The Lallantop

कैसे शुरू हुआ नोबेल प्राइज़?

हिटलर को नोबेल प्राइज़ के लिए किसने नॉमिनेट किया?

post-main-image
नोबेल प्राइज पर इतने सवाल क्यों उठते हैं?

2023 के नोबेल प्राइज़ विनर्स का ऐलान शुरू हो चुका है. मेडिसिन और फ़िजिक्स की फ़ील्ड में विजेताओं के नाम घोषित किए जा चुके हैं. मेडिसिन में हंगरी की केटलिन करीको और अमेरिका के ड्रू वाइज़मैन को नोबेल मिला. दोनों यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेन्सिलवेनिया में साथ काम करते हैं. उन्हें मेसेंजर RNA (mRNA) टेक्नोलॉजी के ईजाद के लिए नोबेल प्राइज़ मिलेगा. mRNA टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कोविड-19 की वैक्सीन बनाने में हुआ. फ़िजिक्स में तीन वैज्ञानिकों को पुरस्कार मिला है. पियेर अगोस्तिनी, फ़ेरेंस क्राउस और एन लीहुलिए.

नोबेल प्राइज़ 06 केटेगरीज़ में दिए जाते हैं. आने वाले दिनों में केमिस्ट्री, पीस, इकोनॉमिक्स और साहित्य के विजेताओं की घोषणा होगी.

आइए जानते हैं,

- नोबेल प्राइज़ के भारतीय विजेताओं की कहानियां.

- और, नोबेल प्राइज़ की प्रासंगिकता पर सवाल क्यों उठते हैं?

नोबेल प्राइज़ को दुनिया का सबसे प्रतिष्ठित अवॉर्ड माना जाता है. उनकी अपनी पहचान है. इसे ईमानदारी और मानवीयता का मापदंड माना जाता है. एकदम कसा हुआ. इसकी शुरुआत 1901 में हुई थी. अल्फ़्रेड नोबेल की वसीयत के आधार पर. वो स्वीडन की राजधानी स्टॉकहॉम में पैदा हुए थे. जब 04 बरस के थे, उनका परिवार रूस चला गया. उनके पिता बारूद की फ़ैक्ट्री चलाते थे. खरीदारों में रूस के राजा भी थे. बाद में बारूद की खपत कम हो गई. इसके चलते अल्फ़्रेड के पिता को फ़ैक्ट्री बंद करनी पड़ी. वे स्वीडन लौट गए.

लेकिन अल्फ़्रेड का बारूद से मन नहीं छूटा था. उन्होंने केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. फिर सस्ते और सुरक्षित किस्म के विस्फोटक बनाने में जुट गए. रिसर्च के दौरान ही लैब में एक हादसा भी हुआ. इसमें उनके भाई की मौत हो गई. हालांकि, जल्दी ही नोबेल डायनामाइट बनाने में सफल हो चुके थे. डायनामाइट के बाद 1875 में अल्फ्रेड ने जिलेटिन का आविष्कार किया. फिर तो उनका कारोबार फलता-फूलता गया. उन्होंने यूरोप के स्वीडन, जर्मनी, स्कॉटलैंड, फ़्रांस और इटली में 90 भी ज़्यादा कारखाने बनाए. वो स्वीडन के सबसे अमीर लोगों में गिने जाने लगे थे.

फिर आया 1988 का साल. अल्फ़्रेड के एक भाई लुडविग की मौत हुई. अख़बारों में ये ख़बर छपी. लेकिन कुछ जगहों पर लुडविग की बजाय अल्फ़्रेड का नाम छप गया. एक फ़्रेंच अख़बार ने लिखा,

“मौत का सौदागर मर गया. डॉक्टर अल्फ़्रेड नोबेल, जो ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को मारने के नए और तेज़-तरीक़े ढूंढ कर अमीर बना था. कल रात उसकी मृत्यु हो गई."

