एक शहर जिसे सपनों का शहर कहा जाता है. जिसे मायानगरी कहा गया. अंडरवर्ल्ड (Underworld) की शुरुआत जहां से हुई. जिसके बारे में कहा जाता है कि ये शहर जो सोता नहीं. अब तक आप समझ गए होंगे हम मुंबई के बारे में बात कर रहे हैं. मुंबई एक ऐसा शहर है, जो हमेशा आगे देखता है. लेकिन इस शहर के पीछे अगर एक बड़ा सा शीशा लगा दिया जाए. तो हमें दिखेगी एक अद्भुत कहानी .. कहानी सात टापुओं की. जिन्हें कभी दहेज़ में दे दिया गया था. लेकिन फिर उन्हीं को जोड़कर बनी दुनिया की सबसे बड़ी मेट्रो सिटीज़(metro cities) में से एक.
दहेज़ में दिए सात टापुओं को जोड़कर कैसे बनी मुंबई?
History of Mumbai: कहानी सात टापुओं की. जिन्हें कभी दहेज़ में दे दिया गया था. लेकिन फिर उन्हीं को जोड़कर बनी दुनिया की सबसे बड़ी मेट्रो सिटीज़ में से एक. आज जिसे हम मुंबई कहते हैं
आज जिसे हम मुंबई जिसे कहते हैं. वो कभी सात अलग-अलग द्वीप थे. इनके नाम थे,
-छोटा कोलाबा - ये आज के कोलाबा(colaba) के उत्तर में था और सबसे छोटा भू-भाग था. इसे अल-ओमानी भी कहते थे कभी. क्योंकि यहां के मछुआरे मछली की तलाश में ओमान तक हो आते थे.
-वरली: वरली(worli) का टापू वो हिस्सा है, जहां आज हाजी अली की दरगाह है. हालांकि इसका मुंबई शहर से जुड़ना काफी लेट हुआ. 1784 में.
-माज़गांव -दक्षिण मुंबई का ज़्यादातर हिस्सा माज़गांव की ही देन है. 17वीं शताब्दी के अंत तक माज़गांव मुंबई शहर की शुरुआती शक्ल ले चुका था.
-परेल - परेल(parel) इतिहासकार बताते हैं कि 13वीं सदी में ये टापू राजा भीमदेव के कब्ज़े में था. बाद में इस पर पुर्तगालियों का कब्ज़ा हुआ. ये टापू चर्चा में तब आया जब 1770 में बंबई के गवर्नर विलियम हर्नबी ने अपनी रिहाइश यहां बनाई.
-कोलाबा- कोलाबा का मतलब कोली समुदाय की जगह. कोली मछुआरों को कहा जाता है. कोलाबा से पहले पुर्तगाली इसे कंदील आइलैंड भी कहते थे.
-माहिम - राजा भीमदेव के शासन में ये उसकी राजधानी हुआ करती थी. बाद में मुस्लिम शासकों ने यहां कब्ज़ा किया. उनसे पुर्तगालियों तक जा पहुंचा, जिन्होंने उसे अंग्रेजों को सौंप दिया.
-बॉम्बे टापू - मुंबई का सबसे पुराना टापू जिसका ज़िक्र मौर्यकालीन इतिहास तक में मिलता है. आज की डोंगरी से लेकर मालाबार हिल तक फैला हुआ है बॉम्बे टापू.
ये द्वीप कैसे एक कैसे हुए?ओंकार करंबेलकर बीबीसी(BBC) के एक आर्टिकल में मुंबई के इतिहास से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा बताते हैं. साल 1930 की बात है. ब्रिटिश फौज के एक अधिकारी कोलाबा के पास बीच पर टहल रहे थे. जब उनकी नज़र एक पत्थर पर पड़ी. उन्होंने पत्थर को गौर से देखा. ये कोई सामान्य पत्थर नहीं था. ये स्टोन एज़(STONE AGE) के मनुष्यों का हथियार था. थोड़ी और खोजबीन हुई. तो पता चला वहां बहुत से ऐसे पत्थर थे. जिन्हें हमारे पूर्वज हथियार की तरह इस्तेमाल करते थे. यानी मुंबई, जो पहले महज कुछ द्वीपों का समूह था. यहां स्टोन एज़ से लोग रहते आए थे. सभ्यता के विकास के बाद जो इतिहास दर्ज़ किया गया, उसकी बात करें तो मुंबई के विकास, इसकी स्थापना के चार चरण माने जा सकते हैं.
