मुगल शासक अकबर ने साल 1585 में अपनी राजधानी फतेहपुर सीकरी से बदलकर लाहौर बना ली, कारण- पानी की समस्या. रावी नदी के किनारे बसे लाहौर में करीब एक दशक से किले को आकार दिया जाने लगा था. किले के अंदर आलीशान महल. महल के अंदरूनी हिस्से में आलीशान हरम. मुगल राजकुमारी गुलबदन बेगम अभी-अभी हज करके लौटी थीं. फतेहपुर सीकरी जाने की बजाय वो सीधा लाहौर के इस नए महल में ही पहुंचीं. गुलबदन बेगम पहले मुगल बादशाह बाबर की बेटी थीं. बाबर के बेटे हुमायूं की सौतेली बहन और उनके पोते अकबर की बुआ. यानी कि मुगल काल की तीन पीढ़ियों की गवाह. उस दौर में जब महिलाओं का हज पर जाना आम बात नहीं हुआ करती थी, गुलबदन हज पर गईं. उन्हें पहली महिला इतिहासकार भी कहा जाता है. साथ में कमाल की कवियित्री. हज यात्रा से लौटने के बाद गुलबदन बेगम एक नई खोज में जुटी थीं. ये उनके भतीजे अकबर के एक सपने से जुड़ी थी.
मुगल हरम की वो शहजादी जिसका खेमा अकबर के ठीक बगल में लगता था
गुलबदन बेगम मुगल हरम के ऐसी पहली औरत थीं, जिन्होंने हज किया. वो बाबर से लेकर अकबर तक, तीन-तीन मुगल पीढ़ियों की गवाह रहीं. हुमायूंनामा लिखने में उनका अहम योगदान था.
दरअसल, बादशाह अकबर भले ही पढ़-लिख नहीं पाते थे. लेकिन उनके किताबखाने और हरम में 24 हज़ार से ज्यादा किताबें और पांडुलिपियां थीं. अकबर की चाह थी कि वो अपने दौर को इतिहास में रिकॉर्ड करें. इसके लिए उन्होंने अपने पुराने करीबियों को खंगालना शुरू किया और इसी कड़ी में उन्होंने संपर्क किया गुलबदन बेगम से. फारसी में पारंगत और साहित्य में खास रुचि रखने वाली गुलबदन को हुमायूंनामा लिखने का अनुभव था. इस किताब में उन्होंने मुगल काल के संघर्ष, सफलता, राजनीति, पारिवारिक रिश्तों के बारे में लिखा. हालांकि किताब के कई हिस्से समय के साथ खो गए, लेकिन हुमायूंनामा के जो अंश बचे हैं, वो न केवल मुगल इतिहास का कीमती हिस्सा है, बल्कि हमें उस दौर की घटनाओं और रहन सहन से रूबरू कराते हैं.
सन 1526 में पानीपत की जंग में बाबर ने सुल्तान इब्राहिम लोदी को हराकर हिंदुस्तान के तख्त पर कब्जा किया. जंग जीतने के बाद बाबर ने दरियादिली दिखाते हुए लोदी की बूढ़ी मां को सुरक्षा दे रखी थी. इस फतेह में तख्त-ओ-ताज तो मिला. लेकिन बादशाह के हिस्से लोगों की नफरत और दुश्मनी भी आई. कुछ ऐसे लोग थे, जिन्हें बादशाह की सलामती नामंजूर थी. एक रोज जुमे की नमाज के बाद बादशाह बाबर के सामने दस्तरखान पेश किया गय. उन्होंने कुछ हरी सब्जियां, तली गाजर और सूखे मांस का एक या दो कौर लिया ही था, कि उन्हें मतली जैसा महसूस होने लगा. उल्टियां होने लगीं. पहले लगा कि ये सूखे मांस की वजह से था. लेकिन बाद में हालत बिगड़ने के बाद जब यही खाना कुत्ते को दिया गया तो उसका भी पेट सूज गया. खबर फैल गई कि मुगल बादशाह जहरखुरानी के शिकार हुए हैं. बाबर की हालत में तो हकीमों ने सुधार ला दिया. लेकिन अब आरोपियों की शामत थी.