अल्फ़्रेड को ख़बर पढ़कर धक्का लगा. उन्हें दुख हुआ कि मरने के बाद ‘मौत के सौदागर’ के तौर पर याद किया जाएगा. फिर अल्फ़्रेड ने विस्फोटकों की बजाय दूसरी चीजों पर रिसर्च करना शुरू किया. 1896 में उनकी मौत हो गई. उस समय तक उनके नाम पर 355 पेटेंट थे. आज के समय के हिसाब से लगभग 17 सौ करोड़ रुपये की संपत्ति थी. और थी एक वसीयत. जो उन्होंने मौत से एक बरस पहले ही लिख दी थी.

वसीयत में क्या था?

- संपत्ति का अधिकांश हिस्सा एक फ़ंड की स्थापना के लिए दिया गया था. इस फ़ंड से मिलने वाले ब्याज से 05 अवॉर्ड्स की शुरुआत होनी थी. फ़िजिक्स, केमिस्ट्री, मेडिसिन, लिटरेचर और पीस की फ़ील्ड में. छठी केटेगरी 1968 में जोड़ी गई. इकोनॉमिक्स की.

- वसीयत में ही उन संस्थाओं का नाम भी बताया गया था, जिन्हें विजेताओं को चुनना था.

अल्फ्रेड की मौत के बाद उनकी वसीयत खोली गई. भयंकर हंगामा हुआ. परिवार तो नाराज़ था ही. जिस ट्रस्ट को ज़िम्मेदारी दी गई थी. उसने भी हाथ खड़े कर दिए. बहुत कोशिशों के बाद 1901 में नोबेल प्राइज़ की शुरुआत हो सकी.

कैसे मिलता है नोबेल प्राइज़?

- सबसे पहले नॉमिनेशन का आवेदन भरा जाता है.

कौन नॉमिनेट कर सकते हैं?

- कोई भी व्यक्ति को नॉमिनेट नहीं कर सकता.

कौन कर सकता है? एकेडमिक्स, यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर्स, वैज्ञानिक, पुराने नोबेल विजेता या ऐसे लोग, जिन्हें प्राइज़ देने वाली कमिटी योग्य मानती है.

जिन्हें भी नॉमिनेट किया गया है, उनका नाम 50 बरसों तक पब्लिक नहीं किया जा सकता.

नॉमिनेशन के बाद कमिटियां विचार करती हैं. और, इंटरनल वोटिंग के बाद विजेता का चुनाव होता है.

1901 से 2022 के बीच 615 नोबेल प्राइज़ दिए गए हैं. कुछ प्राइज़ दो और तीन लोगों या संस्थाओं के बीच बंटे भी हैं. अभी तक 981 लोगों और संस्थाओं को नोबेल मिला है. एक प्राइज़ अधिकतम तीन लोगों और संस्थाओं के बीच बांटा जा सकता है. उस केस में प्राइज़ मनी भी विभाजित हो जाती है.

विजेताओं को क्या मिलता है?

- एक सर्टिफ़िकेट. एक गोल्ड मेडल और लगभग 08 करोड़ रुपये. पैसा हर साल बदलता रहता है.

यूं तो नोबेल प्राइज़ को बेहद पवित्र और सत्यनिष्ठा का प्रतीक माना जाता है. लेकिन इसको लेकर कई बार विवाद भी खड़े हुए हैं. विज्ञान, अर्थशास्त्र और साहित्य के क्षेत्र में दिए जाने वाले पुरस्कारों पर कम ही सवाल उठे हैं. लेकिन पीस प्राइज़ के साथ ऐसा नहीं है.

अल्फ़्रेड नोबेल ने वसीयत में लिखा था,

पीस प्राइज़ किसी ऐसे व्यक्ति को दिया जाए, जिसने देशों के बीच भाईचारा बढ़ाने, सैनिकों की संख्या घटाने और शांति को बढ़ावा देने को लेकर बेहतरीन काम कर रहा हो.

लेकिन उनकी इच्छा का कई बार पालन नहीं हुआ. अवॉर्ड देने वाली कमिटी ने फ़ाउंडर की जड़ में ही मट्ठा डाल दिया. कई ऐसे नाम कमिटी तक पहुंचे, जो मानवता के हत्यारे थे. कुछ ऐसे नामों को सम्मानित भी किया गया, जो किसी भी तरह मापदंडों पर खरे नहीं उतरते थे.

