चार साल की एक लड़की. रिफ़्यूजी कैम्प में अपनी मां के साथ रहती है. एक दिन खेलते-खेलते लड़की को संतरे का एक पेड़ दिखाई देता है. रिफ़्यूजी कैम्प में संतरे मुश्किल से मिलते थे. बाल मन ने मासूमियत में एक संतरा तोड़ लिया. घर जाकर मां को दिखाया तो मां ने पूछा, कहां से लाई. लड़की ने बताया पेड़ से. तब मां को अहसास हुआ उसकी बेटी पड़ोसी के पेड़ से संतरा लेकर आ गई है. ये चोरी थी. लेकिन बच्चे को ये समझाया कैसे जाए. तब उसकी मां ने कहा,
प्लेन हाईजैक, 6 बार कराई चेहरे की सर्जरी, क्या है लैला खालिद की कहानी?
साल 1969 में रोम से इजरायल की ओर जाने वाली फ्लाइट TWA 840 को लैला खालिद और उसके साथी ने हाईजैक कर लिया. इस वाकये के बाद वे दुनियाभर में फिलिस्तीन रेजिस्टेंस मूवमेंट का सबसे बड़ा सिम्बल बन गईं थीं.
“बेटी ये हमारी ज़मीन नहीं है. तुम्हारे हिस्से के संतरे तुम्हारे अपने देश में हैं”
चार साल की उस लड़की को उस दिन पता नहीं था , देश क्या होता है. लेकिन उस दिन के बाद उसने कभी संतरे को हाथ तक नहीं लगाया. जब वो बड़ी हुई, उसे अहसास हुआ कि जिसे मां अपना देश कहती थी. वो अपना नहीं है. अपने हिस्से के संतरे हासिल करने के लिए फिर एक रोज़ उस लड़की ने बॉम्ब उठाया. और बन गई दुनिया की पहली महिला हाईजैकर.
ये कहानी है लैला खालिद की. लैला खालिद - जो एक पक्ष के लिए आतंकी है. और दूसरे के लिए क्रांतिकारी. इस तराजू में अपना कोई बांट नहीं है. लेकिन इतना सच है कि हाथ में गोलियों की अंगूठी, सिर पर केफिया और हाथ में AK 47 थामे हुए लैला की ये तस्वीर 1970 के दशक में फिलिस्तीन रेजिस्टेंस मूवमेंट का सबसे बड़ा सिम्बल बन गई थी.
क्या है लैला खालिद की कहानी?29 अगस्त 1969 की तारीख. दोपहर का समय. इटली की राजधानी रोम के एक हवाई अड्डे से फ्लाइट TWA 840 उड़ान भरने वाली थी. इसकी मंजिल थी- इजरायल का बेन गुरियन एयरपोर्ट. इंतज़ार कर रहे यात्रियों में एक नाम था- लैला खालिद. उड़ान से पहले लैला पशोपेश में थी. उसके बगल में एक शख्स बैठा हुआ था. लैला को जब पता चला कि वो अमेरिकी है. उसका मन हुआ उसे उतरने के लिए बोल दे. लेकिन लैला ने ऐसा नहीं किया. दिल में उठे दया के किसी भी भाव को वो आज दबा देना चाहती थी.
वो वेटिंग लाउंज में बैठी थी. उसके आसपास एक और शख्स मंडरा रहा था - सलीम इसावी. दोनों सहयोगी थे लेकिन फ्लाइट में चढ़ने से पहले दोनों ने बात तक नहीं की. एक दूसरे को देखा तक नहीं. कुछ देर बाद प्लेन के टेक ऑफ का टाइम हुआ. टेक ऑफ के बाद एयर होस्टेस खाना लेकर आई. लेकिन लैला ने खाना लेने से इंकार कर दिया. उसने एयर होस्टेस से कहा कि उसे ठंड लग रही है. इसलिए उसे एक कम्बल और एक कप कॉफ़ी चाहिए. कॉफ़ी पीने के बाद उसने कम्बल ओढ़ा और अपनी सीट पर पसर गई.
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फ्लाइट में सब कुछ ठीक चल रहा था. लेकिन बाहर बाहर. कम्बल के अंदर लैला अपने कपड़े टटोल रही थी. कमर में उसने एक पिस्टल और एक हैंडग्रेनेड छुपा रखा था. ये वो दौर था, जब प्लेन यात्रा के लिए इतनी चेकिंग नहीं होती थी, जैसी आज होती है. इसलिए लैला हथियारों को लेकर आराम से प्लेन में चढ़ गई. उसने कम्बल हटाकर पिस्तौल निकालने की कोशिश की. तभी एक शख्स तेज़ी से सीट के बीच से गुजरा और सीधा कॉकपिट में घुस गया. ये सलीम इसावी था. लैला का साथी, इसावी ने सीधे जाकर पायलट की कनपटी पर पिस्तौल तान दी.
