90 के दशक की बात है, पूरी दुनिया बदलाव की ओर बढ़ रही थी. नए-नए बदलाव हो रहे थे. इसी समय लोगों के बीच एक बीमारी भी अपने पैर पसार रही थी. ये एक तरह का चेस्ट इन्फेक्शन था जिससे लोगों की छाती में संक्रमण फैल रहा था. पूरी दुनिया के डॉक्टर इसका इलाज ढूँढने की कोशिश कर रहे थे. तो, दवा बनी, दवा का टेस्ट भी हुआ पर ये अपना काम करने में असफल रही. पर इस दवा ने कुछ ऐसा कर दिया जिससे आने वाले सालों में कई पुरुषों में ये उम्मीद जगी कि वो भी सेक्सुअली एक्टिव हो पाएंगे. इस दवा का नाम दिया गया वियाग्रा. और अब एक और खोज सामने आई है जिसमें पता चला है वियाग्रा न सिर्फ पुरुषों की सेक्स से संबंधित समस्या,बल्कि एक और गंभीर रोग को ठीक करने में कारगर है. तो समझते हैं कि वियाग्रा की शुरुआत कैसे हुई? और कैसे इसने मेडिकल जगत में एक क्रांति ला दी?
वियाग्रा बनी तो थी 'दिल का दर्द' मिटाने के लिए, फिर 'सेक्स' की दवा कैसे बन गई?
History of Viagra: वियाग्रा की कहानी शुरू होती है 1990 से. इस समय फाइज़र नाम की फार्मा कंपनी एक नई दवा सिल्डेनाफिल पर प्रयोग कर रही थी. इस दवा का इस्तेमाल हाइपरटेंशन और दिल से जुड़ी एक बीमारी Angina Pector के इलाज में किया जाना था.
आपने सोशल मीडिया पर एक मीम देखा होगा जिसमें दो तरह की टैबलेट लिए एक व्यक्ति खड़ा रहता है और आपको कोई एक चुनने को कहता है. मसलन लाल टैबलेट से ज़िंदगी भर का फ्री ट्रैवल और नीली टैबलेट से पूरी लाइफ फ्री फूड. हालांकि ये बस एक मीम है, ऐसा सच में नहीं होता. पर जादुई न सही, एक ऐसी नीली टैबलेट इस दुनिया में है जिसने वाकई इस दुनिया में और मेडिकल साइंस के क्षेत्र में क्रांति ला दी.
वियाग्रा की कहानी शुरू होती है 1990 से. इस समय फाइज़र नाम की फार्मा कंपनी एक नई दवा सिल्डेनाफिल पर प्रयोग कर रही थी. इस दवा का इस्तेमाल हाइपरटेंशन और दिल से जुड़ी एक बीमारी Angina Pector के इलाज में किया जाना था. ये ऐसी बीमारी थी जिसमें छाती में असहनीय दर्द उठता. इसकी बड़ी वजह थी शरीर में दिल की मांसपेशियों तक ब्लड का ठीक से न पहुंचना. इस दवा को बनाने वाली टीम को लीड कर रहे थे ब्रिटिश केमिस्ट साइमन कैंपबेल (Simon Campbell). दवा बन गई और बारी आई इसके ट्रायल की. दवा के शुरुआती ट्रायल हुए इंग्लैंड के मॉरिस्टन हॉस्पिटल (Morriston Hospital) में. Swansea शहर में पड़ने वाला ये अस्पताल अघोषित तौर पर वियाग्रा के ट्रायल का पहला गवाह बना.
