हिन्दी-चीनी भाई-भाई. इस लाइन को लेकर आपका अपना मत हो सकता है और हमारा तो है ही. मतलब ऐसा माना भी जा सकता है और नहीं भी. भाई-भाई वाले प्यार को लेकर दो मत हो सकते हैं मगर चाइनीज फूड को लेकर हमारे मत एक ही हैं. माने कि चाइनीज खाने को लेकर हमारा प्रेम बताने की जरूरत नहीं. प्रेम इतना है कि हमने कई सारे मसाले मिलाकर चाइनीज खाने का भारतीयकरण भी कर डाला है. लेकिन इस मेल में एक बेमेल उदाहरण भी है. मगर उसका परिणाम बहुत स्वाद भरा रहा. ये मेल है चाइना और क्रिकेट का. और इस मेल का परिणाम है चिकन मंचूरियन (Chicken Manchurian).
चिकन मंचूरियन की पैदाइश का रोचक किस्सा, कैसे क्रिकेट स्टेडियम में पैदा हुई इंडिया में महाफेमस चाइनीज़ डिश?
हर किसी की जुबान पर (शाकाहारी दोस्तों से माफी के साथ) चढ़ा हुआ चिकन मंचूरियन भारतीय क्रिकेट की देन है. ना 'Cricket Club of India' होता, ना शेफ Nelson Wang वहां नौकरी करते, और ना..... आगे की रोचक कहानी स्टोरी में पढ़िए...

आपने एकदम सही पढ़ा. हर किसी की जुबान पर (शाकाहारी दोस्तों से माफी के साथ) चढ़ा हुआ चिकन मंचूरियन भारतीय क्रिकेट की देन है. ना Cricket Club of India होता, ना वहां शेफ Nelson Wang करते, ना उनसे कोई नई डिश बनाने को कहता और ना चिकन मंचूरियन होता. आज आपको पूरी डिश बनाकर बताते हैं.
चाइना टू बॉम्बे टू इंडियाबॉम्बे जिसे आज कहते हैं मुंबई. यहीं पर है Cricket Club of India, जिसे शॉर्ट में CCI भी कहते हैं. इसी CCI के अंडर में है Brabourne cricket stadium. वैसे तो मुंबई में वानखेड़े और DY पाटिल जैसे क्रिकेट स्टेडियम भी हैं, मगर आज Brabourne पर ही खेलते हैं. इस स्टेडियम के बनने की कहानी भी मंचूरियन जितनी रोचक है.
हुआ यूं कि एक बार पटियाला के महाराजा को Bombay Gymkhana ने वीआईपी वाली इंट्री नहीं दी. महाराजा हुए नाराज और फिर नींव पड़ी ब्रेबोर्न स्टेडियम की. साल 1936 में तब के बॉम्बे के गवर्नर Lord Brabourne के हाथों से. एक साल में स्टेडियम बन गया और फिर कई ऐतहासिक पारियों का गवाह बना.

लिस्ट बहुत लंबी है. 1952 में इंडिया-पाकिस्तान टेस्ट मैच से लेकर 2009 के इंडिया- श्रीलंका टेस्ट मैच तक. ये वही मैच है, जिसमें वीरेंद्र सहवाग ने एक दिन में 284 रन ठोक दिए थे. मुरलीधरन कैच नहीं पकड़ते तो सहवाग ने तीसरा तिहरा शतक मारकर एक और रिकॉर्ड बना लेना था.
खैर बहुत हुआ नॉस्टैल्जिया. इतनी देर में मंचूरियन बन गया होगा, तो उसको प्लेट में डालते हैं. शेफ का नाम हमने आपको बता ही दिया. 1950 में पैदा हुए Nelson Wang एक चीनी प्रवासी थे, जो साल 1974 में मुंबई आ गए और CCI के किचन में नौकरी करने लगे. यहीं पर साल 1975 में एक कस्टमर ने उनसे कुछ नया चाइनीज खाने की फरमाइश की. Wang ने इसको लिया दिल पर. किचन में गए और चिकन के टुकड़ों को लपेटा cornstarch में. फ्राई किया और लहसुन, अदरक और हरी-मिर्च वाले सॉस और साथ में सोया सॉस के साथ परोस दिया.

बाकी सब इतिहास है. इसके बाद ये डिश इतनी लोकप्रिय हुई कि Wang ने मुंबई में China Garden के नाम से Indian-Chinese रेस्टोरेंट खोला. अनोखे स्वाद की ये यात्रा आज भी जारी है. China Garden आज मुंबई के साथ बेंगलुरू, गोवा, पुणे, हैदराबाद और दिल्ली में भी लज़ीज़ Chicken Manchurian खिला रहे हैं.
आपने अगर यहां इस डिश को खाया हो, तो हमसे जरूर साझा करना.
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