हिंदू काल, मुस्लिम काल, पुर्तगाली काल, ब्रिटिश काल और स्वतंत्रता के बाद का दौर.
मुंबई के इतिहास का सबसे पुराना जिक्र मिलता है मौर्य काल में. 250 ईसापूर्व में पहली बार मौर्यों में उत्तरी कोंकण(konkan coast) पर राज़ किया. कोंकण यानी भारत का पश्चिमी तट. गुजरात से नीचे, महाराष्ट्र और गोवा का तटीय भाग. मौर्य शासकों के बाद उत्तरी कोंकण पर कई दूसरे शासकों का राज रहा. कालिदास के लिखे में जिक्र मिलता है कि मौर्यों के बाद सतवाहन वंश कोंकण पहुंचा. और उनके बाद क्षत्रप वंश. तटीय इलाका होने के कारण यहां बंदरगाह थे. इसलिए आगे जाकर कई कारोबारी लोग इस इलाके में आकर बसते गए.
मध्य काल में इस इलाके पर राष्ट्रकूट, यादव और शिलहार वंश का शासन रहा. 8 वीं शताब्दी के बाद मुंबई में आगमन हुआ अरबों का. अरबों ने या मुस्लिम शासकों ने यहां कितना शासन किया, इसका कुछ पक्का इतिहास नहीं है. लेकिन हां कुछ वर्ष तक मुंबई गुजरात के सुल्तान के अधीन रही. जिसके बाद 16 वीं शताब्दी में एंट्री हुई पुर्तगालियों की. पुर्तगाली शासकों ने 100 साल तक मुंबई पर राज किया. वे इसे 'बॉम बोहिया' कहते थे. पुर्तगाली मुख्य रूप से खेती से टैक्स वसूला करते थे. हालांकि उन्होंने मुंबई में अच्छा-खासा नौसेना बेस भी बना लिया. इस नौसेना बेस के चलते ही अंग्रेज़ों की मुंबई में दिलचस्पी बढ़ी. मुंबई ईस्ट इंडिया कम्पनी के हाथ में कैसे गई. इसके पीछे भी एक बड़ा दिलचस्प किस्सा है. दरअसल अंग्रेज़ों को मुंबई मिली दहेज़ में.
हुआ यूं कि 17वीं सदी में इंग्लैंड के सम्राट चार्ल्स द्वितीय ने पुर्तगाली राजकन्या कैथरीन डी ब्रिगेंज़ा से शादी की. तब पुर्तगालियों ने इस शहर को ही दहेज के तौर पर अंग्रेजों को दे दिया. चार्ल्स द्वितीय को तो अंदाज़ा भी नहीं था कि उसके पल्ले कितनी ज़मीन पड़ी है. बाद में ये भी खुला कि इन टापुओं पर कम्युनिकेशन की बड़ी समस्या है. लिहाजा उन्होंने इन टापुओं को ईस्ट इंडिया कंपनी(east india company) को किराए पर दे दिया गया. महज़ 10 पाउंड सालाना पर.
ये ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ही थी जिसने मुंबई के बिखरे हुए इन सातों द्वीपों को जोड़ा. धीरे-धीरे. वो ऐसा दौर था जब इन सातों द्वीपों पर अगर कोई सबसे बड़ी समस्या थी, तो वो थी एक के बाद एक आने वाली बीमारियां. कंपनी ने हौले-हौले इन पर काबू पाया. धीरे-धीरे मुंबई को एक शक्ल मिलती गई. जैसा कि हम जानते हैं, अंग्रेज़ों की एक फैक्ट्री सूरत में थी. साल 1687 में उन्होंने अपना कारोबार सूरत से मुंबई शिफ्ट कर लिया. शुरुआत में हमने आपको बताया था कि पहले मुंबई नहीं थी. सात अलग अलग टापू हुआ करते थे. ये टापू आपस में जुड़े कैसे?
