हैदराबाद विश्वविद्यालय के कई छात्रों को साइबराबाद पुलिस ने 30 मार्च की दोपहर हिरासत में ले लिया. छात्र ईस्ट कैंपस में ‘ज़मीन की सफाई’ के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे. यह 400 एकड़ जमीन यूनिवर्सिटी से सटी हुई है, जिसको लेकर यूनिवर्सिटी के छात्रों और तेलंगाना सरकार के बीच विवाद चल रहा है. इसी जमीन पर सफाई के लिए बुलडोज़र आए तो छात्र भड़क गए. जमीन विवाद क्या है, इस पर बात करेंगे, पहले जान लेते हैं 30 मार्च को क्या हुआ था.
हैदराबाद यूनिवर्सिटी से सटी 400 एकड़ की जमीन को लेकर क्यों आमने-सामने हैं छात्र और सरकार?
छात्रों के अनुसार, रविवार को भारी पुलिस बल की तैनाती के बीच बड़ी संख्या में बुलडोज़र्स और अर्थ मूवर्स को काम पर लगाया गया. इस बात की भनक लगते ही बड़ी संख्या में छात्र मौके पर पहुंच गए और सरकार के खिलाफ नारे लगाने लगे. छात्रों का प्रदर्शन देखते हुए पुलिस ने कार्रवाई शुरू कर दी.


छात्रों के अनुसार, रविवार को भारी पुलिस बल की तैनाती के बीच बड़ी संख्या में बुलडोज़र्स और अर्थ मूवर्स को काम पर लगाया गया. इस बात की भनक लगते ही बड़ी संख्या में छात्र मौके पर पहुंच गए और सरकार के खिलाफ नारे लगाने लगे. छात्रों का प्रदर्शन देखते हुए पुलिस ने कार्रवाई शुरू कर दी. यूनिवर्सिटी के छात्र आरोप लगाते हैं कि विवादित जमीन से छात्रों को ‘मनमाने तरीके से’ हिरासत लिया. आरोप ये भी है कि पुलिस अकादमिक बिल्डिंग में भी घुसी.
हैदराबाद यूनिवर्सिटी से आई तस्वीरों में दिखाई दे रहा है कि छात्रों को पुलिस उठाकर ले जा रही है. इसके अलावा छात्राओं और महिला पुलिस के बीच भी खींचतान की तस्वीरें सामने आईं हैं. कुछ छात्रों ने इस दौरान कपड़े फटने और चोटिल होने के भी आरोप लगाए हैं.

छात्रों को हिरासत में लेने पर साइबराबाद पुलिस का भी पक्ष सामने आया है. टाइम्स ऑफ इंडिया ने पुलिस के हवाले से लिखा है कि कुल 52 छात्रों को प्रिवेंटिव कस्टडी में लिया गया. पुलिस का कहना है कि इन छात्रों के खिलाफ सरकारी काम में बाधा पहुंचाने के आरोप में कार्रवाई की जा सकती है. हिरासत में लेने के बाद छात्रों को अलग-अलग पुलिस थानों में ले जाया गया.
छात्रों का बयानहैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्र संघ ने एक बयान जारी कर कहा कि वो शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर पुलिस की ‘बर्बरता और गैरकानूनी हिरासत’ की कड़ी निंदा करता है. बयान में कहा गया है,
"अपने लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग करने वाले छात्रों के खिलाफ बल का प्रयोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और परिसर की स्वायत्तता पर एक बड़ा हमला है. यह बेहद परेशान करने वाला है कि भूमि अतिक्रमण पर लंबे समय से चली आ रही चिंताओं को दूर करने के बजाय, विश्वविद्यालय प्रशासन चुप रहा है जबकि सुरक्षा बल और पुलिस के जवान छात्रों की आवाज़ को हिंसक तरीके से दबा रहे हैं. बिना किसी आधिकारिक सूचना के हमारे महासचिव निहाद सुलेमान सहित 30 से अधिक छात्रों को हिरासत में लेना अस्वीकार्य है और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है."
इसके अलावा छात्रसंघ ने कहा है कि उनका विरोध प्रदर्शन जारी रहेगा. उसने अन्य संगठनों से भी एकजुटता दिखाने की अपील की है. कहा,
400 एकड़ जमीन विवाद"हम अतिक्रमण के मुद्दे पर प्रशासन से स्पष्ट बयान और शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के खिलाफ बल प्रयोग के लिए जवाबदेही की मांग करते हैं. संयुक्त कार्रवाई समिति के हिस्से के रूप में छात्र संघ कानूनी और राजनीतिक साधनों के माध्यम से इस भूमि अधिग्रहण का विरोध करना जारी रखेगा. हम विश्वविद्यालय समुदाय, सिविल सोसायटी और मीडिया से हमारे परिसर और इसकी पारिस्थितिक अखंडता की रक्षा के लिए लड़ रहे छात्रों के साथ एकजुटता से खड़े होने का आह्वान करते हैं."
इस 400 एकड़ जमीन को तेलंगाना सरकार विकसित करने और वहां एक आईटी पार्क स्थापित करने की योजना बना रही है. कांचा गाचीबोवली में 400 एकड़ भूमि का ये टुकड़ा हैदराबाद विश्वविद्यालय की सीमा से सटा है. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक 19 जून, 2024 को तेलंगाना औद्योगिक अवसंरचना निगम (TGIIC) ने यहां IT पार्क और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए भूमि का उपयोग करने का प्रस्ताव रखा और सरकार की मंजूरी मांगी. जवाब में, राजस्व विभाग के राज्य प्रधान सचिव ने आधिकारिक तौर पर 24 जून, 2024 को भूमि के अधिकार TGIIC को हस्तांतरित कर दिए. 1 जुलाई, 2024 को सेरिलिंगमपल्ली के राजस्व अधिकारियों ने पंचनामा के माध्यम से औपचारिक हस्तांतरण कर दिया.