पर ट्रायल के रिजल्ट्स की जैसी उम्मीद की गई थी, वैसा कुछ नहीं हुआ. दवा ट्रायल के इंचार्ज Ian Osterloh को कुछ ऐसे परिणाम दिखे जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी. Ian Osterloh ने पाया कि ये दवा शरीर के ब्लड फ़्लो को बढ़ा तो रही है, पर सिर्फ शरीर के निचले हिस्से में. ये दवा पुरुषों के शरीर में उत्तेजना पैदा करने लगी. इस तरह के नतीजे सामने आने के बाद शोध करने वालों ने इस पर हार्ट की बीमारियों के लिए हो रहे ट्रायल को रोकने का फैसला किया. उन्होंने इस दवा को एक अलग दिशा में आगे बढ़ाया. यानी शोधकर्ता अब सिल्डेनाफिल को अब दिल की बीमारी के लिए नहीं, बल्कि पुरुषों में इरेक्शन की समस्या के लिए इस्तेमाल किये जाने की दिशा में आगे बढ़ने लगे. यानी दवा बनाई जानी थी दिल की बीमारियों के लिए पर, इसने सेक्शुअल हेल्थ की दुनिया में ऐसी क्रांति ला दी, जिससे कई पुरुषों की ज़िंदगी बदल गई. ये वो समय था जब एक तिहाई पुरुष इरेक्शन को लेकर समस्या से जूझ रहे थे.
पर दवा बनने मात्र से कुछ नहीं होता, भले ये कितनी ही कारगर हो. जब तक इसे अमेरिका के Food and Drug Administration (FDA) से मंजूरी नहीं मिलती, तब तक फाइजर इसे मार्केट में नहीं उतार सकती थी. आवेदन किया गया और अंततः 27 मार्च, 1998 को Food and Drug Administration ने वियाग्रा के इस्तेमाल को मंजूरी दे दी. फिर बाजार में आई नीली टैबलेट जिसने पुरुषों को उनकी कई आदतों मसलन जेनेटिक, खराब खान-पान, लापरवाह लाइफस्टाइल आदि की वजह से जन्मी इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की समस्या से निजात दिलाया. इस दवा के लिए मार्केट में एक नाम प्रचलित हो गया ‘वियाग्रा’. आज भी ये दवा दुनिया भर में पुरुषों की पहली पसंद बनी हुई है. वियाग्रा की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि इसके विज्ञापन में अमेरिका के रिपब्लिकन सीनेटर बॉब डोल नजर आए.
समय बीता और वियाग्रा का बाजार लगातार नई ऊंचाइयों को छूता गया. बिक्री के पहले दो हफ्ते में ही अमेरिका में इसको लेकर डेढ़ लाख प्रिस्क्रिप्शन लिखे गए. अमेरिका में उस वक्त वियाग्रा के एक टैबलेट की कीमत 10 डॉलर थी. बाकी देशों में बिक्री शुरू होने से पहले ही वियाग्रा इतना लोकप्रिय हो गया कि इजरायल, पोलैंड और सऊदी अरब में तो इसकी ब्लैक मार्केटिंग तक होने लगी. आज भी कई और दवाओं को भी वियाग्रा नाम से ही बेचा जाता है. ये कुछ-कुछ वैसा ही है, जैसे टंकी किसी भी ब्रांड की हो, पर जनता सिंटेक्स ही कह देती है. तो लोग दवा की दुकान पर जाते हैं, और सीधे वियाग्रा की मांग करते है. भले उन्हें फाइज़र की दवा मिले, या किसी और कंपनी की.
अब आते हैं इस दवा से जुड़ी अपडेट पर. एक रिसर्च में पता चला है कि वियाग्रा सिर्फ इरेक्टाइल डिस्फंक्शन ही नहीं बल्कि एक और बीमारी का खतरा कम करने में सहायक है. यानी वियाग्रा को बनाया गया था ब्लड फ़्लो के लिए. दवा बन गई इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की. और अब अगर ये शोध आगे कुछ पाज़िटिव परिणाम देता है तो ये दवा एक खतरनाक रोग अल्जाइमर में भी काम आएगी.
अल्जाइमर दरअसल एक मानसिक बीमारी है. अगर ये बढ़ जाए तो ये डिमेंशिया यानी मानसिक पागलपन का प्रमुख कारण बनता है. अकेले अमेरिका में ही 50 लाख से अधिक लोग अल्जाइमर से पीड़ित हैं. पूरी दुनिया में इसके ढाई करोड़ से अधिक मरीज होने का अनुमान है. अल्जाइमर का अगर समय पर इलाज न हो पाए तो इसके कारण डिमेंशिया होने का खतरा भी बढ़ सकता है. भारत में भी इस रोग के मामले पिछले कुछ वर्षों में काफ़ी बढ़े हैं. तो अगर सब ठीक रहा तो ये दवा मानसिक रोग के इलाज में भी काम आएगी.
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