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द गाजी अटैक: 92 लोगों के खून की कहानी जिसका सच भारत और पाकिस्तान दोनों नहीं बताते

4 दिसंबर 1971 को इंडियन नेवी ने पाकिस्तान के सबमरीन गाजी को डुबा दिया था.

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आखिर ये कौन सा जज्बा होता है कि 92 लोग कराची से एक सबमरीन पर निकलते हैं और हजारों किलोमीटर पानी के अंदर चलकर बंगाल की खाड़ी पहुंचते हैं. एक जहाज को मारने. पर जहाज को छुपा दिया जाता है. उसके बदले एक और जहाज खड़ा होता है. मरने-मारने के लिए. ये कौन सा जज्बा होता है? ये जज्बा होता है या पॉलिटिक्स के पागलपन का नतीजा? आप किसी को पहचानते नहीं, जानते नहीं, मारने पहुंच जाते हैं. कोई रगड़ा नहीं, पर दिल में खून और आंखों में गुस्सा लिए पहुंच जाते हैं.
4 दिसंबर 1971. भारत और पाकिस्तान की लड़ाई चल रही थी. पाकिस्तान की सबमरीन PNS गाजी भारत अरब सागर से चलकर बंगाल की खाड़ी में भ्रमण कर रही थी. उस समय की सबसे ताकतवर सबमरीन में से एक थी. INS विक्रांत को डुबाने के इरादे से आई थी. भारत में भी इस बात का डर था. क्योंकि विक्रांत पर बहुत कुछ टिका हुआ था. अगर वो डूब जाता तो भारत को बहुत चोट पहुंचती. पर 4 दिसंबर के दिन विशाखापटनम के पास गाजी में ब्लास्ट हो गया. भारत का कहना है कि INS राजपूत ने इस पर हमला कर दिया था. पाकिस्तान का कहना है कि गाजी ने एक बहुत बड़ा रिस्क लिया था, जिसकी वजह से वो अपने ही बिछाये माइंस पर आ गया और उड़ गया. पर टाइम्स ऑफ इंडिया की 2010 में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक गाजी अटैक से जुड़े सारे दस्तावेज 1980 में ही मिटा दिये गये थे. 1971 की लड़ाई के वेटरन लेफ्टिनेंट जनरल जैकब ने एक आर्टिकल में लिखा था-
उस वक्त ईस्टर्न नेवी के कमांडिंग ऑफिसर कृष्णन ने कहा था कि गाजी का डूबना प्राकृतिक घटना थी. नेवी को मालूम ही नहीं था कि गाजी डूब गया है. मछुआरों ने बताया था गाजी के बारे में. उनको पुरस्कार दिया गया. बाद में कृष्णन ने कहा कि जो हमने बातें की, उसे भूल जाना.
9 दिसंबर 1971 को इंडियन नेवी ने एनाउंस किया कि INS राजपूत ने गाजी को डुबा दिया है. 1971 में तब के पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी आर्मी ने कोहराम मचा रखा था. रेप और मर्डर तो आम बातें हो गई थीं. कोई सुरक्षित नहीं था. लाखों रिफ्यूजी इंडिया आ रहे थे. तो इस कंडीशन में भारत ने बांग्लादेश को स्वतंत्र कराने का निर्णय लिया. ये लड़ाई जमीन और पानी दोनों पर लड़ी जा रही थी. अरब सागर में पाकिस्तानी नेवी की भी स्थिति ठीक थी. भारत की तो बहुत मजबूत थी. पर बंगाल की खाड़ी में पाक बहुत कमजोर था. यहां भारत बेहद मजबूत था. तो पाक ने अपनी सबमरीन गाजी को 14 नवंबर 1971 को रवाना किया कि बंगाल की खाड़ी की रक्षा कर रहे विक्रांत को डुबा दिया जाए. विक्रांत देश का एकमात्र एयरक्रॉफ्ट कैरियर था जो कि भारत का बांग्लादेश से लगातार संपर्क बनाये रखता था. इसके अलावा भारत का वो मोराल बूस्ट करता था. अगर डूब जाता तो भारत को नैतिक और सामरिक दोनों घाटा उठाना पड़ता. गाजी में 92 लोग थे. कराची से गाजी जब चला तो उन लोगों ने चितगांव की नेवी को संदेश दिया एक स्पेशल तेल के लिए. ये लुब्रिकेंट था जो कि सबमरीन और माइंस्वीपर में इस्तेमाल होता था. ये मैसेज इंडियन नेवी ने पकड़ लिया. जब पता चला कि ये लोग स्पेशल तेल खोज रहे हैं तो सबमरीन का नाम क्लियर हो गया. ये एक ही हो सकता था. गाजी. इंडिया ने अपना प्लान बना लिया. विक्रांत को अंडमान सागर में भेज दिया गया. वो बंगाल की खाड़ी से थोड़ा नीचे है. इसके बदले राजपूत को विशाखापटनम में भेज दिया गया. राजपूत द्वितीय विश्व युद्ध में लड़ चुका