कुछ उदाहरण देख लेते हैं.

-  नंबर एक. 1939 में स्वीडन के एक सांसद ने हिटलर का नाम पीस प्राइज़ के लिए भेज दिया था. मज़ाक में. इसको लेकर ख़ूब बवाल हुआ. तब जाकर नॉमिनेशन वापस लिया गया.

- नंबर दो. सोवियत संघ के तानाशाह जोसेफ़ स्टालिन को दो बार पीस प्राइज़ के लिए नॉमिनेट किया गया था. और, वो कोई मज़ाक नहीं था.

- नंबर तीन. 1935 में जर्मन पत्रकार कार्ल वोन ओसिएज़्की को नोबेल पीस प्राइज़ देने का ऐलान हुआ. कार्ल ने हिटलर की युद्ध की तैयारियों को उजागर किया था. अवॉर्ड मिला तो हिटलर नाराज़ हो गया. उसने जर्मन लोगों को नोबेल प्राइज़ लेने पर रोक लगा दी. उसने नोबेल प्राइज़ को टक्कर देने के लिए नेशनल अवॉर्ड शुरू कर दिया. 1938 और 1939 में तीन जर्मन वैज्ञानिकों को नोबेल देने का ऐलान हुआ, लेकिन हिटलर के दबाव में उन्हें इनकार करना पड़ा. हिटलर की मौत के बाद वो प्राइज़ पा सके.

- नंबर चार. 1945 में कॉर्डेल हल नाम के एक राजनीतिज्ञ को नोबेल पीस प्राइज़ मिला. यूनाइटेड नेशंस की स्थापना में उनका बड़ा योगदान था. हल 1933 से 1944 तक अमेरिका के विदेश मंत्री रहे.

अवॉर्ड मिलने से छह बरस  पहले की घटना है. मई 1939 में एस. एस. सेंट लुईस नाम का एक जहाज हवाना पहुंचा. इस जहाज में 900 से अधिक यहूदी सवार थे. वे यूरोप में नाज़ियों के कहर से बचकर आए थे. उनका इरादा अमेरिका में शरण लेने का था. तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति फ़्रैंकलिन रूज़वेल्ट इसके लिए तैयार थे. लेकिन हल ने इसका विरोध किया. उन्होंने कुुछ सांसदों को साथ मिला लिया था. उन्होंने अगले चुनाव में सपोर्ट खींचने की धमकी दी. आखिरकार, रूज़वेल्ट ने जहाज को एंट्री देने से मना कर दिया. सेंट लुईस को वापस यूूरोप भेज दिया गया. जहाज पर सवार 250 से अधिक लोग हिटलर के होलोकॉस्ट में मारे गए.

इसके लिए हल को ज़िम्मेदार माना जाता है.. फिर भी नोबेल कमिटी ने उन्हें शांति का अगुआ घोषित किया था. इसकी आलोचना भी हुई.

- नंबर पांच. 1950 के दशक में वियतनाम युद्ध शुरू हुआ. नॉर्थ और साउथ वियतनाम के बीच. साउथ की तरफ़ से अमेरिका युद्ध में शामिल हुआ. उसने भयानक हिंसा की. फिर 1969 में हेनरी किसिंजर अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बने. बाद में वो विदेश मंत्री भी बने. किसिंजर के ही आदेश पर अमेरिका ने युद्धविराम के बीच में बमबारी की थी. किसिंजर को कई देशों में सरकार गिराने के लिए भी जाना जाता है. इन सब आरोपों के बावजूद उन्हें 1973 में नोबेल पीस प्राइज़ मिला. नॉर्थ वियतनाम के नेता ली डक थो के साथ. थो ने किसिंजर के साथ अवॉर्ड लेने से मना कर दिया. अवॉर्ड कमिटी के दो सदस्यों ने किसिंजर के विरोध में इस्तीफ़ा भी दिया था.

ली डक थो से पहले फ़्रेंच लेखक जीन पॉल सात्र ने नोबेल प्राइज़ लेने से इनकार किया था. उन्हें 1964 में साहित्य की फ़ील्ड में प्राइज़ देने का ऐलान किया गया था.

