ढाई किलोमीटर चौड़ा और 15 किलोमीटर लम्बा एक आयताकार शहर. शहर जिसे जलदुर्ग कहा जा जाता था. तीन नदियां इसके किनारे बहती थीं. रक्षा पत्थरों की एक दीवार करती थी, जिसमें 64 द्वार बने हुए थे. 570 मीनारें शहर की देखरेख के लिए बनाई गई थीं. वर्तमान में ये शहर एक राज्य की राजधानी है. लेकिन कभी ये दुनिया के सबसे बड़े साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था. इसके बारे में कहा जाता था कि इसे जीतना असंभव है. बात हो रही है पाटलिपुत्र की. भारत के पूर्वी कोने में बना ये शहर 6 साम्राज्यों की राजधानी रहा. इसके बारे में ग्रीक इतिहासकार मेगस्थनीज़ ने कहा था, "इतना भव्य शहर पूरे पर्शिया में मौजूद नहीं है".
यही जानेंगे कि क्या है पाटलिपुत्र का इतिहास? कैसे हुई पाटलिपुत्र की स्थापना? कैसे नष्ट हुआ ये शहर और पाटलिपुत्र पटना कैसे बना?
पाटलिपुत्र कैसे बना पटना? सम्राट बिम्बसार से नीतीश कुमार तक कैसे बदली बिहार की राजधानी
पटना ही पाटलिपुत्र है. हमें ये बात आज मालूम है, लेकिन महज 130 साल पहले तक आर्कियोलॉजिस्ट्स के लिए पाटलिपुत्र एक अबूझ पहेली थी.

पटना ही पाटलिपुत्र है. हमें ये बात आज मालूम है, लेकिन महज 130 साल पहले तक आर्कियोलॉजिस्ट्स के लिए पाटलिपुत्र एक अबूझ पहेली था. यूं 1780 से ही इतिहासकार पटना और पाटलिपुत्र का कनेक्शन जोड़ने में लगे थे. लेकिन ये दोनों शहर एक ही हैं, ये बात बिना सबूतों के प्रूव नहीं हो सकती थी. साल 1878 में आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया के डायरेक्टर जनरल, एलेक्सेंडर कनिंघम ने इलाके का सर्वे किया. एलेक्सेंडर को विश्वास का था कि पाटलिपुत्र पटना के आसपास ही कहीं दबा हुआ है. हालांकि बाकी लोग इससे सहमत नहीं थे. अधिकतर का मानना था कि शहर बाढ़ में बह गया और उसका कोई अवशेष नहीं बचा. इस थ्योरी को गलत प्रूव किया एक और ब्रिटिश अधिकारी ने.

लॉरेंस आस्टेन वैडेल- ब्रिटिश फौज में कर्नल हुआ करते थे. साथ ही इतिहास का शौक भी रखते थे. साल 1892 में उन्होंने पटना का दौरा किया. वैडेल ने प्राचीन ग्रंथों का सहारा लिया. चीन से भारत आए ह्वेन सांग और फाह्यान ने पाटलिपुत्र के बारे में कई चीज़ें लिखीं. इनकी मदद से अशोक काल के कुछ अवशेषों को खोज निकाला. अपनी रिपोर्ट से वैडेल ने लगभग पक्का कर दिया कि पाटलिपुत्र जमीन के नीचे अभी भी दबा हुआ है. हालांकि उस दबे हुए शहर को देखने के लिए अभी भी जरूरी था कि एक व्यापक खुदाई की जाए. लेकिन ब्रिटिश सरकार ने पैसों की कमी का हवाला देते हुए खुदाई से इंकार कर दिया. भारत के प्राचीन साम्राज्य की राजधानी जमीन में ही दबी रह जाती, लेकिन फिर एंट्री हुई सर रतन टाटा की. टाटा ने पाटलिपुत्र की खोज में कैसे योगदान दिया, ये जानने से पहले चलते हैं थोड़ा और पीछे.
ईसा से 600 साल पहले भारत में 16 महाजनपद हुआ करते थे. इनमें से एक था मगध. मगध की नींव रखी हरयंक वंश के राजा बिम्बिसार ने. बिम्बिसार के बेटे का नाम था अजातशत्रु. इन्हीं अजातशत्रु के समय में मगघ पहला साम्राज्य बना. और अजातशत्रु के समय में ही ये भी तय हुआ कि भारत के राज्य, राजवंश बनेंगे या गणतांत्रिक व्यवस्था आगे बढ़ेगी.