था. पुराना हो चुका था. अब वो डिकमीशन होने वाला था. मतलब पुर्जे-पुर्जे खोल के बेच दिया जाता. या म्यूजियम में रख दिया जाता. प्लान बनाया गया कि राजपूत विशाखापटनम के पास रहेगा और वहां से ऐसे व्यवहार करेगा जैसे यही विक्रांत हो. संदेश भेजता रहेगा. इसने इतने ज्यादा संदेश भेजे कि गाजी को लगा कि यही विक्रांत है. एक तो सीक्रेट डाक्यूमेंट लीक किया गया जिसमें लोकेशन ही बता दी गई. 27 नवंबर को गाजी विशाखापटनम पहुंच गया. इसने माइंस बिछाई और विक्रांत को खोजने आगे बढ़ गया. पर राजपूत से लगातार लीक होते संदेशों से ये लोग कन्फ्यूज हो गये. और बेहद खतरनाक निर्णय लिया. होता तो यही है कि जिस रास्ते पर माइंस बिछा के निकल गये उस रास्ते वापस नहीं आते. पर ये लोग वापस आये. 4 दिसंबर की रात को राजपूत को सिग्नल मिले. कंफर्म नहीं हो पाया कि किसका है. पर सबको अंदाजा था कि गाजी के अलावा कोई और नहीं हो सकता. राजपूत के कैप्टन इंदर सिंह ने पानी के अंदर दो फायर करने का आदेश दिया. ये सबमरीन के लिए खास हथियार होते हैं. एक मिनट के अंदर ब्लास्ट हुआ. गाजी नेस्तनोबूद हो गया. ये इंडियन नेवी कहती है.
रिटायर्ड ए़डमिरल हीरानंदानी ने अपनी किताब Transition to Triumph में लिखा है- गाजी का सच एटर्नल पैरोल पर है. कोई नहीं जानता कि क्या हुआ. इंडिया और पाकिस्तान के अपने वर्जन हैं. इनके बीच ही कहीं है.
इन कहानियों में दो चीजें बेहद खतरनाक हैं. साथ ही बहादुरी का अप्रतिम नमूना भी. साथ ही ये चीजें दिखाती हैं कि युद्ध इंसान को क्या बना सकता है, क्या करने को मजबूर करता है. गाजी कराची से चलकर बंगाल की खाड़ी में आया. एक जहाज को खोज रहा था. जिसके बारे में पता नहीं था. संदेश पकड़ता और खोजते फिरता. ये नहीं पता था कि समुद्र में और कहीं भी इंडिया का कोई और जहाज हो सकता है. जो कहीं भी मार देगा. 92 लोगों की जिंदगी दांव पर लगी थी. ठीक इसी तरह INS राजपूत वाली बात थी. विक्रांत की जगह खुद को खड़ा कर लिया था. लगातार अपनी सूचना लीक भी कर रहा था. इसके सामने था एक खतरनाक सबमरीन गाजी. राजपूत डिकमीशन होने जा रहा था. पुराना हो चुका था. पर फिर भी फायरिंग रेंज में आने को तैयार था. ये बहुत दुस्साहसी कदम था. कुछ भी हो सकता था. गाजी इसको डुबा भी सकता था. लोग मारे जाते. जैसे कि गाजी के साथ खुद हुआ.
2003 में ईस्टर्न नेवल कमांड ने गाजी के मलबे को खोजने का निश्चय किया. 10 लोगों की टीम गई थी. 10 दिसंबर 2003 को गाजी का हल निकाला गया. हजारों मछली मारने वाले जाले लगे थे निकालने के लिए.
इसी घटना पर बनी फिल्म द गाजी अटैक आ रही है. देखना ये होगा कि इस फिल्म में क्या दिखाया जाता है. किसी एक साइड की बात या हर तरह की बात. इसी तरह की घटना पर हॉलीवुड में भी एक फिल्म बन चुकी है. द हंट फॉर रेड अक्टूबर. 1990 में आई थी. टॉम क्लैंसी के 1984 में पब्लिश हुए उपन्यास पर बनी थी. टॉम की खुद की कहानी भी रोचक है. वो लंबे समय तक नौकरी करते रहे थे. बाद में उन्होंने उपन्यास लिखा, बहुत हिट हुआ था. ये कहानी कॉल्ड वार के वक्त की है. इसमें रूस और अमेरिका के बीच की जंग की कहानी है. रूस का एक नेवी कैप्टन अपने अफसरों और लेटेस्ट न्यूक्लियर सबमरीन के साथ अमेरिका की तरफ आना चाहता है. पर अमेरिका का एक अफसर इन लोगों के असली इरादे पकड़ लेता है. वो इरादा क्या है, ये जानकर सबके होश उड़ जाते हैं. नेवी अटैक पर ये बहुत अच्छी फिल्म बनी थी. https://youtu.be/Xn2qOnKuOoc ये भी पढ़ें-

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1. “मूनलाइट” 2. “ला ला लैंड” 3. “मैनचेस्टर बाय द सी” 4. “हैकसॉ रिज” 5. “नॉक्टर्नल एनिमल्स” 6. “फेंसेज़” 7. “अराइवल” 8. “हैल ऑर हाई वॉटर” 9. “फ्लोरेंस फॉस्टर जेनकिन्स” 10. “लविंग”