हैं जिन्हें या तो यूरोप में मौका नहीं मिला या फिर जो अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर चुके हैं. हालांकि इस बात से निपटने के लिए आईएसएल-3 में मार्की प्लेयर के लिए नया नियम बनाया गया है. वही विदेशी खिलाड़ी खेल सकता है जिसके पास किसी क्लब के साथ दिसंबर 2015 तक खेलने का कॉन्ट्रैक्ट था. ताकि टीमें सिर्फ पैसा पीटने के लिए आने वाले स्टार खिलाड़ी लेकर न बैठें. फिर भी दुनिया के सबसे उम्रदराज़ विदेशी खिलाड़ियों वाली लीग आईएसएल ही है.
फिर विदेशी खिलाड़ियों और भारतीय खिलाड़ियों की सैलरी में भी दिन-रात का अंतर है. कई भारतीय खिलाड़ियों की सैलरी एक लाख रुपया महीना भी नहीं छू पाती. अच्छा खाना, प्रैक्टिस, चोट से जूझना और घर चलाना, इतने में मुमकिन नहीं है.
पूरी दुनिया में फुटबॉल लीग 7-9 महीने चलती है और शुक्र-शनि-रवि को मैच होते हैं. लेकिन आईएसएल 2 महीने में फटाफट निपटा दी जाती है. रोज़-रोज़ मैच. लोग क्रिकेट के सितारों से सज़ी आईपीएल को ही रोज़-रोज़ देख उकता जाते हैं तो आईएसएल तो अभी बच्चा है. लंबी लीग से ही फुटबॉल कल्चर और फैन-फॉलोविंग आती हैं.
आईएसएल वो दवा तो नहीं बन सकी, जो भारतीय फुटबॉल के सोए हुए शेर को जगा दे, लेकिन कुछ भला तो हुआ है. आईएसएल मैचों की औसत दर्शक संख्या करीब 20000+ है, टीवी पर 5 भाषाओं में इसका प्रसारण होता है, लोग देखते हैं तो पैसा आता है. और इसी पैसे से उन मैदानों की हालत सुधर रही है, जिन पर अगर सुपरफिट खिलाड़ी भी गिर जाए तो हाड़ तुड़वा ले.
दूसरा; फुटबॉल कोलकाता, पूर्वोत्तर और गोवा जैसे परंपरागत मठों से बाहर आई है. आईएसएल के दिल्ली डायनमॉज़ को छोड़कर उत्तर भारत का कोई क्लब नहीं है. एक था जेसीटी फगवाड़ा वो भी कब का बंद हो चुका था. तीसरा, आईएसएल के क्लबों में पैसा होने की वजह से नए खिलाड़ी फुटबॉल को कैरियर के तौर पर देखेंगे.
इस बार आईएसएल टीम के लिए 5 भारतीय खिलाड़ी खिलाना अनिवार्य कर दिया गया है. जिसका मतलब 8 टीमों में प्रभावी तौर पर सिर्फ 40 भारतीय खिलाड़ी ही मैदान पर दिखेंगे. टीमें ज़्यादातर 33 देशों से आए विदेशी खिलाड़ियों पर ही भरोसा करेंगी.
मुकेश अंबानी और स्टार टीवी का आईएसएल फिलहाल फुटबॉल प्रोडक्ट की बजाय टीवी प्रोडक्ट ज़्यादा बन पाया है. जैसे जियो सिम से जितनी नेट क्रांति आ सकती है, उतनी ही आईएसएल से फुटबॉल क्रांति आ सकती है. और इसके लिए सबसे ज्यादा दोषी हैं स्टेट फुटबॉल फेडरेशन. वोट राजनीति के लिए आपस में भिड़ते रहते हैं.
1996 में नेशनल फुटबॉल लीग (जो बाद में आई-लीग बन गई) आई तब से कहा जा रहा है कि भारत की फुटबॉल संक्रमणकाल से गुज़र रही है. लगता है ये संक्रमण काल कभी खत्म ही नहीं होगा. शायद तब तक जब तक 125 करोड़ के मुल्क में 5-6 हज़ार फुटबॉल खिलाड़ी न हो जाएं. हरियाणा, बंगाल, बिहार, तेलंगाना की अपने खिलाड़ियों वाली अपनी लीग्स न हो जाएं. वैसे फरवरी 2017 तक भारत की फुटबॉल टीम का कोई मैच नहीं है तब तक आईएसएल के बहाने कम से कम अपने देश की कुछ फुटबॉल तो देख ही सकते हैं.