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संसद में बोलने के लिए किस पार्टी को कितना समय मिलेगा, पहले कौन बोलेगा, ये सब कैसे तय होता है?

सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर पहले राहुल गांधी बोलने वाले थे, लेकिन वो क्यों नहीं आए?

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मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा जारी (तस्वीर: इंडिया टुडे)

लोकसभा में मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर बहस हो रही है. इस प्रस्ताव पर चर्चा के लिए लोकसभा में तीन दिन निर्धारित किए गए हैं. दो दिन यानी 8 और 9 अगस्त को बहस होगी और 10 अगस्त को प्रधानमंत्री मोदी विपक्ष के आरोपों और सवालों का जवाब देंगे. लोकसभा का गणित सरकार के पक्ष में है. बीजेपी के पास 303 सांसद हैं. एनडीए (NDA) के पास कुल 353 संसदों का समर्थन है. विपक्ष के ‘INDIA’ गठबंधन के पास 144 सांसद हैं. नंबर के मामले में सरकार सुरक्षित है. अविश्वास प्रस्ताव सरकार गिराने के लिए नहीं, बल्कि सरकार को घेरने के लिए लाया गया है.

लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के लिए बीजेपी को 6 घंटे, 41 मिनट दिये गए हैं. वहीं कांग्रेस को एक घंटा पंद्रह मिनट मिले हैं. YSR कांग्रेस पार्टी (YSRCP), शिवसेना (उद्धव), जनता दल यूनाइटेड (JDU), बहुजन समाज पार्टी (BSP), भारत राष्ट्र समिति (BRS) और लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) को कुल 2 घंटे बहस के लिए दिए गए हैं. इसके अलावा एक घंटा, 10 मिनट अन्य दलों और निर्दलीय सांसदों के लिए निर्धारित किया गया है.

पहले तय किया गया था कि सदस्यता बहाल होने के बाद संसद लौटे राहुल गांधी अविश्वास प्रस्ताव पर कांग्रेस की तरफ से सबसे पहले बोलेंगे. लेकिन बाद में खबर आई कि राहुल की जगह गौरव गोगोई बहस की शुरुआत करेंगे. ऐसा ही हुआ. सवाल ये है कि सदन में कैसे निर्धारित होता है कि किस पार्टी को बोलने के लिए कितना समय दिया जाएगा. किस पार्टी से कौन-कौन बोलेगा? यह कैसे तय होता है, कौन तय करता है? क्या नियम-कायदे हैं? आइए सबकुछ समझते हैं.

संसद में बोलने का समय कैसे तय होता है?

सदन में बोलने के लिए समय सीमा तय करती है, बिजनेस एडवाइजरी कमेटी (BAC). इस कमेटी में 26 सांसद होते हैं. 15 सदस्य लोकसभा के और 11 सदस्य राज्यसभा के होते हैं. लोकसभा में इस कमेटी के अध्यक्ष लोकसभा स्पीकर होते हैं और राज्यसभा में इस कमेटी की अध्यक्षता सभापति (उपराष्ट्रपति) करते हैं. कमेटी दोनों सदनों का काम करती है. इसके सदस्यों का चुनाव स्पीकर दोनों सदनों से पार्टियों के सांसदों की संख्या के आधार पर करते हैं. इस कमेटी में कोई मंत्री सदस्य नहीं बन सकता.

BAC सदन के कामकाज को तय करने और उसके लिए समय आवंटित करने के लिए जिम्मेदार है. यह सदन में विधेयकों और अन्य मामलों पर बहस के लिए समय निर्धारित करती है. किस पार्टी को कितना समय दिया जाएगा, यह उस पार्टी के सांसदों की संख्या के आधार पर तय होता है. यह समिति सरकार से यह भी सिफारिश कर सकती है कि किस खास विषय को सदन में विचार के लिए रखा जाए और उस विषय पर बहस के लिए समय भी यह कमेटी तय करती है.

कौन बोलेगा कैसे तय होता है?

स्पीकर BAC की सलाह पर सदन में मौजूद पार्टियों की सदस्य संख्या के अनुपात में किसी विधेयक या विषय पर चर्चा के समय को बांटता है. जिस पार्टी के पास जितने अधिक सांसद होते हैं, उसे उतना समय मिलता है. सदन में सदस्यों की संख्या के आधार पर पार्टियों को चार समूहों में बांटा जाता है.

-बड़े दल (Major Parties): वो पार्टी जिनके सदस्यों की संख्या 15 या उससे अधिक होती है. उन्हें इस समूह में रखते हैं.

- मझले दल (Medium Parties/Groups): 5 से 14 सदस्यों की संख्या वाले राजनीतिक दल इस ग्रुप में आते हैं.

-छोटे दल या समूह (small Groups): वो पार्टियां जिनकी संख्या 2 से 4 सदस्यों की होती है. वे छोटे दल या छोटे समूह कहलाते हैं.

-निर्दलीय सदस्यों का समूह (Unattached/Independent Members): इस समूह में निर्दलीय सांसद, मनोनीत सदस्य आदि आते हैं. वो सदस्य जो किसी दल या समूह से न जुड़े हों, वो भी इसी समूह का हिस्सा होते हैं. 

किसी विधेयक या किसी विषय पर बोलने के लिए पार्टियां अपने सदस्यों की सूची सदन के स्पीकर को भेजती हैं. स्पीकर दलों के सदस्यों की संख्या के आधार पर किस पार्टी को कितना समय मिलेगा तय करते हैं. पार्टियां सूची में वक्ताओं के नाम जिस क्रम में देती हैं. स्पीकर उस क्रम में सदस्यों को बोलने के लिए बुलाते हैं, लेकिन पार्टी अपनी इच्छा के अनुसार सदस्यों के बोलने के क्रम में परिवर्तन भी कर सकती हैं. जैसे आज ही कांग्रेस ने अविश्वास प्रस्ताव पर बोलने के लिए 9 सदस्यों की सूची दी थी. सूची में राहुल गांधी का नाम पहले नंबर में था, पर आखिरी समय में क्रम बदल दिया गया और गौरव गोगोई कांग्रेस की तरफ से पहले नंबर पर बोलने आए. एक बार पार्टियों को समय सीमा मिल जाती है, उसके बाद पार्टियां स्वयं तय करती हैं कि कौन सा सदस्य कितने समय तक बोलेगा.  

कोई सदस्य जिसका नाम पार्टी की वक्ता सूची में नहीं है, यदि वह बोलना चाहे तो उसे स्पीकर को व्यक्तिगत स्तर पर नोटिस देना होता है. स्पीकर अपने विवेक के आधार पर उसे बोलने के लिए समय दे सकते हैं. इसी तरह निर्दलीय सदस्य भी स्पीकर को बोलने के लिए नोटिस देते हैं और स्पीकर निर्दलीय सदस्यों के समूह के लिए निर्धारित किए गए समय से उस सदस्य को बोलने का वक्त दे देते हैं.

(यह स्टोरी हमारे साथी अनुराग अनंत ने की है) 

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