सबसे पहले रसोइये को पकड़कर लाया गया, यातनाएं दी गईं. जब उसने अपना मुंह खोला तो 5 लोगों के नाम सामने आए. पहला आरोप- खाना चखने वाला. उसके तो टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए. दूसरा आरोपी- रसोइया. जिंदा खाल उतार दी गई. तीसरी और चौथी आरोपी- 2 दासियां. एक को हाथी के नीचे डलवा दिया गया. दूसरी को गोली मार दी गई. पांचवां नाम- इब्राहिम लोधी की मां. अपने बेटे को खोने के गम में तिलमिलाई लोधी की मां ने ही बाबर से बदला लेने के लिए पूरी साज़िश रची थी. उन्होंने ही बाबर के रसोइये को ज़हर देकर खाने में मिलाने के लिए कहा था. लेकिन बाबर ने उन्हें कोई सजा नहीं दी. क्यों? गुलबदन बेगम ने हुमायूं नामा में लिखा है कि
“इस बात का फ़ैसला बाबर ने ख़ुदा पर छोड़ दिया था.”
लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई. लोधी बेगम को काबुल भेजने का आदेश दिया गया, जहां उन्हें नजरबंद रखा जाना था. लेकिन रास्ते में, अपनी बेबसी और कैद का अपमान सहने की बजाय, उन्होंने एक आखिरी कदम उठाया. अपने पहरेदारों को चकमा देकर वो सिंधु नदी में कूद गईं.
गुलबदन बेगम ने किताब में बाबर और हुमायूं के रिश्ते का भी ज़िक्र किया है. बाबर को शासनकाल के आखिरी दिनों में एक अहम फैसला लेना था. ये तय कर पाना मुश्किल हो रहा था कि मुगलिया तख्त का वारिस कौन होगा? हुमायूं का नाम पहला था. बेशक वो ताकतवर था. लेकिन बादशाह बनने के लिए सिर्फ इतना तो काफी नहीं. ऊपर से हुमायूं ने कुछ ऐसा कर दिया कि उनकी काबिलियत पर सवाल खड़े हो गए. हुआ ये था कि दिल्ली जीतने के बाद नौसिखिए जोश में हुमायूं ने खजाना लूटने का आदेश दे दिया. खजाने का इस्तेमाल सैनिकों को इनाम देने और सेना को मजबूत करने के लिए किया जाना था.
हुमायूं ने दिल्ली का खजाना ही नहीं छीना बल्कि अपने लोगों का विश्वास भी. तब बादशाह बाबर ने शहजादे को इस घटना से सीख लेने की तालीम दी और दोबारा भरोसा भी जताया. बाप-बेटे से जुड़ा एक किस्सा और भी है. जब बाबर को हुमायुं से एक पैगाम मिला. बड़ी ही नजाकत वाली भाषा में, तामाम मुहावरे और तारीफों वाले इस पत्र को सुनकर बाबर खुश होने के बजाय आग बबूला हो गए. उन्होंने हुमायुं को बुलाकर समझाया कि एक शासक की भाषा साफ और सख्त होनी चाहिए. पैगाम से किसी को रिझाना नहीं है बल्कि अपनी बातों को सख्त लहजे से प्रभावी बनाना है.
जान के बदले जानकिताब में एक किस्सा ये भी है कि एक बार हुमायूं गंभीर बीमार पड़ गए थे. परेशान बाबर ने जान के बदले जान की पेशकश कर दी. उन्होंने ईश्वर से दुआ कि उनके बेटे की जान बख्श दें. बदले में उसके सारे दुख उन्हें दे दे. इसके बाद बाबर ने हुमायूं की पलंग का तीन बार चक्कर लगाए. और कहा अगर जान का बदला जान हो सकता है तो मेरी जिंदगी हुमायूं को लग जाए. गुलबदन आगे लिखती हैं कि उस दिन हुमायूं ठीक होने लगे और अपने बिस्तर से उठ बैठे. लेकिन जैसे-जैसे हुमायूं की सेहत अच्छी होती गई बाबर की सेहत बिगड़ने लगी. दिसंबर 1530 में उन्होंने दम तोड़ दिया.
प्रेम प्रस्तावहुमायूं और हमीदा बानो बेगम की कहानी मुगल इतिहास की सबसे दिलचस्प कहानियों में से एक है. ये कहानी तब शुरू होती है जब हुमायूं अपने सौतेले भाई हिंदाल मिर्जा के घर गए थे, और उनकी नजर हमीदा बानो पर पड़ी. हमीदा उस समय केवल 14 साल की थीं. गुलबदन बेगम ने किताब में उन्हें खूबसूरत और बुद्धिमान बताया है. हुमायूं ने उनके सामने निकाह का प्रस्ताव रख दिया. हालांकि हमीदा ने कई हफ्तों तक इसे स्वीकार नहीं किया. लेकिन शेरशाह सूरी से बादशाहत गंवा चुके हुमायूं को मोहब्बत के मोर्चे पर हार कुबूल नहीं थी. 1539 में शेरशाह सूरी ने मुगल बादशाह हुमायूं को हराया था. जिसके बाद जान बचाने के लिए हुमायूं को हिंदुस्तान छोड़ना पड़ा था. लेकिन इस बीच हुमायूं ने हमीदा बेगम को मना ही लिया. उस दौर में हुमायूं कभी नदियां पार करते तो कभी रेगिस्तान में भटक रहे थे. पेट से होने के बावजूद भी हमीदा बेगम ने साहस नहीं छोड़ा.
