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कैसी होती है भारत की EVM मशीन? पेपर ट्रेल के कारण अमेरिकियों को अपने ईवीएम पर नहीं है भरोसा

पूर्व केंद्रीय मंत्री Rajeev Chandrashekhar ने कहा है कि Indian EVM में इंटरनेट, ब्लूटूथ या वाईफाई जैसी सुविधा नहीं है.

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दुनिया के कई देशों में EVM से वोटिंग कराई जाती है. (तस्वीर साभार: PTI)

EVM यानी कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन. अमूमन चुनाव के मौके पर या बिना इस मौके के भी EVM की चर्चा में होती है. इस बार इस मामले में Tesla और SpaceX जैसी कंपनी के मालिक एलन मस्क की एंट्री हुई है. मस्क ने कहा है कि हमें EVM को खत्म कर देना चाहिए. ये बात उन्होंने EVM की हैकिंग पर सवाल उठाते हुए कहा. मस्क ने कहा कि इंसानों या AI द्वारा EVM को हैक किए जाने का जोखिम कम है, फिर भी इसे कम नहीं आंका जा सकता. इसका जवाब दिया पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने. उन्होंने बताया कि भारतीय EVM और दूसरे देशों के EVM में क्या अंतर है. उन्होंने ये भी बताया कि क्यों भारतीय EVM को हैक करना आसान नहीं है. इस आर्टिकल में इसी बात को समझने की कोशिश करेंगे कि भारतीय EVM दूसरे देशों के EVM से कैसे अलग हैं.

भारत में बनी EVM

शुरूआत ये जानने से करते हैं कि भारत में बनी EVM होती कैसी है? चुनाव आयोग की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, EVM को दो यूनिटों में तैयार किया जाता है. कंट्रोल यूनिट और बैलेट यूनिट. दोनों को केबल के जरिए एक-दूसरे से जोड़ा जाता है. कंट्रोल यूनिट मतदान अधिकारी के पास रखी जाती है. बैलेट यूनिट पर बटन दबाकर वोटर्स मतदान करते हैं. 

EVM Machine
EVM के यूनिट.

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इसके अलावा EVM से एक और मशीन जुड़ी होती है जिसे VVPAT कहते हैं. मतदाता EVM पर जिस कैंडिडेट को वोट देते हैं उसके नाम का पर्चा 7 सेकेंड तक VVPAT में दिखता है. वोटर यहां से अपने मतदान को वैरिफाई कर सकते हैं. चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए इसका उपयोग किया जाता है.

VVPAT Machine
EVM से जुड़ा VVPAT. (तस्वीर: इंडिया टुडे)

चुनाव आयोग के अनुसार, कई अन्य देशों ने भारत से EVM मशीनें आयात कीं और अपने चुनावों में उनका इस्तेमाल किया. जैसे- भूटान, नेपाल, पाकिस्तान, नामीबिया, केन्या. नामीबिया ने अपने राष्ट्रपति चुनाव में भी भारतीय EVM का इस्तेमाल किया. इसके अलावा EVM का उपयोग करने वाले देशों में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, बुल्गारिया, इटली, स्विटजरलैंड, कनाडा, मैक्सिको, अर्जेंटीना, ब्राजील, चिली, पेरू, वेनेजुएला, आर्मेनिया और बांग्लादेश शामिल हैं. अमेरिका, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग के कई अलग-अलग रूपों का उपयोग करता है और इसका कोई राष्ट्रव्यापी मानक नहीं है. 

कैसे अलग है भारत का EVM?

अब बात करते हैं राजीव चंद्रशेखर के बयान की. उन्होंने सोशल मीडिया X पर एलन के पोस्ट का जवाब दिया. और EVM को लेकर कुछ दावे किए. उन्होंने लिखा,

"ये कहना गलत है कि कोई भी ऐसा डिजिटल हार्डवेयर नहीं बनाया जा सकता जो सुरक्षित हो. एलन का नजरिया अमेरिका और दूसरी ऐसी जगहों पर लागू हो सकता है, जहां का वोटिंग मशीन इंटरनेट से जुड़ा होता है. भारतीय EVM कस्टम तरीके से डिजाइन की गई है. ये सुरक्षित है और किसी भी नेटवर्क या मीडिया से जुड़ी नही है. इसमें कोई कनेक्टिविटी नहीं है. कोई ब्लूटूथ नहीं है, वाईफाई या इंटरनेट भी नहीं है. यानी कोई रास्ता नहीं है (गड़बड़ी करने का). इसे दोबारा प्रोग्राम नहीं किया जा सकता."