- छठा उदाहरण यासिर अराफ़ात का है. उन्हें 1994 में पीस प्राइज़ दिया गया. इज़रायल के दो दिग्गज नेताओं यित्हाक राबिन और सिमोन पेरेज के साथ. उन्होंने इज़रायल और फ़िलिस्तीन के बीच शांति स्थापित करने का वादा किया गया था. लेकिन ये समझौता कभी सफ़ल नहीं हो सका.

इसके अलावा, अराफ़ात पर आतंकी हमलों और हाईजैकिंग के संगीन आरोप भी थे. फिर भी उन्हें ये अवॉर्ड मिला.

- सातवां उदाहरण इथियोपिया के एबी अहमद अली और म्यांमार की आंग सान सू ची का है.

एबी अहमद इथियोपिया के मौजूदा राष्ट्रपति हैं. उन्हें 2018 में नोबेल पीस प्राइज़ मिला था. एरिट्रिया के साथ चल रहे संघर्ष को खत्म करने के लिए. 2020 में उन्होंने अपने ही एक प्रांत टिग्रे के ख़िलाफ़ सेना उतार दी. इस लड़ाई में हज़ारों लोग मारे जा चुके हैं. हज़ारों महिलाओं का बलात्कार हो चुुका है. लाखों लोग पलायन कर चुके हैं. आबादी के एक बड़ा हिस्सा भुखमरी की कगार पर खड़ा है. इन सबके बीच एबी अहमद अली अपनी जनता को युद्ध के लिए उकसाते हैं.

आंग सान सू ची को 1991 में पीस प्राइज़ मिला था. सैन्य शासन के ख़िलाफ़ तनकर विरोध करने के लिए. लेकिन जब वो सत्ता में आईं और सेना ने रोहिंग्या मुसलमानों का नरसंहार किया, तब वो चुप बैठीं रही. उन्होंने कभी उसका विरोध नहीं किया. हालांकि, सेना का मौन समर्थन भी उन्हें बचा नहीं पाया. फ़रवरी 2021 में सेना ने उन्हें कुुर्सी से उतारकर जेल में बिठा दिया.

- आठवां उदाहरण अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा का है. उन्हें 2009 में नोबेल पीस प्राइज़ दिया गया. ओबामा ने इराक़ वॉर में सेना की तैनाती बढ़ाई थी.

2012 में यूरोपियन यूनियन (EU) को ये अवॉर्ड मिला. EU दुनियाभर के देशों में हथियार बेचती है. उसने युद्ध और हिंसा को बढ़ावा ही दिया है.

इन विवादों पर नोबेल कमिटी क्या कहती है?

उनका कहना है कि किसी भी व्यक्ति या संस्था को नोबेल प्राइज़ उसकी हालिया उपलब्धि के लिए दिया जाता है. ये जीवनपर्यंत नहीं है. उन्होंने बाद में क्या किया, इससे कोई अंतर नहीं पड़ता.

क्या कमिटी अवॉर्ड छीन सकती है?

कतई नहीं. ना तो अल्फ़्रेड नोबेल की ऐसी इच्छा थी और ना ही कमिटी ने कभी ऐसा सोचा. आज तक किसी भी विजेता से नोबेल प्राइज़ वापस नहीं लिया गया है.

अब भारत के भारतीय मूल के नोबेल विजेताओं के बारे में जान लेते हैं.

कुल 11 भारतीयों को नोबेल मिला है. कौन-कौन हैं?

- पहला नाम रबींद्रनाथ टैगोर का है. 1913 में उन्हें साहित्य के क्षेत्र में नोबेल मिला था. उस समय भारत, ब्रिटेन के अधीन था.

क्यों मिला सम्मान?

1910 में उन्होंने ‘गीतांजलि’ लिखी. ये उनकी बंगाली कविताओं का संकलन था. 1912 में टैगोर ने इसका अंग्रेज़ी तर्जुमा किया. इसी तर्जुमे को अवॉर्ड मिला था.

