दो शख्स काले सूट और बाउलर हैट पहने हुए, बाइसन की खोपड़ियों के ढेर पर खड़े हैं. 19वीं सदी की यह तस्वीर डराने वाली है. हजारों खोपड़ियां, जो इकट्ठा कर रखी गई हैं और आकाश की तरफ बढ़ती दिखती हैं. ये तस्वीर असहज तो करती है, पर इस तस्वीर में एक और भी गहरा रहस्यमय पहलू छुपा है. देखने में लग सकता है कि ये बेकाबू हो चुके शिकारियों के मनमाने कामों का नतीजा है. पर शायद ऐसा नहीं है. ना ही शान से पोज दे रहे ये शख्स महज शिकारी हैं.
जब लालची, सनकी इंसानों ने 6 करोड़ बायसनों को मार-मार कर उनकी संख्या 456 कर दी
Bisons का विनाश, औपनिवेशिक विस्तार का एक रणनीतिक हिस्सा था जो कि अमेरिकी भूभाग और नेटिव अमेरिकंस को वश में करने के लिए किया गया था.
जानकारों का एक धड़ा मानता है कि ये खोपड़ियां एक संगठित, सोची-समझी मुहिम का सबूत हैं. मुहिम जो स्थानीय अमेरिकी यानी नेटिव अमेरिकन्स के खिलाफ छेड़ी गई थी. इरादा था बाइसन को खत्म करना. मूल अमेरिकी लोगों को एक जरूरी संसाधन के अभाव में रखना. इनमें जो मूल अमेरिकी इस मुहिम से बच पाए, उन्हें छोटे इलाकों में रहने पर मजबूर कर दिया गया ताकि अंग्रेज सेटलर्स उन पर काबू रख सकें. यह सारी कहानी शायद इसी तस्वीर में छिपी है. विदेशियों की क्रूरता, स्थानीय लोगों का दर्द, सब इस तस्वीर में है.
साल 1892 में खींची गई ये तस्वीर, अमेरिका के मिशिगन कार्बन वर्कस के बाहर ली गई थी. फिल्म निर्माता और प्रोफेसर ताशा हबर्ड इस पर कहते हैं,
"औपनिवेशिक ताकतें कैसे विनाश का महिमामंडन करती थीं, यह तस्वीर दिखाती है.’
18वीं शताब्दी की शुरुआत में बाइसन्स की जनसंख्या करीब तीन से छह करोड़ थी. वहीं जब ये तस्वीर ली गई, तब तक जंगलों में इनकी संख्या महज 456 रह गई थी. सवाल बनता है कि आखिर एक पूरी की पूरी प्रजाति के पीछे हाथ धोकर पड़ने की क्या वजह थी? इस तस्वीर का क्या इतिहास है और विदेशी ताकतें अपना अधिकार जमाने के लिए किस हद तक जा सकती हैं?
यूरोपीय देशों ने दुनिया भर में अपनी कॉलोनियां बनाईं. व्यापार से शुरू हुए सिलसिले युद्ध तक पहुंचे. लेकिन ये युद्ध हमेशा इंसानों तक ही सीमित नहीं रहे. इनकी जद में प्रकृति भी आई. ऐसे ही कई संघर्ष अमेरिका के मूल निवासियों और बाद में बसने वाले विदेशियों के भी हुए. ये तस्वीर ऐसे ही संघर्ष की कहानी बयान करती है.
बकौल हबर्ड, बाइसन का विनाश, औपनिवेशिक विस्तार का एक ‘रणनीतिक’ हिस्सा था, जो अमेरिकी भूभाग को वश में करने के लिए किया गया था. ताकि तथाकथित जंगली इलाकों को ‘सभ्य’ बनाया जा सके. इस क्रम में इन जानवरों की हत्या भी हुई. इससे उन स्थानीय जनजातियों पर गहरा असर हुआ, जो इस जानवर पर निर्भर थीं. दरअसल मूल अमेरिकी सालों से बाइसन का शिकार करते रहे हैं. इन्हें ‘बाइसन राष्ट्र’ की संज्ञा दी जाती है. इनके लिए यह एक प्राथमिक स्रोत था. इनसे उन्हें खाने को मांस मिलता और खाल से कपड़े मिलते. वहीं इनकी हड्डियां हथियार बनाने के काम आतीं.
