‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा (TMKOC)’ देखकर आप फ्रिज की तरफ जाते हैं. ‘भंयकर’ ठंडे पानी की बोतल निकालते हैं. मस्त नींबू निचोड़ कर उसे पीते हैं. फिर फोन निकालकर इंटरनेट चलाने लगते हैं. अचानक से एक मैसेज नजर आता है, I’m not a robot. कुल मिलाकर कंप्यूटर आपसे पूछ रहा होता है कि साबित करें कि आप रोबोट नहीं हैं. भला कोई रोबोट टीवी में शो का मजा लेने के बाद, नींबू पानी पी कर पचा सकता है? शायद नहीं, फिर भी बताइए हम TMKOC प्रेमी इंसानों को कंप्यूटर को साबित करना पड़ता है कि हम रोबोट नहीं हैं. लेकिन ऐसा पूछा क्यों जाता है? और भला कंप्यूटर को एक क्लिक (CAPTCHA) से कैसे पता चल जाता है कि हम आदमी हैं या ‘रोबोट’?
बॉक्स में क्लिक करने से कैसे पता चल जाता है कि हम इंसान हैं या नहीं, CAPTCHA का गणित क्या है?
साल 2000 का दौर था तब Yahoo का ईमेल लोग इस्तेमाल किया करते थे. आम लोग तो ठीक, लेकिन scammers भी ईमेल इस्तेमाल करने लगे. लोगों को दनादन spam messages भेजने लगे, तमाम फर्जी ईमेल बनाने लगे. इसी का तोड़ निकाला गया CAPTCHA से.
कंप्यूटर शतरंज खेल सकते हैं. यहां तक ग्रैंडमास्टर्स को हरा तक देते हैं. अब तो Chat-GPT और Gemini जैसे AI चैट बॉट चुटकुले तक सुना देते हैं. कविता लिख देते हैं. कक्षा-4 के बच्चे का होमवर्क करने से लेकर रिसर्च तक कर देते हैं. लेकिन ये क्या माजरा है कि ये ‘I am not a robot’ वाले छोटे से बॉक्स में एक क्लिक नहीं कर सकते, या कर सकते हैं? ये सब समझने से पहले हम रोबोट और इंसानों के इस ‘बवाल’ को समझते हैं. जिसकी शुरुआत हुई थी कैप्चा (CAPTCHA) से.
CAPTCHA क्या बला है?IRCTC की वेबसाइट हो या ऑनलाइन शॉपिंग कहीं न कहीं, ये CAPTCHA दिख ही जाता है. CAPTCHA माने Completely Automated Public Turing test to tell Computers and Humans Apart. काफी भारी नाम है, खैर…
इसमें कभी कुछ अजीब से लहराते शब्द लिखे होते हैं, तो कभी साइकिल, ट्रक वगैरह के फोटो. जिसमें हातिम के सवालों की तरह, हमसे पूछा जाता है. पहचानो इसमें से किस बॉक्स में साइकिल हैं. किसमें ट्रक. फिर किस्मत अच्छी हुई तो, बस दो चार बार ट्राई करने के बाद, आखिर कंप्यूटर मान लेता है कि हम रोबोट या बॉट नहीं हैं. लेकिन इतना ताम-झाम किया क्यों जाता है?
CAPTCHA की जरूरत क्यों पड़ी?साल 2000 का दौर था.तब Yahoo का ईमेल लोग इस्तेमाल किया करते थे. आम लोग तो ठीक, लेकिन स्कैम करने वाले भी ईमेल इस्तेमाल करने लगे. आज जैसे हमको स्कैम वाले ईमेल आते हैं, उस वक्त भी ये ईमेल हजारों की संख्या में भेजे जाने लगे. फिर Yahoo ने सोचा, एक दिन में भेजे जा सकने वाले ईमेल में लिमिट लगा देते हैं. लिमिट लगाकर प्रति ईमेल 500 कर दी गई. लेकिन स्पैमर्स कहां मानने वाले थे.
फिर सिलसिला शुरू हुआ हजारों फर्जी ईमेल अकाउंट खोलने का. लेकिन ये कोई शख्स साइबर कैफे में बैठकर, 10 रुपये में 1 घंटा कंप्यूटर चलाकर नहीं कर रहा था. ये किया जा रहा था, कंप्यूटर कोड के जरिए बने बॉट से. जिससे ऑटोमेटिक ईमेल बनाए जा रहे थे. मतलब बिना किसी इंसान के, ये बॉट Yahoo की वेबसाइट पर जाकर, ईमेल बनाने का प्रॉसेस खुद से दोहरा सकते थे, ईमेल बना सकते थे. लाखों की संख्या में फर्जी ईमेल बनने लगे. Yahoo वाले परेशान हो गए कि इसको रोका कैसे जाए.
यहीं पिक्चर में आते हैं, लुइस वॉन ऑन (Luis Von Ahn) और इनका बनाया ये CAPTCHA. जो एक तरह का साइबर सिक्योरिटी टूल बना. जो ऐसे बॉट और इंसानों में फर्क बताकर वेबसाइट का काम आसान कर रहा था.