पूर्व केंद्रीय मंत्री ने मस्क को सुझाव देते हुए कहा कि बाकी देशों के EVM को भी भारत के EVM की तरह ही डिजाइन किया जा सकता है.

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राजीव चंद्रशेखर का ये दावा कि EVM को हैक या इसमें कोई गड़बड़ी नहीं की जा सकती, इस पर विवाद है. लेकिन कम से कम इतना तो तय है कि भारतीय EVM में इंटरनेट, ब्लूटूथ या वाईफाई जैसी सुविधा नहीं है. ये एक बेसिक अंतर है दुनिया के कई देशों के EVM और भारत में बनी EVM मशीन में.

अमेरिका का EVM

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका ने सबसे पहले इलेक्ट्रॉनिक तरीके से वोटिंग कराई. लेकिन अमेरिकियों का EVM पर बहुत ज्यादा भरोसा नहीं रहा. कारण था- यहां के EVM में पेपर ट्रेल का नहीं होना. इसके कारण मतदाताओं के लिए अपने वोट को वेरिफाई करना मुश्किल था. जैसे भारतीय EVM में VVPAT होता है, अमेरिकी EVM में ऐसा कुछ नहीं था.

2000 के राष्ट्रपति चुनाव के बाद अमेरिका ने EVM पर भारी खर्चा किया. लेकिन मई 2010 में अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक डिवाइस को मशीन से जोड़कर दिखाया. और दावा किया था कि मोबाइल से मैसेज भेजकर नतीजों को बदला जा सकता है. फिलहाल पूरे अमेरिका में EVM से वोटिंग नहीं होती है.

डिजिटल वोटिंग के कई प्रकार

दुनिया में डिजिटल वोटिंग के कई प्रकार हैं. भारत में पूरी तरह से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग होती है. मतलब कि मतदान और मतों की गिनती दोनों के लिए इसका प्रयोग किया जाता है. लेकिन कई ऐसे सिस्टम हैं जिसमें केवल वोटों की गिनती इलेक्ट्रॉनिक तरीके से की जाती है. NDTV की एक रिपोर्ट के अनुसार, एस्टोनिया जैसे कुछ देशों ने इंटरनेट-आधारित रिमोट वोटिंग का उपयोग करना शुरू कर दिया है. कुछ देश नेटवर्क और गैर-नेटवर्क दोनों मशीनों के साथ ऑप्टिकल स्कैनर का उपयोग करते हैं. ऑप्टिकल स्कैनर एक तरह का मशीन होता है जो किसी जानकारी को स्कैन करके डिजिटल रूप दे देता है. उदाहरण के लिए कागज पर छपी किसी जानकारी को स्कैन करके कंप्यूटर पर दिखाना.

अधिकांश देशों में, EVM निजी कंपनियों द्वारा बनाई जाती हैं. भारत में इसका निर्माण चुनाव आयोग की तकनीकी विशेषज्ञ समिति (TEC) की देखरेख में किया जाता है. जिसमें भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, बैंगलोर और इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, हैदराबाद का सहयोग लिया जाता है. ये जानकारी चुनाव आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध है.

NDTV ने विदेशी विशेषज्ञों के हवाले से लिखा है कि अक्सर इस बात की शिकायत की जाती है- भारत की EVM पुरानी हो चुकी हैं और उन्हें आधुनिक बनाने की जरूरत है. लेकिन चुनाव आयोग के विशेषज्ञों का दावा है कि कभी-कभी पुरानी हो चुकी इलेक्ट्रॉनिक तकनीक को अतिरिक्त सुरक्षा का स्तर मिल जाता है. क्योंकि अगर किसी को ईवीएम को हैक करना है, तो कई लाख EVM को अलग-अलग हैक करना होगा.

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