दरअसल मगध के बगल में वृज्जि नाम का एक महाजनपद हुआ करता था. आज के बिहार का उत्तरी इलाका. वृज्जि कबीलों का रिपब्लिक यानी संघ था. इसलिए इनके लीडर को राजा नहीं, गण प्रमुख कहा जाता था. वृज्जियों के संघ में एक कबीला था- लिच्छिवी. इसके गण प्रमुख थे चेतक. बिंबिसार के शासन में वृज्जि और मगध में अच्छे रिश्ते थे. बिंबिसार की शादी चेतक की बेटी, चेलाना से हुई. और जैन सोर्सेस के अनुसार, इन्हीं चेलाना से अजातशत्रु पैदा हुआ. यानी अजातशत्रु का वृज्जियों से खास रिश्ता था. ये रिश्ते ख़राब होने शुरू हुए, कुछ हीरे जवाहरातों के कारण. ये सब क्यों हुआ, इस मामले में भी जैन और बौद्ध सोर्सेस अलग-अलग कहानी बताते हैं.
ये कहानी फिर कभी. फिलहाल ये समझ लीजिए कि अजातशत्रु के समय में वृज्जिसंघ और मगध के बीच लड़ाई हो गई. कहानी कहती है कि अजातशत्रु ने हाथियों, घोड़ों और पैदल सिपाहियों की एक बड़ी सेना इकठ्ठा की. और वृज्जियों पर आक्रमण कर दिया. अजातशत्रु के समय में मगध की राजधानी थी राजगृह. और वृज्जियों की राजधानी का नाम था- वैशाली. जो राजगृह से काफी दूर पड़ती थी. इसलिए अजातशत्रु को लगा वैशाली पर आक्रमण के लिए उन्हें अपना बेस शिफ्ट करना होगा. लिहाजा उन्होंने गंगा नदी के किनारे एक नया बेस बनाया. गंगा किनारे बने इसी बेस का नाम पड़ा पाटलिपुत्र. पाटलिपुत्र एक गांव था, जिसे छावनी की शक्ल दी गई. यहां से मगध सेना ने वैशाली पर बारम्बार आक्रमण किये. और अंत में वे वैशाली को जीतने में सफल रहे.
इस तरह पाटलिपुत्र मगध का एक अहम शहर बना. हालांकि, राजधानी ये अभी भी नहीं बना था. अजातशत्रु के बाद उनके बेटे उदयिन ने मगध का और विस्तार किया. साथ ही, मगध की राजधानी राजगृह से पाटलिपुत्र ले गए. पाटलिपुत्र तीन नदियों के किनारे बसा हुआ था. गंगा, सोन और गंधक. इसी कारण ग्रीक इतिहासकार मेगस्थनीज़ ने इसे जलदुर्ग की उपाधि दी. मेगस्थनीज़ ने पाटलिपुत्र का व्यापक विवरण किया है. उसके अनुसार पाटलिपुत्र के बाहर एक खाई खुदी हुई थी. जो 600 फ़ीट चौड़ी थी. और शहर की रक्षा के लिए बनाई गई थी. इस खाई में सोन नदी से पानी आता था. दूसरे विवरण बताते हैं कि पूरे शहर को लकड़ी से बनाया गया था. और ये दुनिया के सबसे भव्य शहरों में से एक था.
पाटलिपुत्र, एक के बाद एक कई ताकतवर राजवंशों की राजधानी रहा. हरयंक वंश के बाद शिशुनाग वंश, नंद, मौर्य, शुंग और अंत में गुप्त वंश के राज में पाटलिपुत्र राजधानी बना रहा. ऐसे में एक सवाल बनता है. मगध साम्राज्य के बारे में हमें पता है कि ये सुदूर अफ़ग़ानिस्तान से लेकर दक्षिण में फैला हुआ था. फिर इसकी राजधानी एकदम पूर्व में क्यों स्थित थी? रियल स्टेट की तरह यहां भी एक ही जवाब है- लोकेशन, लोकेशन, लोकेशन.
जैसा पहले बताया, तीन नदियों से घिरे होने के चलते पाटलिपुत्र को नेचुरल सुरक्षा मिलती थी. दक्षिण में विंध्य की पहाड़ियां और जंगल थे. जहां हाथी होते थे. जिसके पास हाथी, उसके पास मजबूत सेना. इसके अलावा यहां लोहे की खानें थीं. जो हथियार बनाने के काम आता था. पाटलिपुत्र उत्तर और दक्षिण से आने वाले ट्रेड रुट के संगम पर पड़ता था. इसके बगल में काशी था. जो तब ट्रेड के हिसाब से सबसे महत्वपूर्ण शहर हुआ करता था. पाटलिपुत्र के पास मौजूद नदियों से भी ट्रेड होता था. जिसके चलते यहां महत्वपूर्ण बन्दरगाह थे.
