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इकॉनमी से जुड़े ऐसे आंकड़े देख केंद्र सरकार को बहुत चिंता होगी

नौकरियों पर खतरा और बढ़ गया है.

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केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण. (फाइल फोटो)

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) कहती हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था जिस तेज़ी से बढ़ रही है, उसे देखकर कुछ लोगों को जलन होती है. ये कहते वक़्त शायद उन्होंने अपनी ही सरकार के एक मंत्रालय के आंकड़ों को नज़रंदाज़ कर दिया. कॉमर्स और इंडस्ट्री मिनिस्टर अनुप्रिया पटेल ने संसद में एक्सपोर्ट इम्पोर्ट के जो आंकड़े रखे हैं, उनसे ऐसी तस्वीर तो क़तई नहीं बनती, जिसे देखकर किसी को जलन हो.

नवंबर में भारत का एक्सपोर्ट 2.63 लाख करोड़ रुपये रहा. पिछले साल भी यह आंकड़ा लगभग इतना ही था. इस बीच नवंबर में आयात बढ़कर 4.61 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया, जो इससे पिछले साल इसी महीने में 4.38 लाख करोड़ रुपये था.

आयात-निर्यात का खेल

आयात-निर्यात की इस उलझन को थोड़ा समझ लेते हैं. निर्यात कम होने का सीधा मतलब है कि किसी देश में बन रहे माल की खपत विदेश में कम हो रही है और आयात बढ़ने का मतलब हो गया कि कोई देश, विदेश में बने माल को ज़्यादा ख़रीद रहा है. अब निर्यात कम हो और आयात बढ़ जाए, तो समझ लीजिए कि अर्थव्यवस्था पटरी से उतर रही है.

अब अगली गुत्थी है ट्रेड डेफ़िसिट या व्यापार घाटे की. ऐसे भारी भरकम शब्द ज़रूर होते हैं, लेकिन उन्हें समझा जाना ज़रूरी है. आयात और निर्यात के बीच जो अंतर है, उससे ट्रेड डेफिसिट कहते हैं. आमतौर पर, भारत में हर साल ट्रेड डेफिसिट होता है क्योंकि हमारा देश निर्यात की तुलना में आयात ज़्यादा करता है.

यह डेफिसिट दर्शाता हैं कि भारत अपने ख़ज़ाने से ज़्यादा पैसे खर्च कर रहा है, जितनी कमाई एक्सपोर्ट से होनी चाहिए उससे ज़्यादा ख़र्चा इम्पोर्ट करने में हो रहा है. भारत का चालू व्यापार घाटा यानी करेंट ट्रेड डेफिसिट 1.97 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया. अक्टूबर में यह डेफिसिट 2.22 लाख करोड़ रुपये था.

व्यापार घाटे की कहानी

आप इन कठिन आंकड़ो के फेर में न उलझें, इसलिए आइए आपको समझाते है कि अंतराष्ट्रीय व्यापार और ट्रेड डेफिसिट (व्यापार घाटा) होता क्या है?

किसी एक देश का दूसरे देश के साथ कच्चे माल, प्रोसेस्ड कमोडिटी या सेवाओं का आदान प्रदान अंतरराष्ट्रीय व्यापार कहलाता है. दुनिया के ज़्यादातर देशों में अंतराष्ट्रीय व्यापार को उनकी जीडीपी में बहुत बड़े योगदान के रूप देखा जाता है. क्योंकि उससे उस देश का माल और अन्य सेवाएं दुनियाभर में ग्राहकों तक अपनी पहुंच बनाते हैं.

ग्लोबल बाजार में माल की बिक्री बढ़ने और पहुंच मजबूत होने से उस देश को डॉलर्स के रूप भारी मात्रा में कमाई होती है, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था और करेंसी मज़बूत बनती हैं. यह डेफिसिट दर्शाता हैं कि भारत अपने ख़ज़ाने से ज़्यादा पैसे खर्च कर रहा है, जितनी कमाई एक्सपोर्ट से होनी चाहिए, उससे ज़्यादा ख़र्चा इंपोर्ट करने में हो रहा है.
 
ट्रेड डेफिसिट से देश के विदेशी मुद्रा भंडार से ज्यादा खर्च होता है और और डॉलर्स की कमाई कम, ऐसे में करेंसी पर दबाव बढ़ने लगता है. फिलहाल, भारत का एक्सपोर्ट बहुत भरोसा नहीं जगाता. अगस्त २०२२ में एक्सपोर्ट ग्रोथ रेट 11 प्रतिशत थी. और सितंबर में 5 प्रतिशत. इसलिए यह चिंता का विषय है कि नवंबर में वृद्धि दर महज 0.6 प्रतिशत रही.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, नवंबर में एक्सपोर्ट में सुधार हुआ क्योंकि दिवाली अक्टूबर में पड़ गई थी और नवंबर में व्यापार चलता रहा. लेकिन २०२१ में क्योंकि दिवाली नवंबर में थी इसलिए ज़ाहिर है कि छुट्टी के कारण एक्सपोर्ट कम हो गया.


व्यापार घाटे के ज़्यादा होने का मतलब है नौकरियों को विदेशों में आउटसोर्स किया जाएगा. क्योंकि अगर आप विदेशों में बनी चीज़ें आयात करेंगे, तो वहां रोज़गार के अवसर बढ़ेंगे और स्थानीय माल की मांग कम हो जाएगी. इससे फैक्ट्रियों के बंद होने और नौकरियों के जाने का ख़तरा बढ़ जाएगा.  

अप्रैल से भारत में हर महीने व्यापार घाटे में उतार-चढ़ाव हुआ है. नवंबर में व्यापार घाटा कम हुआ.  लेकिन जैसा कि आंकड़ों से पता चलता है, यह इसलिए हुआ है क्योंकि भारत का आयात इस महीने कम हुआ. इकॉनमिक्स के मुताबिक, ट्रेड डेफिसिट घटाने का तरीका तेजी से आयात बढ़ाना है.

अप्रैल से नवंबर के दौरान भारत का व्यापार घाटा पिछले 10 सालों की तुलना में सबसे ज़्यादा है. ये समझ लीजिए कि ये बहुत ही ख़तरनाक स्थिति है.

कोरोना महामारी के बाद देश की अर्थव्यवस्था वापस पटरी पर लौटने तो लगी थी, लेकिन फिर रूस-यूक्रेन की जंग हो गई. उधर अमरीका ने अपने यहां ब्याज दरें बढ़ा दीं. भारत पर असर तो पड़ना ही था. नतीजा ये हुआ कि भारत को जितना व्यापार घाटा हुआ, उसकी आशंका सरकार को नहीं थी.  

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