अब बारी लैला की थी. जल्दबाज़ी में उसने उठने की कोशिश की. लेकिन इसी चक्कर में उसकी पिस्तौल जमीन में गिर गई. हैंड ग्रेनेड अभी भी उसके हाथ में था. प्लेन में बैठे सभी लोग जो अभी तक भौंचक्के इस नज़ारे के देख रहे थे. जल्द ही उन्हें समझ आ गया कि प्लेन हाईजैक हो गया है. लैला खालिद और सलीम इसावी ने प्लेन अपने कंट्रोल में ले लिया. वे क्या चाहते थे, ये अब तक किसी को पता नहीं था. उन्होंने पायलट को कोई निर्देश भी नहीं दिए. पायलट पहले ही तरह बेन गुरियन एयरपोर्ट की तरफ उड़ान भरता रहा.
इधर इजरायल में अब तक सबको प्लेन हाईजैक की खबर लग चुकी थी. इसलिए इजरायली सैनिक हवाई अड्डे पर पहुंच गए. लेकिन प्लेन लैंड नहीं हुआ. वो सीरिया की राजधानी दमिश्क की तरफ बढ़ गया. रास्ते में इसराइल का हाइफा पड़ता था. वो जगह जहां उसके हिस्से के संतरे रखे हुए थे. उसकी अपनी जन्मभूमि. आसमान से अपने शहर को देखकर लैला दो पल के लिए भूल ही गई कि वो एक हाईजैकर है. उसकी आंखों में ऐसी चमक थी जैसे कोई अबोध बच्चा अपनी मां को काफी सालों बाद देख रहा हो. लैला खालिद ने बाद में 1973 में अपनी ऑटोबायोग्राफी लिखी. My People shall live नाम से. उसमें उन्होंने हाइफा शहर के बारे में लिखा,
“चिलचिलाती धूप में एक ऐसा तट जिसे समुद्र सहलाता है और पहाड़ आलिंगन करते हैं. ऐसा है हमारा हाइफा शहर. लेकिन फिर भी मैं एक नागरिक के तौर पर इसकी धूप में नहीं बैठ सकती, इसकी साफ हवा में सांस नहीं ले सकती. मुझे यहां अपने लोगों के साथ रहने की अनुमति नहीं है. यूरोपीय ज़ायोनिस्ट मेरे शहर में रहते हैं क्योंकि वे यहूदी हैं और उनके पास शक्ति है. मैं और मेरे लोग बाहर रहते हैं क्योंकि हम शक्तिहीन फ़िलिस्तीनी अरब हैं. लेकिन हम लोगों के पास भी एक दिन इतनी शक्ति होगी कि हम फिलिस्तीन को दोबारा पा लेंगे. और फिर इसे अरबों, यहूदियों और स्वतंत्रता के प्रेमियों के लिए स्वर्ग बनाएंगे.”
लैला ये सब महसूस कर ही रही थी कि इजरायल हरकत में आ गया. तीन मिराज विमान हाइजैक्ड फ्लाइट के दोनों तरफ़ उड़ने लगे. यात्रियों को डर था कि कहीं वो हमला न कर दें पर ऐसा हुआ नहीं. इस दौरान लैला ट्रैफिक कंट्रोल से वन टू वन बातचीत कर रही थी. उसने ट्रैफिक कंट्रोल से कहा कि वे अब इस फ्लाइट को TWA 840 न कहें। बल्कि इसका नया नाम PFLP फ्री अरब फिलिस्तीन है. PFLP यानी Popular Front for the Liberation of Palestine. ये फिलिस्तीन का राष्ट्रवादी संगठन है. जिसे अमेरिका, और यूरोप के देशों ने आतंकी संगठन घोषित किया हुआ है.
खैर कहानी में आगे बढ़ते हैं. लैला खालिद प्लेन को दमिश्क ले जाना चाहती थी. प्लेन दमिश्क में लैंड हुआ. यात्रियों को लगा अब लेन-देन के बाद शायद उन्हें छोड़ दिया जाएगा. लेकिन तभी कॉकपिट से लाउडस्पीकर पर एक अनाउंसमेंट होता है - “Get out, there is a bomb in the plane” दरअसल, सलीम इसावी ने विमान के कॉकपिट में विस्फोटक लगा दिया था. किस्मत से विस्फोट से पहले ही सारे यात्री प्लेन से बाहर निकल गए थे. इसके बाद कॉकपिट में लगा बम फटा, जिससे आधे प्लेन के परखच्चे उड़ गए. इसके बाद सीरियाई अधिकारियों ने लैला और उसके साथियों को गिरफ्तार कर लिया.
