अपने प्रोडक्ट को प्रमोट करने और बाजार में स्थापित करने के लिए कंपनियां कितने ही जतन करती हैं. तमाम ऑफर्स से लेकर स्कीम (nescafe japan case study) लॉन्च करती हैं. बड़े-बड़े लोगों को ब्रांड एंबेसडर बनाने पर करोड़ों खर्च करती हैं. इतना सब करके भी अगर कोई प्रोडक्ट सुपर फ्लॉप हो जाए तो फिर. जाहिर सी बात है कंपनी अपना बोरिया बिस्तर समेट लेगी. लेकिन अगर कंपनी का नाम Nestle हो तो शायद ऐसा नहीं होगा. कंपनी दम भरेगी वो भी पूरे 40 साल. इंतजार करेगी बच्चों के जवान होने का और फिर बिजनेस करेगी अरबों का.
चाय के दीवाने देश को कॉफी का चस्का लगाने के लिए खेला 'चॉकलेटी' खेल, 10 साल में गेम बदल दिया!
आज Nestle की एक ऐसी शानदार जबरदस्त जिन्दाबाद मार्केटिंग स्ट्रेटजी (nescafe japan case study) की कहानी बताएंगे जो चाय के देश जापान में घटी. कैसे इस देश में Nestle ने अपनी ‘कॉफी ’को जीरो से हीरो बनाया. जब बात बड़ों से नहीं बनी तो बच्चों को सहारा ले लिया.
आज Nestle की एक ऐसी शानदार जबरदस्त जिन्दाबाद मार्केटिंग स्ट्रेटजी की कहानी बताएंगे जो चाय के देश जापान में घटी. कैसे इस देश में नेस्ले ने अपनी ‘कॉफी’ को जीरो से हीरो बनाया. जब बात बड़ों से नहीं बनी तो बच्चों को समझा दिया. कहानी थोड़ी लंबी है तो आप एक कप कॉफी बना लीजिए.
World War II और जापानजापान ने सरेंडर किया और उसी के साथ वर्ल्ड वार II भी खत्म हो गया. मगर ठीक इसी समय नेस्ले ने अपना व्यापार इस देश में स्टार्ट किया. आगे क्या हुआ, वो तो हम आपको बताएंगे ही सही. लेकिन आप पहले अपनी कॉफी का एक घूंट भर लीजिए. अरे वही कॉफी जो हमारे कहने से आपने बना ली होगी.
सवाल ये कि आखिर तबाह हो गए जापान में पश्चिम की कंपनियों को क्या दिखा. इनको दिखा ‘आपदा में अवसर’. अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर बम पटक कर उसको बर्बाद कर दिया तो दवाब में दब चुके जापान से अपने दरवाजे दुनिया के लिए खोल दिए. वैसे भी अमेरिका का ये तरीका कोई नया नहीं. उस पर हमेशा से इस नीति पर काम करने के आरोप लगते रहे हैं कि एक देश को बर्बाद करो और फिर वहीं व्यापार करो. इसकी लिस्ट लंबी है. इस तरीके को अगर अपने हिसाब से समझना हो तो ‘Krrish 3’ के विलेन 'काल' का फंडा समझ लीजिए. पहले खुद बीमारी फैलाओ और फिर इलाज के नाम पर अरबों कमाओ.
खैर बर्बाद जापान में कई कंपनियों के साथ नेस्ले भी आया. सन 1866 में Henri Nestle ने इस कंपनी को स्विट्जरलेंड में स्टार्ट किया. बेबी फूड से अपना बिजनेस स्टार्ट करने वाली कंपनी साल 1905 में एक Anglo-Swiss कंपनी में मर्ज हो गई. कुछ ही सालों में कंपनी का कारोबार अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया तक फैल गया. पहले विश्व युद्ध से ठीक पहले का दौर कंपनी के मुताबिक उनके लिए Belle Epoque मतलब ब्यूटीफुल एज जैसा रहा. 1914-1918 के पहले विश्व युद्ध के टाइम भी कंपनी खूब फली-फूली.