लेकिन विश्वविद्यालय के छात्रों और कुछ अन्य वर्ग पर्यावरण संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए इस प्रस्ताव का विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि इस परियोजना से स्थानीय इकोसिस्टम पर असर पड़ेगा. वे दावा करते हैं कि सरकार पर्यावरणीय चिंताओं के लिए उन्हें आश्वस्त नहीं कर पाई है.
सरकार ने क्या कहा?वहीं तेलंगाना सरकार ने कहा कि हैदराबाद के सेरिलिंगमपल्ली मंडल के कांचा गाचीबोवली गांव में जिस 400 एकड़ भूमि को लेकर हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्रों का एक समूह आंदोलन कर रहा है, उसकी एकमात्र मालिक राज्य सरकार ही है. सरकार ने अपने बयान में कहा कि परियोजना का विरोध पूरी तरह से राजनीतिक है और छात्रों को रियल एस्टेट में रुचि रखने वाले सरकार विरोधियों द्वारा गुमराह किया जा रहा है.
रेवंत रेड्डी सरकार ने कहा है कि बफ़ेलो झील और पीकॉक झील TGIIC द्वारा विकसित किए जा रहे 400 एकड़ भूमि का हिस्सा नहीं हैं. साथ ही, TGIIC ने ग्रीन स्पेस के रूप में मशरूम रॉक सहित अन्य संरचनाओं को संरक्षित करते हुए एक लेआउट तैयार किया है.
इस विवाद पर कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री और IT मंत्री ने विधानसभा में भी बयान दिया था. इंडियन एक्सप्रेस में छपे बयान के मुताबिक मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी ने दावा किया,
"विरोध प्रदर्शन राजनीति से प्रेरित हैं. उस क्षेत्र में कोई बाघ या हिरण नहीं है, लेकिन कुछ चालाक 'लोमड़ियां' विकास में बाधा डालने की कोशिश कर रही हैं.”
सीएम ने आरोप लगाया कि विपक्ष छात्रों के विरोध को भड़का रहा है और परियोजना को रोकने के लिए जनहित याचिका दायर कर रहा है. इसके अलावा आईटी और उद्योग मंत्री डी श्रीधर बाबू ने विधानसभा में कहा कि प्रस्तावित नीलामी के लिए निर्धारित भूमि विश्वविद्यालय की नहीं है और राज्य सरकार संपत्ति की एकमात्र मालिक है.
यूनिवर्सिटी ने क्या कहा?इस पूरे विवाद पर हैदराबाद विश्वविद्यालय का पक्ष भी सामने आया है. यूनिवर्सिटी ने बयान जारी कर कहा है,
किसकी है ये 400 एकड़ जमीन?"हैदराबाद विश्वविद्यालय यह स्पष्ट करना चाहता है कि जुलाई 2024 में राजस्व अधिकारियों द्वारा विश्वविद्यालय परिसर में कोई सर्वेक्षण नहीं किया गया था. यह सर्वेक्षण 400 एकड़ भूमि को चिह्नित करने के लिए बताया जा रहा था, जिसे राज्य सरकार ने 2006 में IMG अकैडमीज भारत प्राइवेट लिमिटेड से वापस लिया था. अभी तक केवल भूमि के भूभाग (टोपोग्राफी) की प्रारंभिक जांच की गई है.
विश्वविद्यालय TGIIC के उस बयान को भी खारिज करता है, जिसमें कहा गया था कि उसने (विश्वविद्यालय ने) इस भूमि के चिह्नीकरण (डिमार्केशन) के लिए सहमति दे दी है. वास्तव में, अब तक न तो कोई चिह्नीकरण किया गया है और न ही इस बारे में विश्वविद्यालय को कोई सूचना दी गई है.
हैदराबाद विश्वविद्यालय राज्य सरकार से अपनी भूमि को सौंपने की मांग कर रहा है. विश्वविद्यालय सभी हितधारकों (स्टेकहोल्डर्स) के सुझावों को राज्य सरकार तक पहुंचाएगा और उनसे अनुरोध करेगा कि वे इस क्षेत्र के पर्यावरण और जैव विविधता को संरक्षित करने पर विचार करें."
इस जमीन पर तेलंगाना सरकार और IMG अकैडमीज भारत प्राइवेट लिमिटेड के बीच लंबी कानूनी लड़ाई भी रही है. सरकार की तरफ से जारी किए गए बयान में कहा गया है कि 2004 में, स्पोर्ट्स इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के लिए IMG अकेडमीज भारत प्राइवेट लिमिटेड को भूमि आवंटित की गई थी. लेकिन 2006 में, तत्कालीन सरकार ने परियोजना शुरू करने में कंपनी की विफलता के कारण आवंटन रद्द कर दिया और भूमि को आंध्र प्रदेश यूथ एडवांसमेंट, टूरिज़्म और कल्चरल डिपार्टमेंट को सौंप दिया. इसके कारण एक लंबी कानूनी लड़ाई चली. IMG अकेडमी ने 2006 में उच्च न्यायालय में भूमि आवंटन रद्द करने के खिलाफ याचिका दायर की.
7 मार्च, 2024 को तेलंगाना उच्च न्यायालय ने सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया. हाई कोर्ट ने सरकार को जमीन के मालिक होने की पुष्टि की. IMG अकेडमी ने उच्च न्यायालय के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी. सुप्रीम कोर्ट ने भी 3 मई, 2024 को उनकी अपील को खारिज कर दिया. कानूनी बाधाओं को दूर करने के बाद, राज्य सरकार ने भूमि पर कब्जा कर लिया.
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