लैला का मकसद पूरा हो चुका था. वो इस हाईजैकिंग के जरिए दुनिया का ध्यान फिलिस्तीन की तरफ खींचना चाहती थी. ऐसा ही हुआ भी. इस घटना से लैला दुनियाभर में फिलिस्तीन मुद्दे की पोस्टर गर्ल के तौर पर छा गई. लैला को मात्र 3 हफ्ते बाद रिहा भी कर दिया गया. क्यों? क्योंकि उसकी गिरफ्तारी हुई थी सीरिया में और उस समय सीरिया सहित कई अरब देश फ़िलिस्तीन के समर्थन में थे. वो आतंकवादी कार्रवाइयों को इज़राइल के खिलाफ संघर्ष के हिस्से के रूप में देखते थे. PFLP को भी कुछ अरब देशों का समर्थन मिला था. रिहाई के बाद लैला कहां अंडरग्राउंड हुई, किसी को पता नहीं चला. क्या लैला खालिद की कहानी यहां ख़त्म हो गई? जवाब है नहीं. लैला खालिद एक बार फिर से पिक्चर में आती है, सितम्बर 1970 में. अब तक उसका रूप रंग सब कुछ बदल चुका था. लैला ने अपने चेहरे की 6 सर्जरी कराई. ताकि उसका चहेरा बदल जाए. ऐसा क्यों किया?
लैला खालिद ने प्लेन हाईजैक किया था, इजरायल से बदला लेने के लिए. लेकिन उसकी लड़ाई अकेले इजरायल से ही नहीं थी. वो PFLP की मेंबर थी और इस संगठन की दुश्मनी इजरायल के पड़ोसी जॉर्डन से भी चल रही थी. जॉर्डन से क्यों? दरअसल इजरायल के गठन के बाद हजारों फिलिस्तीन वासियों ने जॉर्डन में शरण ली थी. यहीं से वे अपना रेजिस्टेंस मूवमेंट बिल्ड कर रहे थे. लेकिन ये बात जॉर्डन के राजा, किंग हुसैन बिन तलाल को मंजूर नहीं थी. राजा हुसैन PFLP को अपनी सरकार के लिए खतरा मानते थे.
लिहाजा जॉर्डन सरकार और PLFP के बीच ठन गई. किंग हुसैन को सबक सिखाने के लिए PLFP एक बड़ा कदम उठाना चाहता था. और इसके लिए उन्होंने अपनी सबसे काबिल सोल्जर को जिम्मा सौंपा. इस काम में हालांकि एक दिक्कत थी. लैला खालिद को दुनिया पहचान चुकी थी. इसलिए बाहर आने पर उसे आसानी से पकड़ा जा सकता था. लैला किसी भी कीमत पर मिशन पूरा करना चाहती थी. इसलिए उसने प्लास्टिक सर्जरी के जरिए अपना हुलिया ही बदल लिया.
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4 सितंबर, 1970 लला ख़ालिद एक बार फिर दुनिया के सामने आई. जर्मनी के स्टटगर्ट, शहर में में उसकी मुलाक़ात हुई पैट्रिक आरग्यूलो से. दोनों दो दिन बाद एम्सटर्डम गए. पैट्रिक अमेरिका के Nicaraguan का रहने वाला वामपंथी छात्र था. और फिलिस्तीन मूवमेंट का समर्थक था. लैला से उसकी ये पहली मुलाकात थी. एम्सटर्डम में ये दोनों न्यूयॉर्क जा रहे इजरायली एयरलाइंस ELAI 219 के बोइंग 707 विमान में सवार हुए.
लैला दूसरी बार प्लेन हाईजैक करने वाली थी. इस बार उसे एक से ज्यादा साथियों की जरूरत थी लेकिन ये मुमकिन नहीं हो पाया. लैला ने शॉर्ट स्कर्ट पहनी हुई थी जिसमें नक्शा छिपाकर रखा. उसने एक खास तरह की ब्रा भी पहनी थी जिसमें दो हैंड ग्रेनेड छिपा कर रखे थे. प्लेन टेक ऑफ़ के बाद जैसे ही उसने कॉकपिट की ओर झपट्टा मारा पायलट ने अंदर से दरवाजा लॉक कर लिया. मानो उसे पहले से ही अनहोनी का अंदेशा था. इतने में विमान में सवार मार्शलों ने गोली चलाना शुरु कर दिया. पैट्रिक के पैर में गोली लग गई. लैला ने पायलट को घमकी दी. दरवाजा खोलो, वरना वो ग्रेनड का पिन खोल देगी.