औपनिवेशिक ताकतों ने इन बाइसन राष्ट्रों और इन जानवरों के साथ जो सलूक किया उसकी झलक बाद के तमाम सालों में भी देखने को मिली. एक हालिया शोध में ये भी पता चला कि यहां दूसरी जगहों के मुकाबले बच्चों की मृत्यु दर भी बढ़ गई. और इस सब के पीछे था शिकार.
भूख को बनाया हथियारहबर्ड कहते हैं कि पूरे उत्तरी अमेरिका में आदिवासी लोग इस जानवर पर निर्भर थे. वो कहते हैं,
"इस प्रमुख प्रजाति को खत्म करना, मूल अमेरिकियों के खिलाफ भूख को एक हथियार बनाने जैसा था. उन्हें कमजोर करना था, ताकि उन पर काबू पाया जा सके. उन्हें उनके इलाकों से बाहर किया जा सके."
दरअसल मूल अमेरिकियों की जमीन हथियाने के लिए विदेशियों ने कई हथकंडे अपनाए. हाल ही में आई फिल्म 'किलर ऑफ फ्लार मून' इसी पर आधारित है. बाइसन के इतने इस्तेमाल के बावजूद, माना जाता है कि मूल अमेरिकी शिकारी सालाना दस लाख से कम बाइसन का शिकार करते थे. 1800 के दशक के शुरू में इतना शिकार इनकी 3-6 करोड़ की आबादी पर ज्यादा असर नहीं डालता था. लेकिन 1 जनवरी, 1889 आते-आते अमेरिका में सिर्फ 456 शुद्ध नस्ल के बाइसन बचे थे- और उनमें से 256 को येलोस्टोन नेशनल पार्क और कुछ दूसरे नेशनल पार्क्स में रखा गया था.
बेलगाम कारोबारइतिहासकार बेथने ह्यूस बाइसन के संहार को कारोबार से जोड़ती हैं. वो कहती हैं,
“यह औपनिवेशिक दौर के बुरे वक्त की याद तो दिलाती ही है. पर यह कारोबारी उपभोग की नीतियों पर भी रौशनी डालती है.”
बाइसन के इतने बड़े पैमाने पर संहार की कई वजहें थीं. इनमें तीन बड़े रेल-रोड बनाना भी शामिल है जिन्हें सबसे प्रसिद्ध बायसन इलाकों से लेकर जाना था. इससे जानवरों की खाल और मांस की नई मांग पैदा हुई. वहीं आधुनिक राइफलो ने इन्हें मारना और आसान बना दिया. लेकिन बाइसन के उत्पादों की बढ़ती मांग के अलावा, इन जानवरों की संख्या में गिरावट की एक और भयावह वजह थी.
लालचबेथनी ह्यूजेस कहती हैं,
"धन और शक्ति की लालसा, जमीन का हक, गुलामी, असीमित विकास और फायदे की चाहत, सब इन हत्याओं के पीछे थे. जब 1869 में रेलरोड का निर्माण पूरा हुआ, तो इसने इस प्रजाति के विनाश को तेज कर दिया. वहीं, कुछ साल बाद 1871 में, पेंसिल्वेनिया की एक चमड़ा कंपनी ने बाइसन की खाल को कमर्शियल चमड़े में बदलने की एक विधि निकाली. जिसके बाद खाल के शिकारी, मैदानों में रहने वाले झुंडों को ‘चौंकाने वाली तेजी’ से खत्म कर रहे थे."