इसकी कहानी यूं है कि 1708 में माहिम और सायन के बीच एक कॉजवे बनाया गया. कॉजवे माने एक ऐसी सड़क जो पानी के ऊपर से हो कर गुज़रती हो और दो टापुओं को जोड़ती हो. इसके कुछ साल बाद ,1715 में चार्ल्स बून नाम के एक अंग्रेज़ अफसर मुंबई पहुंचे. उन्होंने मुंबई में किलों का निर्माण करवाया और सुरक्षा के लिए तोपें लगवाई. चार्ल्स बून ने ही पुर्तगालियों की बची-खुची मिल्कियत जब्त की और उन्हें शहर से भगा दिया. इसके बाद मुंबई का एक बिजनेस सेंटर के रूप में तेज़ी से विकास हुआ. 1772 में सेंट्रल मुंबई में आनेवाली बाढ़ की समस्या को टैकल करने के लिए महालक्ष्मी और वरली को जोड़ा गया. इस कारनामे को सबसे पुराना गैरकानूनी कंस्ट्रक्शन भी कहा जाता है, जिसके आरोपी थे तत्कालीन गवर्नर विलियम हर्नबी.
हुआ ये कि हर्नबी महालक्ष्मी और वरली के बीच एक कॉजवे बनाना चाहते थे. अप्रूवल लेने की चिट्ठी उन्होंने इंग्लैंड में कंपनी के डायरेक्टर्स को भेज दी थी. हर्नबी को उम्मीद नहीं थी कि उनका प्रपोजल रिजेक्ट होगा. इसलिए उन्होंने जवाब का इंतजार किए बगैर काम शुरू कर दिया. हर्नबी ने पूरे 1 लाख रुपए खर्च करके ये कंस्ट्रक्शन किया. लेकिन इसी बीच उधर प्रपोजल रिजेक्ट हो गया. पूरे एक साल बाद जवाबी चिट्ठी आई. लेकिन तब तक कॉजवे बन चुका था. हर्नबी के नाम पर उसका नामकरण भी हो चुका था - हर्नबी वेल्लार्ड. इसने डोंगरी, मालाबार हिल और वरली को जोड़ दिया था. बहरहाल विलियम हर्नबी को नाफ़रमानी की सज़ा मिली और उनकी ‘नौकरी’ चली गई.
मुंबई को मुंबई बनाने के लिए समंदर का अतिक्रमण भी किया गया. उदाहरण उमरखेड़ी की खाड़ी जो बॉम्बे को माज़गांव से अलग करती थी. आज इस इलाके का नाम पायधोनी है. मराठी में पायधोनी का मतलब पांव की धुलाई है. समंदर यहां चट्टानों के पैर धोता था. ये समंदर से ज़मीन वापस लेने का पहला केस था. इस सारी प्रक्रिया में खूब उठापटक हुई. जलभराव पर पुश्ते बनाए गए, पहाड़ियों को समतल किया गया, दलदली इलाकों में मलबा भरकर उन्हें पक्का बनाया गया. यूं धीरे-धीरे मुंबई के अलग अलग टापुओं को जोड़ कर एक मुकम्मल शहर की शक्ल दे दी गई.
कुल साढ़े तीन सौ साल तक अंग्रेज़ों ने मुंबई पर एकछत्र राज किया. उन्हें सबसे बड़ा डर था तो बस एक का - मराठा(maratha empire) शक्ति का. इसलिए उन्होंने शहर की रक्षा के लिए उन्होंने मुंबई किले के चारों तरफ़ एक खाई खुदवाई. जिसके लिए लोगों से पैसे भी इकट्ठे करवाए गए. अंग्रेज़ों ये डर गया, वसई की संधि के बाद. साल 1803 में. यहां से मराठा कमजोर होते गए. और 1818 में मराठा शासन का अंत हो गया.
बहरहाल 19वीं सदी के अंत तक सारे टापू एक दूसरे से जुड़ चुके थे. मुंबई का क्षेत्रफल बढ़ कर 484 स्क्वायर किलोमीटर हो चुका था. इसी बीच 1853 में एशिया की पहली रेलवे लाइन बिछाई गई. मुंबई से लेकर ठाणे के बीच. भूमध्य सागर और लाल समंदर को जोड़ने वाले सुएज कैनाल के बन जाने के बाद, बॉम्बे बंदरगाह अरब सागर में यकायक महत्वपूर्ण हो उठा. 19वीं सदी के ख़त्म होते-होते बॉम्बे एक खूबसूरत शहर का रूप ले चुका था. वहीं 20वीं सदी की शुरुआत में ही बॉम्बे की जनसंख्या 10 लाख तक पहुंच चुकी थी. और कलकत्ता के बाद बॉम्बे इंडिया का दूसरा सबसे बड़ा शहर था.
