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भारत हर जगह लीथियम क्यों खोज रहा है? आखिर किस काम आता है ये धातु?

लीथियम का नफ़ा चीन समय से पहले समझ गया था, इसीलिए सबसे बड़ा भंडार वहीं है.

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भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने 12 फरवरी, 2023 को रियासी जिले के सलाल गांव में लिथियम भंडार पाया है.

भारत सरकार ने अर्जेंटीना सरकार के साथ लीथियम अन्वेषण और खनन के लिए एक समझौते पर दस्तख़त किया है. सोमवार, 15 जनवरी को खनन मंत्रालय ने जानकारी दी कि खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड (KABIL) और अर्जेंटीना की सरकारी एंटरप्राइज़ CAMYEN SE के बीच समाझौता हुआ है. ये किसी भारतीय सरकारी कंपनी की पहली लीथियम अन्वेषण और खनन परियोजना है. इस प्रोजेक्ट की कुल लागत 200 करोड़ रुपये होगी. KABIL अर्जेंटीना के काटामार्का प्रांत में दफ़्तर भी खोलने वाला है, जहां CAMYEN SE एंटरप्राइज़ का दफ़्तर है. लगभग 15,703 हेक्टेयर क्षेत्र को कवर किया जाएगा और 5 लीथियम ब्राइन ब्लॉकों की खोजा जाएगा. ब्राइन खारे भूजल (ग्राउंडवॉटर) के समुच्च्य (aggregate) होते हैं, जिसमें लीथियम घुला हुआ होता है.

हाल के महीनों में आपने ये शब्द बार-बार सुना होगा: लीथियम. भारत को अमुक जगह लीथियम का भंडार मिला – ऐसी हेडलाइनें भी पढ़ी होंगी. मगर समझने वाली बात ये है कि भारत लीथियम के पीछे क्यों पड़ा है? लीथियम के लिए सात समंदर पार जाने को क्यों आमादा है?

लीथियम किस काम आता है?

केमिस्ट्री के छात्रों! क्या तुमने कभी पीरियॉडिक टेबल याद किया? कभी ह-ली-ना-ने-की-रब-से.. वाले फ़ॉर्मुला रटा? हमने भी रटा. तो इसमें जो 'ली' है, वही है लीथियम. ग्रे रंग का चमकदार, अलौह धातु (नॉन-फ़ेरस मेटल). सभी धातुओं में सबसे हल्का और सबसे कम सघन. अत्यधिक प्रतिक्रियाशील (रेडियो-ऐक्टिव). इतने गुण हैं, सो इसे 'सफ़ेद सोना' भी कहा जाता है. और जिस गति से अलग-अलग देश लीथियम भंडारों को खोजने में लगे हैं, इसे ‘नए युग की सोने की दौड़’ कहा जा रहा है.

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लीथियम की इतनी मांग क्यों? देखिए, कारों में बहुत ऊर्जा चाहिए होती है. अब गाड़ी को चलना भी है, तेज़ी से चलना है, तो बैटरी बहुत भारी नहीं हो सकती. लीथियम इसके लिए सबसे सही है. भरपूर ऊर्जा सघन करता है, और हल्का भी है. इलेक्ट्रॉन्स के सुचारू प्रवाह को सुनिश्चित करता है. आज, लीथियम लगभग सभी इलेक्ट्रिक गाड़ियों और इलेक्ट्रॉनिक्स में इस्तेमाल की जाने वाली बैटरियों का अहम हिस्सा है.

कार के अलावा लीथियम का इस्तेमाल स्मार्टफोन, लैपटॉप और बाक़ी गैजेट्स की बैटरियों में किया जाता है.  2022 तक लगभग 80% लीथियम की खपत बैटरी के लिए थी. माने जब बैटरी की बात आए, तो लीथियम इज़ द फ़्यूचर.

भारत के लिए ज़रूरी क्यों?

भारत सरकार कर्नाटक, झारखंड, राजस्थान और जम्मु-कश्मीर में लीथियम भंडारों की गुंजाइश खोज रही है. दिनो-दिन लीथियम की मांग बढ़ रही है और उन तत्वों की भी जिनका होना बैटरी के लिए ज़रूरी है. जैसे कोबाल्ट, मैगनीज़ और निकेल. दुनिया में ये तत्व चुनिंदा जगहों पर पाए जाते हैं. यहीं पर चीन का गेम शुरू होता है. चीन को जहां-जहां इन तत्वों के भंडार के बारे में पता चला, उसने क़ब्ज़ा करना शुरू कर दिया. न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स पर छपी एक ख़बर के मुताबिक़, दुनिया के क़रीब आधे लीथियम पर सीधे या अप्रत्यक्ष तौर पर चीन का क़ब्ज़ा है. बोलीविया से लेकर चिली तक.

साल 2040 तक दुनिया की आधे से ज़्यादा गाड़ियां बैटरी पर चलने वाली हैं. यानी बडिंग मार्केट है. जिसने समय पर पैसा लगाया, मुनाफ़ा कमाएगा. जापान में काफ़ी पहले ही इलेक्ट्रिक गाड़ियां बना ली गई थीं, लेकिन बैटरी के मामले में वो चीन पर निर्भर थे. लिहाज़ा मात खा गए. भारत ये ग़लती नहीं करना चाहता.

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इसके अलावा एक और कारण है. संयुक्त राष्‍ट्र जलवायु परिवर्तन सम्‍मेलन (पेरिस 2015) में भारत ने भी कौल लिया कि हम ग्रीन हाउस गैसों को कम करेंगे और परिवहन को कार्बन-रहित करेंगे. इसके तहत इलेक्‍ट्रिक वाहन मोबिलिटी पर ज़्यादा ज़ोर देना होगा.

भारत किस 'काबिल'?

भारत भी इन बैटरियों के मामले में चीन पर निर्भर रहा है. 2019 आते-आते सरकार को समझ आया कि ये खनिज देश के लिए ज़रूरी हैं, और चीन से ख़रीदारी महंगी पड़ रही है. इसके लिए सार्वजनिक क्षेत्र के तीन केंद्रीय प्रतिष्‍ठान- राष्‍ट्रीय एल्‍यूमि‍नियम कम्‍पनी लिमिटेड (NALCO), हिन्‍दुस्‍तान कॉपर लिमिटेड (HCL) तथा मिनरल एक्‍सप्लोरेशन कम्‍पनी लिमिटेड (MECL) की भागीदारी से बनाई गई खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड (KABIL).

काबिल का काम है दुनिया भर में उन खनिजों को तलाशना, जिनकी भारत को ज़रूरत है. इससे दो फायदे होंगे. पहला कि देश को खनिज मिलेगा. दूसरा, रोज़गार पैदा होगा.