पाटलिपुत्र न सिर्फ़ पॉलिटिक्स का केंद्र हुआ करता था. संस्कृति, साहित्य और विज्ञान के फील्ड में भी एक से एक दिग्गज पाटलिपुत्र में हुए. मसलन शून्य की खोज करने वाले आर्यभट, व्याकरण के महाज्ञाता पाणिनी, कामसूत्र लिखने वाले वात्स्यायन- इन सबका रिश्ता पाटलिपुत्र से था. ऐसे तमाम कारणों के चलते लगभग 800 साल तक पाटलिपुत्र राजधानी और भारत का केंद्र बना रहा. हालांकि 550 ईस्वीं में गुप्त वंश के खात्मे के साथ ही पाटलिपुत्र का महत्त्व कम होता चला गया. और आगे चलकर ये शहर पूरी तरह नष्ट हो गया. पाटलिपुत्र बर्बाद कैसे हुआ. इसे लेकर अलग अलग थ्योरीज़ हैं.

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पाटलिपुत्र नष्ट कैसे हुआ?बौद्ध ग्रंथों में जिक्र मिलता है कि महात्मा बुद्ध ने पाटलिपुत्र के बारे में एक भविष्यवाणी करते हुए कहा था,
“ये एक महान शहर होगा, लेकिन इसे सिर्फ तीन चीजों से खतरा रहेगा- आग, पानी और आंतरिक कलह”.
बुद्ध की बात कुछ हद तक सही भी साबित हुई. आग और पानी इसकी बर्बादी के बड़े कारण बने. हालांकि पाटलिपुत्र पर कई बार बाहरी आक्रमण भी हुआ. पाटलिपुत्र पर पहले आक्रमण का जिक्र मिलता है शुंग वंश के दौरान. सिकंदर जब भारत से वापस लौटा, तो पीछे अपने क्षत्रप छोड़ गया. ये लोग बाद में इंडो ग्रीक कहलाए. ऐसे ही एक इंडो ग्रीक राजा का नाम था मेनेंडर. ग्रीक सोर्सेस के अनुसार मेनेंडर ने पाटलिपुत्र पर आक्रमण करने की कोशिश की थी. मेनेंडर ने बाद में नागसेना नाम के एक बौद्ध भिक्षु से डीबेट की थी. जिसमें हार के बाद उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया था. मेनेंडर के अलावा कई और ग्रीक राजाओं ने पाटलिपुत्र पर आक्रमण की कोशिश की. युग पुराण में एक जगह जिक्र आता है कि यवनों यानी ग्रीक्स ने साकेत यानी अयोध्या और कुसुमध्वज पर आक्रमण किया. कुसुमध्वज पाटलिपुत्र का ही एक और नाम था.
पाटलिपुत्र पर दूसरा आक्रमण सम्राट अशोक के बाद. ये हमला कलिंग नरेश खारवेल ने किया था, ताकि वो अशोक के हमले का बदला ले सकें. हाथीगुम्फा के अभिलेख बताते हैं कि राजा खारवेल पाटलिपुत्र से एक जैन तीर्थंकर की मूर्ति वापस ले गए थे. जो नन्द राजाओं के दौर में कलिंग से पाटलिपुत्र लाई गई थी. इन दोनों आक्रमणों के बावजूद आगे लगभग 400 साल तक पाटलिपुत्र राजधानी बना रहा. लेकिन फिर 550 ईस्वीं के बाद इसके बुरे दिन शुरू हो गए.
साल 637 ईस्वीं में ह्वेन सांग पाटलिपुत्र आए. ह्वेनसांग ने लिखा है कि शहर लगभग बर्बाद हो चुका था. लोगों की गिनती एक हजार तक सीमित हो गयी थी. ह्वेन सांग के अनुसार पुराने पाटलिपुत्र की इमारतें जर्जर हो चली थीं. और लोग उन्हें छोड़कर गंगा के ठीक बगल में बस गए थे. आगे इस शहर की हालत और ख़राब होती गई. और पुराना पाटलिपुत्र इतिहास में लगभग खो सा गया.
पाटलिपुत्र के गायब होने के पीछे कुछ कारण बताए जाते हैं. इन कारणों में पहला है- जैन सोर्सेस के अनुसार सोन नदी में आई बाढ़ इस शहर को बहाकर ले गई. दूसरा- हूणों का आक्रमण भी पाटलिपुत्र की बर्बादी का एक कारण हो सकती है. पाटलिपुत्र के पास खुदाई में राख की एक मोटी परत बताती है कि यहां आग लगी थी.
असली कारण जो भी रहा हो, सातवीं सदी के बाद पाटलिपुत्र एक के बाद एक राजाओं के अधीन होता रहा. आधुनिक इतिहास की बात करें तो बड़ा सवाल यही है कि पाटलिपुत्र पटना कैसे बना?