- दूसरा नाम, चंद्रशेखर वेंकट रमन. उन्हें 1930 में फिजिक्स की फ़ील्ड में प्राइज़ मिला था. रमन इफ़ैक्ट के लिए.

- तीसरा नाम, हरगोविंद खुराना. उन्हें 1968 में मेडिसिन में नोबेल दिया गया. उनका जन्म अविभाजित भारत के रायपुर गांव में हुआ था. ये गांव अब पाकिस्तान का हिस्सा है. खुराना ने बाद में अमेरिका की नागरिकता ले ली थी.

हरगोबिंद और उनके साथियों ने बताया था कि जीन, DNA और RNA के संयोग से बनता है. उन्होंने न सिर्फ DNA को डीकोड कर बताया कि वो प्रोटीन के मॉलिक्यूल से बना है बल्कि एक आर्टिफिशियल DNA भी तैयार किया.

- 1979 में पहली बार किसी भारतीय को शांति का नोबेल मिला. शख़्स का नाम था, अगनेस गोंझा बोयाजिजू. दुनिया उन्हें मदर टेरेसा के नाम से जानती है. नोबेल के अलावा उन्हें मैग्सेसे और भारत रत्न भी मिला है.

मदर टेरेसा 1910 में मौजूदा नॉर्थ मेसीडोनिया में पैदा हुईं थीं. वो 1929 में भारत आ गईं. फिर यहीं की होकर रह गईं. 1950 में उन्हें भारत की नागरिकता मिल गई.

- पांचवां नाम, सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर, उनका जन्म अविभाजित भारत के लाहौर में हुआ था. उन्होंने बाद में अमेरिका की नागरिकता ले ली थी. उन्हें 1983 में नोबेल मिला था. फ़िजिक्स की फ़ील्ड में.

-  छठा नाम अमर्त्य सेन का है. उन्हें 1998 में इकोनॉमिक्स का नोबेल मिला.

- सातवां नाम, वेंकटरमन रामकृष्णन. 2009 में केमिस्ट्री में नोबेल मिला. वो तमिलनाडु में पैदा हुए थे. बाद में ब्रिटेन और अमेरिका की नागरिकता ले ली थी.

- आठवां नाम, कैलाश सत्यार्थी. उन्हें 2014 में नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया था. उन्होंने बाल मजदूरी खत्म करने के लिए योगदान दिया. था वो पेशे से तो इलेक्ट्रिक इंजीनियर थे लेकिन जब उन्होंने छोटे-छोटे बच्चों को मजदूरी करते देखा तो नौकरी छोड़कर उनके लिए काम करने लग गए. उन्होंने इसके लिए ‘बचपन बचाओ आन्दोलन’ शुरू किया था. कैलाश सत्यार्थी को पाकिस्तान की मलाला युसुफ़ज़ई के साथ ये अवॉर्ड दिया गया था.

- नौवां नाम अभिजित बनर्जी का है. उन्हें 2019 में अर्थशास्त्र की फ़ील्ड में नोबेल मिला. वो भारत में पैदा हुए थे. बाद में अमेरिका की नागरिकता ले ली.

इन सबके अलावा, 02 ऐसे विदेशी नागरिक, जो भारत में पैदा हुए और उन्हें नोबेल मिला. उनका ज़िक्र हम अलग से कर रहे हैं.

- पहले का नाम है, रोनाल्ड रॉस, इनको 1902 में मेडिसिन के क्षेत्र में नोबेल मिला. इनका जन्म उत्तराखंड के अमरोहा में हुआ था. लेकिन नागरिकता थी ब्रिटेन की. उन्होंने पता लगाया था कि कैसे मच्छरों के काटने से मलेरिया होता है.  

- दूसरा नाम लेखक रूडयार्ड किपलिंग का है.

1865 में बंबई में जन्मे थे. आपने मोगली वाली जंगल बुक का नाम तो सुना ही होगा. इन्होने ही लिखी थी. उन्होंने ऐसी कई रचनाएं कीं. इसलिए उन्हें साहित्य के क्षेत्र में योगदान के लिए ये सम्मान दिया गया था. 1907 में.