आजादी के बाद मुंबई (तब बॉम्बे)को एक राज्य का दर्ज़ा मिला. इससे पहले इसे बॉम्बे प्रेसिडेंसी कहा जाता था. 1956 में जब राज्यों का पुनर्गठन हुआ, बॉम्बे में कच्छ और सौराष्ट्र(saurashtra) को भी जोड़ दिया गया. इनके अलावा नागपुर और मराठवाड़ा को भी बॉम्बे स्टेट का हिस्सा बनाया गया. लेकिन यहीं से फिर एक दूसरा विवाद शुरू हो गया. मराठी बोलने वालों ने संयुक्त महाराष्ट्र के गठन की मांग की. वहीं गुजराती बोलने वाले महा गुजरात की मांग कर रहे थे. बाकायदा इस लड़ाई में बॉम्बे सिटीजन कमिटी नाम का एक तीसरा धड़ा भी था. जो चाहते थे कि बॉम्बे शहर को एक अलग इकाई का दर्ज़ा मिले. उनका कहना था कि यहां सिर्फ गुजराती या मराठा ही नहीं. पूरे भारत के लोग रहते हैं. इस मुहिम में JRD टाटा जैसे नाम भी शामिल थे. हालांकि इनकी दलील नहीं मानी गई. 1 मई 1960 को महाराष्ट्र नाम के अलग राज्य गठन हुआ. जबकि गुजराती भाषियों के लिए गुजरात राज्य बना दिया गया. महाराष्ट्र के गठन के बाद बॉम्बे महाराष्ट्र की राजधानी बनी. जिसका नाम बदलकर 1995 में मुंबई कर दिया गया. और आज ये भारत की व्यापारिक राजधानी माना जाता या जाती है.
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सालों से हम बॉलीवुड फिल्मों के जरिए मुंबई के इलाकों के नामों से परिचित होते रहे हैं. इसमें कई नाम कुछ अजीब जान पड़ते हैं. जैसे चिंचपोकली, घाटकोपर आदि. अंत में आपको ये बताते चलते हैं कि मुंबई के इन इलाकों के नाम कैसे पड़े.
-बॉम्बेः इसका मतलब होता है - "एक खुला हुआ शहर". क्योंकि व्यापारियों के लिए ये भारत का प्रवेश द्वार था, साथ ही पूरी दुनिया के लिए खुला था. गेटवे ऑफ़ इंडिया इसी का प्रतीक है.
-मुंबईः मछुआरों की देवी मुंबादेवी के नाम पर रखा गया था जो उनकी कुल देवी मानी जाती हैं.
-माटुंगा: ये संस्कृत का शब्द है. इसका मतलब है हाथी. कहते हैं कि 13वीं शताब्दी में राजा भीमदेव यहां अपने हाथी रखते थे.
-सायन: एक समय में सायन का इलाका यरुशलम के यहूदी पुजारियों का था. सायन स्टेशन के पास एक छोटी सी पहाड़ी है, जिस पर इन पुजारियों ने एक चैपल बनवाया था. जिसका नाम 'Mount Zion' है. इसी से नाम पड़ा सायन.
-चिंचपोकली: मराठी में ‘चिंच’ इमली को कहते हैं. इस इलाके में पहले इमली के पेड़ों की भरमार हुआ करती थी. इसी से नाम पड़ा चिंचपोकली.
-दादर: दादर का मतलब है सीढ़ी. मुंबई के 7 टापुओं तक पहुंचने के लिए इस इलाके का सीढ़ी की तरह इस्तेमाल होता था. इसीलिए इसका नाम दादर पड़ा.
-कुर्ला: कुर्ला नाम ‘कुरली’ से आया है. स्थानीय भाषा में कुरली केंकड़े को कहते हैं. केंकड़ों की यहां भरमार थी, इसलिए कुर्ला.
-घाटकोपर: ये जगह थोड़ी उंचाई पर है. यहां आने के लिए एक ‘घाट’ से गुज़रकर आना होता था. स्थानीय लोगों से जब इस जगह के बारे में पूछा जाता तो वो कहते घाट के ऊपर. बिगड़ता हुआ वो बन गया घाटकोपर.
नामों की लिस्ट और भी है. लेकिन उम्मीद हमारी इस कोशिश से आपको एक लमसम जानकारी इस शहर के बारे में हो गई होगी.
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