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इम्तियाज़ अली को 'गेम ऑफ़ टाइटल्स' खेलने की पुरानी आदत है

लोग उनकी नई फिल्म का नाम सुन उबल पड़े हैं. कहते हैं इम्तियाज़ इतना 'अनक्रिएटिव' कैसे हो सकता है भला.

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निशांत सिंह
निशांत सिंह

निशांत सिंह दिल्ली में रहते हैं. इलाहाबाद के हैं, उसी तरह जैसे रायबरेली के हैं या बस्ती के भी हैं. कुल जमा आस-पास के हैं. कहो पास के ही हैं, इतने पास के कि जो तस्वीर दिख रही है, वो भी हमारी ही खींची हुई है. दी लल्लनटॉप के साथ काम भी कर चुके हैं. कुछ लोग जीवन में हमेशा अच्छा सा करते हैं, निशांत वैसे ही है. 16 जून को इम्तियाज़ अली का जन्मदिन होता है. निशांत ने इम्तियाज़ पर कुछ लिखा है, सो हम आपको पढ़ा रहे हैं.


इम्तियाज़ ने 'लव आज कल' का नाम शुरू में 'इलास्टिक' रखा था. तमाशा को 'विंडो सीट' होना था जो उसके प्रोडक्शन हाउस का नाम है. इम्तियाज़ अंत तक टाइटल नहीं चुन पाता है. वो फिल्म को 'टॉक ऑफ़ द टाउन' बनाने के लिए जानबूझकर ऐसा नहीं करता है. इसकी जड़ें उसके 'डायरेक्टोरियल सेंस' में हैं. वो कहानी से ज्यादा थीम पर काम करता है, इस वजह से थीम को टाइटल देना उसके लिए मुश्किल होता है. इस थीम का एक 'कॉमन थ्रेड' उसकी हर फिल्मों में है. ट्रीटमेंट अलग हो सकता है लेकिन आप उस 'कॉमन थ्रेड' को पकड़ सकते हैं.
सही और गलत के पार एक मैदान है, मैं वहीं मिलूंगा तुम्हें. (रॉकस्टार) यहां से कोसों दूर दिल और दुनिया के बीच अपने हीरो को एक साथी मिला. (तमाशा)
उसकी फिल्मों के ही इन दो डायलॉग्स में उसकी सारी फिल्में समेटी जा सकती हैं. उसकी फिल्में हद से ज्यादा रूमानी लगती हैं. वो सबको इस दुनिया से खींचकर अपनी दुनिया में ले जाना चाहता है. सही और गलत में फंसे आदमी को दूर किसी मैदान पर ले जाना चाहता है. ये मैदान इसी दुनिया में होकर भी कहीं नहीं है. उसकी फिल्में इस मैदान की तलाश हैं.

यहां से कोसों दूर दिल और दुनिया के बीच किसी आदित्य से कोई गीत टकरा जाती है (जब वी मेट), किसी वेद को तारा मिल जाती है (तमाशा). यहां अपना हीरो कहने लगता है 'जिसे ढूंढा ज़माने में मुझ ही में था.' इम्तियाज़ चीजों को थोड़ा फिलॉसॉफिकल कर देता है और यही उसकी फील्ड है. कथित 'रियलिस्टिक सिनेमा' में उसकी कोई रूचि नहीं है और यकीन मानिये रियलिस्टिक सिनेमा के नाम पर भी आपको बहुत सा कूड़ा परोसा जा रहा है, अगर आप पकड़ पाए तो. हर बार लगता है अपनी थीम के साथ इम्तियाज़ खुद को रिपीट कर रहे हैं लेकिन उनका ट्रीटमेंट ऐसा होता है कि हर फिल्म नई लगती है.टाइटल वाली बात पर वापस लौटें तो अब उनकी नई फिल्म का पोस्टर आया है.
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अपनी पुरानी आदत के हिसाब से ही इम्तियाज़ इस फिल्म का टाइटल नहीं रख पाए. शुरू में इसे 'द रिंग' और 'रहनुमा' कहा जा रहा था. ट्विटर वालों से इसका नाम सजेस्ट करने को भी कहा गया था. लेकिन अब ये इस नाम से आई है. 'जब हैरी मेट सेजल'. इस टाइटल ने ट्विटर वालों को चौंका दिया है. वो उबल पड़े हैं. उनका कहना है इम्तियाज़ इतना 'अनक्रिएटिव' कैसे हो सकता है भला. ये 'व्हेन हैरी मेट सैली' की रीमेक है. अभी तक उसका 'जब वी मेट' का हैंगओवर उतरा नहीं है. रनबीर कपूर ने ये टाइटल दिया है और ये बेहूदा टाइटल है, वगैरह वगैरह.
जो इम्तियाज़ को जानते हैं, उन्हें पता है ये 'गेम ऑफ़ टाइटल्स' खेलना उसकी पुरानी आदत है. जो नहीं जानते, उन्हें ये अजीब लग रहा है लेकिन अगर ये उसे अजीब नहीं लगा तो इसके पीछे कोई वजह होगी. करोड़ों रूपये लगाकर कोई ''ऐसा'' टाइटल थोड़े ही रखता है. वो अपनी दुनिया में आपका इंतज़ार कर रहा है. आप भी थोड़ा इंतज़ार कीजिए.


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