CAPTCHA समझने में बॉट होते गए तेजCAPTCHA के साथ एक दिक्कत है. वो ये कि ये ऐसा टेस्ट होना चाहिए, जो कंप्यूटर पास ना कर पाए, लेकिन जिसकी जांच कंप्यूटर कर सकें. अलग उलझन है! मतलब ये तो वही बात हो गई कि जो मास्टर साहब खुद टेस्ट ना पास कर पाएं, वही मास्टर साहब वो टेस्ट चेक कर रहें.
इसको समझते हैं, फर्ज कीजिए स्कैम करने वाले बॉट या कंप्यूटर के सामने CAPTCHA आता है. जिसमें ऐसे अक्षर दिख रहे हैं ,जो सिर्फ इंसान देखकर समझ सकते हैं, कंप्यूटर नहीं. इस CAPTCHA को कोई इंसान तो पढ़कर आसानी से लिख देगा, लेकिन बॉट नहीं. इसको टेक्निकल भाषा में ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकॉग्निशन कहते हैं.
सरल भाषा में समझें तो किसी आकृति को देखकर उसकी जैसी आकृति को पहचानना. पता चला कि हम इंसान इसमें काफी अच्छे होते हैं. लेकिन उस दौर के कंप्यूटर नहीं. इसलिए वेबसाइट के सर्वर में डाटा फीड करना पड़ता है. ताकि उसे पता चल सके कि कब सही CAPTCHA डाला गया कब नहीं. वो भी एक कंप्यूटर ही है. लेकिन उसके पास CAPTCHA पहचानने की कुंजी होती है.
सही CAPTCHA पहचान सकने की इंसानों की शक्ति का फायदा दबाकर उठाया गया. लेकिन फिर कंप्यूटर और स्मार्ट होते गए. उनमें ये डाटा फीड होता गया कि फलाने आकृति का मतलब ये होता है. जैसे S का मतलब हम इंसान S समझते हैं. पर फिर ये कंप्यूटर बॉट भी इनका मतलब समझ कर CAPTCHA डालने में तेज हो गए. आलम ये था कि 2014 के एक सर्वे में देखा गया कि गूगल का AI 99.8% सटीक CAPTCHA डाल सकता था. वहीं कठिन CAPTCHA समझना इंसानों के लिए मुश्किल होता गया क्योंकि अब अक्षर ज्यादा उटपटांग से होने लगे. मतलब इंसान खुद ही CAPTCHA नहीं डाल पा रहे थे और रोबोट डाल ले रहे थे.
फिर एक नए तरीके की जरूरत पड़ी. तब आया ये I’m not a robot. वाला बॉक्स. जिसे चेकबॉक्स रिकैप्चा कहते हैं.
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कितनी बार बताऊं, मैं रोबोट नहीं हूं!I’m not a robot, वाला ये CAPTCHA चेकबॉक्स रिकैप्चा कहलाता है. इसमें आपको कुछ टाइप नहीं करना, कोई फोटो नहीं पहचाननी. बस क्लिक करना है, एक छोटे से बॉक्स में. और इतने में सामने कंप्यूटर बता देता है कि आप रोबोट या कहें ऑटोमेटेड बॉट नहीं हैं.
दरअसल, इसके पीछे हैं ‘बिहेवियर ट्रैकिंग कैप्चा टेस्ट.’ मतलब व्यवहार के आधार पर कंप्यूटर और इंसानों में फर्क बताने का तरीका. होता ये है कि ये टेस्ट बॉक्स में क्लिक करने से ज्यादा उसके पहले के प्रोसेस को ट्रैक करता है. माने AI के जरिए आपके माउस के कर्सर (स्क्रीन में दिखने वाला तीर) की चाल को ट्रैक किया जाता है. किसी इंसान के कैप्चा बॉक्स क्लिक करने और किसी बॉट के बॉक्स में क्लिक करने के तरीके में अंतर होता है.
कोई बॉट एक फिक्स पैटर्न में बॉक्स में क्लिक करेगा. क्योंकि वो किसी कंप्यूटर कोड के सहारे चल रहा है. लेकिन हम इंसानों के व्यवहार का अनुमान लगाना मुश्किल है. मतलब हम जिस तरीके से लहराते हुए, ले जाकर माउस को क्लिक करेंगे वो यूनीक होता है. इस व्यवहार में अंतर हम इंसानों को कंप्यूटर से अलग करता है.
कैप्चा बनाने वाले
कुल मिलाकर बात ये है कि CAPTCHA की तकनीक लगातार बदली है, लगातार बदल रही है. जैसे-जैसे कंप्यूटर और बेहतर होते जा रहे हैं. वैसे-वैसे ये CAPTCHA जो इंसानों और कंप्यूटर के बीच भेद बताने में मदद करते हैं, ये भी बदलते जा रहे हैं.
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