बचपन में जुगनू (firefly) पकड़कर उनको पुराने बल्ब में भर के खेलने के भी क्या दिन थे! इससे बनता था बल्ब. ऐसा बल्ब, जो बिना बिजली के जलता था. जिसका पूरा क्रेडिट तो हम ले लेते थे. लेकिन कम से कम आधी मेहनत तो बेचारे जुगनू की होती थी. खैर आपने कभी ये सोचा है कि आखिर जुगनू ये रोशनी का कारोबार क्यों करते हैं (why firefly glow). साथ ही जब वो ‘जलते’ हैं तो उससे गर्मी क्यों नहीं पैदा होती. साथ एक सवाल ‘वेलकम’ फिल्म के उदय शेट्टी का भी है:
जुगनू को बोतल में भरते समय कभी सोचा था कि उसकी रोशनी के पीछे गजब विज्ञान है!
जुगनू अकेला ऐसे जीव नहीं हैं जो खुद से रोशनी पैदा कर सकता है. कुछ जेलिफिश और फंगस से लेकर नन्हें बैक्टीरिया तक रोशनी पैदा कर सकते हैं. कुछ साल पहले साइंटिस्ट्स ने हमारे देश में भी खुद से चमकने वाले मशरूम खोजे थे.
जुगनू की एक मजेदार बात ये है कि ये सिर्फ पीली लाइट के साथ नहीं जलते. दुनिया में नारंगी, हरी यहां तक नीली लाइट वाले भी जुगनू हैं. इनकी करीब 2000 प्रजातियां हैं. यानी 2000 अलग-अलग तरह के जुगनू की नस्लें. ये तो वो हैं जो साइंटिस्ट्स अभी खोज पाए हैं. इनके लपलपाने के टाइम से लेकर पीछे जलने वाले अंग के आकार तक सब अलग-अलग हो सकते हैं. बेचारों को बल्ब में भरते वक्त ये सब नहीं सोचा जाता था, न?
वैसे एक बात ये भी बता दें जुगनू अकेला ऐसे जीव नहीं हैं जो खुद से रोशनी पैदा कर सकता है. कुछ जेलिफिश, फंगस से लेकर नन्हें बैक्टीरिया तक रोशनी पैदा कर सकते हैं. वैज्ञानिक लोग इसको बॉयोलुमिनिसेंस (Bioluminescence) नाम देते हैं. नाम से घबराने की कतई जरूरत नहीं है. नाम जटिल है काम सिंपल सा है, लाइट पैदा करना. तो जुगनू की चमकती दुम तक पहुंचने से पहले बायोलुमिनिसेंस को समझ लेते हैं. पहले नीचे सटी तस्वीर में चमकते ‘समुद्री’ जुगनू देख लीजिए
जुगनू के अलावा मशरूम की कई प्रजातियां खुद से लाइट पैदा कर सकती हैं. जैसा कि हमने अभी आपको बताया, इसको बॉयोलुमिनिसेंस कहते हैं. वैसे तो आस-पास हमको ये कम देखने मिलता है. लेकिन समुद्री जीवों में ये काफी आम है. कुछ रिसर्च के मुताबिक 76% तक समुद्री जीव खुद से जगमगा सकते हैं. एक्सपर्ट्स का मानना है कि ये आपस में बात करने, खतरनाक जानवरों को दूर भगाने वगैरह के लिए ऐसा करते होंगे. वरना बत्ती लेकर चलने का क्या ही फायदा, अगर इसका कोई काम न हो.
जुगनू की चमकती दुम के पीछे की कहानी को दो तरीकों से समझा जा सकता है. कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि जुगनू रोशनी का इस्तेमाल अपना पार्टनर खोजने के लिए करते हैं. क्योंकि इनके चमकने में एक लय है. हर प्रजाति का अलग पैटर्न है. ऐसे में ये अपनी शानदार लाइट लपलपा कर अपने पार्टनर को रिझाते होंगे.
वहीं दूसरा मत ये है कि इनकी ये चमकती लाइट चेतावनी है. चेतावनी इनके शिकारियों के लिए कि ये कोई खतरनाक चीज हैं. इस थ्योरी के सपोर्ट में ये बात कही जाती है कि लारवा तो पार्टनर नहीं खोजते. उनके लिए तो लाइट की जरूरत नहीं होनी चाहिए.
लेकिन उनमें भी चमक होना इसका सबूत है कि जुगनू शायद शिकारियों को डराने के लिए जलते हों. खैर कारण चाहे जो हो हाल ही में आई एक रिसर्च "जुगनू जलते कैसे हैं?" वाले सवाल के कुछ नए जवाब निकाल रही है. सब समझते हैं हौले से.
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कैसे चमकते हैं जुगनूजुगनू के पेट का जो हिस्सा चमकता है उसे लैंटर्न (lanterns) कहते हैं. बढ़िया नाम है साफ पता चल रहा क्या काम होगा इसका. जाहिर है रोशनी पैदा करना. दरअसल इन कीटों में होता है एक केमिकल. जिसको कहते हैं लुसिफेरिन (luciferin). लुसिफेरिन जब आक्सीजन से मिलता है, तो थोड़ा एक्साइटेड हो जाता है. एक्साइटेड होकर एनर्जी को रोशनी के तौर पर निकालता है. लेकिन इस रिएक्शन में ज्यादा हीट या गर्मी नहीं पैदा होती. इसलिए इस लाइट को कोल्ड लाइट कहते हैं.
खैर लुसिफेरिन और ऑक्सीजन के मिलने की ये रिएक्शन कैसे पूरी होती है वो अलग मसला है. लेकिन हाल ही में चाइना के कुछ साइंटिस्ट ने इसके पीछे की एक और बात पता की है. कि जुगनू की लाइट पैदा करने के पीछे A1ABD-B और A1UNC-4 अजीब से नाम के ये दो जीन हो सकते हैं. जीन यानी डीएनए का ऐसा हिस्सा जो कोई स्पेसिफिक जानकारी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में भेजती है.
कमाल है नन्हें जुगनू की लपलपाती लाइट के पीछे इतना तामझाम है. सोचा था क्या?
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