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भारत कि इंडिया? संविधान सभा में देश के नामकरण पर आंबेडकर ने क्या कहा था?

भारत, भारतवर्ष या भारतभूमि नाम भी सुझाए गए थे. डॉ आंबेडकर बार-बार बहस को पटरी पर लाते रहे.

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संविधान सभा में देश के नाम पर चर्चा के दौरान अंबेडकर ने सदन को कई बार याद दिलाया कि सभ्यता संबंधी बहस अनावश्यक है. (फोटो- आजतक)

India या भारत? हमारे देश के ये दो नाम 5 सितंबर से कीवर्ड बनकर खबरों की दुनिया में तैर रहे हैं. क्योंकि इस बात पर भभ्भड़ मचा है कि मुल्क का सही नाम है क्या. दोनों पालों में बंटे लोग अपने-अपने दावे के पक्ष में रेफरेंस खोज रहे हैं. आज़ाद भारत के लिए सबसे तगड़ा रेफरेंस है संविधान सभा में हुई बहस. कि सभा में देश के नामकरण को लेकर क्या चर्चा हुई थी? हमारे संविधान निर्माताओं ने देश का क्या नाम सुझाया? किन-किन नामों पर चर्चा हुई और डॉ आंबेडकर ने किन बिंदुओं पर अपनी बात रखी? 

इंडियन एक्सप्रेस में छपे अपूर्वा विश्वनाथ के लेख के अनुसार संविधान के पहले अनुच्छेद (Article 1) पर चर्चा 17 नवंबर 1948 को शुरू हुई. पर संविधान सभा में शामिल गोविंद बल्लभ पंत के सुझाव पर इस चर्चा को आगे बढ़ा दिया गया. चर्चा आगे बढ़ी. ठीक 10 महीने बाद, यानी 17 सितंबर 1949 के दिन डॉक्टर बीआर आंबेडकर ने संविधान सभा के सामने नाम का फाइनल ड्राफ्ट रखा. ड्राफ्ट में ‘भारत और India’ दोनों नामों जिक्र था. चर्चा शुरू हुई तो कई सदस्य India नाम के इस्तेमाल के पक्ष में नहीं थे. उन्हें India नाम कोलोनियल लेगेसी (औपनिवेशिक इतिहास) का शिकार होने जैसा लगा.

चर्चा आगे बढ़ी. जबलपुर से संविधान सभा के सदस्य सेठ गोविंद दास ने India की जगह ‘भारत’ नाम का पक्ष लिया. वहीं कई सदस्यों का मानना था कि India शब्द अंग्रेजी भाषा में ‘भारत’ शब्द का विकल्प है. सेठ गोविंद दास ने चर्चा के दौरान कहा,

“…'इंडिया, यानी भारत'… किसी देश के नाम के लिए ये अच्छे शब्द नहीं है. हमें कुछ इस तरह लिखना चाहिए, ‘भारत, जिसे विदेश में इंडिया के नाम से भी जाना जाता है’…”

सभा में चर्चा के दौरान हरि विष्णु कामथ ने आयरिश संविधान का उदाहरण सामने रखा. उन्होंने कहा कि ‘India’, ‘भारत’ का ही अनुवाद है. कामथ बोले,

“आयरिश फ्री स्टेट का संविधान कहता है, राज्य का नाम ‘आयर’ है या अंग्रेजी भाषा में आयरलैंड.”

कामथ के मुताबिक आयरलैंड ने अपनी आजादी के बाद अपना नाम बदला था. आयरलैंड के संविधान के आर्टिकल चार में ये बात दर्ज है. यूनाइटेड प्रोविंस के पहाड़ी जिलों से आने वाले कामथ ने साफ किया था कि उत्तर भारत के लोग देश का नाम ‘भारतवर्ष’ रखना चाहते हैं. कामथ ने आगे बताया,

“हमें ये पता होना चाहिए कि ये नाम हमें विदेशियों ने दिया था. जो हमारी समृद्धि के बारे में सुनकर इसके प्रति आकर्षित हुए थे. उन्होंने हमारे देश की संपत्ति हासिल करने के लिए हमसे हमारी आजादी छीन ली थी. यदि हम इसके बाद भी ‘इंडिया’ शब्द से जुड़े रहते हैं तो ये केवल इस बात को दर्शाएगा कि हमें इस अपमानजनक शब्द से कोई शर्म नहीं है, जो कि विदेशी शासकों ने हम पर थोपा.”

कामथ ने देश के लिए तीन नाम सुझाए. भारत, भारतवर्ष या भारतभूमि.

संविधान सभा में बहस के दौरान देश के नाम को लेकर प्राचीन संदर्भों पर भी चर्चा हुई. सेठ गोविंद दास ने बताया कि ‘भारत’ नाम का उल्लेख विष्णु पुराण और ब्रह्म पुराण में भी है. वहीं कई और सदस्यों ने कहा कि सातवीं सदी के चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने देश को ‘भारत’ कहा था. दास ने कहा,

“अपने देश का नाम भारत रखकर हम ऐसा कुछ नहीं कर रहे हैं जो हमें आगे बढ़ने से रोकेगा. हमें अपने देश को ऐसा नाम देना चाहिए जो हमारे इतिहास और हमारी संस्कृति से मेल खाता हो.”

आंबेडकर ने क्या कहा?

संविधान सभा में देश के नाम पर चर्चा के दौरान आंबेडकर ने सदन को कई बार याद दिलाया कि सभ्यता संबंधी बहस अनावश्यक है. क्योंकि ‘भारत’ नाम का किसी सदस्य ने विरोध नहीं किया. कामथ की बात पर आंबेडकर ने कहा,

“हम केवल इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि क्या ‘भारत’ शब्द के बाद India आना चाहिए.”

सभा में सदस्य किशोरी मोहन त्रिपाठी ने विस्तार से बताया कि कैसे ‘भारत’ शब्द हर किसी को भारत के अतीत के गौरव की याद दिलाता है. इस पर आंबेडकर ने पूछा कि क्या ये चर्चा आवश्यक है? नाम पर प्रस्ताव पारित होने से पहले आंबेडकर ने कहा कि अभी बहुत काम किया जाना बाकी है.

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