एक रोज़ राजधानी आगरा के पास के जंगल में राजा शिकार पर जाता है. हमेशा की तरह राजा के साथ मंत्री-संत्री, चाक-चौबंध के साथ पूरी टोली थी. लेकिन राजा घोड़ा थोड़ा तेज चलाना पसंद करता था. जाहिर सी बात है कुछ ही देर में वो बाकी लोगों से आगे निकल गया. और राजा के साथ बचे चंद ही आदमी. शिकारी बहुत देर घूमे, घुड़सवारी की, शिकार किया. पर अचानक ध्यान गया कि घर का रास्ता कहां है? पूरी मंडली जंगल में इतनी दूर आ चुकी थी कि वापस जाने का रास्ता ही ना मालूम था, वो सुनसान जंगल में खो चुके थे.
मुगल बादशाह अकबर के 'खास' राजा बीरबल को किसने मारा?
अकबर बीरबल के लतीफों से हम सभी वाकिफ हैं. लेकिन इन लतीफों के चक्कर में बीरबल एक मिथकीय किरदार बन गए हैं.
कुछ देर खोजने और यात्रा के बाद वो सभी एक तिराहे पर पहुंचे. पर इस तिराहे से कौन सा रास्ता आगरा की तरफ जाता है, ये किसी को मालूम ना था. सभी तिराहे पर चर्चा कर ही रहे थे कि तभी वहां पास के गांव का बच्चा आता है. लड़का जिज्ञासा के साथ घोड़ों और घुड़सवारों पर नजर दौड़ा ही रहा था कि राजा उसे अपने पास बुलाता है. और पूछता है, क्या तुम्हें मालूम है कि इनमें से कौन सा रास्ता आगरा जाता है? लड़के की आंखें चमक जाती हैं. वो तपाक से बोलता है, हुजूर! कोई रास्ता आगरा या कहीं भी कैसे जा सकता है, रास्ते तो चल नहीं सकते.
लड़के का जवाब सुनकर, संत्री-मंत्री सब सांस रोक लेते हैं. उन्हें लगता है कि इस गुस्ताखी के लिए महाराज लड़के की क्लास लगा देंगे. पर होता है इसका उलट, राजा को चुटकुले खासे पसंद थे. लड़के की हाजिर जवाबी देख राजा उससे प्रभावित होता है. लड़के से उसका नाम पूछता है. लड़का फिर लपाक से बोलता है, पहले अपना नाम बताओ. राजा कहता है ये भी ठीक है, पहले मैं अपना परिचय दे देता हूं. मैं हिंदुस्तान का सम्राट, अकबर हूं.
लड़का झुकर कहता है, तुसी सम्राट अकबर हो, तो असी बिल क्लिंटन. खैर ये जुमला तो हमने जोड़ा है. असल में लड़का अपना नाम बताता है. महेश दास. जिन्हें हम बीरबल के नाम से बेहतर जानते हैं. अकबर और बीरबल की मुलाकात की एक कहानी ये चलती है. पर इस कहानी में एक बड़ी गलती है. अकबर बीरबल के लतीफों से हम सभी वाकिफ हैं. लेकिन इन लतीफों के चक्कर में बीरबल एक मिथकीय किरदार बन गए हैं. जबकि असल बीरबर की कहानी में लतीफों से ज्यादा और भी बहुत कुछ है. खासकर उनकी मौत तो ऐतिहासिक नजरिए से एक बहुत बड़ा रहस्य है.