बाइसन खोपड़ियों की ये कुख्यात तस्वीर मिशिगन कार्बन वर्क्स में ली गई थी, जो हड्डियों को प्रोसेस करने वाली एक रिफाइनरी थी. वहां, बाइसन की हड्डियों को चारकोल में बदला गया, जिसका उपयोग चीनी उद्योग में किया जाता था. हड्डियों से भी मुनाफा बनाया जा रहा था.
बकौल ह्यूजेस,
"उपनिवेशवाद और पूंजीवाद साथ-साथ चलते हैं. बाइसन की हड्डियों को प्रोसेस करके इस कंपनी ने जो पैसा कमाया; उसका लाभ उठाना और उसे बढ़ाना विदेशी नीतियों का हिस्सा था, जिन्होंने स्वदेशी लोगों को उनकी जमीन, राष्ट्र और संस्कृति से वंचित कर दिया."
वो आगे कहती हैं,
बाइसन और सैन्य अभियान“यह फोटो केवल औपनिवेशिक अतीत के नुकसानों की याद दिलाने वाली नहीं है. बल्कि ये बताती है कि नैतिकता का पतन कैसे होता है. चीनी जैसी चीजों को बनाने के लिए कितनी हिंसा का इस्तेमाल हो सकता है.”
बाइसन की हत्या कुछ सैन्य अभियानों का भी हिस्सा थी, जिनमें संसाधनों की कमी को एक रणनीति के तौर पर इस्तेमाल किया गया. दरअसल पश्चिमी सेना के अधिकारियों ने, अमेरिकी उपनिवेशीकरण के दौरान, सैनिकों को बायसन मारने के लिए भेजा ताकि मूल अमेरिकियों के संसाधन खत्म किए जा सकें. इतिहासकार रॉबर्ट वूस्टर अपनी पुस्तक द मिलिट्री एंड यूनाइटेड स्टेट्स इंडियन पॉलिसी में बताते हैं, "जनरल फिलिप शेरिडन, जनजातियों के खिलाफ "टोटल वॉर" रणनीति के लिए जिम्मेदार अधिकारी थे. और उन्होंने ये मान लिया था कि बायसन को खत्म करना, मूल अमेरिकियों के आम जीवन को मिटाने का बेहतरीन जरिया है."
शेरिडन ने 1868 में एक साथी जनरल को लिखे खत में कहा,
"सरकार के लिए सबसे अच्छा तरीका है कि उनके स्टॉक को खत्म करके गरीब बना दिया जाए. और फिर उन्हें दूसरी जगह बसाया जाए"
वहीं एक और सेना अधिकारी, लेफ्टिनेंट कर्नल डॉज ने एक शिकारी से कहा,
"हर बाइसन को मार डालो! हर मरा हुआ बाइसन एक कम नेटिव अमेरिकी है."
नेटिव अमेरिकियों को पता था कि क्या हो रहा है. इनमें से कियोवा जनजाति के मुखिया सतांता को अंदाजा था कि ‘बाइसन को नष्ट करना मूल लोगों को नष्ट करने के समान है.’ टेक्सस के बाइसन शिकारी, बिली डिक्सन अपनी आत्मकथा में लिखते हैं,
"जनरल फिल शेरिडन ने मैदानों की जनजातियों को हमेशा के लिए वश में करने और उन्हें हराने के लिए वही किया, जिसका सतांता को डर था."
नेटिव अमेरिकियों को वंचित करने का मतलब था कि उन्हें पश्चिमी सेना के बनाए नए इलाकों पर जाने के लिए मजबूर किया जाए, ताकि वे जीवित रहने के लिए महज खेती करें. सेना की रणनीतियां कामयाब रहीं. कियोवा जनजाति के सदस्यों को बाद में ओकलाहोमा के एक रिजर्व में भेज दिया गया. इसका असर भी दिखा. एक पीढ़ी के भीतर, उन नेटिव अमेरिकियों की औसत ऊंचाई एक इंच से ज्यादा घट गई क्योंकि ये बाइसन पर अत्यधिक निर्भर थे, और इस ये संहार से सबसे अधिक प्रभावित हुए.
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