हमीदा ने अमरकोट (जो अब पाकिस्तान में है) में अकबर को जन्म दिया. एक ऐसे समय जब हुमायूं के पास अकबर को लपेटने के लिए कपड़ा तक नहीं था. उन्होंने अपनी पत्नी की ओढ़नी का एक हिस्सा फाड़कर इस्तेमाल किया. अकबर को विश्वासपात्र लोगों के पास छोड़कर दोनों मदद के लिए भटकते रहे. फारसी शासक की मदद से हुमायूं ने 12 हज़ार सैनिकों के साथ सिकंदर सूरी को हराकर दोबारा हिंदुस्तान पर कब्जा किया.
‘हुमायूंनामा’ में गुलबदन लिखती हैं कि लौटने के बाद जब हमीदा बेगम, अकबर से मिलने आती हैं तो हुमायूं सभी शाही औरतों को एक जैसे कपड़े पहनने के लिए कहते हैं. वो देखना चाहते थे कि शहजादे अकबर अपनी वालिदा को पहचान पाते हैं या नहीं? अकबर को जब उनके बीच ले जाया गया तो सब भौचक्के रह गए. जब अकबर दौड़कर सीधे अपनी अम्मी की गोद में बैठ गए.
मुगल महिलाएंगुलबदन, बाबर की तीसरी पत्नी दिलदार बेगम की बेटी थीं. लेकिन उन्हें बाबर की पहली पत्नी माहम बेगम ने गोद लिया था. हुमायूं की हार के बाद माहम बेगम ने ही शाही बेगमात और हरम की दूसरी औरतों का नेतृत्व किया था. हुमायूंनाम में उनका जिक्र भी मिलता है. जब मुगल परिवार को शेर शाह सूरी की सेना से बचने के लिए गंगा नदी पार करनी पड़ी थी. ठंडी रातों के दौरान तंबू में आसरा ले रही मुगल बेगमों और शहजादियों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. उस दौरान माहम ने तमाम हरम की औरतों का हौसला बनाए रखा. वो अक्सर कहती रहती थीं ‘हम वापस लौटेंगे, क्योंकि ये ज़मीन हमारी है.’ गुलबदन बेगम ने अपनी किताब में हुमायूं की मौत का भी जिक्र किया है, उन्होंने लिखा ,
अकबर का दौर“एक दिन जब हुमायूं किताबखाने में सीढ़ियों से नीचे उतर रहे थे. तभी मस्जिद से अज़ान की आवाज़ सुनाई दी. उन्होंने उसी समय झुककर सज्दे में जाना चाहा लेकिन पैर पायजामे में उलझ गया और वो सीढ़ियों से नीचे आ गिरे. उनके सिर पर गहरी चोट आई और कान से ख़ून निकलने लगा. कुछ दिन बाद उनका इंतकाल हो गया."
आगे अकबर के बादशाह बनने के बाद गुलबदन बानो फतेहपुर सीकरी के महल में रहने लगीं. वो मुगल खानदान की पहली औरत थीं जिन्होंने हज पर जाने का फैसला किया. गुलबदन ने अपने जीवन के आखिरी साल अकबर के संरक्षण में ही बिताए. उनकी अहमियत इस बात से समझी जा सकती है कि बादशाह अखबर जहां भी जाते थे वहां उनके तंबू के अगल-बगल बुआ गुलबदन और मरियम मक्कानी हमीदा बेगम के तंबू लगाए जाते थे. सन 1603 में 80 साल की उम्र में गुलबदन बेगम ने दुनिया से रुखसती ले ली. बादशाह अकबर को इस बात से गहरा सदमा पहुंचा. उन्होंने अपनी बुआ के जनाजे को कब्रिस्तान तक कंधा दिया था. और इस तरह मुगल काल की महिला इतिहासकार ने अपने शब्दों को हमेशा के लिए किताब में गढ़कर दुनिया को अलविदा कह दिया.
वीडियो: तारीख: वो महिला जो मुग़लों के दौर में हज करने गई, कहानी गुलबदन बेगम की