अभी अकबर और बीरबल की मुलाकात की कहानी जो हमने आपको बताई. दोनों की पहली मुलाकात की ऐसी तमाम कहानियां चलती हैं. कुछ कहते हैं कि बीरबल को इनके पुराने राजदरबार की तरफ से अकबर को तोहफे में दिया गया था. कुछ कहते हैं कि अकबर ने रीवा के राजा से बीरबल को भेजने की मांग की थी. कुछ बताते हैं कि दोनों ऐसे ही अचानक मिल गए थे. इस बारे मुद्दे पर लेखक अमिता सरीन अपनी किताब अकबर एंड बीरबल में लिखती हैं,
अकबर के समय के एक इतिहासकार जिक्र करते हैं, कि शायद अकबर के राज्य करने के शुरुआती दिनों यानी 1556 में बीरबल उनके दरबार से जुड़े थे. ये भी मुमकिन है कि जब अकबर ने साल 1562 में आमेर की राजकुमारी से शादी की थी, तब दोनों मिले हों. मुमकिन है नौजवान अकबर - शानदार कहानीकार, कवि और बेहतरीन शख्सियत के धनी बीरबल से प्रभावित हुए हों. ऐसा भी बताया जाता है कि अकबर जब युवा थे, पिता हुमायूं की मौत हो चुकी थी. कुछ वक़्त बाद पिता समान बैरम खान की भी मौत हो गई. ऐसे में जिंदगी से दो बुजुर्गों के जाने के बाद, बीरबल ने काफी हद तक - एक बड़े दोस्त के तौर पर अकबर का साथ दिया होगा. वहीं अकबर ने बीरबल को दिया कविराज का खिताब.
कहानियों से इतर, असल में बीरबल, बादशाह अकबर से 14 साल बड़े थे. यानी जब अकबर 20 साल के थे तब बीरबल 34 साल के रहे होंगे. हालांकि ठीक-ठीक ये नहीं पता चलता कि बीरबल यानी महेश दास कब और क्यों अकबर के दरबार में शामिल हुए होंगे. इससे पहले वो आमेर के दरबार में ब्रह्म कवि के नाम से कविताएं लिखा करते थे. और इससे भी पहले वो रीवा के राज दरबार में थे.
1528 में मुगल साम्राज्य के काल्पी के पास में जन्में बीरबल, शायद अकबर के दरबार के पहले अफसर रहे होंगे. उन्हें राजा की उपाधि भी दी गई थी. राजा बीरबल की हाजिर जवाबी और व्यंग के किस्से तो हमने खूब सुने हैं. पर वो ब्रज भाषा के कवि भी थे. दरबार में उनकी कविताओं को खासा सराहा भी जाता था. यहां तक कि जब अकबर फतेहपुर सीकरी में नया शहर बसा रहे थे, तब बीरबल के लिए भी पत्थरों का एक महल भी बनाया गया था. दोनों की दोस्ती और साझा सम्मान की बातें ऐसी थीं. कि आज भी इनके किस्से अकबर-बीरबल की कहानियों के नाम से खूब चलते हैं. इतने कि क्या किस्सा है क्या सच… ये फर्क कर पाना भी लोगों के लिए मुश्किल हो जाता है.
ऐसे ही कई किस्से बीरबल की मौत से जुड़े भी बताए जाते हैं. जिनमें कुछ सच, कुछ कल्पना और कुछ इतिहास मिला है. इन कहानियों में बात होती है षड्यंत्र, ईर्ष्या और धोखे की. क्योंकि बीरबल और अकबर के बीच की करीबियां और विश्वास किसी से छुपा ना था. पहले बात करते हैं, बीरबल की मृत्यु से जुड़ी लोक कहानियों की
धोखे की एक कहानीबीरबल की मौत से जुड़ी सबसे प्रचलित कहानियों में एक है, कहानी धोखे की. राज दरबार में बीरबल की बढ़ती कद्र से कई दरबारी जलते थे. इसलिए उन्होंने एक षड्यंत्र रचा. 1586 के आसपास, मुग़लों की यूसुफजई कबीले से तकरार चल रही थी.
ये कबीला स्वात घाटी में रहता था. आज के पाकिस्तान का खैबर पख्तूनख्वा. कहते हैं यूसुफजई कबीले का विद्रोह इतना बड़ा नहीं था लेकिन अकबर को जानबूझकर इस खतरे के बारे में बढ़ा-चढ़ा कर बताया गया ताकि बीरबल को वहां भेजने की एक ठोस-वजह तैयार की जा सके. बीरबल ने खतरे को भांप लिया था. इसलिए उन्होंने अकबर से इस बारे में बात की. और इस अभियान पर फिर से सोचने के लिए कहा. लेकिन अकबर ने बीरबल की बात को गंभीरता से नहीं लिया. और बीरबल को अभियान में जाने के लिए तैयार कर लिया.कहानी आगे चलती है कि बीरबल स्वात की घाटी तक पहुंचते हैं. उन्हें कुछ बुरे संकेत भी मिलते हैं. कभी तूफान दिखा, कभी पहाड़ों के बीच रास्ते में पत्थर दिखे. लेकिन राजा के लिए निष्ठा की वजह से बीरबल ने इन संकेतों पर खास ध्यान नहीं दिया. और खतरे की तरफ बढ़ते रहे.
