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IAS पूजा खेडकर को किन नियमों के तहत मिला विकलांगता का कोटा?

ट्रेनी IAS Pooja Khedkar ने UPSC हलफनामे में बताया था कि वो मानसिक तौर पर बीमार हैं. लेकिन उनका चयन IAS के लिए किया गया. ऐसा किस नियम के तहत किया गया?

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UPSC परीक्षा में पूजा खेडकर की 841 रैंक आई थी. (फोटो-Getty)

क्या कोई मानिसक रूप से बीमार शख्स सरकारी नौकरी पा सकता है? नौकरी भी कोई छोटी-मोटी नहीं, IAS की नौकरी! महाराष्ट्र की ट्रेनी IAS पूजा खेडकर जब से चर्चा में आई हैं, ये सवाल पूछा जाने लगा है. पूजा महाराष्ट्र काडर की ट्रेनी IAS अधिकारी हैं. उन पर पद के दुरुपयोग के आरोप लगे हैं. पुणे के जिलाधिकारी दुहास दिवासे ने जब उनकी शिकायत राज्य के मुख्य सचिव से की तो खेडकर के खिलाफ कई बातें सामने आईं.

उनमें से एक ये कि UPSC की परीक्षा में आवेदन के दौरान उन्होंने दावा किया था कि वो उन्हें ‘दृष्टिदोष’ है यानी उनकी आंखें पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हैं. साथ ही ये दावा भी किया वो मानसिक रूप से बीमार हैं. इसके बाद भी उन्हें चयनित किया गया. लेकिन सेलेक्शन के बाद जब मेडिकल टेस्ट की बारी आई तो कथित तौर पर वो शामिल ही नहीं हुईं.

खेडकर के केस को किनारे रख कर अगर सरकार नौकरी की भर्ती प्रक्रिया पर ध्यान दिया जाए तो ये साफ होता है कि मेंटली इल यानी मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति भी सरकारी नौकरी पा सकता है, अधिकारी भी बन सकता है. इस मसले को समझने के लिए पहले ये जानने की कोशिश करते हैं कि कितनी तरह की डिसेबिलिटी या विकलांगता होती हैं, जिनके तहत आरक्षण मिलता है और सरकारी नौकरी के लिए पात्र होते हैं.

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कितनी तरह की विकलांगता?

विकलांग लोगों के लिए सरकार ने 2016 में राइट्स ऑफ पर्सन्स विद डिसेबिलिटीज़ एक्ट (RPWD Act) पास किया. इस एक्ट के मुताबिक सरकार ने पांच तरह की डिसेबिलिटीज़ के लिए आरक्षण तय किया है.

1. दृष्टिहीन और जिन्हें कम दिखाई देता है.
2. जिन्हें बिल्कुल सुनाई ना देता हो या कम सुनाई देता हो.
3. सेरेब्रल पॉल्सी, कुष्ठ रोग से ठीक हुए लोग, बौनापन, एसिड अटैक पीड़ित या जिनका मांसपेशीय विकास ना हुआ हो, जैसी चलने-फिरने में अक्षमता वाले लोग.
4. ऑटिज्म, बौद्धिक विकलांगता, विशिष्ट सीखने की विकलांगता और मानसिक बीमारी.
5. उपरोक्त चारों में से एक से ज्यादा तरह की विकलांगता.

इन पांच विकलांगता कैटेगरी को ‘बेंचमार्क डिसेबिलिटी’ कहा जाता है.

नौकरी में विकलांगों को कितना आरक्षण?

RPWD एक्ट 2016 के मुताबिक प्रत्येक सरकार को हरेक सरकारी संस्थान में विकलांगों को चार प्रतिशत आरक्षण देना होगा. कानून की सरकारी भाषा में कहें तो-

प्रत्येक सरकार प्रत्येक सरकारी संस्थान में हर काडर के हर ग्रुप में कुल वेकेंसी की संख्या के कम से कम चार प्रतिशत पदों पर बेंचमार्क विकलांगता वाले व्यक्तियों की नियुक्ति करेगी. जिनमें से एक प्रतिशत खंड (ए), (बी) और (सी) के तहत बेंचमार्क विकलांगता वाले व्यक्तियों के लिए आरक्षित होगा और एक प्रतिशत खंड (डी) और (ई) के तहत बेंचमार्क विकलांगता वाले व्यक्तियों के लिए आरक्षित होगा.

कानून में एक हिदायत और दी गई है. अगर किसी साल ऐसा होता है कि योग्य विकलांग व्यक्ति किसी खाली पोस्ट के लिए नहीं भर्ती हो पाता तो उसकी जगह किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं दी जाएगी, जो विकलांग ना हो. बल्कि वेकेंसी कैरी फॉर्वर्ड हो जाएगी. यानी अगले साल भरी जाएगी.

आरक्षण कब मिलेगा?

विकलांग कोटे के दायरे में आने के लिए किसी भी व्यक्ति को किसी भी अंग से 40 प्रतिशत विकलांग होना जरूरी है. उसके लिए विकलांग सर्टिफिकेट जमा करना पड़ता है. लेकिन IAS जैसी परीक्षा के लिए सिर्फ सर्टिफिकेट देने से काम नहीं चलता. उसके लिए एक मेडिकल बोर्ड तय करता है कि व्यक्ति विकलांग है या नहीं.

कौन तय करता है डिसेबिलिटी?

डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग की वेबसाइट के मुताबिक केंद्र सरकार या राज्य सरकार एक मेडिकल बोर्ड का गठन करती हैं. बोर्ड में तीन डॉक्टर होंगे. तीन में से एक डॉक्टर उस क्षेत्र में स्पेशलिस्ट होना चाहिए, जिसमें विकलांगता की जांच होनी है. अगर बोर्ड ये मान लेता है कि व्यक्ति विकलांग है तभी वो नौकरी का पात्र होता है. इसमें बोर्ड ये भी तय कर सकता है कि विकलांगता कितनी अवधि तक रह सकती है. उसके बाद उसे विकलांग नहीं माना जाता.

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