हालांकि 1919 से 1938 तक दुनिया की हालत अच्छी नहीं थी मगर कंपनी ने साल 1921 में Nescafe कॉफी को लॉन्च कर दिया था. ये कंपनी का सुपर हिट प्रोडक्ट जिसे लेकर वो दूसरे वर्ल्ड वार के बाद जापान समेत अमरीकी और यूरोप मार्केट में भी दाखिल हुए. विश्व युद्ध के बाद पश्चिम की कई कंपनियों को जापान में बहुत उम्मीदें नजर आ रहीं थीं. नेस्ले को भी अपने फ़्लैगशिप प्रोडक्ट nescafe से बहुत उम्मीदें थीं. लेकिन बड़ा बिजनेस तो दूर की बात, जापानीज तो इसका एक घूंट भी भरने को तैयार नहीं थे. इसकी वजह इस देश का चाय प्रेमी होना था. जापान में चाय कोई पेय पदार्थ नहीं बल्कि उनकी जीवन शैली का हिस्सा था. उस जमाने में भी वहां इसके कैफे हुआ करते थे.
नेस्ले ने हर जतन किया. जापान के लिए अलग से प्रोडक्ट बनाया. खूब विज्ञापन किया, फ्री सैंपल बाटें और कीमत भी बहुत कम रखी. काफी कुछ करके देखा मगर 'कॉफी' के लिए काफी नहीं था. साल तो छोड़िए, दशक के दशक बीत गए लेकिन जापान और चाय का प्रेम जारी रहा. कोई और कंपनी होती तो कहती बस काफी हुआ. चलते वापस मगर नेस्ले डटी रही. फिर आया साल 1975.
कॉफी और फ्रेंच कनेक्शननेस्ले ने साल 1975 में मशहूर psychoanalyst, Clotaire Rapaille को जापान बुलाया. psychoanalyst मतलब वो व्यक्ति जो इंसानों के मनोभावों को समझने की कोशिश करता है. Clotaire इस विधा के ज्ञानी थे और साथ में लोगों के अपने कल्चर को लेकर जो तगड़े इमोशन होते हैं, उसको समझने में भी उनकी मास्टरी थी. फ्रेंचमैंन ने कुछ जापानियों को इकट्ठा किया और बढ़िया से म्यूजिक के साथ उनकी बचपन की मेमोरी को याद करने को कहा.
हर किसी ने अलग-अलग चीजों से अपने जुड़ाव की बात बताई. अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं कि पेय पदार्थ के नाम पर सिर्फ और सिर्फ चाय का ही नाम आया. कॉफी तो कहीं थी ही नहीं क्योंकि उसका तो टेस्ट भी नहीं किया था उन्होंने. ये बिल्कुल मां के हाथ के स्वाद जैसा मामला है. हमें भी वो स्वाद कभी नहीं भूलता. जापानियों के लिए कॉफी मतलब पश्चिम से आया कोई बाहरी पेय पदार्थ. कहने को उन्होंने अपने दरवाजे खोले तो थे मगर पर्दा नहीं हटाया था.
नेस्ले के लिए ये काफी बड़ा झटका था मगर फ्रेंचमैंन के लिए यही सबसे बड़ा इन्डिकेटर था. उन्होंने कंपनी को बताया कि जब तक जड़ों में कॉफी नहीं आएगी, तब तक कोई प्रयास काफी नहीं. नेस्ले को समझ आ गया.
कैंडी और कॉफी कनेक्शनकंपनी ने तय किया, छोड़ो भी बड़े लोगों को. बच्चों से स्टार्ट करते हैं. कंपनी ने कॉफी फ्लेवर वाली कैंडी की झड़ी लगा दी. हर जगह जहां बच्चे होते वहां कंपनी की कई कॉफी फ्लेवर वाली कैंडी नजर आती. कॉफी वाली टॉफी टाइम… मामला जमने लगा और ये वाला आइडिया काम कर गया. बड़े होते बच्चों की जबान पर कॉफी का फ्लेवर चढ़ने लगा. हालांकि इसमें भी एक दशक लगा.
लेकिन साल 1985 आते-आते उस दौर के जापानी युवा कॉफी पीने लगे. क्योंकि उनकी बचपने की याद में शामिल थी कॉफी. जब बच्चे पीने लगे तो फिर बड़े और बुजुर्ग भी हल्लु-हल्लु इसका घूंट भरने लगे. आज की तारीख में जापान 5 लाख टन से ज्यादा कॉफी आयात करता है. बताने की जरूरत नहीं कि नेस्ले इस बिजनेस का काफी नहीं बल्कि सबसे बड़ा हिस्सेदार है. नेस्ले की इस स्ट्रेटजी को मॉडर्न जमाने की सबसे सफल मार्केटिंग स्ट्रेटजी में गिना जाता है.
कहानी खत्म और अपनी कॉफी भी. आज के लिए काफी है.
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