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बच्ची जो हीरोइन बन गई, उसने सुनाया कश्मीर के ब्लास्ट और फौजियों का किस्सा

हुमा कुरैशी और साकिब सलीम का कश्मीर कनेक्शन. किस्से और ख्वाहिशें.

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दी लल्लनटॉप के एडिटर सौरभ के साथ बातचीत के दौरान हुमा कुरैशी

हुमा कुरैशी. हीरोइन. साकिब सलीम. हीरो. दोनों बहन-भाई. दिल्ली के. दोनों की फिल्म आ रही है. एक साथ. नाम है, 'दोबारा- see your evil'. 2 जून को रिलीज होगी. उसी के सिलसिले में वो लल्लनटॉप न्यूजरूम आए. इनकी मम्मी कश्मीर की हैं. कश्मीर खबरों में है. हमने कश्मीर पर सवाल पूछे. जवाब में ये सुनने को मिला. किस्से और ख्वाहिशें.

साकिब सलीम-

मैं पॉलिटिकली इनकरेक्ट हूं. मन की बात बोलूंगा. मैं श्रीनगर तीन साल रहा. (क्रिकेट खेलने के वास्ते. दिल्ली में आखिरी वक्त में सेलेक्शन नहीं हुआ, तो वहां चले गए. वहां से खेल पाए, क्योंकि मां कश्मीरी हैं.) मेरी मदर गुरेज (श्रीनगर के पास एक छोटा कस्बा) से हैं. उस दौरान साल में छह-छह महीने तक रहा. देखता था कि श्रीनगर में इंजीनियर और लॉयर ऑटो चलाते हैं. कोई लाइफ नहीं छह बजे के बाद. तब कभी मेरे कश्मीरी कजिन दिल्ली आते, तो हमें यहां देख भौंचक्के रह जाते. हमें यहां सब आजादी थी. रात 11 बजे तक घूमते. जो मन में आए करते. तब मुझे उनके लिए बुरा लगता.


साकिब सलीम
साकिब सलीम

कश्मीर मैं क्रिकेट खेलने गया था. उसका भी स्ट्रक्चर दुरुस्त नहीं था. बस जुगाड़ से हो रहा था सब. मुझे लगता है कि कश्मीर नेगलेक्टेड पार्ट ऑफ कंट्री है. वहां विकास नहीं हुआ. आप सुनते हैं लोगों ने पथराव कर दिया या आर्मी ने कर दिया. भाई हर कहानी के दो पहलू होते हैं.

जो भी गलती हो रही है, वहां के लोग सह रहे हैं. कुछ लोग बहुत गलत हैं, जो पथराव करते हैं. कुछ ऐसे भी हैं, जो शांति चाहते हैं. वो सफर (अंग्रेजी वाला शब्द) कर रहे हैं. आम लोग हैं.

आर्मी हमारा बहुत ध्यान रख रही है. हम सुकून से यहां बैठे हैं उनकी वजह से. मुझे लगता है कि कहीं कोई मिसकम्युनिकेशन है. सही पिक्चर नहीं दिख रही है. हर चीज इंडिया-पाकिस्तान में फंस जाती है. ऐसे में कश्मीरी तय नहीं कर पा रहे कि कहां जिएं, कहां मरें.

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हुमा कुरैशी-

कश्मीर बहुत इमोशनल जगह है. नाना-नानी, खाला-खालू, भाई-बहन. अब ग्रैंड पेरेंटस नहीं रहे. जब वो जिंदा थे, हम हर साल जाते थे. 91 से याद है. ये सबसे बुरा दौर था.

हमने बम धमाका अपनी आंख से देखा. साकी बहुत छोटा था. हम खाला के घर थे. सुबह सोकर उठे, तो पता चला कि पीछे वाली बिल्डिंग में ब्लास्ट हुआ था. आर्मी आई. क्वेश्न किया. सबके पास आईडी थी. हम दिल्ली से थे. ये सब नहीं देखा था पहले कभी. हम कालका जी (दिल्ली का एक मोहल्ला) के पब्लिक स्कूल में जाने वाले बच्चे थे. ऐसा लगा कि जैसे फिल्म में हैं.

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जब आर्मी वालों को पता चला कि हम दिल्ली से हैं, तो मुहब्बत से मिले. मेरी दो चोटी होती थी. तो वो खेल रहे थे उनके साथ. मस्ती कर रहे थे. हमें भी डर नहीं लगा. मगर वहां के लोगों में दहशत होती है. तब भी थी. अब भी है.

जो अफोर्ड कर पाते हैं, वो बाहर चले जाते हैं. पढ़ने या काम करने. मगर अभी के जो यंग लोग हैं, पूरी जेनरेशन है. जो कभी बाहर नहीं आई, उनको ही संभालना है.

मैं उम्मीद और प्रार्थना करती हूं कि सरकार इसका कुछ समाधान कर ले. आर्मी पर बात डालना ठीक नहीं. आर्मी अच्छा कर रही है. मगर किसी भी सिविलियन आबादी में लंबे वक्फे के लिए मिलिट्री रूल रहे, ये ठीक नहीं है.

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मैं हिंदुस्तानी हूं. संविधान हक देता है कि अपनी सोच खुलकर बयान करूं, इसलिए ये सब बोल रही हूं. मैं एक पढ़ी-लिखी मुस्लिम लड़की हूं. मुझे अपने काम के लिए नाम और प्यार मिलता है. और यही प्यार मैं अपने देश से करती हूं. इसलिए चाहती हूं. कश्मीर में हालात सुधरें.

देखिए साकिब और हुमा की किस्सागोई का वीडियो:




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