धोखे से हमलाजब बीरबल, सेना के साथ पहाड़ी दर्रे में प्रवेश करते हैं. तो उन्हें चारों तरफ से कबीले के सैनिक घेर लेते हैं. अचानक हुए इस हमले की वजह से, मुगल सेना संकरे पहाड़ी रास्ते के बीच फंस गई. और लड़ाकों ने ऊपर से उन पर हमला कर दिया. कहानी के कुछ वर्जन्स में ये भी कहा जाता है कि अंतिम वक्त में बीरबल के साथ आए मुगल सेना के कुछ साथियों ने भी उन्हें धोखा दिया और मुसीबत की घड़ी में उन्हें अकेला छोड़ दिया. जिसके बाद अचानक हुआ ये हमला नरसंहार में बदल गया. जिसमें बीरबल और उनके साथी सैनिकों को जान से हाथ धोना पड़ा. बीरबल की मौत की बात जब अकबर तक पहुंची. उन्हें विश्वासघात की बू आई. कुछ दिन बीरबल की मौत का शोक करने के बाद राजा को इस पूरे मामले जी जांच की. कई राज दरबारियों से बीरबल को अभियान पर भेजने को लेकर सवाल-जवाब भी किए. हालांकि किसी ने इसकी जिम्मेदारी नहीं ली.
इतिहास के अनुसारअब तक जो आपने सुना, वो सुनी सुनाई कहानी हो. इतिहासपर नज़र डालें तो अकबर के कोर्ट के इतिहासकार, अबुल फजल अपनी किताब, अकबरनामा में बीरबल की मृत्यु का जिक्र करते हैं. इतिहासकार इरा मुखोटी अपनी किताब, अकबर द ग्रेट मुगल में लिखती हैं,
“जैन खान कोटा और राजा बीरबल को राजनीतिक उथल-पुथल से गुजर रहे पश्तून इलाके के स्वात और बजौर इलाके में भेजा गया था, जहां यूसुफजई रहते थे. लेकिन दोनों लीडर्स के बीच मतभेदों के चलते, बीरबल यूसुफजई लोगों के बिछाए जाल में फंस गए. और इस घटना में मुगलों को अपनी सबसे बुरी हार का सामना करना पड़ा. जिसे यूसुफजई की त्रासदी नाम दिया जाता है. इसमें बीरबल के साथ 8 हजार मुगल सैनिक भी मारे गए थे.”
इतिहास की किताबों में लोक कहानियों जैसे षड्यंत्र-धोखे और साजिशों का जिक्र नहीं मिलता है. जिक्र मिलता है तो अपने अजीज साथी बीरबल की मौत के बाद राजा अकबर का
बीरबल की मौत के बाद अकबर का हाल बताया जाता है कि बीरबल की मौत की खबर जब अकबर को मिली, तो उन्होंने दो दिनों तक कुछ भी नहीं खाया. राज्य के किसी भी मामले की सुनवाई नहीं की. इतिहासकार बदायूनी इस बारे में लिखते हैं,
“अकबर ने कभी किसी अमीर की मौत पर ऐसा शोक महसूस नहीं किया था, जितना कि बीरबल की मौत पर."
पहाड़ों में बेजान पड़ी अपने दोस्त बीरबल की लाश के ख्याल भर से अकबर झकझोर जाते थे. एक बार वो कहते हैं
“आह! वो उसके शरीर को भी ना ला पाए ताकि उसे आग दी जा सके.”
हालांकि यह कहना तो मुश्किल है कि बीरबल की मौत का अकबर पर कितना असर पड़ा था. पर इसके कुछ वक्त बाद ही अकबर ने आगरे का फतेहपुर सीकरी छोड़ दिया. राजा का एक दोस्त था, जो हमेशा के लिए चला गया था. कुछ वक्त बाद राजा भी नहीं रह गया. रह गए तो बस अकबर-बीरबल के किस्से.
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