सड़क के किनारे चलते चलते नजर आता है एक तम्बू और उसके दरवाजे पर रखा एक स्पीकर जो ये चीख-चीखकर कह रहा है कि मूर्खों कहां भटक रहे हो अपोलो और टाटा अस्पताल के चक्कर में, हमसे बड़ा अस्पताल फिल वक्त कौनो है नहीं दुनिया में. हम रखते हैं सारी मर्ज का इलाज. इनके पास जाकर देख लो तो आपके अंदर ऐसी बीमारियां निकल आएंगी जिनका अभी तक कोई अस्तित्व नहीं है. लेकिन ये कंसंट्रेट करते हैं गुप्त रोगों पर. गुप्त रोग यानि कान के रोग. मतलब जो सीधे कान में फूंक कर बताए जाते हैं. यही हाल तमाम गुप्त रोगों के पितामह डॉक्टर जैन, हकीम हाशमी और खानदानी दवाखानों का है. इन सब में एक बात कॉमन होती है इनके द्वारा दी जाने वाली दवाओं के फॉर्मूले. वो उसमें कुछ बड़े एंटीक आइटम डालने की बात करते हैं जिनमें खास होते हैं सांडा, मूसली और शिलाजीत.
इनका नाम अखबार में नपुंसकता दूर करने वाले विज्ञापनों में इतना देखते हैं कि रट जाते हैं लेकिन इनकी असली कहानी बहुत कम लोग जानते हैं. और करीब से देखते हैं इन चीजों के बारे में-
सांडा- सांडे का तेल बड़े कमाल की चीज है जिसे हकीम लोग लिंग का एवरीथिंगपन(टेढ़ापन, पतलापन, छोटापन) दूर करने के लिए कस्टमर को चिपकाते हैं, ये निकाला जाता है सांडा नाम के जीव से. इसका वैज्ञानिक नाम युरोमेस्टिक हार्डवीकी है. छिपकली जैसा होता है सरीसृप परिवार का प्राणी है. शकल से भले शक्ति कपूर जैसा डरावना हो लेकिन होता है सीधा आलोक नाथ जैसा. इसी सीधेपन का फायदा उठा कर शिकारी इनको धर लेते हैं. तुलसी ने कहा है न 'अधिक सिधाई है बड़दोसू' राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में पाया जाता है, शुष्क माहौल में रहने वाला है. नर सांडा की लम्बाई 2 फुट तक हो सकती है लेकिन मादा की कम होती है. इसके पास पंजे बड़े मजबूत होते हैं लेकिन उनका इस्तेमाल सिर्फ बिल खोदने के लिए करता है ये नहीं कि पकड़ने वालों को खर्चा पानी दे सके. कहा जाता है कि इसके तीन दांत होते हैं, एक ऊपर की तरफ और दो नीचे. अप्रैल मई के महीने में इनका इश्क परवान चढ़ता है और मादा हो जाती है प्रेगनेंट. फिर ये 15-20 अंडे देती है लेकिन आधे से ज्यादा बेकार हो जाते हैं.
Source- Pintrest
पकड़ने वाले बहुत होशियारी से काम लेते हैं क्योंकि ये भी थोड़ा सयाना होता है. यह अपने बिल को मिट्टी से ढंककर रखता है और पकड़ने वाले उस बिल को खोज लेते हैं जहां ताजी मिट्टी भरी होती है. फिर या तो उसको खोद देते हैं या उसमें कर देते हैं धुंआ, बेचारे सांडाराम को मजबूरन बाहर आना पड़ता है. पकड़ते ही पहला वार होता है कमर पर जिससे भागने के काबिल रह नहीं जाता और फिर काट कर मांस खा लेते हैं.
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अब सोचो तेल कहां गया, तो तेल इधर है भाईसाब. इसकी पूंछ के पास होती है एक छोटी सी थैली. इस थैली की चर्बी को गरमा कर दो तीन बूंद तेल निकल आता है बस. इतनी सी बात के लिए बेचारे को जान गंवानी पड़ती है. अब सुनो असली बात. यह लिंग के सेंटीनेंस के लिए दवाई हैये नहीं है. इसमें होता है पॉली अन्सेच्युरेटेड फैटी एसिड, जोड़ो और मांसपेशियों के दर्द में राहत देता है ये.
लोग इसको भिंडी की सब्जी की तरह खुल कर बेंच रहे हैं जबकि सांडा मारना अब गैरकानूनी है. इसको विलुप्तप्राय प्रजाति घोषित कर दिया गया है. अगली बार मर्द बनने के लिए किसी मजबूर का निकाला तेल लगाने की बजाय अमिताभ की फिल्म देख लीजिए और गाना गाइये- मैं हूं मर्द तांगे वाला.
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