पाटलिपुत्र से पटना तकमुहम्मद गोरी के आक्रमण के बाद बिहार का इलाका लगातार हमले झेलता रहा. दिल्ली सल्तनत के दौर में यहां कई बार तोड़फोड़ हुई. तक्षशिला, नालंदा समेत कई विश्विद्यालय तोड़ दिए गए. और पाटलिपुत्र का महत्व कम होता चला गया. 16 वीं सदी में शेर शाह सूरी, जो सासाराम के रहने वाले थे. उन्होंने यहां में एक किला बनाया. कहानी कहती है कि एक सैन्य अभियान से लौटते हुए, गंगा के पास खड़े होकर शेर शाह सूरी ने एक नए शहर के बारे में सोचा था. इसी का नतीजा पटना बना. जो पुराने पाटलिपुत्र के ऊपर ही बनाया गया था.
अंदाज़े के अनुसार, 12-16 शताब्दी के बीच पाटलिपुत्र को पटना कहा जाने लगा था. हालांकि पटना के अलावा भी इस शहर के कई नाम रहे. साल 1704 की बात है. मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब ने अपने बेटे मुहम्मद अज़ीम को बिहार का सूबेदार नियुक्त किया. अज़ीम ने अपने पिता से रिक्वेस्ट की. पटना का नाम बदलने की. और तब औरंगज़ेब ने पटना का नाम अज़ीमाबाद कर दिया. औरंगज़ेब हालांकि ज्यादा समय जिन्दा नहीं रहे. उनकी मौत के बाद सत्ता के लिए उनके बेटों में लड़ाई छिड़ गई. मुहम्मद अजीम भी सत्ता के दावेदारों में से एक था. किस्सा है कि भाइयों के बीच होने वाली एक लड़ाई के दौरान अज़ीम जिस हाथी पर बैठा हुआ था. उसे गोली लगी. और वो घबराकर भागने लगा. भागते हुए उसने रावी नदी में छलांग लगा दी. नदी के पास दलदल में डूबने से हाथी और शहजादे, दोनों की मौत हो गई. पटना पर वापिस लौटें, तो औरंगज़ेब ने पटना को अजीमाबाद नाम दिया जरूर था. लेकिन आम लोग इसे फिर भी पटना ही बुलाते रहे.

एकदम पीछे जाएं, तो अजातशत्रु से पहले पाटलिपुत्र को पाटलिग्राम कहा जाता था. ग्रीक इसे पलिबोथरा कहते थे. इनके अलावा पलिम्बोत्र भी पटना का एक नाम है. इन सब नामों के पीछे वजह ये थी कि यहां पाटलि नाम का एक पेड़ होता था. जिसे फूल काफी खुशबूदार होते थे. फूलों के चलते ही इसे कुसुमपुर या पुष्पपुर भी कहा जाता था. वर्तमान नाम पटना के पीछे भी कई कहानियां हैं. संस्कृत में पट्टन का मतलब होता है बंदरगाह. गंगा आदि नदियों के कारण यहां बड़े बन्दरगाह हुआ करते थे. जिनके कारण इसका नाम पटना पड़ा. इसके अलावा यहां पटन देवी का मंदिर भी है. संभवतः ये भी एक वजह रही हो पटना नाम के पीछे.

शुरुआत में हमने बात की थी रतन टाटा के बारे में. साल 1900 तक ये बात पक्की हो चुकी थी कि पटना ही पाटलिपुत्र है. लेकिन इस प्राचीन शहर के अवशेष जमीन में दबे थे. व्यापक खुदाई की जरुरत थी. अंग्रेज़ों ने पैसा देने से इंकार कर दिया. तब सामने आए रतन टाटा. वर्तमान वाले नहीं, हम जमशेद जी टाटा के बेटे रतन जी टाटा की बात कर रहे हैं. उन्होंने पाटलिपुत्र की खुदाई के लिए 20 हजार रूपये सालाना की ग्रांट देने का वादा किया. वो भी अनलिमिटेड समय तक. जब तक खुदाई पूरी न हो जाए. पटना के पास कुम्रहार में खुदाई शुरू हुई. जिसमें हर रोज़ 1300 लोग काम करते थे. लम्बे वक्त तक चली खुदाई के बाद 7 फरवरी, 1913 के रोज़ पाटलिपुत्र का प्राचीन शहर खोज लिया गया. इसके बाद चार साल तक खुदाई और चली. जिसमें ऐतिहासिक अवशेष, कॉइन और मूर्तियां खोजी गई. आज भी ये अवशेष पटना म्यूजियम में रखे हुए हैं.
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