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G20 Summit: भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कनेक्टिविटी कॉरिडोर क्या है? चीन क्यों हड़बड़ा गया है?

चीन ने ताना मारा है, 'अमेरिका ने पहले भी ऐसे प्रयास किए हैं. पर वो कभी सफल नहीं हुआ.'

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G20 में भारत, मिडल ईस्ट और यूरोप को जोड़ने का ऐतिहासिक फैसला (साभार - ट्विटर)

दिल्ली में चल रहे G20 Summit के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कनेक्टिविटी कॉरिडोर (India-Middle East-Europe) के लॉन्च की घोषणा कर दी है. इस प्रोजेक्ट में भारत के साथ यूएस, जर्मनी, यूएई, सऊदी अरब, यूरोपियन यूनियन (EU), इटली और फ्रांस शामिल होंगे. ये भारत से जुड़ा पहला ऐसा शिपिंग और रेलवे कॉरिडोर होगा. इसके निर्माण और बुनियादी ढांचे पर सहयोग की सहमति बन गई है.

पीएम मोदी ने एक वीडियो पोस्ट में कहा,

'आने वाले समय में ये प्रोजेक्ट भारत, पश्चिम एशिया और यूरोप के बीच इकोनॉमिक इंटीग्रेशन का प्रभावी माध्यम होगा. ये पूरे विश्व में कनेक्टिविटी और विकास को सस्टेनेबिलिटी प्रदान करेगा. मैं सभी लीडर्स को इस शुरुआत के लिए बहुत बधाई देता हूं. मजबूत कनेक्टिविटी और इंफ्रास्ट्रक्चर मानव सभ्यता के विकास का मूल आधार है. भारत ने अपनी विकास यात्रा में इस विषय को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है. फिजिकल इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ सोशल, डिजिटल और फाइनेंशियल इंफ्रास्ट्रक्चर में अभूतपूर्व निवेश हो रहा है. इससे हम विकसित भारत की मजबूत नींव रख रहे हैं. हमने ग्लोबल साउथ के अनेक देशों में एक विश्वसनीय पार्टनर के रूप में सिक्योरिटी, रेलवे, पानी, टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स इंप्लिमेंट किए हैं. भारत कनेक्टिविटी को क्षेत्रिय सीमाओं में नहीं मापता. सभी क्षेत्रों के साथ कनेक्टिविटी बढ़ाना भारत की मुख्य प्राथमिकता है. कनेक्टिविटी विभिन्न देशों के बीच आपसी व्यापार ही नहीं, आपसी विश्वास भी बढ़ाने का स्त्रोत है.'

इस लॉन्च के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा,

'ये एक बहुत बड़ी डील है. मैं प्रधानमंत्री मोदी का शुक्रिया अदा करना चाहूंगा. हम पिछले साल एक साथ आए थे और हमने ये विज़न देखा था.'

क्या है India-Middle East-Europe Economics Corridor?

न्यूज़ एजेंसी एएफपी के मुताबिक इस कॉरिडोर से रेलवे और पोर्ट्स के माध्यम से भारत को मिडल ईस्ट से जोड़ा जाएगा. इसमें यूएई, सऊदी अरब, जॉर्डन और इजराइल जैसे देश शामिल होंगे. साथ ही यूरोप से भी कनेक्टिविटी जोड़ी जाएगी. इस प्रोजेक्ट के पूरे होने से भारत और यूरोप के बीच लगभग 40 प्रतिशत तक ट्रेड तेज हो सकता है.

हमने इस मुद्दे पर एक्सपर्ट्स से भी बात की. मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन और विश्लेषण संस्थान की एसोसिएट फेलो डॉ. स्वस्ति राव ने हमें बताया कि इस प्रोजेक्ट से जियोपॉलिटिक्स पर क्या असर पड़ेगा.