पायलट स्मार्ट था. उसने तुरंत प्लेन को नीचे की तरफ डाइव कराना शुरू कर दिया. इससे सीट बेल्ट पहने यात्रियों को तो कुछ नहीं हुआ लेकिन लैला जमीन पर गिर पड़ी. लैला को भीड़ ने दबोच कर पीटना शुरू कर दिया. लैला और उसके साथी को बंधक बना लिया गया. प्लेन जब लंदन पहुंचा, वहां उन्हें पुलिस के हवाले कर दिया गया. अपनी किताब में लैला बताती हैं,
“एयरपोर्ट पर मैंने पेट्रिक के जख्मी पैर को देखा. मुझे अंदाजा था कि शायद ये हमारी आख़िरी मुलाक़ात हो. इसलिए मैंने उसके होंठो को चूम लिया. ये उसको मेरा आखिरी सलाम था"
लैला ख़ालिद को लंदन में एक पुलिस स्टेशन ले जाया गया जहां अगले कुछ दिनों तक उससे पूछताछ होती रही. इस बीच उसके साथी कुछ और प्लेन हाईजैक करने में सफल हो गए. इन सभी को जॉर्डन ले जाया गया. यात्रियों की रिहाई के बदले, PLFP ने लैला और दूसरे फिलिस्तीनी बंधकों की रिहाई की मांग रखी. 24 दिनों तक ब्रिटिश जेल में रहने के बाद 1 अक्टूबर, 1970 को लैला खालिद को रिहा कर दिया. एक खास बात ये है कि लैला जितने दिन भी ब्रिटिश पुलिस की गिरफ्त में रही, आनंद से रही. उसने जेल में टेबल टेनिस खेला, सुरक्षा गार्डों से उनके घर परिवार के किस्से सुने. इतना ही नहीं उसने एक दिन जेलर से मजाक में कहा कि वो अपने साथ मिडिल ईस्ट का sunny weather लेकर चलती है. लैला का जुड़ाव वहां ऐसा बना कि रिहाई के बाद उसने क्रिसमस पर जेल कर्मचारियों को कुछ कार्ड भी भेजे.
रिहाई के बाद लैला का क्या हुआ?इजरायल लम्बे समय तक लैला को ढूंढने में लगा रहा. वो लगातार खुद की लोकेशन बदलती रही. वो आर्म्ड स्ट्रगल में विश्वास रखती थीं. लेकिन 1973 आते आते सुरक्षा व्यवस्था इतनी चाक चौबंद हो गई थी कि PFLP ने हाईजैकिंग का कॉन्सेप्ट अपनी नोटबुक से हटा लिया. लैला इसके बाद भी दूसरे तरीकों से फिलिस्तीन रेजिस्टेंट मूवमेंट में भूमिका निभाती रही.
PFLP में उन्हें भेदभाव का सामना भी करना पड़ा. लैला मूवमेंट का चेहरा थीं. लेकिन पार्टी का ही एक गुट उनका नेतृत्व नहीं चाहता था. क्योंकि वो महिला थी. लैला ने इस मुद्दे को खुलकर उठाया. और लड़कियों को भी इस मूवमेंट से जोड़ा. लैला महिलाओं के अधिकार से जुड़े मूवमेंट को यूएन तक लेकर गईं. लेकिन उनके लिए फिलिस्तीन का मुद्दा हर मुद्दे से हमेशा ऊपर रहा. शायद बचपन के एक वादे के चलते.
एक इंटरव्यू में वो बताती हैं कि अगर कभी उन्हें हाइफा जाने का मौका मिला तो वो सबसे पहले अपना घर देखने जाएंगी कि क्या अब भी वो वहां पर है? और संतरे के पेड़ के नीचे लेटना पसंद करेंगी. लैला वर्तमान में ओमान में रहती हैं. और गाहे बगाहे फिलिस्तीन का मुद्दा उठाते रहती हैं. उनकी कहानी पर एक डाक्यूमेंट्री भी बनी है- ‘Leila Khaled: Hijacker’. चाहे तो आप देख सकते हैं.
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