'पिछले 2-3 साल से हम सुनते आ रहे हैं कि हमें अपने सप्लाई चेन्स को मजबूत करना है. उसको ध्यान में रखते हुए ही ये प्रोजेक्ट प्लान किया गया है. चीन का 'बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव' सिर्फ एक इकोनॉमिक प्रोग्राम नहीं है. इसके द्वारा चीन ने एक पॉलिटिकल पकड़ भी बनाई है. अलग-अलग देशों की जमीन को लीज़ पर ले लिया गया है. जब दुनिया को ये समझ में आया, तब सोचा गया कि इसके विकल्प के रूप में हम क्या दे सकते हैं. ये India-Middle East-Europe Economics Corridor इसका ही एक विकल्प है. G7 देश ऐसे कई प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे हैं.' 

हमने जेएनयू के प्रोफेसर अजय दुबे से भी बात की. उनसे हमने समझने की कोशिश की कि ऐसे प्रोजेक्ट्स के इंप्लीमेंटेशन में दिक्कतें क्यों आती हैं.

'इंप्लीमेंटेशन में समस्या ये है कि चीन के पास ढेर सारा धन है, जो वो टेबल पर रख देता है. उसके पास टेक्नोलॉजी और मैनपावर है, जिसका वो इस्तेमाल करता है. बहुत सारे देशों को चीन ने पैसे देकर अपने साइड कर रखा है. एशिया-अफ्रीका के कनेक्टिविटी के इस प्रोजेक्ट में एक दुविधा ये भी है कि ये सब लोकतांत्रिक देश हैं. इनको अपने पैसे लगाने के लिए उसके रिटर्न और जवाबदेही दिखानी पड़ती है. लोकतांत्रिक सेटप में प्रगति धीमी होती है. चीन की तरह एकतरफा काम नहीं होता है. हालांकि, इस प्रोजेक्ट का फायदा ये है कि लोग चीन के डिजाइन को समझने लगे हैं. चीन अब ये समझने लगा है कि अब वो ये कर के बच नहीं पाएगा. बड़े-बड़े देश इसका विकल्प तैयार करने में जुट गए हैं. इस प्रोजेक्ट से चीन पर प्रेशर आएगा क्योंकि अगर लोकतांत्रिक सेटप में एक बार काम शुरू हो जाता है, तो लंबे वक्त तक चलता है.'

चीन का क्या कहना है?

मिडल ईस्ट में अमेरिका की रेलवे योजना पर चीन का कहना है कि ये फिर से 'बातें ज्यादा काम कम' का मामला बनेगा. चीन को अलग-थलग करने का लक्ष्य पूरा नहीं होगा. ये कहना है चीन के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स का. ग्लोबल टाइम्स में लिखा गया,

'मिडल ईस्ट में जो रेल का प्लान अमेरिका ने पेश किया है, चीन के विशेषज्ञों को उसकी विश्वसनियता और व्यावहारिकता पर संदेह है. ऐसे वादे तो अमेरिका पहले भी कर चुका है. लेकिन नतीजे पर कभी नहीं पहुंचता.'

ग्लोबल टाइम्स ने विशेषज्ञों का हवाला देते हुए आगे लिखा,

'बराक ओबामा के कार्यकाल के दौरान, तब की अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने घोषणा की थी कि अमेरिका एक "न्यू सिल्क रोड" लेकर आएगा. जो अफगानिस्तान से निकलेगी और उसके पड़ोसियों को आर्थिक मजबूती लाने में मदद करेगी. लेकिन यह पहल कभी सफल नहीं हो सकी.'

ग्लोबल टाइम्स ने सीधे शब्दों में लिखा कि ये पहल जानबूझकर चीन को अलग-थलग करने की कोशिश में की जा रही है. बाइडन सरकार की मिडिल ईस्ट इंफ्रास्ट्रक्चर प्लान, चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) को काउंटर करने की साफ कोशिश है. जबकि BRI तो इस साल कई उपयोगी परियोजनाओं के साथ अपनी 10वीं वर्षगांठ मना रहा है.

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